अपमान का बदला—गृहलक्ष्मी की कहानियां: Apman ka Badla Story
Apmaan ka Badla

Badla Story: “पता नहीं क्यों उठा लाई है इस नासपीटे को? अब तो हमारी सुबह इसकी मनहूस सूरत देखकर ही होती है।” ममता की सुबह अपनी सास के इन्हीं शब्दों से होती थी। जिस दिन से ममता रघु को अपने घर लेकर आई थी उसी दिन से उसकी सास की आंखों में वो लड़का खटकता था।
ममता घर संभालने के साथ-साथ अपना छोटा सा केटरिंग का काम भी संभालती थी। उसके घर में पति, सास और बेटी के अलावा एक ऊपर की मदद के लिए नौकरानी भी थी। यूं तो उसको कोई तकलीफ नहीं थी अपने पति और सास से पर रघु यानी राघव के आने से उनका व्यवहार बदल गया था।

वह दोनों रघु को तिरस्कार की नजर से देखते थे और बात बात पर ज़लील भी करते थे। ममता से भी अब नाराज रहते थे। मौका देख कर उसको कुछ ना कुछ सुनाई देते थे। उनकी 6 साल की बेटी प्रिया रघु को देखकर बहुत खुश हुई थी और उस 10 साल के बच्चे को पहली बार में ही रघु भैया मान लिया था। रघु उसी दिन से उसको छोटी बहन की तरह प्यार करता और उसका बहुत ध्यान रखता था। प्रिया और रघु साथ में पढ़ते थे खेलते थे। खेलने में कभी कोई बात हो जाए तो रघु प्रिया को प्यार से समझाता था जबकि प्रिया अपने छोटे होने का फायदा उठाकर उससे लड़ाई भी कर लेती थी।

प्रिया का रघु की तरफ प्यार और सम्मान देखकर दादी और पिता को बहुत बुरा लगता। उन्होंने उसको रघु के खिलाफ भड़काना शुरू किया और उस मासूम बच्ची का मन रघु के खिलाफ होने लगा। वो हर बात पर उसका अपमान करती। ममता उसको प्यार से अकेले में समझाती तो वह थोड़ा बहुत तो समझ जाती थी लेकिन मां की व्यस्तता पर पिता और दादी की सोच भारी पड़ गई।

रघु उसका ध्यान रखने की जितनी कोशिश करता प्रिया के अपमान के शब्द उतने ही कड़वे होते जाते। बचपन में रक्षाबंधन पर वो रघु के लिए राखी लाती थी और ‘मेरा भैया’ कहकर रघु की कलाई पर बांध कर मिठाई खिलाती थी। रघु भी उसको आइसक्रीम खिलाने ले जाता और कोई उसकी मनपसंद का तोहफा दिलाता।अब वही प्रिया अपनी मां के ज़ोर देने पर रघु को राखी बांधती और चली जाती।
रघु जिस का असली नाम राघव था ममता की बचपन की सहेली किरण का बेटा था। किरण के पति फौज में थे और दुश्मनों के हाथों देश के लिए शहीद हुए थे। किरण ने अकेले राघव को बड़ा करा था। रघु बेचारे की किस्मत में मां-बाप का प्यार शायद नहीं था। एक दिन किरण बाज़ार से सब्जी ला रही थी तो एक कार ने उसे टक्कर मार दी। अस्पताल में किरण ने ममता को बुलाया और उससे वादा लिया कि वो उसके बेटे का ध्यान रखेगी। ममता के हाथ में अपने 10 साल के राघव को छोड़कर किरण ने अपनी अंतिम सांस ली।।
जब ममता रघु को घर लेकर आई थी, तभी उसकी सास ने कहा था,”मनहूस है यह लड़का। मां-बाप दोनों को खा लिया, अब क्या अपना घर बर्बाद करने के लिए लाई हो। कोई जरूरत नहीं इसको यहां रखने की, छोड़ आओ इसको किसी अनाथ आश्रम में”। ममता के पति भी नाराज़ हुए थे। उसने उन लोगों से कुछ नहीं कहा और रघु को अपने बेटे की तरह पालने लगी।
इन्हीं सब कड़वी बातों के साथ समय तेज़ी से आगे बड़ा और अब रघु 23 साल का एयरफोर्स पायलट बन गया था। ममता को वह मां नहीं भगवान मानता था जिसने बहुत मजबूती के साथ उसको पाला था।
19 साल की प्रिया भी एक खूबसूरत लड़की थी अब। दादी और पिता के ज़रूरत से ज्यादा लाड प्यार ने उसको जिद्दी और रूखे स्वभाव का बना दिया था। ममता के प्यार, मेहनत और समझदारी की वजह से वह मां की इज्ज़त तो करती थी लेकिन रघु को लेकर उसका वही रवैया था।
एक दिन प्रिया ने घर में बताया कि उसको किसी सहेली के घर जाना है और वह रात को वही रुकेगी। दादी और पिता को तो कोई मतलब था नहीं। ममता का मन पूरी तरह से मान नहीं रहा था पर प्रिया ने उसकी बात नहीं मानी और अपनी बात मनवा कर ज़बरदस्ती चली गई। रघु घर में था और सब सुन रहा था। वह प्रिया के सब दोस्तों को जानता था और उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं करता था।

वह सब बिगड़े हुए बच्चे थे। शाम को प्रिया जब घर से निकली तो रघु ने उसका पीछा किया। उसने प्रिया को एक घर में जाते हुए देखा। वह खिड़की से झांकता है तो देखता है कि गिनती के कुछ लड़के और लड़कियां ही हैं और कोई नहीं है। उसको कुछ ठीक नहीं लग रहा था। वो वहां छुप कर बैठ गया। प्रिया दोस्तों के साथ नाच रही थी कि तभी रघु ने देखा कि एक लड़का उसकी ड्रिंक में कोई दवाई मिला रहा है। रघु इन सब का वीडियो बना रहा था।

उसने देखा कि प्रिया को थोड़ी देर बाद चक्कर आने लगे। वह लड़का प्रिया को कमरे में ले गया और बेहोशी की हालत में प्रिया को पलंग पर लेटा दिया। जैसे ही उसने प्रिया के कपड़ों को छुआ, रघु ने उसके ऊपर हमला करा और बहुत मारा। वह पहले ही पुलिस को उस लिए पार्टी की खबर दे चुका था, इसीलिए पुलिस वक्त रहते आ गई और उस लड़के को पकड़ कर ले गई। रघु ने किसी तरह से मिन्नत करके पुलिस को प्रिया को ले जाने से रोका। जब तक रिया को होश नहीं आया वह वहीं बैठा रहा अऔ मां से झूठ बोलता रहा कि प्रिया अपनी सहेली के घर ही है।
जब प्रिया को होश आया तब रघु ने उसको सारा वीडियो दिखाया। प्रिया कुछ कह नहीं पाई और फूट-फूट कर रो पड़ी।
जो उसके साथ दोस्तों ने किया उसका प्रिया को बहुत बुरा लगा था, पर उससे ज्यादा वह शर्मिंदा थी। बचपन से अब तक जिस रघु का उसने दादी और पिता के कहने पर हर घड़ी अपमान किया था उसी रघु ने आज सही मायने में भाई का फर्ज निभाया था।
रघु ने उसको समझाया कि आज जो कुछ हुआ उसे भूल जाओ, घर में किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है। आज से अच्छे दोस्त बनाओ और अच्छी जिंदगी जियो।

ममता ने घंटी बजने पर दरवाजा खोला तो प्रिया रघु के साथ थी। उसको थोड़ा ताज्जुब जरूर हुआ पर खुशी भी बहुत थी कि शायद प्रिया का मन बदल गया है और अब दोनों भाई-बहन के बीच में प्यार है।
कुछ दिन बाद राखी का दिन आया तो प्रिया पहले की तरह बाज़ार से अपनी पसंद की राखी लाई और रघु की कलाई पर बांध कर ‘मेरा भाई’ कह कर उसको गले से लगा लिया। दादी और पिता भी अब चुप हो गए थे।
प्रिया के अपमान का बदला रघु ने ममता के वात्सल्य के धागे से आज मजबूत रिश्ता बनाकर पूरा करा।