सर्दियों के शुरू होते ही 21 साल की वैभवी गर्ग का कॉलेज जाना दूभर हो जाता है। आए दिन सांस लेने में परेशानी के चलते वह अपने दोस्तों से भी नहीं मिल पाती। सर्दियों का मौसम वैभवी के लिए कई दिक्कतें लेकर आता है। दरअसल वैभवी को अस्थमा की समस्या है और ठंडे मौसम में ये और ज्यादा गंभीर हो जाती है। हर साल अस्थमा अटैक आने से वैभवी को मानसिक परेशानी भी होने लगी है। ये समस्या सिर्फ वैभवी की ही नहीं है, सर्दियों में न जाने कितने अस्थमा रोगियों को ये सब झेलना पड़ता है। आंकड़ों की बात करें तो दुनियाभर में तकरीबन 3000 लाख लोग अस्थमा से पीडि़त है।

अस्थमा
अस्थमा फेफडों की बीमारी है जिसमें फेफडों से जाने वाली सांस की नलियों में सूजन आ जाती है और सांस की नलियों की तंत्रिका को संवेदनशील बना देती है जिससे आसानी से किसी भी प्रकार की जलन व सूजन हो जाती है। अमेरिकन लंग एसोसियेशन के तथ्यों के अनुसार अस्थमा बचपन में पाई जाने वाली समस्याओं में आम है और इस समय 18 साल तक की उम्र के 71 लाख बच्चे इस समस्या से ग्रस्त हैं। वल्र्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के अनुसार अस्थमा की वजह से प्रत्येक वर्ष 138 लाख लोग डिस्एबलिटी एडजस्ट लाइफइयर ( डीएएलवाई) यानी विकलांगता भरी जिंदगी व्यतीत करते हैं जो दुनियाभर की कुल बीमारियों का 1.8 फीसदी बोझ दर्शाता है।

अस्थमा और सर्दियों का संबंध
विशेषज्ञों के अनुसार सांस की नलियों में सूजन के कारण सांस की नलियां बहुत ज्यादा सिकुड जाती हैं जिससे बलगम जैसा पदार्थ जमा होने लगता है और ये सांस लेने में नलियों को प्रभावित करता है। इससे अस्थमा के रोगियों को दिक्कत होने लगती है। सर्दियों के दौरान ठंडी हवाएं सांस की नलियों को और ज्यादा टाइट कर देती हैं जिससे सांस लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होने लगती है।

इस बारे में डॉ. सुशील मुंजाल, एमडी, चेस्ट, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्यूबरकुलोसिस एंड रेस्पिरेटरी डिजीजेज का कहना है कि अस्थमा रोगियों के फेफड़े और सांस लेने की नलियां बहुत संवेदनशील होती हैं। ठंडी- सूखी हवाओं व ठंडे मौसम में वायरस होने से अस्थमा रोगियों को ज्यादा परेशानी हो जाती है। अस्थमा अटैक होने से अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत बढ़ जाती है। इसलिए लोगों को ये समझना जरूरी है कि सर्दियों में सही इलाज और दवाइयों द्वारा अस्थमा के लक्षणों को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।

अस्थमा से जुड़ी गलतफहमियां
विशेषज्ञों का कहना है कि अस्थमा के इलाज के दौरान रोगी और उनके परिजन अकसर कई गलत सूचनाओं के साथ आते हैं। अस्थमा की जानकारी, कारणों व इलाज के विकल्पों को लेकर रोगी व उनके परिजन काफी पसोपेश में होते हैं। अस्थमा को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां होती हैं जैसे अस्थमा सिर्फ पारिवारिक इतिहास होने पर ही होता है, अस्थमा संचारी रोग है, अस्थमा को मछली थेरेपी से ठीक किया जा सकता है, दवाइयां ज्यादा बेहतर हैं, योग से अस्थमा अटैक को रोका जा सकता है या अस्थमा ट्रिगर से बचकर इसे रोका जा सकता है। लोग सोचते हैं कि इंहेलर ही अस्थमा का अंतिम इलाज है। ऐसी कई गलत जानकारियां रोगी और उनके परिवारों में होती हैं।

जागरूकता बढ़ाना जरूरी
हैल्थ केयर से जुड़े लोगों को रोगियों, परिवारवालों को अस्थमा से जुड़े तथ्यों की जानकारियां देनी चाहिए। रोगियों को समझाना चाहिए कि बीमारी को छिपाने की बजाए समय रहते सही इलाज कराना बहुत जरूरी है। अस्थमा को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में कोरटिकोस्टेरॉयड यानी इंहेलेशन थेरेपी काफी कारगर है जिसके साइड इफैक्ट्स कम होते हैं और ये बेहतर तरीके से अस्थमा को नियंत्रित करती है।

डॉ. मुंजाल कहते हैं, ‘अस्थमा रोगी इसे नियंत्रित करने में काफी लापरवाही बरतते हैं। इसी वजह से लगातार नियमित दवाइयां लेने के बावजूद रोगी रोजाना अस्थमा के लक्षणों से प्रभावित रहते हैं और रोजमर्रा के कामों में दिक्कत महसूस करते हैं। इन सभी समस्याओं से निजात पाने के लिए खाने वाली दवाइयों के मुकाबले इन्हेलेशन थेरेपी ज्यादा बेहतर है क्योंकि इसमें साइड इफैक्टस तो कम होते ही हैं साथ ही में ये जल्दी काम भी करती है।Ó

इन्हेलेशन थेरेपी
इन्हेलेशन थेरेपी में इन्हेलर पंप में मौजूद कोरटिकास्टेरॉयड सांस की नलियों की सूजन को कम करते हैं। मुश्किल ये है कि रोगी स्टेरॉयड का नाम सुनकर ही इन्हेलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, लेकिन ये लोग इस तथ्य से अनजान है कि कोरटिकास्टेरॉयड प्राकृतिक रूप से शरीर में भी बनता है जो शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है। इसलिए ये युवाओं, बच्चों के साथ-साथ गर्भवती महिलाओं के लिए भी प्रभावकारी और बहुत सुरक्षित है।
रेस्पिरेटरी मेडिसन में प्रकाशित अध्ययन लेख के अनुसार इन्हेलेशन थेरेपी और अस्थमा के बीच सकारात्मक क्लिनिकल प्रभाव है। अध्ययनों में वयस्कों, किशोरों और बच्चों में अस्थमा के लक्षणों और फेफड़ों के काम को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने में सुधार नजर आया है।

डॉ. मुंजाल कहते हैं कि सांस की नलियों की सूजन को कम करने के लिए बहुत ही कम मात्रा में (करीब 25 से 100 माइक्रोग्राम) कोरटिकोस्टेरॉयड की जरूरत होती है। लेकिन खाने वाली दवाइयों से दवा की मात्रा (तकरीबन 10,000 माइक्रोग्राम) शरीर के विभिन्न अंगों में चली जाती है और फेफड़ों तक बहुत कम दवाई पहुंचती है। इसका मतलब है कि जब भी अस्थमा रोगी टैबलेट या सिरप लेता है तो वह जरूरत से 200 गुना ज्यादा दवाई लेता है जिससे सेहत पर कई तरह के साइड इफैक्ट्स देखने को मिलते हैं।
खाने वाली दवाइयों की ज्यादा मात्रा पहले रक्त में घुलकर सभी अंगों में पहुंचती है जिसमें फेफड़े भी शामिल हैं लेकिन इन्हेलेशन थेरेपी में कोरटिकोस्टेरॉयड सीधे फेफड़ों में पहुंचता है। स्टेरॉयड की जितनी मात्रा लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए चाहिए होती है, उतनी ही मात्रा इन्हेलेशन थेरेपी से मिलती है।

तो इन सर्दियों में अस्थमा की परेशानी से दो-चार होने की बजाए इंहेलेशन थेरेपी अपनाएं और सर्दियों में भी पूरी तरह से सक्रिय रहें। द्य