Hindi Kahani: “मां…!मां…!!…मां… !!!” कई बार आवाज देने के बाद भी मां की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिला।
मां आज शांत हो गई थी….!
हमेशा के लिए इस लोक से परलोक के लिए जा चुकी थी।
“मां कहती थी
“श्लोक, मेरे सिवा तुम्हारा है कौन बेटा? मैं मर जाऊंगी ना तो भी मेरी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलेगी,जब तक तुम अपनी जिंदगी में नहीं सेटल कर लोगे।”
मां निष्प्राण सोई हुई पड़ी थी। आंखें बंद थीं। कोई हरकत नहीं हो रही थी।
मां को इस तरह देखकर मेरी आंखें बहती जा रही थीं।
दिल फूट फूट कर रो रहा था।
अभी अर्चना बाहर आएगी, वह भी फूट-फूट कर रो देगी।
मैं चाह कर भी उसे आवाज नहीं दे पा रहा था क्योंकि बीते सात सालों में मुझे ऐसा एक दिन भी नहीं लगा कि अर्चना ने मां को कभी सास भी माना हो और मां ने अर्चना को कभी बहू।
मेरे हर दुख तकलीफ में मां की टीस पहले फूटती थी।
पहली बार ऐसा हुआ था कि मेरी आंखें बह रही थी। मेरा दिल विलाप कर रहा था और मां कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी।
“ मां तुम्हारा आंचल…कहाँ है आज…जिस आंचल में मैं छुप जाया करता था हर दुख ,कष्ट भुला कर…अपनी सारी गलतियों पर परदा डालने का काम भी तुम्हारे आंचल तले ही करता था…!
क्या यह दुनिया ऐसी ही है… मृग मरीचिका जैसी!! सब कुछ गरम रेत में पड़ने वाले पानी के बूंद की तरह ही तो है!
आज तुम्हारा ममता भरा आंचल कहां चला गया …तुम्हारी ममता कहाँ चली गई…!
मेरी होठों से सिसकी फूट पड़ी और अंदर से सिम्मी को तैयार करती हुई अर्चना दौड़ती हुई निकली
“क्या हुआ जी? आप क्यों रो रहे हैं?”
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“ मैं कातर निगाहों से देखकर उससे कहा “मां नहीं रही…!!!”
“ यह आप क्या कह रहे हैं …!!मां…!, अर्चना ने मां को जोरों से हिलाया पर मां रहती तो ना!
मां तो हम सभी को रुला कर चलीं गईं…!
नन्ही सिमी भी बाहर आकर हम दोनों को रोते हुए देखकर रोने लगी और उसके साथ उसका भाई केशव भी।
“दादी इस दुनिया में नहीं रही….!” हम चारों फूट फूट कर रो रहे थे।
मां पत्थर की बुत की तरह पड़ी थी। उनपर हमारे रोने बिलखने का कोई असर नहीं पड़ रहा था।
आखिरकार मैंने अपने आँसू पोंछे और
अर्चना और बच्चों को अपने गले से लगाते हुए कहा
“अर्चना अब अंतिम संस्कार की तैयारी करनी होगी। तुम सभी को खबर कर दो… मेरे से बोला नहीं जाएगा…!”
“ अभी करती हूं ।”अर्चना ने फोन कर परिवार के सभी लोगों को” मां नहीं रही!” बता दिया।
“सुनिए जी, पंडित जी को भी फोन कर दिया है ।1 घंटे में मुहूर्त है तब तक सभी लोग आ जाएंगे।
उसके बाद ही अंतिम संस्कार की तैयारी करनी होगी।” अर्चना ने कहा ।
“ठीक है।”
मैंने मां के शव को उतार कर जमीन पर रख दिया।
मैंने अर्चना से कहा
“अर्चना, यहां पर अगरबत्ती और एक घी का दिया जला दो और मां के ऊपर फूल चढ़ा दो।”
“ठीक है जी।” अर्चना ने माली से कहकर जल्दी से फूल मंगवा लिया और अगरबत्ती और दिए जला कर रख दिया।
मैं वहीं बैठा रहा। मुझे हिलने का भी मन नहीं कर रहा था।
मैं मां को एकटक देख रहा था।उन्हें देखते हुए पुरानी यादों में पहुंच गया था।
अपने घर परिवार से तिरस्कृत मां एक पत्थर की ढाल बनकर मेरे साथ खड़ी रहती थी, एक मजबूत स्तंभ की तरह…। लगता ही नहीं था कि मां के अंदर कोई भावनाएं भी मौजूद है..!
अपना सिर झुका कर वह सभी कामकाज करती रहतीं थीं और उसके साथ सबके ताने भी सुनती रहतीं थीं।
ऐसा लगता था जैसे कि मैं उनका जायज बेटा नहीं नाजायज बेटा हूं।
मेरे सिर पर से पिता की छाया हट गई थी। पिता फौज में सिपाही थे।उनकी मौत के बाद हमारी यानि मैं और मां की स्थिति बद से बदतर हो गई थी।
दादी ने तो उन पर लांछन ही लगा दिया था कि मैं अपने पिता का बेटा हूँ ही नहीं।उनके साथ साथ ताऊ और चाचा भी दादी के साथ मां को चरित्रहीन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।
लेकिन मां ने कभी भी अपना मुंह नहीं खोला।
पिताजी फौज में थे तो उस अनुकंपा पर मां को कई सालों तक भाग दौड़ करने के बाद आंगनबाड़ी केंद्र में सहायक की नौकरी मिल गई।
फिर मां ने अपना स्थानांतरण दूसरे गांव में करा लिया था।
मुझे बड़े होने के बाद यह पता चला कि मां को घर से निकाल दिया गया था।
मेरे पिताजी के हिस्से पर दोनों चाचाओं ने अपना हक जमा कर मां और मुझसे नाता रिश्ता तोड़ दिया था।
एक बार नौकरी होने के बाद मां भी कभी पीछे मुड़कर नहीं देखी थी। उन्होंने बड़ी मेहनत से, बहुत संघर्ष कर मुझे पढ़ाया लिखाया था।
नौकरी के अलावा लोगों के खास तौर पर महिलाओं और बच्चों के कपड़े सिलाई किया करती थी।
उसके अलावा आस पड़ोस के लोगों के स्वेटर बुना करती थी।
बड़ी मेहनत से उन्होंने मुझे पढ़ाया और ऊंची शिक्षा दिलवाई।
उन्हीं के कारण मैं आज एक बड़ी कंपनी में काम कर रहा हूं और शानदार जिंदगी जी रहा हूं।
बचपन में जब भी दादी या चाचा किसी के भी डांट पड़ती थी तो मैं दौड़कर मां की आंचल में छुप जाया करता था।
मां भी बड़े ही प्रेम से मुझे अपने आंचल में एक चिड़िया के बच्चे की तरह समेट लेती थी।
बड़े होने के बाद भी वह ममता की छांव मेरे लिए बरकरार थी।
“सुनिए जी पंडित जी आ गए हैं…!”
फिर से मेरे आँखों से अविरल धारा बह चली।
शमशान में मां की चिता को अग्नि देने के बाद मैं थके हारे हुए कदमों से घट लौट आया।
“अब कहाँ मां की ममता और प्यार भरा हुआ वह आंचल…!!मैं अनाथ हो गया…!”मैं बिलख उठा।
पिछले 5 सालों से मां कैंसर से जूझ रही थी। वह हर पल दर्द की आगोश में रहती थी।
कोरोना वह दौर जब अच्छे-अच्छे लोगों की नौकरियां छूट रही थी, उन बदनसीबों में मैं भी था।
नौकरी छोड़कर मुझे अपने गांव वापस आना पड़ा क्यों कि शहर में रहने के लिए मेरे पास ना तो उतने पैसे थे और न ही सुविधा।
मां ने अपने आंचल फैला कर मुझे और मेरे बच्चों को अपना लिया था। वह 2 साल मैंने कैसे काटा हुआ मैं ही जानता हूं।
मां की दी हुई शक्ति, हिम्मत ने मुझमें वह जज्बा भरा।
मैंने ऑनलाइन ही कई वेकैंसी भरा।एक दिन गुडग़ांव के एक बहुत ही बड़ी कंपनी ने मेरा सेलेक्शन कर लिया।
मैंने नौकरी ज्वाइन किया और मां की गिरती हुई सेहत ने मुझे डराना शुरू किया।
एम्स में चेकअप कराने के बाद मुझे पता चला कि मां को कैंसर हो गया है…!
“सुनिए जी,मां के तकिए के नीचे से एक चिट्ठी मिली है।आपके नाम लिखा है उन्होंने।”
मेरे घर आते ही अर्चना ने मुझसे कहा।
स्नान और पूजा के बाद मैं मां का अंतिम पत्र पढ़ने लगा
“चिरंजीवी मुन्ना,
खूब खुश रहो
यह चिट्ठी तब खोलना जब तुम्हारी माँ अंतिम साँस छोड़कर ब्रह्म में समा जाएगी।
बेटा…मुझे तो मुक्ति मिल ही नहीं सकती कभी भी.. क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे आसपास ही रहूंगी।
तुम खुश रहोगे तो ही मेरी आत्मा को खुशी मिलेगी।
इसलिए मेरे जाने का दुख मत करना।मेरा आशिर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।
सदा सुखी रहो।
तुम्हारी माँ…।”
मेरी आँखें फिर से बहने लगी।
“नहीं जी,रोइए मत।मां ने रोने और दुख मनाने के लिए मना किया है ना।”अर्चना मेरे आँसू पोंछते हुए बोली।
“हाँ …तुम ठीक कह रही हो…!”मैं रूंधे गले से बोला।
मैं भरी हुई अपनी आँखों से देखा.. ऐसा लगा मां अब भी वहां खड़ी है मुस्कुराते हुए…!
