…………….. वह गेट खोलकर बाहर निकल आते… सामने के वृक्ष के टूटे-फूटे चबूतरे पर बैठ जाते और अपनी हवेली को निहारने लगते, जो वास्तव में अंधकार में किसी भूतमहल से कम भयानक नहीं थी। जब वृक्ष की जड़ को भी देखते… एक-एक डाली को भी देखते… कई वर्ष से इसकी टहनियों में एक भी पत्ती नहीं खिली थी, वृक्ष सूखता जा रहा था, बिलकुल उनके शरीर के समान, उनकी हवेली राजमहल के समान। हर आंधी और तूफान में उन्होंने प्रतीक्षा की थी कि यह वृक्ष गिर पड़ेगा, परंतु सूखने के पश्चात् भी यह अपने स्थान पर अडिग था‒वरन आसपास तथा दूर-दूर तक के कुछ हरे-भरे वृक्ष गिर पड़ते थे।
गर्मी के दिनों में वह बहुत देर तक इस वृक्ष की जड़ में बैठे रहते… और हवेली को निहारकर सोचते ही रहते…बहुत देर तक, जब सियार चिल्लाने लगते तो वह उठ खड़े होते, फिर हवेली के बरामदे में लौटते। सियार उन्हें देखकर चुप होते तो उल्लू बोलने लगते, चमगादड़ फड़फड़ाने लगते। हवेली राधा की आहों की एक जीती-जागती तस्वीर थी, जिसे देखकर उन्हें कोई दुःख नहीं होता, वरन् शांति ही मिलती थी। उनकी अवस्था अब ऐसी हो चुकी थी कि उन्होंने राधा को छिपकर देखना भी छोड़ दिया था। अब राधा को उनकी सहायता की भी आवश्यकता नहीं रह गई थी। उसका बेटा जवान हो चुका है‒इस समय विलायत में उसका अंतिम वर्ष है। वहां वह अपनी पढ़ाई के अतिरिक्त इतना कमा भी लेता है कि सरकार द्वारा दी हुई स्कॉलरशिप की उसे आवश्यकता ही नहीं पड़ती। वह सारा-का-सारा पैसा अपनी मां को दे देता है। राधा अब शहर के अच्छे फ्लैट में रहने लगी है। अपने बेटे पर उसे बहुत गर्व है। उसका बेटा… और उनका? उनका तो वह कुछ भी नहीं है। हां कुछ भी तो नहीं।
दिल्ली का हवाई अड्डा। आकाश का पंछी कुछ देर को विश्राम करने के लिए धरती की सतह पर उतरा तो उसकी कोख से अंडे-बच्चों के समान यात्री उतरने लगे। एक बूढ़ी औरत किसी के इन्तजार में खड़ी थी, टर्मिनल बिल्डिंग पर लोगों के झुंड से कुछ दूर। शरीर पर खादी की साड़ी, ऊपर शॉल लिपटा था। सिर के बाल सफ़ेद हो रहे थे। मुखड़े का रंग गोरा, कहीं-कहीं झुर्रियां भी पड़ गई थीं। गहरी काली आंखें उदास थीं, फिर भी होंठों पर मुस्कान थी… उस वातावरण के समान, जो बदली से प्रभावित होकर उदास रहने के बाद भी कहीं-न-कहीं सूर्य का प्रकाश लिए खिलता रहता है। आज उस औरत को जीवन-भर की तपस्या का फल मिल रहा था, उसकी सारी मेहनत का परिणाम। कितनी सारी कठिनाई उठाने के बाद ही तो वह आज इस दिन को, इस अवसर को पहुंची थी, आज तो उसका लाड़ला आ रहा है, उसका बेटा कमल। इसी हवाई जहाज से उतरेगा। तीन वर्ष बीत गए… उसे देखे हुए। विलायत से आर्किटेक्ट बनने के बाद ही आज वह भारत लौटा है। उसके स्वागत में उसने फूलों का एक मोटा गजरा अपने हाथ से ही गूंथा था। ख़ुशी के कारण उसके हाथ गजरा थामे कांप रहे थे।
सहसा उसके हाथ हवा में लहराए। होंठों की मुस्कान में वृद्धि उत्पन्न हो गई। धूप मानो बदली की छाती चीर पूरे वातावरण पर छा गई थी, आंखें भी चमक उठीं, परंतु इस चमक के पीछे बदली-सा अंधकार नहीं छिप सका। इस बादल के टुकड़े पर दिल ने जब प्यार की हवा का दबाव डाला तो वर्षा आंसू बनकर फूट पड़ी और लंबी-लंबी पलकों पर आकर ठहर गई। उसने इन्हें पोंछा भी नहीं। बेटे के स्वागत में उसने दूर से ही अपने हाथ आगे बढ़ाते हुए हार को फैला दिया। बेटे ने मां को देखा तो सब्र न कर सका। लपककर उसने उसके चरण छुए और छाती से लिपट गया। हार लेकर उसने अपनी मां के ही गले में डाल दिया। मां के आंसू गालों पर छलछला उठे। ममता में कितनी कशिश होती है‒और कितनी अधिक मिठास! ख़ुशी जब सहन नहीं हो पाती है तो आंसू छलक पड़ते हैं। आंसू ही संसार का सबसे बड़ा मरहम है, जो ख़ुशी और गम दोनों को सहने योग्य बना देता है। मां के आंसुओं ने बेटे की पलकें भी नम कर दीं तो मां को अपनी भूल का अहसास हुआ। ऐसी ख़ुशी की घड़ी पर यह रोना-धोना कैसा? बेटे को छाती से लगाकर उसने इधर-उधर देखा‒किसी की तलाश थी शायद।
‘क्या बात है बेटा?’ राधा ने उसे परेशान देखा तो पूछे बिना नहीं रह सकी।
‘कुछ नहीं मां! बस एक नए शहर को बसाने के बारे में सोच रहा हूं।’ कमल ने कहा‒ ‘कम्बख्त कांट्रेक्ट भी मिला तो ऐसा कठिन कि कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’
‘क्यों? क्या हो गया?’ राधा चिंतित हुई।
‘रामगढ़ इलाके के बीच यह हवेली जाने कहां से टपक आई?’ कमल ने लापरवाही से खिसियाकर कहा‒ ‘अब जाकर देखें तो वास्तविकता का पता भी चले।’
‘रामगढ़‒’ राधा का दिल बहुत ज़ोर से धड़का।
‘हां मां‒’ कमल उसी प्रकार कागजों पर झुका, बोला‒ ‘किसी जमाने यह एक राजा की जागीर थी।’
‘राजा विजयभान की?’
‘मां!!’ कमल के हाथ से कागज छूटते-छूटते बचा। उसने आश्चर्य से अपनी मां को देखा।
‘तू वहां नहीं जाएगा। तू वहां हरगिज़ नहीं जाएगा।’ राधा एकदम से खड़ी हो गई।
‘लेकिन क्यों मां?’ कमल कागजात हाथ में लिए खड़ा हो गया, ‘आख़िर क्यों मैं वहां नहीं जा सकता।’
‘तू नहीं जानता बेटा! वे लोग कितने भयानक हैं।’ राधा एक नए भय का अनुमान लगाकर बोली‒ ‘यदि उन्होंने तुझे पहचान लिया तो जाने क्या कर देंगे। मैं तुझे हरगिज़-हरगिज़ नहीं जाने दूंगी।’
‘लेकिन कौन पहचान लेगा? आख़िर कौन है जो इस प्रकार मेरी समझ से दूर मेरा शत्रु बन बैठा है?’
‘वही बेटा! वही, इस हवेली का राजा, राजा विजयभान सिंह।’
‘लेकिन मां अब वहां है ही कौन? वह तो लावारिस हवेली है जो कभी राजमहल के नाम से प्रचलित थी।’ राधा से अलग होते हुए उसने कहा।
‘क्या?’ राधा की आंखें फटी-की-फटी रह गईं। कमल की बात का उसे विश्वास ही नहीं हुआ।
‘यह देखो’ कमल ने कागजात समीप की एक मेज़ पर फैलाए और उसे देखता हुआ बोला, ‘लखनऊ से लगभग पच्चीस मील दूर यह पूरा-का-पूरा रामगढ़ इलाका है और यह वह हवेली राजमहल, जिसका अंतिम वारिस राजा विजयभान सिंह था।’
राधा ने उसे आश्चर्य से देखा, आवाज़ हलक से निकलते-निकलते रह गई।…..
अगले पेज पर भी पढ़िये –
‘मां, मां!’ कमल बोला‒ ‘कभी यह इलाका वास्तव में एक बड़ी आबादी से भरा होगा परंतु अब तो यह बिलकुल उजाड़ है। वहां कोई भी नहीं रहता। ‘सर्वेयर’ की रिपोर्ट है कि इस इलाके के आसपास रहने वालों में यह हवेली भूतमहल के समान प्रचलित है। इसके पास से गुज़रने वालों का दिल भय से कांपने लगता है। इसकी ख़ुशियों को गरीबों की चीख़ और पुकार ने निगल लिया है।’
‘नहीं-नहीं बेटा! ऐसा नहीं हो सकता, ऐसा कभी नहीं हो सकता।’ राधा एकदम से बोली। उसके दिल को एक विचित्र से धक्के का आभास हुआ, जिसे वह स्वयं नहीं समझ सकी। उसके अंदर की एक नारी जाग उठी, एक मरी हुई नारी का स्त्रीत्व वापस आ गया जिसका उसने कभी अनुभव भी नहीं किया था। नारी क्या है? नारी क्या चाहती है वह स्वयं नहीं जानती, नारी कभी-कभी उसके लिए भी तड़प उठती है जिससे वह सख्त घृणा करती है और जब वह तड़प दिल की गहराई से उठती है तो उसे कोसने के अतिरिक्त उसके पास और कुछ भी नहीं रह जाता परंतु अपने जीवन में एक मोड़ पर पहुंचकर जब उसे ज्ञात होता है कि उसकी आह वास्तव में बेकार नहीं गई, उसकी आह उसके अरमानों के हत्यारे को खा गई है, परंतु उस हत्यारे ने मरते-मरते भी उसी को याद किया होगा, वह पछताया होगा, रोया होगा, उसके लिए तड़पा होगा, तो उसके दिल की सारी घृणा अचानक ही सहानुभूति में परिवर्तित हो जाती है।
इस समय राधा के जीवन में भी यह मोड़ अचानक ही आ गया था और राजा विजयभान सिंह की वास्तविकता जानकर उसके मन में सख्त पीड़ा उठी, सहानुभूति से उसका दिल भर गया। मुखड़ा उदास हो गया।उसने मन-ही-मन अपने आपको धिक्कारा। कुछ भी हो, राजा विजयभान सिंह उसके बेटे कमल के पिता हैं। वैसा ही रूप, वैसा ही ढंग, बातें करने का अंदाज़, चाल-ढाल, सभी कुछ तो इसका उनके समान ही है। उसकी आंखों के सामने, उनके साथ बिताया हुआ एक-एक पल घूम गया और वह अंतिम भेंट, जब उन्होंने घुटने टेककर पलकों की झोली फैलाते हुए उससे क्षमा मांगी थी, प्यार की भीख मांगी थी। राधा का दिल फट गया। आंखें छलक आईं, अवश्य यह उनकी आह का ही फल है जिससे राजा विजयभान सिंह का सब कुछ लुट गया… यश, धन, मान-मर्यादा, जीवन कुछ भी तो नहीं बचा।
‘मां!’ कमल ने अपनी मां की अवस्था देखी तो घबराकर आश्चर्य से बोला, ‘तुम्हारी आंखों में आंसू।’
‘बेटा!’ राधा ने अपनी स्थिति संभाली। आंखों के आंसू पोंछती हुई बोली, ‘कोई ख़ास बात नहीं है बेटा! बस कुछ याद आ गया, इसलिए आंखें नम हो गईं।’
‘मुझे जानने का अधिकार है?’
‘राजा विजयभान सिंह तेरे पिता के विशेष मित्र थे।’ राधा ने वास्तविकता छुपा ली। वास्तविकता प्रकट करने का अब प्रश्न ही नहीं उठता था। इतने दिनों जो भेद उसने दूसरे कारण से छिपा रखा था उसे अब प्रकट कर देने से वह अपने बेटे का प्यार भी खो सकती थी। उसने सदा से उसे अपने आपको विधवा ही बताया था। कमल भी उसे अपने बचपन से ही एक दुखिया के रूप में देखता आया था। राधा किस मुंह से कहती कि राजा विजयभान सिंह ने अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए ही उसे उसका बेटा बनाया था। निश्चय ही कमल को अपने आपसे घृणा हो जाती, अपनी मां, इस समाज, सारे संसार से घृणा हो जाती। समाज को अपना मुख दिखाने के बज़ाय वह आत्महत्या करना अधिक आवश्यक समझता, कैसे नज़र मिलाकर किसी का सामना भी करता? किस-किसके रात-दिन ताने सुनता? कौन है उसका बाप? क्या उसका बेटा दूसरों को प्रमाण देता फिरता कि उसके शरीर में राजा विजयभान सिंह के वंश का ख़ून है? ऐसा वंश जिसकी नींव में मायूस तमन्नाएं दफन हैं, जिसकी ईंट और पत्थर रखते हुए गारे में गरीबों के शरीर से निचोड़ा रक्त सम्मिलित है, जिसके वंश का इतिहास इलाके की हसीन लड़कियों की मुस्कान छीनकर लिखा गया है? यह सब क्या गर्व करने योग्य बातें हैं? कमल किस प्रकार संसार वालों के सामने अपने होंठ खोलता कि वह एक ऐसे राजा का बेटा है जिसकी बांहों को गर्म करने के लिए दिन-रात ही एक-न-एक सुंदर नारी का होना आवश्यक समझा जाता था? उसके जैसे ऐसे कमल तो जाने कितने और भी होंगे जो जाने कहां-कहां कीचड़ में सांस ले रहे होंगे।
अगले पेज पर भी पढ़िये –
राधा ने इसीलिए अपनी वास्तविकता छिपाकर अपने जिगर के टुकड़े के लिए सुंदर भविष्य के रास्ते खोल दिए थे। आज इसी रास्ते पर चलकर कमल इस अवस्था को पहुंचा था और इस भेद पर जब तक पर्दा रहेगा, कमल को अपने आप से कभी घृणा नहीं होगी। इस समय भी अपने आपको संभालकर उसने वास्तविकता का गला घोंट दिया था, परंतु यह दिल, नारी का यह दिल जाने क्यों कभी एक स्थान पर स्थिर नहीं रहता। राजा विजयभान सिंह की बर्बादी के पीछे जो इस समय अचानक ही सहानुभूति उभरी है, उसका वह क्या करे?
‘बेटा…!’ राधा ने एक गहरी सांस लेकर पूछा, ‘तुझे कब रामगढ़ जाना है?’
‘बस कल ही निकल जाऊंगा मां! जैसे ही कम्पनी के कुछ नौकर यहां पहुंचेंगे।’
‘तो फिर मैं भी तेरे साथ वहां चलूंगी बेटा!’
कमल ने झट कहा‒ ‘मां!’
‘हां बेटे! मुझे भी वहां ले चल।’ राधा ने अपने बेटे से जैसे विनती की, ‘मुझसे सब्र नहीं हो सकेगा।’
‘लेकिन मां! तुम्हें तो कल सरोज के यहां जाना है।’
‘तुझे मेरी सौगंध बेटा…!’ राधा झट बोली, ‘वहां से आते ही मैं सरोज के पास तुरंत चली जाऊंगी।’
कमल मां की बात सुनकर चुप हो गया। रामगढ़ में उसे आख़िर दिन ही कितने लगेंगे? यदि सर्वे करने में समय अधिक लगा तो मां को वह यहां वापस पहुंचा देगा, परंतु सरोज से यह संबंध जोड़ने में अब और अधिक देर हरगिज़ नहीं करेगा। समय इतना था कि मां को वह आज ही सरोज के यहां भेज देता, परंतु कोई लाभ नहीं होता। आज रात ही तो उसके मम्मी-डैडी बाहर से आएंगे। मां को देखकर वह प्यार से मुस्कराया तो राधा के दिल में शांति की लहर दौड़ गई।
सूर्यास्त होने में अभी देर थी। रामगढ़ में आकर एक स्टेशन वैगन तथा दो जीप रुकीं। जीप के ट्रेलरों पर काफी सामान लदा हुआ था। हवेली से कुछ दूरी पर एक अच्छी-ख़ासी पथरीली धरती की सतह थी जो कैम्प लगाकर ठहरने के लिए काफी उपयुक्त थी। गाड़ियों से लोग उतरे। कुछेक के शरीर पर खाकी वस्त्र थे, सिर पर खाकी हैट। कमल अंतिम जीप से उतरा तो दूसरी ओर से राधा भी बाहर चली आई। मुखड़े पर दर्द की छाया अंकित थी। उसने अपनी दृष्टि सबसे पहले हवेली पर दौड़ाई। पूरे संसार में मानो यही एक हवेली बची थी जो अंतिम सांस ले रही थी… बिलकुल ख़ामोश उजाड़, जैसे अब यहां रहने वाले को भी भय लगता होगा।
हवेली के उस पार, दूर, ताड़ के वृक्षों की चोटियां झांक रही थीं, जहां कुछेक गिद्ध चुपचाप बैठे मानो इन्हीं की उपस्थिति पर आश्चर्य से अपने आहार की आशा लगाए प्रतीक्षा कर रहे थे। इस इलाके में किसी जानवर का भटककर आ जाना और फिर सूखा पाकर भूख से बिलखकर दम तोड़ देना, एक साधारण-सी बात थी। हवेली की दीवारें काली हो रही थीं। समीप जाकर देखने से तो इनकी अवस्था और भी भयानक और कमजोर होगी। राधा के होंठों से एक आह निकल गई। बीते हुए युग की शान-ओ-शौकत तस्वीर बनकर आंखों में उभरी और स्थिर हो गई। जब राजा सूर्यभान सिंह तथा उनका बेटा विजयभान सिंह सामने के भाग में बारजे पर बैठकर लोगों का ध्यान किया करते थे। राधा ने देखा, हवेली के सामने वाला वह वृक्ष अब भी जीवित है परंतु पत्तियां सूख चली हैं। टहनियां कांटों के समान नुकीली दिखाई पड़ रही हैं। चबूतरा उबड़-खाबड़ लग रहा था।
ये भी पढ़ें –
