प्रिय — और क्या कहूं?
मुझे आना पड़ा तुम्हें ऐसे ही छोड़ कर, मेरी मातृ भूमि बुला रही थी मुझे ! जानता हूँ, अभी तो तुम्हारा घूंघट भी ठीक से नहीं उठाया था ,हम एक दूजे की आँखों में ठीक से अपने प्रेम का अक्स भी न देख पाये थे ,अभी तो तुम्हारे हाथों से मेहंदी की खुशबू ,और लाल रंग गया भी नहीं था! तुम्हारी बड़ी- बड़ी सुंदर आँखों के आंसू मुझे रोक रहे थे, उनमें छिपी मनुहार मेरे दामन से लिपटी जा रही थी! पर मेरी रानी समझो न, फ़र्ज़ पहले आता है। अपनी माँ से पहले देश आता है एक फौजी के लिए !
सुनो मैं यहाँ डटा हूँ अपने देश की रक्षा के लिए, पर तुमसे ये चाहता हूँ कि जब तक मैं न आऊं, तुम माँ का ख्याल रखना, बहुत कष्ट उठाए हैं उसने, अकेले ही पाला है मुझे और बिट्टू को बाबा के जाने के बाद। बिट्टू शरारती है उसे काबू में रखना और उसकी पढाई लिखाई पर ज़ोर देना। अगर ज़्यादा दंगा करे तो कान उमेठने से गुरेज़ मत करना !
मैं हर पल तुम्हें याद करता हूँ। जब रात को सोने जाता हूं, तुम्हारी प्यारी सूरत मेरी आँखों के आगे नाचती है फिर सपने भी तो तुम्हारे ही आते हैं। सुबह तुम्हारी चूड़ियों की खनक सपने में सुनाई देती है और मैं उठ जाता हूँ ! देखो एक सिपाही की पत्नी का जीवन सिपाही से भी कठिन होता है ! हमारे रास्ते तो सचमुच पथरीले होते हैं पर तुम्हारी डगर इसलिए मुश्किल होती है कि अकेले ही चलना पड़ता है ! पर मुझे पता है कि एक सिपाही की बीवी बहुत बहादुर होती है और वह अपनी पति को कभी कमज़ोर नहीं होने देती। अपनी दृढ़ता से अपने सिपाही को कठिन परिस्थितियों से जूझने का साहस देती है। अपना और सबका ख्याल रखना ! इंतज़ार का दामन मत छोड़ना मैं जल्दी घर आऊंगा।
तुम्हारा अपना ढोल सिपाही !
