World Down Syndrome Day -21 मार्च को पूरे विश्व में वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है। डाउन सिंड्रोम एक बेहद गंभीर समस्या है, जिसके प्रति जन जागरूकता लाने के लिए विशेषत : 21 मार्च को चुना गया है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को समाज हीन दृष्टि से न देखे, और उसको समझ कर समाज में मिलाने का प्रयास करे, यही वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम का मुख्य उद्देश्य है। पर क्या आप जानते हैं कि, मार्च की 21 तारीख को ही विशेष रूप से वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाने के लिए क्यों चुना गया? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं,
21 मार्च को पूरे विश्व में वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस मनाया जाता है। डाउन सिंड्रोम एक बेहद गंभीर समस्या है, जिसके प्रति जन जागरूकता लाने के लिए विशेषतः 21 मार्च को चुना गया है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को समाज हीन दृष्टि से न देखे, और उसको समझ कर समाज में मिलाने का प्रयास करे, यही वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम का मुख्य उद्देश्य है। पर क्या आप जानते हैं कि, मार्च की 21 तारीख को ही विशेष रूप से वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस के रूप में मनाने के लिए क्यों चुना गया? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं इसके पीछे का कारण और डाउन सिंड्रोम के विषय में अन्य जानकारियां।
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21 मार्च को क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस?
बता दें, वर्ल्ड डाउन सिंड्रोम दिवस को इसी दिन मानने का एक विशेष कारण है। दरअसल तीसरे महीने के 21वें दिन को ही इसलिए चुना गया क्योंकि ये दिन 21वें क्रोमोसोम के ट्रिप्लिकेशन (ट्राइसॉमी) की विशिष्टता को दर्शाता है, जो डाउन सिंड्रोम का कारण भी बनता है।

क्या है डाउन सिंड्रोम
डाउन सिंड्रोम एक ऐसी स्पेशल कंडीशन है, जिसमें एक बच्चा 21 वीं संख्या के क्रोमोसोम्स की एक एक्स्ट्रा कॉपी के साथ जन्म लेता है। यह एक्स्ट्रा जेनेटिक मैटिरियल बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास की गति को धीमा कर देता है। हमारे शरीर में प्रत्येक सेल में क्रोमोसोम्स के 23 सेट होते हैं, जो प्रत्येक माता-पिता में से एक होते हैं। लेकिन जब एक माता-पिता अतिरिक्त जेनेटिक मैटिरियल का योगदान करता है, तब डाउन सिंड्रोम की कंडीशन उभरती है। ज्ञातव्य है कि डाउन सिंड्रोम का नाम ब्रिटिश डॉक्टर जॉन लैंगडन डाउन के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने पहली बार 1866 में चिकित्सकीय रूप से इस कंडीशन की डिस्कवरी की थी।
इस परिस्थिति में है डाउन सिंड्रोम का खतरा

जब भी कोई महिला अधिक उम्र में मां बनती है, तो उसकी आगे जन्म लेने वाली संतान को डाउन सिंड्रोम का अधिक खतरा होता है। बता दें, बढ़ती उम्र के साथ एक महिला के एग्स की उम्र भी बढ़ती है, जिस वजह से यह समस्या होने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही, यदि आपकी एक संतान डाउन सिंड्रोम के साथ जन्म ले चुकी है, तो आगे भी इसका खतरा बना रहता है।
डाउन सिंड्रोम से होने वाली समस्याएं

कोई भी व्यक्ति जो डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है, उसे कई बीमारियो का खतरा बना रहता है। डाउन सिंड्रोम के साथ जन्म लेने वाले कई बच्चों में जन्म से ही हार्ट डिफेक्ट होते हैं, जिस कारण से नवजात बच्चों को भी जान का खतरा बना रहता है। इसके अलावा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं भी लगातार आती रहती हैं। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों को कई बार ल्यूकेमिया, डिमेंशिया और मोटापे जैसी समस्याओं का भी खतरा बना रहता है।
ऐसे है इलाज संभव

डाउन सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है, जिससे कोई भी पूर्ण रूप से मुक्त नहीं हो सकता। भले ही आजीवन रहने वाली यह समस्या पूरी तरह से ठीक नही हो सकती पर, कुछ हद तक इसका इलाज संभव है। अगर आपका बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है, तो याद रहे उसे बहुत ज्यादा प्यार की जरूरत है। इस समस्या में प्यार और केयर सबसे बड़ा इलाज होता है। बता दें डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान देना चाहिए. भले ही डाउन सिंड्रोम एक विशेष परिस्थिति है, पर इस समस्या से जूझने वाले बच्चों से भी नॉर्मली पेश आना चाहिए। उन्हे व्यायाम और खेल के लिए प्रोत्साहित करने के साथ साथ पढ़ाई के लिए भी भेजना चाहिए। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक विकास धीमी गति से होगा, पर उसमे भी विकास के लक्षण नजर आते है, इसलिए उन्हें विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। डॉक्टर के अनुसार इस बीमारी का पूरी तरह से इलाज नहीं किया जा सकता लेकिन डॉक्टर्स से लगातार ट्रीटमेंट, इसकी समयावधि में फर्क डालता है।
