अपना-अपना सुख-गृहलक्ष्मी की कहानी: Apna Apna Sukh
Apna-Apna Sukh

Apna Apna Sukh: ट्रांसफर होने पर हम दिल्ली आ गए थे। हमारे घर के सामने ही शांतिनिकेतन नाम की एक पॉश कॉलोनी थी। उसमें एक बड़े से लॉन में फूलों का एक सुंदर बगीचा था। वहां अक्सर एक बुजुर्ग महिला पौधों की देखभाल में व्यस्त रहती थी। मेरी उनसे मित्रता हो गई। वो भी सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अत: उन्हें भी मेरा साथ अच्छा लगा। बातों-बातों में पता चला कि इतने बड़े घर में मात्र तीन प्राणी हैं- वो उनकी बहू और आठ वर्षीय पोता। पति व बेेटे की एक दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी। बहू व पोते के उत्तरदायित्व को समझ कर उस महिला ने किसी तरह अपने आपको संभाला। अब तो दोनों सास-बहू की जिंदगी का मकसद मिंटू का उचित पालन-पोषण करना था। आंटी की पेंशन तो आती थी, फिर भी जब तक बहू मंजुला को नौकरी मिली, तब तक घर की सारी जमा पूंजी खत्म हो चुकी थी। निर्वाह की समस्या थी। संक्षिप्त आमदनी और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए घर में कोई नौकर नहीं रखा था।

आंटी और मंजुला में घर के कामों को लेकर बड़ा सामंजस्य था। मंजुला ऑफिस जाने से पहले सारा काम करके जाती थी फिर आंटी घर को संभालती थीं, जो कि बहुत कम घरों में देखने को मिलता है। मंजुला दिन ढले घर में वापिस आती थी। कभी-कभी मेरे मुंह से निकल ही जाता, आंटी इस उम्र में भी आप बहुत काम करती हैं। उनका कहना था, मिट्टी का शरीर है, जितना हो सके इससे उतना काम लेते रहो, एक दिन बुढ़ापे ने तो अपना असर दिखाना ही है, तब तो सब मेरी बहू मंजुला को ही संभालना होगा।

एक दिन पास ही के मंदिर में सुंदर कांड होने वाला था, फिर हवन होना था। मैंने आंटी से वहां जाने की जिद की और बिना सोचे-समझे यह भी कह बैठी अब आपकी उम्र पूजा-पाठ की है, भजन कीर्तन किया करो, मंदिर जाया करो। आंटी मुस्कराई और कहने लगीं, देखो चाहे सुंदर कांड हो या सत्यनारायण जी की कथा, बार-बार एक ही बात तो दोहराते हैं। नियती ने मुझे भक्ति-मार्ग से हटा, कर्म पथ दिखा दिया है। अब भगवान मेरे दिल में निवास करते हैं और मुंह में राम-राम रहता है। घर के कामों में मंजुला का सहयोग करना, मिंटू का पालन-पोषण करना ही मेरा ‘सुंदर कांड’ है और शाम को मंजुला जब थकी हारी वापिस आती है उसे गरम-गरम चाय-नाश्ता देना, रात में खाना खिलाना मेरा ‘हवन’ है। मुझे इसी में असीम सुख मिलता है। समाज में सभी सास की अगर ऐसी सोच हो जाए तो सास-बहू के रिश्ते में नोक-झोंक की नौबत ही न आए और वृद्धाश्रम की संख्या भी कम हो जाएगी। एक सास की बहू के प्रति ऐसी प्यार भरी आत्मिक सोच देख मैं आत्मविभोर हो उठी और अपने पर शर्मसार। आंटी की ये बातें मेरे मन को छू गईं।