अल्ट्रासाउंड एक ऐसी प्रकिया है, जिसमें ध्वनि तरंगों के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे की तस्वीर कंप्यूटर पर दिखाई देती है। सिर्फ इतना ही नहीं अल्ट्रासाउंड कराने से गर्भावस्था की जटिलताओं को कम किया जा सकता है ताकि यह पता चल सके कि बच्चा सामान्य रूप से विकसित हो रहा है या नहीं।
पहली तिमाही-अल्ट्रासाउंड :- यह क्या है? यह एक साधारण सा स्क्रीनिंग टेस्ट है। इसमें ऐसी ध्वनि तरंगों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें कान से सुन सकते हैं, सोनोग्राफी में भ्रूण का एक्स-रे लिए बिना, उसकी जांच की जा सकती है। हालांकि इससे कई जन्मजात विकृतियों का पता लग जाता है लेकिन कई बार बहुत बड़ी कमी छूट भी सकती है। (सब ठीक लगने के बावजूद ठीक न होना) या इसका उल्टा हो सकता है (सब ठीक होने के बावजूद ठीक न लगना) पहला तिमाही-अल्ट्रासाउंड किया जाता है ताकि :-
- गर्भावस्था की वैधता की जांच
- गर्भावस्था की तारीख
- भ्रूणों की संख्या
- यदि रक्तस्राव है तो उसका कारण
- गर्भधारण के समय लगाए गए आईडीयू की तलाश
- सीवीएस से पहले भ्रूण की तलाश
- क्रोमोसोमल असामान्यता के खतरे की जांच
यह कैसे होता है? :- ट्रांसएबड्रामिनल जांच के लिए ब्लैडर को पूरा भरना पड़ता है। काफी सारा पानी या पेय पदार्थ लेने के बाद पेट भरा महसूस होने से थोड़ी उलझन होती है। इसके अलावा कोई दर्द या तकलीफ नहीं होती। पेट के निचले हिस्से पर जैल लगाकर एक कॉर्ड को उस पर घुमाया जाता है। आपको पीठ के बल लिटाया जाता है। जैल लगाने से ध्वनि की तीव्रता में सुधार होता है। यदि ट्रांसवैजाइनल जांच करनी हो तो ट्रासड्यूसर को योनि में डाला जाता है। यंत्र आपके शरीर की ध्वनि तरंगों को स्क्रीन पर,तस्वीर के रूप में प्रस्तुत कर देते हैं।
यह कब होता है? :- यह पहली तिमाही में कभी भी किया जा सकता है, बस इसे करने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। आपके आखिरी पीरियड के साढ़े चार सप्ताह बाद जैस्टेशन सैक को अल्ट्रासाउंड की मदद से देख सकते हैं। 5 से 6 सप्ताह के बाद दिल की धड़कन सुनी जा सकती है।
यह कितना सुरक्षित है? :- वर्षों के अध्ययन से साफ है कि इससे कोई नुकसान नहीं,बल्कि फायदा ही होता है। अधिकतर डॉक्टर,गर्भावस्था में कम से कम एक बार अल्ट्रासाउंड कराने की राय तो देते ही हैं। हालांकि कहा यही जाता है कि कोई ठोस कारण होने पर ही अल्ट्रासाउंड कराना चाहिए।
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