………..फादर जोजफ को उसी दिन टूर पर जाना था, इसलिए अस्पताल को दूसरे फादर तथा सिस्टर की देखरेख में छोड़कर वे चले गए। राधा चार दिन में ही स्वस्थ हो गई। बाबा हरिदयाल पहले ही स्वस्थ हो चुका था। मिलने के समय पर वह राधा के पास सुबह आ बैठता। अपनी बातों से वे एक-दूसरे का दिल बहलाते रहते, परंतु एक बात उनके सामने अब तक समस्या बनकर खड़ी थी। जब तक फादर जोजफ नहीं आ जाते, वे किस प्रकार अस्पताल छोड़ें? उन्होंने इनके लिए इतना किया, नया जीवन राधा को प्रदान किया। यूं इस प्रकार उनकी आज्ञा बिना यहां से चले जाने से उनके दिल को ठेस पहुंच सकती थी। इधर जैसे-तैसे दिन बीतते जा रहे थे, उनके दिल का भय बढ़ता जा रहा था, कहीं राधा की खोज में कृपाल सिंह के आदमी न आ धमकें! इसलिए अस्पताल में रहकर वे अपने को पूर्णतया छिपाने की सावधानी बरतते रहे। यदि किसी भी अजनबी पर राधा को संदेह हो जाता तो वह झट चादर या कम्बल से अपने आपको मुंह तक ढांक लेती। बाबा हरिदयाल दूर ही से किसी अज़नबी को देखकर छिप जाता‒चाहे वह उसकी तलाश में भी नहीं हो।
चौथे दिन की ही शाम थी। राधा अपने पलंग पर लेटे-लेटे उकता गई तो उठकर खिड़की पर चली आई। उसका नन्हा दूध पीकर सो चुका था। खिड़की से वह सामने एक हवेली को देखने लगी, जो अस्पताल की चारदीवारी के उस पार थी। हवेली पुरानी थी, परंतु अपनी शान में कमी नहीं रखती थी। इस हवेली को वह लेटे-लेटे कई बार देख चुकी थी, परंतु आज वह खिड़की को खोलकर बहुत गौर से ऊपर से नीचे तक देखने लगी। बड़े-बड़े दरवाजे, खिड़कियां, ऊंची-ऊंची दीवारें। दीवारों पर काई जमी हुई थी, जैसे कई वर्षों से इस पर सफ़ेदी नहीं की गई हो। खिड़कियों के शीशे भी मैले थे। हवेली का यह पिछला भाग था। एक बूढ़ी आया ने समीप के पलंग पर चादर बदलते हुए उसे हवेली में खोया हुआ देखा तो बोली‒‘यह हवेली रामगढ़ के राजा सूर्यभान सिंह की है।’
राधा के पैरों तले की ज़मीन सरक गई। उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह फिर धरती की धुरी के समान अपने पिछले स्थान पर चली आई है। उसने आश्चर्य से आया को देखा।
आया ने कहा‒‘उसके मर जाने के बाद इस हवेली का एकमात्र वारिस उनका बेटा राजा विजयभान सिंह है। सुना है वह अपने बाप के समान बहुत आवारा और जालिम है। सूर्यभान सिंह यहां के एक जागीरदार कृपाल सिंह के बहुत निकटीय मित्र थे। जब वह आते तो इस हवेली में ठहरते थे, तब इस हवेली की शान ही कुछ और थी। रात-रातभर मुज़रे होते, कृपाल सिंह अपने गांव की सुंदरियों का अपहरण करके उनके आगे पेश करने में बड़ा गर्व प्रतीत करते। उन दिनों राजा-महाराजाओं की मेहमाननवाज़ी इस प्रकार की जाती थी। परंतु भगवान का शुक्र है कि अब देश आज़ाद हो चुका है। राजा-महाराजाओं के जुल्म करने के दिन चले गए। हरेक को जीने का अधिकार प्राप्त है। सूर्यभान सिंह तो मर गए, परंतु कृपाल सिंह कमबख्त अब तक जीवित है। मरेगा तो मैं सवा रुपए का प्रसाद हनुमानजी को चढ़ाऊंगी।’
राधा ने सोचा संसार में शायद ही कोई ऐसा गरीब होगा, जिसे राजा-महाराजाओं से घृणा नहीं होगी। सभी तो इनके सताए हुए हैं। शायद इसलिए अंग्रेज़ी सत्ता भी नहीं चली। संसार का कोई भी राज्य गरीब जनता के साथ के बगैर नहीं चल सकता।
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राधा आया की बातों में खो गई। जब उसने ऊपर हवेली पर दुबारा दृष्टि उठाई तो चौंक पड़ी। एक खिड़की खुली हुई थी और कोई उसे बहुत गौर से देख रहा था। प्रताप सिंह! विजयभान सिंह का मंत्री। यद्यपि शाम ढल चुकी थी और हवेली की पिछली खिड़कियों में अंधकार छाया हुआ था, फिर भी उसके दिल की भयभीत धड़कनों ने उसे तुरंत पहचान लिया। और यदि वह प्रताप सिंह की छाया नहीं भी हो, तब भी किसी शत्रु की छाया तो अवश्य ही थी। संभवतः यह कृपाल सिंह का ही आदमी हो। घबराकर वह पीछे हट गई और झट खिड़की बंद कर दी। वह छाया भी राधा को देखकर छिपने का प्रयत्न कर रही थी, इसलिए राधा का संदेह और दृढ़ हो गया।
वहां से हटकर वह पलंग पर जाकर बैठ गई, सोचने लगी कि उसे क्या करना चाहिए। कुछ देर बाद बाबा आ गए और उसके पास आकर स्टूल खींचकर बैठ गए। बाबा को देखकर राधा के दिल को कुछ तसल्ली मिली।
‘बाबा! इतनी देर तुमने क्यों कर दी?’ उसने घबराकर एक ही बार में सब कुछ कह देना चाहा, परंतु पहले यह प्रश्न होंठों से निकल पड़ा।
‘पादरी साहब आ गए हैं…’ बाबा ने कहा। फादर जोजफ को वह पादरी साहब कहा करता था। ‘मैंने सोचा जो मूर्ति मैंने बनाई है, उसे उन्हें भेंट कर दूं। आख़िर उन्होंने क्या नहीं किया हमारे लिए। अब सुबह यहां से जाने की अनुमति मांगूंगा। आज वह काफी व्यस्त लग रहे थे।’
बाबा हरिदयाल ने इन दिनों छोटे-मोटे औजारों के सहारे एक सफ़ेद पत्थर की मूर्ति तैयार कर ली थी… प्रभु यीशु मसीह की मूर्ति, ताकि उन्हें ख़ुश करने के लिए भेंट कर सके। यद्यपि मूर्ति अच्छी नहीं बन सकी थी, फिर भी फादर जोजफ ने उसका दिल रखने के लिए बहुत कृतज्ञ होकर स्वीकार कर ली।
राधा ने सारी बीती बातें कह सुनार्इं। बाबा की आत्मा कांप गई। घबराकर संदेहपूर्वक वह हर आने-जाने वाले को देखने लगा। थोड़ी देर बाद वार्ड में फादर जोजफ प्रविष्ट हुए। दूसरे मरीज़ों को देखने के बाद वह ज्यों ही राधा के समीप पहुंचे, बाबा हरिदयाल उठ खड़ा हुआ, राधा ने एक पल गंवाये बिना ही उन्हें अपने दिल का भय बताकर यहां से तुरंत ही जाने की इच्छा प्रकट की। बाबा हरिदयाल ने उन्हें अपनी तथा राधा की बीती सुनाने में ज़रा भी संकोच नहीं किया।
‘बाबूजी…!’ राधा ने उनके आगे विनती करते हुए हाथ जोड़ दिए। ‘आपका उपहार हम जीवनभर नहीं भूल सकेंगे। आपने हमें नया जीवन दिया है, परंतु कृपया अब और हमें यहां ठहरने को मत कहिए। आपको नहीं मालूम ये दोनों हमारी जान के पीछे पड़े हैं, विजयभान सिंह तथा कृपाल सिंह।’
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