murdo ka gaon
murdo ka gaon

Hindi Kahaniya:उस गांव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं। लोग कहते थे कि वहां दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है। शाम होते ही कब्रें जम्हाइयां लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अंधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश में घूमा करते हैं। उनके ढीले पंजरों की खड़खड़ाहट सुनकर लाशों के चारों ओर चिल्लानेवाले घिनौने सियार सहमकर चुप हो जाते हैं और गोश्तखोर गिद्धों के बच्चे डैनों में सिर ढांपकर सूखे ठूंठों की कोटरों में छिप जाते हैं।

इसी वजह से जब अखिल ने कहा कि चलो, उस गांव के आंकड़े भी तैयार कर लें, तो मैं एक बार कांप गया। बहुत मुश्कलि से पास के गांव का एक लड़का साथ जाने को तैयार हुआ। सामने दो मील की दूरी पर पेड़ों के झुरमुटों में उस गांव की झलक दिखाई दी। मील भर पहले ही से खेतों में लाशें मिलने लगीं। गांव के नजदीक पहुंचते-पहुंचते तो यह हाल हो गया कि मालूम पड़ता था, भूख ने इन गांव के चारों ओर मौत के बीज बोए थे और आज सड़ी लाशों की फसल लहलहा रही है। कुत्ते, गिद्ध, सियार और कौए उस फसल का पूरा फायदा उठा रहे थे।

इतने में हवा का एक तेज झोंका आया और बदबू से हम लोगों का सिर घूम गया। मगर फिर जैसे उस दुर्गंध से लदकर हवा के भारी और अधमरे झोंके सूखे बांसों के झुरमुटों में अटककर रुक गए। सामने मुरदों के गांव का पहला झोंपड़ा दीख पड़ा। तीन ओर की दीवारें गिर गई थीं और एक ओर की दीवार के सहारे आधा छप्पर लटक रहा था। दीवार की आड़ में एक कंकाल पड़ा था। साथ वाला लड़का रुका,“ यह! यह निताई धीवर है. ”

“कहां?” अखिल ने पूछा।

“वह, वह निताई धीवर सो रहा है!” लड़के ने कंकाल की ओर संकेत किया,” वह धीवर था और गांव का सबसे पट्टा जवान। अकाल पड़ा। भूख से उसकी मां मर गई। उसके पास खाने को न था, फिर लकड़ी लाकर चिता सजाना तो असंभव था। उसने अपनी नाव बाहर खींची, मां के शरीर को नाव में रखा, ऊपर से सूखी घास रखी और आग लगा दी। रहा-सहा सहारा भी चला गया और एक दिन वह भी यहीं भूखा सो गया। यहीं, इसी जगह उसकी मां ने भी दम तोड़ा था.” वह लड़का बोला।

हवा का झोंका फिर चला और खोखले बांसों से गुजरती हुई हवा सन्नाटे में फिसल पड़ी। लड़का चीख पड़ा, “वह सांस ले रही है, सुना नहीं आपने?”

‘कौन?”

“वह, वह जुलाहिन सांस ले रही है. ”

“क्या वाहियात बकता है! “अखिल ने झुंझलाकर डांटा,” कौन जुलाहिन?’

“आपको नहीं मालूम? वह सामने झोंपड़ी है न, उसी में जुलाहे रहते थे। उसमें से तीन भूख से मर गए। रह गए सिर्फ जुलाहा, जुलाहिन और उनका करघा; मगर भूख से उनकी नसें इतनी सुस्त थीं कि करघा भी बेकार था। उन्होंने पास के जंगल से जड़ें खोदकर खानी शुरू कीं। उनके दांत नुकीले हो गए, जैसे सियारों की खीसें। जुलाहा बीमार पड़ गया। जुलाहिन जड़ें खोदने जाती थी। एक दिन जड़ें खोदते वक्त खुरपी उसके कमजोर हाथों से फिसल गई और बाएं हाथ की तर्जनी और अंगूठा कटकर गिर गया। जब वह घर पहुंची तो भूखा व बीमार जुलाहा झल्ला उठा और चिल्लाकर बोला,’ निकल जा मेरे घर से। अब तू बेकार है। न करघा चला सकती है, न जड़ें खोद सकती है।’ तब से जुलाहिन का पता नहीं है। मगर कुछ लोगों का कहना है कि वह भूत बनकर गांव की कब्रों के पास घूमा करती है। वह अभी भी सांस ले रही थी, सुना नहीं आपने? ”

अखिल ने मेरी ओर देखा और मैंने अखिल की ओर। हम दोनों आगे बढ़े और जुलाहों के झोंपड़े में घुसे। लड़का ठिठका, मगर हिम्मत दिलाने पर वह भी आगे बढ़ा। हम लोग अंदर गए। लड़के ने अंदर से किवाड़ बंद कर लिए और हम लोगों से सटकर खड़ा हो गया। वह डर से कांप रहा था। सामने आंगन में तीन कब्रें आसपास खुदी हुई थीं। बीच की कब्र में एक बड़ा सा छेद था। उसमें से एक बिज्यू निकला और हम लोगों को डरावनी निगाहों से पल भर देखकर सिर झटका और फिर कब्र में घुस गया। आंगन में किसी मुरदे के सड़ने की तेज बदबू फैल रही थी। अखिल ने अपना कैमरा संभाला और फोटो लेने की तैयारी की। इतने में पीछे के किवाड़ खड़क उठे। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। अखिल बोला, “कोई सियार होगा.”

किवाड़ को किसी ने जैसे बार-बार धक्का देना शुरू किया। मैंने सोचा, शायद जिंदा आदमी की गंध पाकर गांव भर के मुरदे हम पर हमला करने आए हैं। मेरे खून का कतरा-कतरा डर से जम गया। लड़का बुरी तरह से चीख पड़ा। अखिल धीमे-धीमे गया, धीरे से किवाड़ खोल दिया। उसके बाद बुरी तरह से चीखकर भागा और मेरे पास आकर खड़ा हो गया। मैं बदहवास हो रहा था और आपको यकीन न होगा, मैंने दरवाजे पर क्या देखा।

मैंने जिसे देखा वह आदमी नहीं कहा जा सकता था। वह जानवर भी नहीं था, भूत भी नहीं। एक औरतनुमा शक्ल, जिसकी खाल जगह-जगह पर लटक आई थी, सिर के बाल झड़ गए थे, निचला होंठ झूल गया था और दांत कुत्तों की तरह नुकीले थे। मालूम होता था, जैसे आदमी के ढांचे पर छिपकली का चमड़ा मढ़ दिया गया हो। उसके दाएं हाथ में एक खुरपी थी और बाएं हाथ की दो अधकटी और तीन साबुत उंगलियों में कुछ जड़ें। वह पल भर दरवाजे के पास खड़ी रही, फिर धीरे – धीरे आगे बढ़ी।

मैं चीखना चाहता था, मगर गला जवाब दे चुका था। वह हमारे बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गई, जड़ें जमीन पर रख दीं और अपने तीन उंगलियोंवाले हाथ को मुंह के पास ले जाकर कुछ खाने का इशारा किया। हम लोगों की जान में जान आई। वह भूखी है, वह आदमी ही होगी; क्योंकि भूख आदमियत की पहचान है। अखिल ने अपने झोले में से केला निकाला और उसकी ओर फेंक दिया। उसने केला उठाया और मुंह के पास ले गई। मगर फिर रुक गई, उठी और झोंपड़ी के दूसरी ओर चल दी।

हम लोगों को कुतूहल हुआ। हम लोग भी पीछे-पीछे चले। वह औरत सहन के एक कोने में गई। वहीं एक मुरदा था, जिसकी सड़ांध आंगन में फैल गई थी। देहाती लड़के ने उसे देखा और पहली बार उसके मुंह से आवाज निकली,“जुलाहा! यह तो जुलाहे की लाश है। यह जुलाहिन उसे भी भूत बनाने आई है. ”

जुलाहिन लाश के पास गई। लाश सड़ रही थी और उसमें चींटियां लग रही थीं। उसने केला और जड़ें लाश के मुंह पर रख दीं और हंसी। हंसी की आवाज मुंह से नहीं निकली, मगर खीसों को देखकर अनुमान किया जा सकता है कि वह हंसी होगी। दूसरे ही क्षण वह बैठ गई और मुरदे की छाती पर सिर रख सुबकने लगी।

“यह जुलाहिन है? मगर यह तो कम-से-कम सत्तर बरस की होगी. ”

“सत्तर बरस। छव, पज पे कतवचेल, देखते नहीं, जहरीली जड़ें खाने से इसकी नसों में पानी भर गया है, मांस झूल गया है. “अखिल बोला, “इस मुरदे को हटाओ, वरना यह भी मर जाएगी.”

उसके बाद हम लोग झोंपड़े के भीतर आए। पास में एक गड्ढा था। सोचा, इसी में लाश डाल दी जाए। भीतर आए, लाश के पास से जुलाहिन को हटाया और उसकी लाश भी एक ओर लुढ़क गई। मैं घबरा गया, बेहोश – सा होने लगा। अखिल ने मुझे संभाला। हम लोग थोड़ी देर चुप रहे। फिर मैं बोला- भारी गले से “अखिल, उंगलियां कट जाने पर यह निकाल दी गई। फिर किस बंधन के सहारे, आखिर किस आधार के सहारे यह मरने से पहले जुलाहे के पास आई थी जड़ें लेकर? क्यों? ”

अखिल चुप रहा – मुरदों के गांव की दोनों आखरी लाशें सामने पड़ी थीं।

“अच्छा उठो!” अखिल बोला।

“हम लोगों ने लाशें उठाई और गड्ढे में डाल दीं। एक ओर जुलाहा, दूसरी ओर जुलाहिन। बांस के सूखे पत्तों से उन्हें ढांक दिया। मैंने अपनी उंगली से धूल में गड्ढे के पास लिखा, “ताजमहल, 1943” और हम चल पड़े।

ये कहानी ‘हिन्दी की 21 सर्वश्रेष्ठ कहानियां’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Hindi Ki 21 Sarvashreshtha Kahaniya (हिन्दी की 21 सर्वश्रेष्ठ कहानियां)