…………..गधा भी ठंड और वर्षा के कारण जैसे अपना साहस छोड़ चुका था। वह टस-से-मस नहीं हुआ। बाबा अपनी बच्ची की बेबसी देखकर तड़प उठा। फूट-फूटकर वह रो पड़ा। राधा की आंखों के सामने मौत का अंधकार छाने लगा। काला और घना अंधकार। पलकें बंद होने लगीं तो वह दर्द के कारण अपने होंठों को सख्ती से काटने लगी ताकि चेतना जागी रहे, परंतु उसके शरीर का संतुलन डगमगाता गया। विवश होकर उसने अपना शरीर आत्मा के हवाले कर दिया।
चेतना खोने लगी और शरीर लुढ़कने लगा। बाबा ने रोते-बिलखते उसे संभाला और किसी प्रकार वहीं नीचे लिटा लिया। धरती कीचड़ से लथपथ थी, ऊपर से वर्षा की तेज़ झड़ी। राधा इसी में समा गई। बाबा ने अपना माथा पीट लिया। पागल होकर वह अपने बाल नोचने लगा। चीख़-चीख़कर सहायता की भीख मांगने लगा, परंतु उसकी आवाज़ बादलों की गरज तथा बिजली की कड़क में डूब गई। उसने दिल से प्रार्थना की कि यह धरती फट जाए, यह आकाश, यह वृक्ष उसके ऊपर गिर पड़े, कोई बिजली उन पर टूट पड़े, परंतु बिजली टूटी नहीं, केवल चमक कर ही रह गई, मानो उसके दिल की तड़प का ज्ञान करके उसकी सहायता के लिए अपना दामन फैला दिया हो।
कुछ ही दूरी पर उसने देखा छोटी-छोटी कुछेक खोलियां हैं। राधा को छोड़कर वह आस लगाए वहां पहुंचा तो अंदर से सुअरों के घुर-घुर्राने का स्वर सुनाई पड़ रहा था। उसने झट एक खोली के टिन का द्वार खोल दिया। सुअर अपने आप ही भेड़ के समान निकलकर बाहर भाग गए। द्वार छोटा था। बाबा ने झुककर अंदर देखा, चारों ओर अंधकार था। वह अंदर प्रविष्ट हुआ कि दुर्गंध से नाक फटने लगी। अंदर कीचड़-ही-कीचड़ भरा था, फिर भी उसने अपने हाथों से एक-एक कोना टटोला। फिर संतुष्ट होकर राधा के पास दौड़ा।
राधा अर्ध बेहोश पड़ी थी। उसने उसके कंधों की ओर से हाथ पकड़कर कीचड़ में घसीटा। उसका बूढ़ा और निर्बल शरीर राधा का बोझ उठाने योग्य अब ज़रा भी नहीं रह गया था। राधा कीचड़ में लथपथ होती चली गई। किसी तरह बाबा ने खोली के समीप पहुंचकर राधा को अंदर किया। राधा अपनी आंखों में आंसू लिए अपने बाबा को देख-देखकर तड़पती रही।
भगवान! आख़िर यह किस बात का दंड है? बाबा ने अपनी बच्ची को छाती से लगा लिया, उसका पेट सहलाने लगा। राधा की आंखें बंद होने लगीं, होंठ भिंच गए। उसके शरीर से मानो कोई आत्मा निचोड़कर निकाल रहा था और उससे इसका दर्द अब सहन नहीं हो रहा था। राधा का दर्द, उसकी तड़प देखकर बाबा का कलेजा फट गया। अपनी बेबसी पर वह चीख़-चीख़कर रोने लगा।
राधा की मुट्ठियां कस गईं। उसने अपने बाबा की बांहें इस सख्ती से थामीं कि वहां का रक्त रुक गया। राधा दर्द से चीख़ने लगी। बाबा की हथेली जब सामने पड़ी तो उसने इसे दांतों से पकड़ लिया। दर्द बर्दाश्त से बाहर था, इसलिए वह इसे ही काटती चली गई।
तभी एक नन्हें से बच्चे ने जन्म लिया। राधा के दांत ढीले पड़ गए। मुट्ठियां ढीली पड़ गईं। होंठों को भींचकर उसने अंधकार में अपने बाबा को देखा। सुअरों की खोली में, कीचड़ से लथपथ एक पुरुष की संतान ने जन्म लिया था। पुरुष की संतान!
सहसा खोली के बाहर कुछेक पुरुषों का स्वर सुनाई पड़ा। टॉर्च का प्रकाश इधर-उधर भटककर ठीक उनकी खोली पर आकर रुका। फिर कदमों की तेज चाप के साथ दो गम-बूट कीचड़ में सने बाबा की नज़रों के सामने आकर ठहर गए। टॉर्च का प्रकाश अंदर पड़ा तो बाबा की आंखें चकाचौंध हो गईं।
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………. ‘कौन हो तुम लोग?’ आगंतुक झुककर पूछ रहा था, टार्च का प्रकाश उन पर डालकर। उसके हाथों में एक डंडा था और शरीर पर बरसाती थी। ‘क्या तुम्हीं ने सुअरों को बाहर निकाला है?’
‘यह मेरी बच्ची है…।’ बाबा कांपकर गिड़गिड़ाया, ‘यह एक बच्चे को जन्म दे रही है, शायद दे चुकी है, इसलिए वर्षा से बचने के लिए मैं इसे यहां ले आया।’
‘क्या?’ आगंतुक झट पंजों के बल बैठ गया। टॉर्च जलाकर उसने राधा को देखा। वास्तव में एक जवान लड़की जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करती दिखी तो उसका दिल भर आया। ऐसा भयानक दृश्य उसने अपने जीवन में पहली बार देखा था‒ ‘अरे! राम-राम…!’ उसके मुंह से निकला, ‘अच्छा तुम लोग यहीं ठहरो, मैं अस्पताल से गाड़ी लेकर आता हूं।’
‘अस्पताल!’ बाबा ने आशा तथा आश्चर्य के मिले-जुले भाव से उसे देखा।
‘हां। यहां से कुछ दूर फादर जोजफ का एक बहुत अच्छा अस्पताल है।’ वह बोला‒ ‘वहां तुम्हारी बच्ची की पूरी-पूरी देखभाल की जाएगी। वहां कोई पैसा नहीं लगता।’
बाबा की बात की प्रतीक्षा किए बिना ही वह व्यक्ति उठकर वहां से झट दरवाजे से बाहर निकल गया। दूसरा व्यक्ति जो वहां खड़ा हुआ था, आगे बढ़कर पहले गए व्यक्ति के स्थान पर बैठ गया। वह भी बूट तथा बरसाती में वर्षा से पूर्णतया सुरक्षित था।
‘यह तो बड़ा अच्छा हुआ जो सुअरों को इधर-उधर भागते हुए उसने देख लिया, वरना हम तो सुबह ही आते।’ वह अपने आप ही बोला‒ ‘यह हमारी पोल्ट्री है। यहां हमने कुछ विदेशी सुअर पाल रखे हैं। दूसरी ओर मुर्गियां हैं। यह सब फादर जोजफ की कृपा से है। मेरे भैया बीमार होकर उनके अस्पताल में भर्ती हुए थे। फादर जोजफ ने उन्हें नया जीवन ही नहीं दिया, बल्कि हमारी रोजी का भी प्रबंध कर दिया। भगवान की दया से अब हमारे पास सब कुछ है।’
बाबा राधा के सिर पर हाथ फेरता हुआ अहसानमंदी के साथ उसे देखता रहा। यह सहारा मानो भगवान ने स्वयं आकर उसे दिया था।
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