शक तो पहले भी लोग करते थे परंतु आज का शक आधुनिक है। आज जब लड़का-लड़की को शादी के लिए देखने जाता है तो उसे शक होता है कि क्या यह मुझसे शादी करेगी? अगर लड़की हां कर देती है तो अपने भाग्य पर शक करता है और अगर शादी हो जाती है तो अपनी बुद्धि पर शक करता है कि वह सही समय पर हमेशा गलत निर्णय लेती है।

प्राचीन समय से ही सभी मां-बाप अपने बेटों पर शक करते चले आए हैं कि पता नहीं बेटा खुद कमा-खा पाएगा या नहीं। इसीलिए हर मां-बाप अपने बेटों के लिए खुद ना खाकर इतनी अधिक सम्पत्ति छोड़ जाते हैं कि बेटे अपने मां-बाप पर शक करने लगते हैं कि जब इन्हें खाना-पीना नहीं था तो जन्म क्यों बेकार किया। 

आज कई मरीज डॉक्टर पर शक करते हैं कि यह मुझे ठीक कर पाएगा या नहीं और डॉक्टर मरीज पर शक करता है कि मरीज दूसरी बार आएगा या नहीं। यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है।

आज नेता अपने वोटरों पर शक करता है कि वोटर इस बार मुझे जिताएंगे या नहीं। वहीं वोटर नेता जी पर शक करता है कि नेताजी की हाई-कमान में चलेगी या नहीं। नेताजी क्षेत्र का विकास करा पाएंगे या नहीं।

शिक्षा का क्षेत्र भी शक से दूर नहीं है। शिक्षक को सदा शक रहता है कि छात्र पास होगा या नहीं। वहीं छात्र को शक रहता है कि गुरुजी मुझे पास करेंगे या नहीं, शक और शिक्षा सदियों से साथ-साथ चली आ रही है।

लेखन का क्षेत्र भी शक से दूर नहीं है। जहां लेखक को शक रहता है कि मेरे द्वारा भेजी गई सर्वोत्तम रचना संपादक जी को समझ आएगी या नहीं, वहीं संपादक जी को लेखक के लेखक होने पर ही शक होता है। हां कुछ लेखक ऐसे जरूर होते हैं जिन्हें खुद के लेखक होने पर शक होता है। पर वह इतना अधिक पत्र-पत्रिकाओं में छपते हैं कि उनकी प्रतिभा पर शक करने वाला खुद अपने-आप पर शक करने लगता है कि लिखने वाले ने तो अच्छा ही लिखा होगा, मेरा दिमाग उसे समझ नहीं पा रहा है।

पति-पत्नी के रिश्ते तो सदा ही शक के दायरे में रहे हैं। जहां पति को पत्नी के बीमार पडऩे पर शक होता है वहीं पत्नी को पति के स्वस्थ होने पर शक होता है। पति अगर ऑफिस से जल्दी घर आ गए तो पत्नी को शक होता है कि कहीं इनकी नौकरी तो नहीं छूट गई। पति अगर देर से घर आता है तो शक करती है कि इनका कहीं कोई चक्कर तो नहीं है। वहीं अगर पत्नी मेकअप में कम समय लगाती है तो पति को शक होता है कि पत्नी को मेकअप सैन्स नहीं है और अगर मेकअप में अधिक समय लगाती है तो पति को शक होता है कि पत्नी को टाईम-सैन्स नहीं है।

शक का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हमारा पड़ोस है। हर पड़ोसी को शक होता है कि उसका पड़ोसी शक्की है, पड़ोसी की हर गतिविधि पर शक करना हमारा सामाजिक दायित्व है। अपने शक के आधार पर हर पड़ोसी के चरित्र का पोस्ट-मार्टम करना हमारा नैतिक कर्तव्य बन चुका है। जहां पड़ोसी के नियमित रूप से सैर करने से हमें पड़ोसी के मधुमेह से ग्रस्त होने का शक होता है। वहीं पड़ोसी के घर के भीतर ही रहने से हमें पड़ोसी के आलसी होने का शक होता है। पति अगर पत्नी को डांटता है तो हमें उसके ड्रामेबाज होने का शक होता है और अगर पड़ोसी पति अपनी पत्नी को नहीं डांटता है तो हमें उसके दब्बू होने का शक होता है।

अब तो शक रोजगार प्राप्ति में भी सहायक बन चुका है। अगर आपको किसी पर शक है तो निजी जासूस 24 घंटे आपकी सेवा में हाजिर, शक ज्यादा हो तो हर समय मनोवैज्ञानिक डॉक्टर हाजिर, शक ने बहुत ही ज्यादा परेशान किया तो पूजा-पाठ के लिए पंडित हाजिर, भिन्न-भिन्न प्रकार के शक पर पत्रिकाओं का ‘शक-विशेषांक हाजिर और तब भी बात न बने तो ‘चमत्कारी शक-निवारण यंत्र हर टीवी चैनल पर हर समय हाजिर।

अब भी अगर कोई यह समझे कि शक के बिना भी जीवन संभव है तो मुझे उस व्यक्ति पर ही शक होता है कि वह शक के बिना जीवित कैसे है। अब बिना शक किए पूरा लेख पढ़ जाइए और शक कीजिए कि यह लेख क्यों छापा गया।