Akelapan
Akelapan

Hindi Short Story: “अकेलापन उस अंधेरे कमरे की तरह होता है, जहां कोई खिड़की नहीं होती, लेकिन फिर भी हम उम्मीद की रोशनी खोजते रहते हैं।” मंजू देवी ने यह शब्द धीरे से अपनी जुबान से निकाले, जैसे किसी गहरे ख्याल से बाहर आकर किसी से बात कर रही हों।

मंजू देवी का घर एक छोटे से गाँव में स्थित था, लेकिन वह घर अब सुनसान और उदास सा लगने लगा था। वह अकेले रहती थीं, उनका बेटा राकेश शहर में नौकरी करता था और सालों से कभी पूरा समय नहीं दे पाया। वह हर बार यही वादा करता कि अगली बार वह आएगा, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर अपनी जिम्मेदारी टाल देता।

दिन की शुरुआत मंजू देवी का घर, जिसमें हर सामान पुराने समय की गवाही देता था, बगीचे में एक गुलाब का पौधा लगाते हुए होती। वह याद करतीं कि यह गुलाब का पौधा उनकी बहन से गिफ्ट में मिला था। एक वक्त था जब वह अपने बेटे राकेश के साथ इस पौधे के पास बैठकर घंटों बातें किया करती थीं, लेकिन अब उन दीवारों में भी बस सन्नाटा था।

रात को मंजू देवी बालकनी में बैठी आकाश की ओर देखतीं, और खुद से सवाल करतीं, “क्या मैं अकेली हूं इस दुनिया में?” उन्हें ऐसा लगता जैसे उनके आस-पास सब कुछ था, बस उनके पास वक्त की कमी थी, और कोई उनसे अपने दिल की बातें करने वाला नहीं था।

राकेश का फोन आया, “माँ, सब ठीक है न? जल्दी आऊँगा।” मंजू देवी ने मन में एक गहरी आह भरी, “ठीक हूँ बेटा, बस तुम जल्दी आओ।” उन्होंने मुस्कान के साथ जवाब दिया, लेकिन फोन रखते ही उनका दिल फिर से उस पुराने अकेलेपन की गहरी खाई में गिर गया।

अकेलापन धीरे-धीरे मंजू देवी के जीवन का हिस्सा बन चुका था। वह जानती थीं कि अगर इस स्थिति से बाहर निकलना है तो उन्हें खुद ही कुछ कदम उठाने होंगे। एक दिन, उन्होंने घर के पिछवाड़े में काम करना शुरू किया। नए फूलों के पौधे लगाते हुए और पुराने सूखे पौधों को हटा देतीं, मंजू देवी ने महसूस किया कि उनका अकेलापन अब एक बोझ नहीं बल्कि एक अवसर बन चुका है।

गाँव के बच्चों को अपनी तरफ आकर्षित कर उन्होंने उनके साथ समय बिताना शुरू किया। उनकी बातें, उनकी हंसी, और फूलों के बीच खेलने का माहौल बनाने से एक नई ताजगी आई। अब मंजू देवी का घर फिर से जीवन से भरने लगा था।

कुछ समय बाद, राकेश लौट आया। वह अपनी माँ को देखकर चौंका गया, “माँ, यह क्या कर रही हैं आप? पहले तो आप अकेली रहती थीं, अब सब कुछ बदल गया है।”

मंजू देवी हंसते हुए बोलीं, “बिलकुल बेटा, मैंने समझ लिया कि अकेलापन तब तक बोझ है, जब तक हम उसे अपनी कमजोरी मानते हैं। मैंने इसे एक अवसर में बदल लिया है।”

राकेश ने अपनी माँ के अंदर आई इस बदलाव को देखा और समझा कि वह अब अकेले नहीं, बल्कि अपने जीवन को पूरी तरह से जी रही हैं।

यही वह पल था, जब मंजू देवी ने अपने अकेलेपन को अपनी सबसे बड़ी ताकत में बदल लिया था, और अब वह जानती थीं कि अकेलापन कभी भी किसी के जीवन का अंत नहीं होता, बल्कि यह एक नया आरंभ होता है।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...