…………राधा का दिल बहुत ज़ोर से धड़का। सरोज अपनी ओर से बाहर निकल चुकी थी इसलिए वह भी उनके पीछे बाहर आ गई, उसकी बेचैनी और बढ़ चली थी।
‘क्या बात है बेटी?’ अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयास करते हुए उसने पूछा, ‘यह तुम लोग मुझे कहां ले आए?’ अस्पताल की इमारत पर उसने एक दृष्टि डाली।
‘घबराओ नहीं बहन! सब ठीक हो जाएगा… सब ठीक हो जाएगा।’ ठाकुर धीरेंद्र सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उनके आगे कमल की वास्तविकता प्रकट करें।
‘क्या ठीक हो जाएगा?’ राधा की आवाज़ एकदम कांप गई। वह बोली, ‘अवश्य तुम लोग मुझसे कुछ छिपा रहे हो, कहीं मेरे लाल को तो कुछ नहीं हो गया है? आख़िर रामगढ़ जाते-जाते तुम लोग मुझे यहां क्यों ले आए? कहां है मेरा कमल, कहां है मेरा लाल? कहां है?’ राधा को ऐसा लगा मानो उसका दिल ही बैठ जाएगा। उसने सरोज को देखा तो सरोज सब्र न कर सकी। तड़पकर रो पड़ी।
‘सरोज‒सरोज!’ राधा ने लपककर उसकी बांहें थाम लीं। चीख़कर पूछना चाहा।
परंतु तभी एक डॉक्टर बरामदे की सीढ़ियां उतरकर उनके मध्य खड़ा हो चुका था। गाड़ी की छत पर बंधा हुआ सामान देखकर वह ठिठका, फिर उसने गाड़ी के पीछे की नंबर प्लेट भी देखी और उनकी ओर पलटा।
‘क्या आप ही लोग इस गाड़ी में आए हैं…?’ उसने पूछा।
‘जी हां…।’ ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने झट उत्तर दिया।
‘यह कमल की माताजी हैं?’ उसने राधा की ओर इशारा करके पूछा।
‘जी हां, जी हां।’ ठाकुर धीरेंद्र बोले, ‘कमल कैसा है?’
‘कमल की जिंदगी के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।’ डॉक्टर ने गंभीर होकर कहा, ‘बेहोशी में वह कुछ-न-कुछ बड़बड़ा ही रहा है, वैसे उन्हें आप दूर से देख सकते हैं। अभी-अभी उन्हें ख़ून दिया गया है, इसलिए आप उसे डिस्टर्ब बिलकुल न कीजिएगा। वार्ड नंबर बी-16 सामने ही है।’
‘ख़ून!’ राधा से नहीं रहा गया तो उसने आश्चर्य से पूछा, ‘लेकिन कमल को हुआ क्या है?’
‘एक मूर्ख ने अपने स्वार्थ के लिए उस बेगुनाह की हत्या करनी चाही थी।’ ठाकुर धीरेंद्र सिंह को कहना ही पड़ा।
‘क्या?’ राधा की जान ही निकल गई। वह तड़पकर चीख़ उठी, ‘नहीं-नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा कभी नहीं हो सकता। कौन था वह बदमाश? मैं उस जालिम का मुंह नोंच लूंगी। मैं… मैं…’ और तभी उससे रहा नहीं गया तो वह अस्पताल के अंदर भागी।………….
डॉक्टर ने उसे बहुत आश्चर्य से देखा। सरोज ने एक बार डॉक्टर को देखा फिर अपने डैडी को, फिर वह भी तेज पगों से अंदर को चली गई। ठाकुर धीरेंद्र सिंह भी घबराकर अंदर हो लिए तो डॉक्टर भी पीछे-पीछे चला आया।
राधा की सोचने-समझने की शक्ति गुम हो रही थी, लपकते हुए उसने अंदर जाकर देखा, वार्ड के नंबर ऊपर जाने वाली सीढ़ियों के पास ही लगी प्लेट पर अंकित थे। एक पल को वह वहां रुकी, फिर फूलती सांसों के साथ ऊपर को चढ़ गई। बालकोनी में पहुंचते ही उसने दृष्टि की। वार्ड बी-16 सामने था। भागती हुई वह एक ही झटके में अंदर प्रविष्ट हो गई। नर्स एक कुर्सी पर धंसी कोई उपन्यास पढ़ने में मग्न थी। राधा को देखते ही वह चौंकी। चाहा कि उसे आगे बढ़ने से रोके परंतु इससे पहले ही राधा कमल की छाती से लिपटकर अपने मस्तिष्क का संतुलन खो बैठी थी।
कमल के शरीर में हरकत हुई। पीड़ा से वह कराह उठा परंतु राधा मानो पागल हो उठी थी। वह यह समझ न सकी कि कमल बेहोश है।
‘मेरे लाल‒क्या हो गया है तुझे मेरे लाल?’ वह तड़पकर बोली‒ ‘किस जालिम ने तेरे साथ इतना बड़ा अन्याय किया है? कौन है वह नीच? मैं…मैं उस हत्यारे का मुंह नोंच लूंगी। बोल मेरे लाल…बोल…’ राधा के गाल आंसुओं से तर हो गए।
कमल बेहोश था और उसके साथ उसके शरीर का एक-एक अंग बेहोश था। यदि कोई अंग हरकत कर रहा था तो वह था उसका दिल जो कानों के पर्दे बेहोश होने के कारण कुछ सुन नहीं सकता था, परंतु अपनी अवश्य कह सकता था और जो कुछ वह कहता था वह उसके होंठों की कंपन से बाहर आते ही बड़बड़ाहट में परिवर्तित हो जाता था। यदि होंठ अधिक खुल जाते तो स्वर साफ़ हो जाता था और इसीलिए वह यह जान न सका कि उसकी छाती पर उसकी मां रो रही है, उसके कानों में उसका स्वर आ रहा है। उसका दिल काम कर रहा था इसलिए दिल की पुकार एक बार फिर लड़खड़ाते होंठों पर आ गई। पीड़ा से कराहते हुए उसने कहा‒पिताजी!’
राधा को मानो सर्प सूंघ गया।
‘क्या? क्या तेरा बाप जिंदा है?’ उसने क्रोध से होंठ भींचकर कहा।
‘हां राधा बहन!’ उसका वाक्य पूरा होते-होते रूपमती अंदर प्रविष्ट हुई। राधा को कमल से अलग करने का प्रयत्न करते हुए उसने कहा, ‘कमल के पिता राजा विजयभान सिंह जीवित हैं।’
नर्स उसी प्रकार खड़ी थी। राधा की अवस्था उससे देखी नहीं जाती थी। रूपमती के पीछे-पीछे दूसरे लोग भी चले आए थे‒ठाकुर धीरेंद्र सिंह, सरोज, डॉक्टर। बगल के वार्ड से निकलकर एक नया रोगी भी कमल के वार्ड के समीप ही आकर खड़ा हो गया था, दरवाजे के समीप, दीवार से लगकर। बूढ़ा, उलझे हुए अर्ध सफ़ेद बाल, दाढ़ी-मूंछें पकी हुईं। उसके बुझे-बुझे चेहरे की आंखों में जीने की एक आशा ज्योति बनकर चमक रही थी। इस ज्योति को सदा जलाए रखने के लिए ही उसने एकदम से अंदर जाना उचित नहीं समझा था। उसे देखकर कमल तथा राधा पर जाने क्या प्रभाव पड़ता। छिपकर वह यह देखना चाहता था कि राधा ने उसे क्षमा कर दिया है या नहीं। कान लगाकर वह बहुत ध्यान से अंदर की बातें सुनने लगा।
…………….‘उनकी मुलाकात हवेली में ही कमल से हुई थी। वहां छिपकर वह गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रहे थे।’ रूपमती कह रही थी।
‘उफ! मेरे भगवान यह क्या हो गया?’ राधा घृणा से दांत पीसकर अपनी छाती पीटने लगी। पूरी बात जाने बिना ही बोली, ‘यह क्या गजब हो गया? आख़िर मेरे लाडले पर उस पापी की छाया पड़ ही गई। मुझे मालूम होता कि वह जालिम अब तक जीवित है तो मैं अपने बेटे को रामगढ़ जाने ही नहीं देती। मैं उसका मुंह नोंच लूंगी।’
दरवाजे पर दीवार की आड़ में खड़ी छाया के शरीर में कंपन उत्पन्न हुई। आंखों में आंसू छलक आए। गला सूख गया। दिल बैठने लगा। उसे ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह अब और तब गिर पड़ेगा‒उसी जगह पर। उसके प्यार का इतना बुरा परिणाम! उसके जीवन-भर की तपस्या का फल‒कांटों का उपहार! अब यह कांटों का उपहार पहने-पहने ही उसका दम निकलेगा। राधा उसे कभी क्षमा नहीं करेगी‒कभी नहीं। उसने इतना अधिक अत्याचार किया है जिसका कोई प्रायश्चित नहीं! इतने पाप किए हैं जिनका कोई पश्चाताप नहीं। उसे इंसान तो क्या भगवान भी क्षमा नहीं करेगा। उसे अपनी ही नहीं, अपने बाप-दादों के पापों की सज़ा भी भुगतनी होगी। यह तो प्रकृति का नियम है‒बोता कोई है, काटता कोई। वृक्ष की नींव डालने वाला कभी इसकी छांव प्राप्त नहीं कर सकता। उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसकी जान ही निकल जाएगी। आंसू थे कि गालों से बहकर मूंछों तथा दाढ़ी में उलझ गये। शरीर में छुरियां घुप रही थीं। जब दिल का दर्द बढ़ने लगा, जब उसने अनुभव किया कि उसके पैर कांप रहे थे, वह वहीं लड़खड़ाकर गिर पड़ेगा तो उसने सख्ती के साथ अपने होंठों को काटा। अपनी जाती हुई सांसों को पूरी ताकत लगाकर एकत्र किया और फिर तेजी के साथ वहां से हटकर उतरती सीढ़ियों की ओर बढ़ गया। उसके पग एक बार ज़ोर से लड़खड़ाए भी परंतु वह रुका नहीं। सीढ़ियां उतरते-उतरते भी उसके कानों में राधा की चीख़ उसके प्रति नफ़रत की चिंगारियां बनकर उतर रही थीं। यह घृणा दूर तक पीछा किए रही। आगे बढ़ते हुए वह अपनी निराश कामनाओं के संसार में खो गया। राधा की घृणा और अधिक उससे सहन नहीं हो रही थी।
वार्ड में राधा अब तक चीख़ रही थी, ‘सारी जिंदगी उसने मुझे तड़पाया है, मेरा जीवन नरक बना दिया। मेरा और मेरे बच्चे का जीवन कठिन कर दिया। मुझे उसने कहीं का नहीं रखा, फिर भी उसे चैन नहीं मिला। इसीलिए भगवान ने उसका सब कुछ छीन लिया और इसीलिए उसने मुझसे यह बदला लिया है।’
‘राधा बहन!’ रूपमती उसकी बातों पर तड़प उठी। चीख़कर बोली, ‘तुम पागल हो गई हो क्या? यदि उन्होंने यह बात सुन ली तो उनका दिल टूट जाएगा।’
‘दिल!’ राधा कटुता से बोली, ‘उस समय उसके दिल को क्या हो गया था जब अपनी वासना की भूख मिटाने के लिए उस पापी ने सैकड़ों गरीबों का रक्त बहा दिया। हज़ारों लड़कियों को उठाकर फूल बनने से पहले ही मसल दिया। उस पापी के दिल भी है जो टूटे, आख़िर उस जालिम ने मेरे बेटे को मारकर ही दम लिया।’ राधा फूट-फूटकर रो पड़ी।
‘राधा बहन‒।’ रूपमती का दिल फूट गया। राधा की बात सुनकर वह अवाक् रह गई। बोली, ‘कमल को उन्होंने नहीं कृपाल सिंह के पोते ने मारा है, रुक्मिणी के लड़के ने।
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