जब सुबह की कोमल किरणें जीवन की नई ज्योति लेकर अस्पताल की खिड़कियों के शीशों द्वारा अंदर प्रवेश करके राधा के पपोटों को खटखटाने लगीं तो उसने आंखें खोल दीं। जीवन का अंधकार मानो बिछुड़कर बहुत दूर चला गया था। हर तरफ ठंडक थी, दिल को शांति प्रदान करने वाली ख़ामोशी थी। उसने अपने चारों ओर का निरीक्षण किया। उसका वार्ड बिलकुल साफ़-सुथरा था। अस्पताल शायद नया था। एक गांव की गोरी होकर वह यही अनुमान लगा सकी।
वार्ड में दूसरे पलंग भी थे, सभी पर औरतें थीं, गरीब, बदहाल, परंतु यहां के वातावरण में पूर्णतया संतुष्ट। कुछेक के पलंगों के समीप छोटे-छोटे पालनों में बच्चे फूलों के समान मुस्करा रहे थे। राधा ने उत्सुक दृष्टि से अपने बच्चे के पालने की ओर देखा। नन्हा-सा फूल अपनी छोटी-छोटी आंखें मींचे सो रहा था। अपने फूल को देखकर उसके होंठों पर कलियों-सी मुस्कान आ गई। मिशनरियों ने यह अस्पताल शायद केवल गरीबों के लिए ही बनाया था। हर औरत के शरीर पर उनके अपने दिए हुए वस्त्र थे, साफ़-सुथरे। राधा ने अपने आपको भी परखा। सफ़ेद कपड़ों में उसका रंग दूध के समान खिल उठा था।
सहसा उसे अपने बाबा की याद आई। उसने इधर-उधर देखा, सामने के दूसरे वार्ड में एक नर्स खड़ी थी। चाहा कि वह इस ओर पलक उठाए तो वह उसे बुला ले। तभी उसी ओर से डॉक्टर ने उसके वार्ड में प्रवेश किया। पादरियों के समान सफ़ेद चोगा, गले में सलीब और हाथ में स्टेथेस्कोप। रंग सफ़ेद, सिर के बाल भूरे, दाढ़ी बढ़ी हुई। आंखों में जीवन की वास्तविक शांति की चमक, होंठों पर एक देवतुल्य मुस्कान। कोई विदेशी डॉक्टर थे वे। उन्हें देखकर राधा ने उठकर बैठना चाहा, परंतु उन्होंने उसे मना कर दिया। दूसरे वार्ड की नर्स उन्हें देखकर इधर दौड़ी चली आई थी। उसने झट एक कुर्सी को उठाकर राधा के समीप रख दिया तो फादर उस पर बैठ गए।
‘कैसी हो बेटी?’ फादर ने राधा की कलाई थामकर पूछा।
‘आपकी दया है बाबूजी!’
‘मेरी नहीं, ईश्वर की।’ फादर बोले‒ ‘कल तुम्हारी अवस्था देखकर तो मैं घबरा गया था, परंतु अब तुम्हें कोई भय नहीं। बुखार भी उतर चुका है, इसलिए बच्चे को तुम दूध पिला सकती हो।’
राधा कुछ न बोली, कृतज्ञ होकर उसने सिर नीचा कर लिया।
‘हम नहीं जानते तुम कौन हो, क्या करती हो, कहां से आई हो?’ फादर जोजफ ने कहा‒ ‘हमें इन बातों से कोई मतलब भी नहीं। हमें इतना मालूम है कि तुम एक असहाय नारी हो। तुम्हारे बाबा ने तुम्हारा नाम राधा बताया है। तुम्हें सहायता की आवश्यकता थी और इसलिए हम तुम्हें कदापि निराश नहीं होने देंगे। हमारे जीवन का मकसद ही यह है कि भटके हुओं को मंजिल का रास्ता बताएं। हम चाहते हैं कि जब तक तुम पूर्णतया स्वस्थ नहीं हो जाओ, यहीं अस्पताल में रहो। इसके बाद यदि तुम चाहोगी तो हम तुम्हें तथा तुम्हारे बाबा को यहां कोई काम दे देंगे, तुम दोनों की गुज़र हो जाएगी।’
राधा कुछ न बोली। अपने बाबा की इच्छा के बिना कोई भी काम करना, उसके बस में नहीं था। पता नहीं बाबा ने इनसे क्या बात की हो? पता नहीं बाबा उसके स्वस्थ होने के बाद यहां रहना पसंद करेंगे भी या नहीं? बेलापुर यहां से होगा ही कितनी दूर। यदि कृपाल सिंह को मालूम हो गया कि राधा यहां है, तो उसका अपहरण करने के लिए वह कोई भी भयानक कदम उठा सकता है। उसने चाहा कि फादर जोजफ को अपनी मजबूरी के बारे में सब कुछ बता दे, परंतु फिर रुक गई। कहीं ऐसा न हो कि इनकी जान-पहचान कृपाल सिंह से भी हो। बड़े लोगों का एक-दूसरे से मिलना-जुलना लगा ही रहता है। उसने सब कुछ बाबा की इच्छा पर छोड़ दिया और पूछा‒‘बाबा कहां हैं?’
आगे की कहानी अगले पेज पर पढ़ें –
‘कल रात वह भी इतना अधिक भीग गए थे कि ज्वर चढ़ गया, परंतु घबराने की अब कोई बात नहीं। वह बिलकुल स्वस्थ हैं।’
राधा फादर जोजफ की महानता के बारे में सोचने लगी।
‘तो मैं उम्मीद रखूं कि स्वस्थ होते ही तुम दोनों यहीं काम करना सीख लोगे?’ फादर जोजफ ने पूछा।
‘लेकिन बाबूजी…!’
‘घबराओ नहीं।’ फादर जोजफ ने उसकी चिंता का अनुमान किया‒ ‘तुम्हारे बच्चे की देखभाल का यहां पूरा प्रबंध है।’
‘यह बात नहीं बाबूजी…!’
‘तो फिर क्या बात है?’ फादर जोजफ ने आश्चर्य से पूछा।
राधा से कोई उत्तर बन नहीं पड़ा। बिना अपने बाबा से राय लिए वह क्या कहती।
‘यह नर्स जो तुम देख रही हो ना, और वह नर्स, और वह डॉक्टर।’ फादर ने कहा‒ ‘ये सब एक दिन इसी अस्पताल के रोगी थे। कुछेक लड़कियां तो अपने जीवन से उकताकर आत्महत्या के प्रयत्न में बिलकुल गिरी तथा शोचनीय अवस्था में यहां लाई गई थीं, परंतु जब हमने उन्हें जीवन का वास्तविक मकसद समझाया तो उन्होंने जीना सीख लिया। जाने कितने ही लोगों को हमने अपने पैसे से पढ़ाया-लिखाया, कुछेक को विदेश तक भेजा। तुम्हारा बच्चा यदि गुणी निकला तो उसको भी ऐसी ही सुविधाएं दी जाएंगी, परंतु इतना हम अवश्य चाहेंगे कि जो कुछ आज तक तुम्हारे लिए कर रहे हैं, उसे कल तुम दूसरों के साथ भी करो। इस भलाई का फल एक स्थान पर सीमित होकर न रह जाए, वरना हमारा ध्येय तथा हमारा मिशन बेकार जाएगा। समझो हमारी सेवा, हमारी मेहनत से फिर कोई लाभ नहीं होगा।’
राधा ने समीप खड़ी नर्स को देखा। जीवन की कामनाओं में धोख़ा खाने के बाद उसकी आंखों की ज्योति मंद- मंद थी, परंतु जब वह मुस्कुराई तो राधा का मन हुआ वह भी इस मुस्कुराहट में सम्मिलित होकर जीने का एक नया सहारा चुन ले।
परंतु कृपाल सिंह, वह स्वार्थी जागीरदार कभी उसे छोड़ेगा? अपनी योजना की पूर्ति के लिए वह उसके बच्चे को आस-पास तथा दूर-दूर तक ढूंढने निकलेगा। दो मील की दूरी पर स्थित इस अस्पताल में आ जाना उसके लिए एक मामूली-सी बात होगी। अब बाबा आएं तो इस बात का निर्णय किया जाए।…………..
ये भी पढ़ें-
