Basant Story: सरबतिया
ओ ..बिटिया सरबतिया…….
अपनी झोपड़ी के दरवाज़े के बाहर ,बड़ी हवेली हवेली वाले राजा ठाकुर के यहाँ काम करने वाले रामधन चच्चा की रौबदार आवाज सुनकर हुमक उठी थी नौ साल की नन्ही सी सरबतिया …….
अभी आई चाचा,उसने ख़ुशनुमा आवाज़ में कहा,और दुआ में हाथ ऊपर उठाकर बोली ,”अल्लाह आप बहुत अच्छे हैं।”
आज अपने बाबा के हवेली पतंगे पहुंचाने के लिए जाने के बाद अकेले उसने भी अपनी पतंग उड़ाई थी ।
अपनी सहेली की छत पर कित्ती ऊँची उड़ी थी ,पर जल्दी कट गई।
घर आने के बाद तब से बड़ी मायूस बैठी थी,पर खुद को तसल्ली दे रही थी कि जरूर उसकी दुआ अल्लाह तक पहुँचेगी।
आज बाबा खूब सारे पैसे लाएँगे तब मनभर कर।दूध जलेबी खाऊँगी उसने अपने सूखे होठों पर जीभ फिराते हुए मन मे सोचा।
बाबा ने कहा था,कि वो हवेली में बतायेंगे कि उनकी बिटिया ने भी बहुत मेहनत की है,ईनाम मिलेगा तुझे।
ये सोच वो मन मे इतना खुश हुए जा रही थी,कि लेई बनाने में जली हुई उँगलियों और बांस की डंडियों को छिलने में कटी हथेलियाँ भी आज खल नहीँ रही थीं।
उसने अब्बा से छुपकर अपनी एक नन्ही सी पतंग बनाई थी,और जब उस्ताद जी से अपनी मुराद पतंग पर लिखवाने गयी थी।
तब उन्होंने हँसते हुए कहा था ,अल्लाह जरूर पूरा करते हैं बच्चों का कहा।
इस साल रामधन चाचा ही तो राजा ठाकुर के यहाँ से पतंगों का ऑडर लाये थे।
इस बरस बसन्त का काम ज्यादा मिला था बाबा को ,सो पूरे मन से उसने हाथ बंटाया था,उन दोंनो को ही एक दूसरे का सहारा था।
हवेली जाने की खुशी में वो तैयार होने में लग गयी,तब तक फिर पुकार लगी जल्दी कर न
बिटिया।
जी ……ज़रा ठहरिये …आती हूँ चच्चा…..जोर से बोली
,फिर अपने साफ सूती सलवार कुर्ते पर अपनी जन्नतनशीं अम्मा की बेदम शाल ओढ़कर दुआ पढ़ती हुई जल्दी जल्दी निकल आई सरबतिया यानी शरबती।
उसकी आँखें बड़ी बड़ी ,शफ़्फ़ाक रँग और मीठी सी बोली उसके नाम को सार्थक ही करते।
उसने सरसों के फूल और गेंदे के फूल को जोड़ एक नन्हा सा गुलदस्ता भी बनाया था अपने लिए,पर हवेली से बुलावा सुन उसे हाथ मे लेकर बाहर आ गयी।
रामधन के पीछे पीछे चलती हुई,अपने मन में न जाने कितनी बातें किये जा रही थी,बात बेबात मुस्कुरा पड़ती,कब से इन्तज़ार कर रही थी ,बसन्त का।
ज़रूर बसन्त का इनाम देने को बुलाया होगा राजा ठाकुर ने…..भरे जाड़े में कित्ती मेहनत से बनबाई हैं बाबा के साथ पतंगे।
सरबतिया को बड़ा इंतज़ार होता बसन्त का उसके बाबा को खूब सारा काम मिलता और उसे उसकी पसन्द की सारी चीज़ें।
बसन्त के आगमन में सरबतिया की कई नन्ही मुन्नी मुरादें पूरी हो जातीं ,उसकी ख्वाहिशें भी पतंग की तरह छोटी छोटी थीं।
डोर मिलीं तो थोड़ा उड़ने के बाद कट जातीं वरना रखे रखे बदरंग हो कर फट जातीं।
हर साल की तरह पूष के महीने में ज्यादा काम न मिलता था बाहर।घर चलाना बड़ा मुश्किल होता। तब उसके बाबा महमूद घर मे बैठ पतंगसाजी करते ,उसके यहाँ यही काम था पुश्तैनी।
नबाब साहब के हाते में उसकी बनाई पतंगों की बड़ी चाह होती थी।
उस पर उसका खास मांझा और लटाई जिसे चरखी भी कहा जाता था, बड़ी दूर दूर के नातेदार रिश्तेदार जुड़ते थे ।
मकर सक्रान्ति से लेकर बसन्त पंचमी तक,तीन दिन उत्सव होता ,बच्चा बसन्त ,बसन्त पँचमी को बड़े बसन्त और उसके अगले दिन बूढ़े बसन्त।
सरबतिया के अब्बा महमूद एक पुश्तैनी पतंगसाज थे,उनके हुनर की क़दर सुन कर ही राजा ठाकुर ने
अपनी खास पतंगें बनबाई थी।
सारा सामान भी उन्होने बाहर से खरीद कर महमूद को दिया था और महमूद ने उसमें अपना जीजान लग दिया।
राजा ठाकुर यूँ तो बड़े अच्छे थे ,पर उन्हें चोरी और अमानत में ख़यानत ना क़ाबिले बर्दाश्त थी,बेइमान की वो ख़ैर न छोड़ते।
बसन्त पँचमी पर उनकी हवेली में बंटने वाली खीर की मिठास उसकी कल्पना में ही मुँह में घुल गयी और जब वो सपनोँ से बाहर आई तो देखा।
हवेली के बड़े से फ़ाटक की साँकल भी खुल गयी थी।
इतनी सर्दी में उसके प्यारे अब्बू ज़मीन पर चोरी में बन्धक बने बैठे थे और बाजू रस्सियों से पीछे हाथ कर बाँधे गये थे।
सरबतिया के नन्हे हाथों से राजा ठाकुर के लिए लाया गया गुलदस्ता फर्श पर छूट गया ,और वो उस्तादजी झूठे हैं अल्लाह नहीं सुनते कहकर बिलख पड़ी।
गुनाह उन दोनोँ में किसी को पता न था,इतने में कारिंदा वही कटी पतंग अपने हाथ मे लेकर आया जो सरबतिया ने छुपकर बनाई थी।
तब तक राजा ठाकुर भी आ गए और मामला आईने की तरह साफ था,महमूद पर इल्जाम लगा , पतंगों के कागज़ और सामान की चोरी का।लाचार सरबतिया अपनी बातें दोहराती हुई रोये जा रही थी।
राजाठाकुर ने पतंग हाथ मे ली और आग्नेय नेत्रों से महमूद को देखा,
माईबाप बच्ची है क्षमा…और हाथ जोड़ दिये,तब तक किसी ने कहा सरकार कुछ लिखा है पतंग पर पर उर्दू में लिखा किसी की समझ मे न आया।
उधर राजा ठाकुर के खास मेहमान नबाव साहब जो वकील भी थे, बैठक में तशरीफ़ लाये, उनके सरकारी मुकदमें में जीतने की ख़बर लेकर।
मगर उनकी नज़र राजा साहब के हाथ की उस नन्ही सी पतंग पर ठहर गयीं,जिस पर खूबसूरत लिखावट में लिखा था।
“अल्लाह राजा साहब की खुशियों की उम्र लम्बी करना ,जिससे बसन्त हमेशा बना रहे।”
बड़ी प्यारी दुआ है किसने लिखा है ?
ये सुन राजासाहब के चेहरे पर छाया क्रोध ममता में बदल गया,उन्होंने तो अपने लिये सदा षड़यंत्र ही सहे और सुने थे ।
ये दुआ फलित हुई , शरबतिया रोकर कह रही थी , बाबा को छोड़ दो राजा साहब उसकी तरफ बढ़े ,
उसने डर से आँखे बंद करलीं,जब आँखे खोलीं तो उसने खुद को राजा साहब की गोद में पाया।
तुम भाग्यवान हो महमूद इतनी समझदार है तुम्हारे पास।
उन्होंने उसके नन्हे हाथों में पतंगों से मिले ज़ख्म देख उसे गोद लेने का ऐलान किया और शिक्षा की व्यवस्था की ।
साथ ही,वापसी में उपहार दिए और पतंग भी ।
इस बार बसन्त का मौसम हमेशा के लिये ठहर गया था ,शरबतिया की दुआ अल्लाह ने कुबूल की थी
