पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में तेजी से आता है बुढ़ापा

वियना यूनिवर्सिटी में हाल में हुई एक शोध की माने तो महिलाओं में पुरुष के मुकाबले 50 की उम्र के बाद तेजी से बुढ़ापा आता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, 50 साल की उम्र तक महिलाओं और पुरुषों की त्वचा पर उम्र का प्रभाव एक जैसा रहता है। इसके बाद महिलाओं में तेजी से उम्र का असर दिखता है, जबकि पुरुषों में ये बदलाव धीमी गति से होते हैं। शोधकर्ताओं ने इसके लिए 26 से 90 साल की 88 महिलाओं और पुरुषों पर शोध किया। कम्ह्रश्वयूटर की मदद से इनके चेहरे के 600 अलग-अलग हिस्सों का विश्लेषण किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया महिलाओं में 50 साल की उम्र पार करने के बाद मेनोपॉज शुरू हो जाता है। इस दौरान शरीर में सेक्स हार्मोन इस्ट्रोजन कम होने के कारण चेहरे पर झुर्रियां आने लगती हैं। उम्र का असर तेजी से दिखने लगता है। आंखें छोटी होने लगती हैं, नाक और कान बड़े और ढीले दिखने लगते हैं। चर्बी घटने के कारण चेहरा सपाट होने लगता है। धीरे-धीरे ठोडी के पास वाली त्वचा सिकुड़ना शुरू हो जाती है। उम्र का प्रभाव प्रोटीन कोलेजन पर असर डालता है जो त्वचा को लचीलापन प्रदान करती है।

दिल को रखना है दुरुस्त तो जरूर जाएं छुट्टियों पर

हाल ही में किए गए एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जो लोग वक्त निकालकर छुट्टियां लेते हैं, उनमें दिल की बीमारियों का खतरा कम रहता है क्योंकि इन छुट्टियों की मदद से आप न केवल खुद को तनाव से मुक्ति दिला सकते हैं बल्कि इससे दिल की बीमारियों के होने का खतरा भी काफी हद तक कम हो जाता है। । मनोविज्ञान और स्वास्थ्य पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि छुट्टियां मेटाबोलिज्म संबंधी लक्षणों को कम करने में मददगार है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। अमेरिका में स्थित सिरैक्यूज विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक ब्रायस ह्यू्रस्का ने कहा, ‘हमने पाया कि जिन व्यक्तियों ने पिछले 12 महीनों में अकसर ही छुट्टियां ली हैं उनमें मेटाबोलिज्म सिंड्रोम और उसके लक्षणों का जोखिम कम है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘मेटाबोलिज्म सिंड्रोम दिल की बीमारियों के लिए जोखिम कारकों का एक संग्रह है। इसके अलावा, हाइपरटेंशन और हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या भी नहीं होगी। वैज्ञानिकों ने यह बात शोध के निष्कर्ष के आधार पर कही है। यदि आपमें मेटाबोलिज्म ज्यादा है तो आपको दिल की बीमारियों के होने खतरा कहीं अधिक है। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हम वास्तव में यह देख रहे हैं कि जो इंसान अकसर ही छुट्टियों पर जाता है उसमें हृदय रोग का खतरा कम पाया गया क्योंकि मेटाबोलिज्म संबंधी लक्षण परिवर्तनीय हैं यानी वे बदल सकते हैं या फिर उन्हें मिटाया जा सकता है।’

नए व्यंजन का दिल पर प्रभाव

फिनलैंड स्थित हेलसिंकी यूनिवर्सिटी और एस्टोनेशिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टार्टू के अनुसंधानकर्ताओं ने आहार गुणवत्ता, जीवनशैली से संबंधित रोगों और उनके जोखिम कारकों पर खानपान संबंधी व्यवहार के स्वतंत्र प्रभाव का अध्ययन किया जिसमें उन्होंने पाया कि नए व्यंजन से संबंधित डर (फूड नीओफोबिया) किसी व्यक्ति की आहार खुराक गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है और यह हृदय रोग एवं मधुमेह टाइप-2 जैसे जीवनशैली से जुड़े रोगों का जोखिम पैदा कर सकता है । ‘फूड नीओफोबिया’ खानपान संबंधी एक ऐसा विकार है जिसमें व्यक्ति ऐसे व्यंजनों को चखने या खाने से इनकार करता है जिनसे वह परिचित नहीं है। सात साल चले अध्ययन कार्यक्रम में 25 से 74 वर्ष आयु वर्ग के लोगों को शामिल किया गया। अध्ययन में पता चला कि ‘फूड नीओफोबिया’ 78 प्रतिशत मामलों में आनुवंशिक हो सकता है। यह हृदय रोग एवं मधुमेह टाइप-2 जैसे जीवनशैली से जुड़े रोगों का जोखिम पैदा कर सकता है। यह विकार बच्चों और बुजुर्गों में आम होता है।

शाम का व्यायाम सुबह की कसरत जितना लाभकारी

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम बहुत सहयोगी है, व्यायाम को लेकर ही हाल में एक रिसर्च हुई जिसमें शोधकर्ताओं ने पाया है कि शाम का व्यायाम सुबह के समान ही लाभकारी है। सेल मेटाबॉलिज्म जर्नल में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि व्यायाम का प्रभाव दिन के अलग-अलग समय के आधार पर भिन्न हो सकता है। रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने चूहों की जांच की और पाया कि सुबह व्यायाम करने से चूहों के कंकाल की मांसपेशियों में मेटाबॉलिक रिस्पॉन्स बढ़ जाता है, जबकि दिन में बाद में व्यायाम करने से समय की एक विस्तारित अवधि के लिए ऊर्जा व्यय बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं ने मांसपेशियों की कोशिकाओं में कई प्रभावों को मापा है, जिसमें ट्रांसक्रिह्रश्वशनल प्रतिक्रिया और मेटाबोलाइट्स पर प्रभाव शामिल हैं। डेनमार्क में कोपेनहेगन विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर जोनास थ्यू ट्रीबक ने कहा, ‘सुबह और शाम को किए गए व्यायाम के प्रभाव के बीच महत्त्वपूर्ण अंतर दिखाई देते हैं और ये अंतर संभवत: शरीर के सर्केडियन क्लॉक द्वारा नियंत्रित होते हैं।’ ट्रीबक ने कहा, ‘शाम का व्यायाम, समय की विस्तारित अवधि के लिए पूरे शरीर के ऊर्जा व्यय को बढ़ाता है।’ रिसर्च के नतीजों में पाया गया कि सुबह व्यायाम करने के बाद दोनों क्षेत्रों में प्रतिक्रियाएं अधिक मजबूत होती हैं और यह एक केंद्रीय तंत्र द्वारा नियंत्रित किया जाता है, जिसमें प्रोटीन एचआईएफ 1-अल्फा शामिल होता है, जो सीधे शरीर की सर्केडियन क्लॉक को नियंत्रित करता है।

बच्चों के लिए जरूरी है खेल-कूद

क्या आपका बच्चा भी दिन भर कम्ह्रश्वयूटर, टीवी और वीडियो गेम्स खेलने में निकाल देता है? यदि ऐसा ही है तो आपको सचेत हो जाने की जरूरत है क्योंकि हाल में हुए एक शोध की मानें तो जो बच्चे घर पर ही रहते हैं और आउटडोर एक्टिविटी में हिस्सा नहीं लेते उनका मानसिक व शारीरिक विकास नहीं होता । बच्चों के बाहर खेलने को लेकर विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या इस बात को जानने को लेकर है कि आखिर कितनी सक्रियता संगठित जीवनशैली के लिए जरूरी है। परिजनों को अपने बच्चों को प्रतिदिन शारीरिक गतिविधियों के लिए और ज्यादा समय देना चाहिए। शोधकर्ता के अनुसार ‘परिजन जानते हैं कि अगर वे अपने बच्चों को तेज सांस लेते हुए और पसीना छोड़ते हुए नहीं देखेंगे तो इसका मतलब वे पर्याप्त परिश्रम नहीं कर रहे हैं।’ विशेषज्ञों ने कहा, ‘शारीरिक गतिविधियों के लिए और अवसर होने चाहिए. अपने बच्चों को बाहर लाएं और उन्हें दौड़ने, पड़ोसी बच्चों के साथ खेलने दें और उन्हें बाइक्स चलाने दें।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन (ङ्ख॥ह्र) के अनुसार, बच्चों को एक दिन में मुख्य रूप से एक घंटे की एरोबिक गतिविधि करनी चाहिए।

मोबाइल इस्तेमाल करने वाले हो जाएं सावधान

ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में सामने आया कि 18 वर्ष से 30 वर्ष की आयु के लोगों में सींग जैसी हड्डी विकसित हो रही है। शोधकर्ताओं ने इस रिसर्च में 18 से 86 वर्ष तक के 1200 लोगों के एक्स-रे को शामिल किया गया था। इस रिसर्च के मुताबिक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाले युवाओं के सिर के स्कैन में बेहद चौंकाने वाला सच सामने आया है। ऐसे सिरों में अब सींग उगने लगे हैं। रिसर्च में शामिल शोधकर्ताओं का पहला पेपर जर्नल ऑफ एनाटॉमी में 2016 में छपा था। इस पेपर में 18 से 30 वर्ष आयु वर्ग के 216 लोगों के एक्स-रे को शामिल किया गया था जिसमें 41 फीसदी वयस्कों के सिर की हड्डी में वृद्धि देखी गई थी। साथ ही ये भी पता चला कि पुरुष इससे ज्यादा प्रभावित है। सिर्फ मोबाइल ही नहीं शोधकर्ता मानते हैं कि स्मार्टफोन की तरह के दूसरी डिवाइस भी इसी तरह का असर दे रही हैं। ये सभी इंसान के स्वरूप को बदल रहे हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि टेक्नोलॉजी का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव का ये अपने तरह का पहला रिसर्च है। साल 2018 में दूसरे पेपर में चार टीनएजर्स की केस स्टडी को सामने रखा गया था जिनके सिर पर सींग आए थे। इन्हें शोधकर्ताओं ने आनुवांशिक मानने से इंकार कर दिया। यदि आप नहीं चाहते कि आपके सिर पर सींग उग जाएं तो मोबाइल और लैपटॉप जैसी डिवाइस का इस्तेमाल कम से कम करें।

इंटरनेट का अधिक इस्तेमाल मस्तिष्क को करता है प्रभावित

पत्रिका वर्ल्ड साइकैट्री में प्रकाशित एक अनुसंधान की माने तो इंटरनेट का ज्यादा प्रयोग मस्तिष्क को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। इसके इस्तेमाल से हमारा ध्यान, स्मृति और सामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है। अनुसंधानकर्ताओं ने इस संबंध में अग्रणी परिकल्पनाओं की जांच की, कि किस तरह से इंटरनेट बोध प्रक्रियाओं को परिवर्तित कर सकता है। अनुसंधानकर्ताओं ने इसके साथ ही इसकी भी पड़ताल की कि ये परिकल्पनाएं किस सीमा तक हाल के मनोवैज्ञानिक, मनोरोग और न्यूरोइमेजिंग अनुसंधान के निष्कर्षों से समर्थित हैं। ऑस्ट्रेलिया के वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय के जोसेफ फर्थ ने कहा कि, ‘इस रिपोर्ट का प्रमुख निष्कर्ष यह है कि उच्च स्तर का इंटरनेट इस्तेमाल मस्तिष्क के कई कार्यों को प्रभावित कर सकता है।’ फर्थ ने कहा कि, ‘इंटरनेट से प्राप्त होने वाले संदेश हमें अपना ध्यान लगातार उस ओर लगाए रखने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके परिणामस्वरूप यह एकल कार्य पर ध्यान बनाए रखने की हमारी क्षमता को कम कर सकता है।’

तनाव करना है कम तो कुत्ते बिल्लियों के साथ खेलिए

आज कल बच्चों पर बेहतर प्रदर्शन करने का इतना दबाव रहता है कि वे तनाव में आ जाते हैं। हाल में हुई एक शोध कहती है। की बच्चों में यदि तनाव है तो कुत्ते बिल्लियों के साथ खेलने से उनमें तनाव कम होता है, जर्नल एईआरए ओपन में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, कई विश्वविद्यालयों ने ‘पेट योर स्ट्रेस अवे’ कार्यक्रम चलाया है, जहां विद्यार्थी आकर कुत्ते और बिल्लियों से बात कर सकते हैं, उनके साथ खेल सकते हैं। अध्ययन में पाया गया कि जिन विद्यार्थियों ने कुत्ते और बिल्लियों संग समय बिताया उनमें कॉर्टिसोल हार्मोन में उल्लेखनीय कमी पाई गई। यह तनाव पैदा करने वाला एक प्रमुख हार्मोन है। इस अध्ययन में 249 कॉलेज विद्यार्थियों को शामिल किया गया जिन्हें चार समूहों में बांट दिया गया। इनमें से पहले समूह को कुत्ते और बिल्लियों संग दस मिनट का समय बिताने को दिया गया। परीक्षण में पाया गया कि जिन विद्यार्थियों ने जानवरों संग वक्त बिताया, इस मुलाकात के बाद उनके लार में कॉर्टिसोल बहुत कम पाया गया।

प्रदूषण है आपके बच्चों में डाइट की कमी का कारण

बढ़ता प्रदूषण आज समस्त विश्व की समस्या है। बच्चे भी इससे तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। एनवायरमेंटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के अन्य भागों में भी प्रदूषण के कारण बच्चों का कद घट रहा है और उनके स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं। रिसर्च में ये बात भी सामने आई है कि 100 माइक्रोग्राम प्रतिघन मीटर के प्रदूषण में कोई बच्चा पैदा हुआ तो उसकी लंबाई .024 सेंटीमीटर पांच साल की आयु में कम दर्ज की गई। इसके साथ ही यह खुलासा भी हुआ है कि नवंबर से जनवरी के बीच पैदा होने वाले बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं,क्योंकि उस समय प्रदूषण अधिक होता है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषक तत्त्व पीएम 2.5 से बच्चे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं और इसी का सबसे ज्यादा असर उनकी लंबाई पर पड़ रहा है। आई.आई.टी. दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर साग्निक डे ने बताया, ‘गांव के बच्चों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।’ आंकड़ों के अनुसार गांवों में कुपोषण और स्वास्थ्य कारणों से कमजोर हो रहे बच्चों पर प्रदूषण की मार शहरी बच्चों के मुकाबले ज्यादा पड़ रही है। मोटे तौर पर शोध में देखा गया है कि प्रदूषण के कारण बच्चों की ऊंचाई हर जगह प्रभावित हो रही है चाहे वह गांव हो या शहर। बस शहर के बच्चों का पोषण गांव के मुकाबले ठीक है। बता दें कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ था, रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदुषण की वजह से हर साल 70 लाख लोगों की असामयिक मौत भी हो जाती है।

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