ऐसी असामान्यताएँ प्रायः दुर्लभ होती हैं। औसतन गर्भवती महिलाओं को इनका सामना नहीं करना पड़ता। यदि आपको निम्नलिखित में से किसी भी अवस्था या रोग का सामना करना पड़े,तभी इस बारे में पढ़ें व ध्यान रखें कि डॉक्टर अपने हिसाब से उस रोग का इलाज कर सकते हैं। उसका हमारे से कोई लेना-देना नहीं होगा।

 मोलर गर्भावस्था

यह क्या हैइस अवस्था में प्लेसेंटा एकसिस्ट की तरह असामान्य रूप से बढ़ता है कई बार भ्रूण के ऊतक होते हैं। और कई बार नहीं होते।

ऐसा तब होता है जब पिता के दो सैटक्रोमोसोम का मेल माँ के एक सैट क्रोमोसोम से होता है या माँ के क्रोमोसोम से बिल्कुल नहीं होता। गर्भधारण के कुछ सप्ताह बाद ही इसका पता चल जाता है। सभी मोलर प्रेगनेंसी का अंत मिसकैरिज के रूप में होता है।

यह कितना सामान्य हैऐसा 1000 में से किसी एक मामले में होता है अतः यह दुर्लभ है। 15 से कम व 45 से अधिक आयु की महिलाओं या जिन्हें मल्टीपल मिसकैरिज हो चुका हो, उनके लिए मोलर प्रेगनेंसी का खतरा ज्यादा होता है।

आप जानना चाहेंगी

एक बार मोलर प्रेगनेंसी का मतलब यह नहीं कि दूसरी बार भी ऐसा ही होगा।केवल 1 से 2 प्रतिशत मामलों में ही ऐसा दोहराव होता है। 

इसके संकेत  लक्षण क्या हैं

इसके लक्षण निम्नलिखित हैं‒

  •   लगातार भूरा स्राव
  •   गंभीर जी मिचलाना व उल्टी
  •   ऐंठन की वजह से तकलीफ
  •   उच्च रक्तचाप
  •   गर्भाशय का अधिक बड़ा आकार
  •   गर्भाशय का ढीलापन
  •   भ्रूण ऊतकों की कमी
  •   माँ के शरीर में थाइरॉइड हार्मोन की अधिक मात्रा

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ऐसा कोई भी लक्षण दिखते ही डॉक्टर को बताएं। कई बार इन लक्षणों को सामान्य गर्भावस्था से अलग करके देखना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन आप अपनी सहज बुद्धि पर विश्वास रखें। यदि कुछ गलत लगे तो तसल्ली पाने के लिए डॉक्टर की सलाह ले लें।

यदि अल्ट्रासाउंड से मोलर प्रेगनेंसी का पता चले तो डी एंड सी की मदद ली जाएगी व आपको 1 साल तक गर्भधारण न करने की सलाह दी जाएगी।

कोरियोकारसिनोमा

यह क्या हैयह गर्भावस्था का कैंसर है, जो प्लेसेंटा की कोशिकाओं में हो जाता है। ऐसामोलर प्रेगनेंसी, मिसकैरिज या एबार्शन के बाद हो सकता है। तब भ्रूण के बिना प्लेसेंटा के कुछ ऊतक पनपने लगते हैं। केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही सामान्य गर्भावस्था के बाद ऐसा होता है।

आप जानना चाहेंगी

कोरियोकारसिनोमा की सही समय पर पहचान व इलाज से उर्वरता प्रभावित नहीं होती।हालांकि इलाज के एक साल बाद ही गर्भधारण की सलाह दी जाती है।

यह कितना सामान्य हैयह बहुत दुर्लभ है।केवल 4000 प्रेगनेंसी में से कोई ऐसा मामला होता है।

इसके संकेत व लक्षण क्या हैं? इसके लक्षण निम्नलिखित हैं‒

  •   मिसकैरिज या मोलर प्रेगनेंसी के बाद भीतरी रक्तस्राव
  •   प्रेगनेंसी खत्म होने पर भी एचसीजी का स्तर न घटे
  •   योनि, गर्भाशय या फेफड़ों में ट्यूमर

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? ऐसा कोई लक्षण पाते ही डॉक्टर को बताएँ किंतु याद रखें कि इस रोग को कीमोथैरेपी व रेडिएशन से अच्छी तरह संभाला जा सकता है व आराम भी आ जाता है।

इक्लैंपसिया

यह क्या हैप्रीक्लैंपसिया में बदल जाता है। मां को किस अवस्था में यह बीमारी हुई है, उसी के हिसाब से तय होता है कि तत्काल डिलीवरी की जाए या नहीं। इससे मां की जान को भी खतरा हो सकता है। सही मेडिकल देखभाल से इस अवस्था में भी स्वस्थ प्रेगनेंसी व डिलीवरी हो सकती है।

यह कितना सामान्य है? 2000 से 3000 मामलों में से कोई एक मामला ही ऐसा होता है, खासतौर पर ऐसी महिला को जिसे प्रसवपूर्व कोई मेडिकल देखभाल न मिले।

आप जानना चाहेंगी

यदि प्रसव पूर्व सही देखभाल मिले तो प्रीक्लैंपसिया या इक्लैंपसिया की नौबत ही नहीं आती।

इसके संकेत  लक्षण क्या हैंडिलीवरी के आसपास या डिलीवरी के 24 घंटे बाद दौरा पड़ना हो इसका सबसे बड़ा लक्षण है।

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? यदि आपको पहले से प्रीक्लैंपसिया है तो डॉक्टर रोकथाम के लिए दवा व ऑक्सीजन देंगे, प्रसव शुरू करेंगे या सी-सैक्शन करेंगे। यदि हालत संभल जाए तो सामान्य डिलीवरी भी की जा सकती है।

क्या इससे बचाव हो सकता हैसही देखभाल व नियमित जांच से आप प्रीक्लैंपसिया के खतरे से बच सकती हैं। यदि इस रोग का पता चल जाए तो बचाव के सभी उपाय अपनाएं ताकि इक्लैंपसिया का डर न रहे।

कोलिसटेसिस

यह क्या हैइस प्रकार की गर्भावस्था में लीवर में अमाशय रस बनने लगते हैं तथा रक्तप्रवाह में घुल जाते हैं जब यह आखिरी तिमाही में होता है तब हॉर्मोन अपनी चरम सीमा पर होते हैं यह डिलीवरी के बाद ठीक हो जाता है। इससे भ्रूण की थकान, प्रीटर्म या स्टिल बर्थ का खतरा बढ़ जाता है इसलिए सही समय पर इलाज होना जरूरी है।

यह कितना सामान्य है? :- यह 1000 में से 1-2 मामलों में होता है। मल्टीपल प्रेगनेंसी, लीवर की मरीज या परिवार में ऐसी हिस्ट्री रखने वाली महिला के साथ इसका खतरा ज्यादा होता है।

इसके संकेत  लक्षण क्या हैंगर्भावस्था के अंतिम दिनों में हाथों पैरों पर खुजली महसूस होती है।

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैंकुछ दवाओं या लोशन की मदद से इन लक्षणों व प्रभावों को घटाया जा सकता है। कई बार इन अमाशय रसों के लिए भी दवा देनी पड़ती है। यदि इसकी वजह से मां या शिशु को कोई खतरा हो तो डिलीवरी जल्दी करनी पड़ सकती है।

डीप वीनॅस थ्रम्बोसिस

यह क्या हैडी.वी.टी. में डीप वेन में रक्त का थक्का जम जाता है। ऐसा जांघों के आसपास वाले इलाके में होता है। ऐसा डिलीवरी के आसपास व प्रसव के बाद होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कुदरत को भय है कि शिशु जन्म के समय काफी रक्तस्राव होगा इसलिए वह इन अंगों में रक्त का जमाव कर देती है। इस तरह शरीर के निचले हिस्से का रक्त हृदय तक नहीं पहुंच पाता। गर्भाशय के बड़े आकार की वजह से भी ऐसा होना संभव नहीं होता। यदि डी.वी.टी. का इलाज न हो तो फेफड़ों में जमाव होने पर, जान को भी खतरा हो सकता है।

यह कितना सामान्य हैऐसा 1000 से 2000 मामलों में ही होता है। ऐसा प्रसव के बाद भी हो सकता है। यदि उम्र ज्यादा हो, धूम्रपान करती हों, परिवार में किसी की ऐसी हिस्ट्री हो, हाइपरटेंशन, मधुमेह आदि हो तो इसका खतरा और भी बढ़ सकता है।

इसके संकेत  लक्षण क्या हैं? इसके संकेत व लक्षण निम्नलिखित हैं‒

  •   टांग में भारीपन व दर्द का एहसास
  •   पिंडली या जांघों में भारीपन
  •   हल्की से गंभीर सूजन
  •   पैरों में ऐंठन
  •   यदि रक्त का थक्का फेफड़ों तक आ जाए तो
  •   छाती में दर्द
  •   सांस लेने में तकलीफ
  •   कफ के साथ खांसी व कफ में खून
  •   हृदय गति व श्वास गति तेज होना
  •   होंठ व अंगुलियों की पोरों का नीला पड़ना
  •   बुखार

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैंयदि आपको पहले भी यह रोग हो चुका है तो डॉक्टर को इसकी सूचना दें। यदि एक टांग में सूजन या दर्द महसूस हो तो डॉक्टर को बताने में देर न करें।

अल्ट्रासाउंड या एमआरआई से रक्त के थक्के का पता चल सकता है। यदि ऐसा है तो आपको रक्त पतला करने की दवा दी जा सकती है। यदि प्रसव का समय पास हो तो यह दवा रोक दी जाती है। एक मॉनीटर से लगातार इसकी जांच की जाती है।

यदि यह थक्का फेफड़ों तक पहुंच जाए तो जल्द से जल्द इलाज कराना पड़ सकता है।

क्या इससे बचाव हो सकता है:- पर्याप्त मात्रा में व्यायाम करें व शरीर की गति बनाए रखें ताकि रक्त के थक्के न बनें। यदि इनका खतरा ज्यादा हो तो टांगों में स्पोर्ट होज़ पहनें।

 प्लेसेंटा एक्रीटा

यह क्या हैजब प्लेसेंटा असामान्य रूप से यूटेराइन वॉल से जुड़ा हो तो यह प्लेसेंटा एक्रीटा कहलाता है। इसकी वजह से प्लेसेंटा की डिलीवरी के समय भारी रक्तस्राव हो सकता है।

यह कितना सामान्य है2,500 मामलों में से,किसी एक मामले में ऐसा होता है। प्लेसेंटा एक्रीटा में प्लेसेंटा यूटेराइन की दीवार में काफी गहराई तक चला जाता है लेकिन उसकी मांसपेशियों को नहीं भेदता। प्लेसेंटा एक्रीटा में ये मांसपेशियों को भी भेद देता है प्लेसेंटा प्रीविया में ये न सिर्फ यूटेराइन दीवार को भेदता है बल्कि दीवार के दूसरे हिस्सों में छेद करते हुए, शरीर के दूसरे अंगों से भी जुड़ जाता है।

यदि आपको पहले सी-सैक्शन हुआ हो या प्लेसेंटा प्रीविया हुआ हो तो इसका खतरा बढ़ जाता है।

इसके संकेत  लक्षण क्या हैंइसके कोई लक्षण नहीं होते। यह अवस्था डॉपलर अल्ट्रासाउंड या डिलीवरी से पता चलती है।

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? 

बदकिस्मती से, आप इस मामले में कुछ नहीं कर सकतीं। डिलीवरी के बाद प्लेसेंटा को सर्जरी से निकाल देना चाहिए ताकि रक्तस्राव रोका जा सके। कई मामलों में जब रक्तस्राव किसी भी तरह नहीं रुकता तो पूरा गर्भाशय निकालना पड़ सकता है।

वासा प्रीविया

यह क्या हैइस अवस्था में, शिशु को माँ से जोड़ने वाली कुछ रक्त नलिकाएँ गर्भनाल से बाहर आकर सर्विक्स के पास टिक जाती हैं।जब प्रसव के दौरान संकुचन से गर्भाशय का मुख खुलता है तो नलिकाएँ फूट जाती हैं,जिससे शिशु को नुकसान हो सकता है। यदि डिलीवरी से पहले इस अवस्था का पता चल जाए तो 100 प्रतिशत शिशु का सी-सैक्शन से जन्म हो सकता है।

यह कितना सामान्य है? किन्हीं 5,200 मामलों में से कोई एक मामला ऐसा होता है। जिन महिलाओं को प्लेसेंटा प्रीविया हो, यूटेराइन सर्जरी हुई हो या मल्टीपल प्रेगनेंसी रही हो,उनके लिए इसका खतरा ज्यादा होता है।

इसके संकेत  लक्षण क्या हैंइसके कोई लक्षण नहीं होते हालांकि दूसरी/तीसरी तिमाही में रक्तस्राव हो सकता है।

आप  आपके डॉक्टर क्या कर सकते हैं? कलर डॉपलर अल्ट्रासांउड की मदद से इस बीमारी का पता चल सकता है। ऐसी महिलाओं का 37 वें सप्ताह से पहले ही सी-सैक्शन कर दिया जाता है ताकि प्रसव-पीड़ा शुरू ही न हो।शोधकर्ता अध्ययन कर रहे हैं कि लेज़र थेरेपी की मदद से वासा प्रीविया का इलाज हो सकता है या नहीं।

यह भी पढ़ें –प्रेगनेंसी में मिसकैरिज से जुड़े इन फैक्ट्स की जानकारी होनी चाहिए