Superfetation Pregnancy: पिछले दिनों इंस्ट्राग्राम पर 28 साल की प्रेगनेंट महिला सोफी स्मॉल की पोस्ट काफी सुर्खियों में रही। वो कोई आम प्रेगनेंट महिला नहीं, बल्कि ‘सुपर-फर्टाइल’ महिला है जिसने अपनी प्रेगनेंसी के 28 दिन बाद दोबारा कंसीव किया और दो जुड़वा बेटियों को एक ही दिन पर एक साथ जन्म दिया। डॉक्टरों को सोफी को दूसरी प्रेगनेंसी का पता तब चला, जब पहली प्रेगनेंसी के 12वें सप्ताह में किए जाने वाले रूटीन चेकअप के लिए अल्ट्रासाउंड किया गया। लेकिन, दोनों बच्चों के विकास में फर्क था। उनमें से एक शिशु पूरी तरह स्वस्थ है, जबकि दूसरा प्रीमैच्योर है।
डॉक्टर ने इसेे सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी बताया, जिसमें 28 दिन के अंतराल पर गर्भधारण करने के कारण दोनों शिशु जुड़वा न होकर अलग होते हैं। इसी तरह का एक मामला दो साल पहले अमेरिका की रहने वाली 30 वर्षीय रेबेका का भी रहा। वह प्रेगनेंसी के 3 सप्ताह बाद दोबारा प्रेगनेंट हो गई थी। उसने एक स्वस्थ बेटे और प्रीमैच्योर बेटी को जन्म दिया था जिसे कुछ समय के लिए नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में रखना पड़ा था। लेकिन रेबेका अपनी प्रेगनेंसी से काफी खुश थीं।
क्या होती सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी

प्रेगनेंट होतेे हुए अगर महिला दोबारा प्रेगनेंट हो जाए, तो मेडिकल भाषा में इसे सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी कहा जाता है। सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी सामान्य प्रेगनेंस से अलग होती है। यानी सुपरफेटेशन में दोनों भ्रूण के लिए अंडाशय या ओवरी सेे एग्स के निकलने, स्पर्म के साथ मिलकर फर्टिलाइज़ होने और यूटरस में भ्रूण के प्रत्यारोपित होने का समय अलग-अलग होता है। दोनों भ्रूण अलग-अलग विकसित होते हैं, लेकिन जन्म एक ही समय होता है।
नेचुरल प्रेगनेंसी में स्पर्म के साथ फर्टिलाइज हुआ महिला का एग बच्चेदानी में प्रत्यारोपित होता है, तो प्रेगनेंसी ठहर जाती है। इसके बाद महिला के शरीर में प्रेगनेंसी हार्मोन निकलने लगते हैं जिसकी वजह से अंडकोष एग बनाना या ओवुलेशन बंद कर देता है। हार्मोनल बदलाव के कारण दूसरा भ्रूण नहीं बन पाता है। जबकि सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी तब होती है जब प्रेगनेंसी शुरू होने के कुछ दिनों या सप्ताह के बाद भी प्रेगनेंट महिला का ओवुलेशन होता है। यदि ऐसे में महिला अपने पार्टनर के साथ संसर्ग करती है तो, यह संभावना रहती है कि ओवुलेशन से निकलने वाले एग्स स्पर्म के संपर्क में आकर फिर से फर्टिलाइज़ हो जाएं और महिला दोबारा कंसीव कर ले। इसे एडिशनल ओवुलेशन कहा जाता है।
सुपरफेटेशन और ट्विन प्रेगनेंसी में फर्क?

सुपरफेटेशन से पैदा हुए बच्चों को अक्सर जुड़वां या ट्विन माना जाता है क्योंकि वो एक साथ पैदा होते हैं। वास्तव में दोनों स्थिति अलग है। ट्विन प्रेगनेंसी में एक ही अंडा फर्टिलाइज होता है या दो में विभाजित हो जाता है। या जब कोई महिलाएं एक ही बार में 1 से 3 भ्रूण को कंसीव करती हैं और दो या तीन भ्रूण विकसित होना शुरू हो जाते हैं। जबकि सुपरफेटेशन में महिला एक बच्चे को कंसीव करने कुछ हफ्ते बाद दोबारा प्रेग्नेंट होती है।
किन्हें हैं ज्यादा रिस्क
एक रिपोर्ट के हिसाब से वैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी दुर्लभ प्रेगनेंसी है। दुनिया भर में प्रेगनेंसी के कुल मामलों में से केवल 3 प्रतिशत मामले ही सुपरफेटेशन के होते हैं। आईवीएफ प्रेगनेंसी ट्रीटमेंट या हॉर्मोन ट्रीटमेंट लेने वाली महिलाओं में सुपरफेटेशन की आशंका अधिक होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके अंडाशय को बच्चे के लिए पहले से तैयार किया जाता है।
कैसे होता है डायग्नोज

सुपरफेटेशन प्रेगनेंसी का पता तब लगता है जब प्रेगनेंट महिला रूटीन चेकअप में अल्ट्रासाउंड किया जाता है। आमतौर पहला अल्ट्रासाउंड छठें या सातवें सप्ताह में किया है जिसमें शिशु की हार्टबीट और ट्विन प्रेगनेंसी की भी जांच की जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु की नेज़ल बोन और न्यूकल ट्रांसल्यूसेंसी, एनटीद्ध स्कैन के लिए 11-14वें सप्ताह के बीच दूसरा अल्ट्रासाउंड किया जाता है। लेकिन सुपरफेटेशन का पता पहले अल्ट्रासाउंड में नहीं चल पाता यानी पहली प्रेगनेंसी के 11वें सप्ताह के बाद ही पता चलता है। पहले भ्रूण के साथ एक दूसरा भ्रूण विकसित होता दिखाई देता है। इन दोनों प्रेगनेंसी में अंतर कुछ दिन या कुछ सप्ताह का हो सकता है। कई मामलों में महीने का अंतर भी होता है।
क्या होता है असर
सुपरफेटेशन में दोनों प्रेगनेंसी की डिलीवरी एक साथ ही करनी पड़ती है। इससे एक बच्चे का विकास तो पूरा हो जाता है जो समय पर पैदा हो रहा है। लेकिन दूसरी प्रेगनेंसी में गैप बहुत ज्यादा होता है तो दूसरा बच्चा प्रीमैच्योर या विकास ठीक न होेने के कारण कम वजन का हो सकता है। जन्म लेने के बाद शिशु को सांस लेने में परेशानी, नवजात का वजन कम होना, मस्तिष्क में रक्तस्राव होना, अविकसित फेफड़ों के कारण होने वाला श्वास विकार जैसी समस्याएं हो सकती हैं। मां को भी उच्च रक्तचाप, प्रीक्लेम्पसिया और डायबिटीज होने का डर रहता है। ऐसे मामलों में ज्यादातर डिलीवरी सिजेरियन होती हैं। प्रीमैच्योर शिशु को स्थिति के आधार पर कुछ समय के लिए (2 से 3 महीने तक) नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) में रखना पड़ता है ताकि उसका विकास पूरा हो सके।
डिलीवरी कैसे की जाती है
सुपरफेटेशन में दोनों प्रेगनेंसी की डिलीवरी एक साथ ही करनी पड़ती है। इससे एक बच्चे का विकास तो पूरा हो जाता है जो समय पर पैदा हो रहा है। लेकिन दूसरी प्रेगनेंसी में गैप बहुत ज्यादा होता है तो दूसरा बच्चा प्रीमैच्योर या कम वजन का हो सकता है।
(डॉ सोनिया कटारिया, वरिष्ठ स़्त्री रोग विशेषज्ञ, कटारिया मैटरनिटी क्लीनिक, दिल्ली)