क्या मां आपको तो मेरी हर बात बकवास ही लगती है, शोभित ने नाराज़गी के साथ शोभा से कहा। बकवास नहीं तो क्या। कहने से पहले सोचा तो करो कि क्या कह रहे हो और क्यों, उसने बेटे से कहा। आप कब समझोगी कि मैं बच्चा नहीं रहा, शोभित ने जवाब दिया। बच्चे नहीं हो, इसीलिए कह रही हूं। कहने से पहले जरा सोचा करो कि तुम्हारी किसी बात का असर सामने वाले पर क्या होने वाला है। बेटा, दोस्तियां बनने में सालों लगते हैं और टूटने में बस कुछ पल, शोभा समझाने लगी। पर शोभित इस कदर गुस्साया था कि मां की बात सुनने की बजाय वह घर से बाहर चला गया। शोभा ने दरवाजे की भड़ाक से बन्द होने की आवाज सुनी तब पलटी और बेटे को कमरे में नहीं पाकर चुप हो गई। यह लड़का भी ……बुदबुदाते हुए वह सोफे पर धम्म से बैठ गई।
कुछ देर बाद शोभा को ध्यान आया कि ऑफिस जल्दी निकलना है सो काम भी जल्दी निपटाने होंगे और बेटे के कारण तो रात के खाने की तैयारी भी नहीं हो सकी। उसने देखा आठ बजने को है। वह झटपट किचन में पहुंची और खाना बनाने में जुटी । कुछ समय बाद खाना तैयार हो गया। शोभा की नजर फिर घड़ी की ओर गई। साढ़े नौ बजने को है और शोभित लौटा क्यों नहीं। चलो फोन लगाती हूं। उसने फोन लगाया। घंटी जाती रही, पर शोभित ने फोन नहीं उठाया। लगातार कई बार कॉल लगाया पर कोई जवाब नहीं मिला। ठीक है मत दो जवाब, कहते हुए उसने मोबाइल टेबल पर पटक दिया। खाना टेबल पर लगाया, पर बेटे के बिना खाने की इच्छा नहीं हुई। कुर्सी पर कुछ देर शोभा बैठी रही, पर अचानक उसके हाथ मोबाइल की ओर बढ़े । अभी नम्बर लगाने को हुई कि फिर भड़ाक से दरवाजा खुला और शोभित अन्दर दाखिल हुआ।
मुझे मालूम था कि आप अकेले तो खाना खाओगी नहीं सो वापस आ गया, यह कहते हुए उसने भी एक कुर्सी सरकाई और बैठ गया। पहले मुंह-हाथ धो ले, शोभा ने उसे टोका। ओह हां कहते हुए वह उठ खड़ा हुआ। घर का वातावरण सामान्य हो गया। हंसी-ठहाकों के बीच मां-बेटा खाने का मजा ले रहे थे।
मां, आज बरतन साफ करने का मेरा टर्न है। आप थोड़ा टहल लो, मैं साफ-सफाई कर देता हूं, शोभित ने कहा और बरतनों को साफ करने लगा। शोभा बाहर निकली और धीमे कदमों से टहलने लगी। अभी चन्द कदम ही बढ़ी थी कि पड़ोसिन अंजलि भी बाहर निकल आई। शोभा, चलो साथ में वॉक करते हैं। शोभित कहां गया, अंजलि ने पूछा। किचन का काम निपटा रहा है। सहसा शोभा के मुंह से निकला। अरे वाह कितना अच्छा है आपका बेटा और एक मेरा मनीष है कि पानी तक हाथ में लेता है। सुनकर शोभा मुस्करा दी। पांच-छह राउंड लेने के बाद शोभा को नींद आने लगी सो उसने अंजलि को गुडनाइट कहा और घर आ गई। शोभित का काम खत्म हो चुका था और वह टीवी देख रहा था। बेटा कितनी देर टीवी देखोगे, उसने पूछा। बस मां यह सीरियल आधे घंटे में खत्म हो जाएगा। आप सो जाओ। कल तो आपको जल्दी ऑफिस जाना है।
बिस्तर पर लेटते ही नींद ने उसे घेर लिया। सुबह अलार्म की आवाज से नींद टूटी। बिस्तर से उठकर रोजमर्रा के कामों में शोभा व्यस्त हो गई। सात बजे शोभित भी उठ गया। उसके हाथों में चाय देते हुए शोभा ने कहा। तुम्हारे नाश्ते के लिए आलू के परांठे बनाए हैं। टिफिन के लिए तुम्हारी पसन्दीदा भिंडी भी बना दी है। कॉलेज जाते समय टिफिन ले जाना मत भूलना।
आपका नाश्ता हो गया, बेटे ने पूछा। बस अभी करती हूं। आठ बजे तो निकलना है। पहले नाश्ता करो, उसने मां से कहा। पहले तैयार हो जाती हूं, शोभा तैयार होकर आई तो उसकी नाश्ते की प्लेट लगी मिली। नाश्ता करके वह ऑफिस के लिए निकल गई।
दोपहर में शोभित का फोन आया, मां टाइम पर खाना खा लिया कि नहीं। हां बस अभी खाने ही वाली थी, शोभा ने जवाब दिया। क्या मां आप भी। मुझे तो हमेशा टोकती रहती हो और खुद इतनी लापरवाह हो। पहले खाना खाओ फिर आगे देखो, कहते हुए शोभित ने फोन बन्द कर दिया। खाना खाते समय शोभा सोचती रही कि शोभित वाकई बड़ा हो गया है और इससे भी ज्यादा जिम्मेदार।
न चाहते हुए भी शोभा की आंखों में एक अक्स तैर गया। रोहित की तरह नैन-नक्श पाए शोभित ने लेकिन एक बड़ा फर्क भी है दोनों में। रोहित की तरह वो लापरवाह नहीं। रिश्तों के होने का एहसास है उसमें। जल्द ही उसने निवाले के साथ कड़वे अतीत को निगल लिया। फिर पानी पीकर सहज हुई और काम में लग गई।
घर लौटी तो दरवाजे पर ही शोभित मिल गया। उसका चेहरा कुछ बुझा हुआ था। तबीयत तो ठीक है ना, शोभा ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर लिया। ठीक हूं मां। बस कॉलेज की ज़रा-सी थकान है। फर्स्ट सेमिस्टर है ना, तो थोड़ा स्ट्रेस है, शोभित ने कहा। शोभा ने उसकी आंखों में झांका। ऐसा लगा कि किसी और बात ने शोभित को भंवर में डाल रखा है। रात के खाने पर भी वह कुछ अनमना-सा रहा। शोभा को फिक्र हुई।
सुबह शोभा ने उससे पूछा, शोभित किस बात से परेशान हो। अपनी मां को बताओगे नहीं। यह सुनकर शोभित ने पहले कहा कि कोई बात नहीं है। पर शोभा के बार-बार पूछने पर वह बोला, मां यह दुनिया कितनी बकवास है। कहने को लोग हमारे अपने बनते हैं और हम पर ही वार करते हैं। जानती हो मां कल कॉलेज में मुझसे मिलने कौन आया था। कौन……शोभा ने पूछा । पापा……..पर वो पिता कहलाने लायक नहीं। जानती हो मां कल उन्होंने सबके सामने आपके कैरेक्टर के बारे में कितने उल्टा-सीधा कहा। मेरा तो हाथ उठ जाता, लेकिन मेरे दोस्तों ने मुझे रोक दिया और उन लोगों ने ही उनको कॉलेज से बाहर भगाया।
सुनकर शोभा ने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, बेटा जिनका खुद का कोई चरित्र नहीं होता वही दूसरों को कैरेक्टर सर्टिफिकेट देते हैं। मां उनको कोई हक नहीं आपको उलटा-सीधा कहने का, शोभित भावुक हो उठा। शोभित …यदि तुम्हें अपनी मां पर यकीन है तो इन सब बातों से डरने की आवश्यकता नहीं। मैं क्या करती हूं और क्या नहीं। यह तुमसे बेहतर कौन जानता है, शोभा कहती गई। एक औरत के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार उसक चरित्र होता है। यदि उस पर ही वार करो तो महिला निःशस्त्र और बेबस हो जाती है। पर मैं बेबस नहीं और लाचार भी नहीं । मेरा चरित्र रोहित का गुलाम नहीं। पहले भी उनकी इन्हीं घटिया हरकतों के कारण मैंने उनसे रिश्ता तोड़ा था और अब वो तुम्हें तकलीफ दे रहे हैं जो मैं कतई बर्दाश्त नहीं करने वाली।
मां………..शोभित इतना ही भर कह पाया। हां मेरे बेटे, संघर्ष तो जिन्दगी के साथ गुंथा हुआ है। क्या तुम मेरा साथ दोगे ताकि हम इन झूठे आरोपों को खत्म कर सकें और मज़बूती के साथ जीवन में आगे बढ़ सकें। भावनाओं में बहकर हमें कमज़ोर नहीं पड़ना है, शोभा ने कहा। मैं आपके साथ था, हूं और सदा रहूंगा मां, शोभित बोला। थैंक्स मां, आपने मेरी परेशानी केवल सुनी ही नहीं बल्कि उसे तिल को बड़ा ताड़ बनने से भी बचा लिया। कल कॉलेज में बाकी स्टूडेंट्स की मुुस्कराती नज़रों से मैं कांप गया था। हौंसला ही न बचा था कि आज कॉलेज में कदम रख सकूं। पर आपके मज़बूत इरादे ने मेरे डर को दूर भगा दिया है।
चलो झटपट तैयार हो जाओ। बहुत सारा काम करना है। कॉलेज भी जाना है, शोभा कहने लगी। मां, आज नाश्ता मैं बनाऊंगा। आपका फेवरेट उपमा, शोभित ने कहा। वातावरण सुखद हो गया था।
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