हियरिंग लॉस से बचना है तो ब्लूटूथ डिवाइस से करें तौबा: Hearing Loss
Hearing Loss Reason

Hearing Loss: आज के डिजीटल युग में मोबाइल के साथ ब्लूटूथ डिवाइस का क्रेज भी काफी बढ़ गया है। हालांकि ये वायरलेस डिवाइस जिंदगी को आसान तो बना रही हैं, लेकिन हमारी सेहत को नुकसान भी पहुंचा रही है। दरअसल, ब्लूटूथ से कनेक्ट होने वाले ईयरफोन, ईयरपोड या हैडफोन से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो फ्रीक्वेंसी रेडिएशन निकलती हैं। जो डिवाइस के रोजाना लंबे समय तक इस्तेमाल करने पर कान के ऑडिटरी हियरिंग मैकेनिज्म को प्रभावित करती है और हियरिंग लॉस का कारण बनती है।  

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के हिसाब से हियरिंग लॉस दुनिया भर में होने वाली विकलांगता का चौथा बड़ा कारण है। 2050 तक 70 करोड़ से ज्यादा लोग हियरिंग लॉस का शिकार हो सकते हैं। ब्लूटूथ डिवाइस के इस्तेमाल से भविष्य में हमारे कान खराब हो जाएंगे। हम पूर्णतया नहीं तो आंशिक रूप से बहरे जरूर हो जाएंगे। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडीज के हिसाब से हियरिंग लॉस से व्यक्ति का समुचित विकास अवरुद्ध हो सकता है। उसे स्वस्थ रहन-सहन और समाज से तालमेल बिठाने में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।   

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क्या है ऑडिटरी हियरिंग मैकेनिज्म

Auditory hearing mechanism
Auditory hearing mechanism

कान के दो भाग होते हैं-बाहरी और अंदरूनी। कोई भी आवाज सबसे पहले बाहरी कान के पर्दे या ईयरड्रम तक पहुंचती है। ईयरड्रम से टकराकर वाइब्रेट करती है। ईयरड्रम 3 छोटी हड्डियों या ईयर केनाल के माध्यम से आवाज को कान के अंदरूनी और अहम हिस्से कॉक्लिया में ट्रांसमिट करता है। कॉक्लिया में मौजूद छोटे-छोटे हेयर-सेल आवाज को इलेक्ट्रिक वेव में बदल देते हैं। यह इलेक्ट्रिक वेव कान और ब्रेन के बीच जाने वाली ऑडिटरी नर्व के माध्यम से दिमाग तक पहुंचती है। दिमाग डिकोडिंग करके यह बताता है कि हमने क्या सुना। 

कैसे होता है हियरिंग लॉस

हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर होने पर कई बार कॉक्लिया में मौजूद हेयर-सेल या ऑडिटरी नर्व डैमेज हो जाते हैं जिससे व्यक्ति की सुनने की क्षमता पर असर पडता है। यह एक्सपोजर दो स्थितियों में होता है-पहला जब कान को  ब्लूटूथ डिवाइस के माध्यम से हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर कई घंटे लगातार मिलता रहता है जेसे म्यूजिक सुनना, मोबाइल पर किसी विषय की जानकारी लेना, ओटीटी पर बिंज वॉचिंग करना, म्यूजिक कंपोजिशन, डीजे शो, माइनिंग या कल-कारखानों में काम करने के दौरान। दूसरी स्थिति कान को हाई इंटेंसिटी साउंड एक्सपोजर एकाएक मिलने पर होती जैसे बमबारी, आतिशबाजी या किसी दुर्घटना होने पर।

कई मामलों में व्यक्ति को केवल एक कान में यानी यूनिलेटरल हियरिंग लॉस ही होता है। वैज्ञानिक तौर पर देखें तो शरीर के वो ऑर्गन जो डबल होते हैं, उनमें से एक ऑर्गन डोमिनेट-ऑर्गन होता है। जैसेअगर व्यक्ति राइट-हैंडिड है, तो उसका राइट-ईयर डोमिनेट-ईयर होता है और ज्यादा एक्टिव होता है। लगातार ईयरपोड डिवाइस के इस्तेमाल से कई बार केवल डोमिनेट-ईयर ज्यादा डैमेज होता है। आमतौर पर यूनिलेटरल हियरिंग लॉस वाले मरीज जागरूकता के अभाव में डॉक्टर को बहुत देर से कंसल्ट करते है। संभव है तब तक उसका दूसरा कान भी प्रभावित हो जाता है।

कितनी साउंड इंटेंसिटी है खतरनाक

यह इस बात पर निर्भर करता है कि आवाज कितनी तेज है, कितनी देर के लिए होती है और कितनी बार होती है। व्यक्ति दिन में लगातार 6 घंटे से ज्यादा देर तक लगातार ईयर डिवाइस का उपयोग करता है, तो आगे चलकर उसे भी हियरिंग समस्या हो सकती है। साउंड की इंटेंसिटी या तीव्रता डेसिबल में मापी जाती है। आमतौर पर म्यूजिक का तेज वॉल्यूम 75-80 डेसिबल माना जाता है। लेकिन ब्लूटूथ डिवाइस पर सुनने पर यह वॉल्यूम खुद-ब-खुद बढ़कर करीब 110 डेसिबल हो जाता है। जैसे-जैसे डेसिबल बढ़ते हैं, सेफ लिस्निंग टाइम कम होता जाता है।

सीडीसी, अमेरिका के मुताबिक ईयरफोन डिवाइस पर 40-60 डेसिबल तक की साउंड नॉर्मल है। साउंड एक्सपोजर 85 डेसिबल के ऊपर होने पर हियरिंग लॉस का खतरा बढ़ जाता है। रोजाना ईयरफोन पर 90 डेसिबल का साउंड आधे घंटे और 100 डेसिबल से ज्यादा लेवल का साउंड 15 मिनट सुनने से व्यक्ति 5 साल में सुनने की क्षमता खो सकता है। जबकि हाई इंटेंसिटी साउंड यानी 120 डेसिबल से ज्यादा होने पर कुछ सेकंड में ही हियरिंग लॉस हो सकता है।

क्या है खतरा

हाई इंटेंसिटी साउंड से होने वाले हियरिंग लॉस लाइलाज, स्थायी और अपरिवर्तनीय होता है। शुरूआत में हियरिंग लॉस टेम्परेरी होता है जो दो-चार दिन में ठीक हो सकता है। कुछ मामलों में मरीज को टिनिटस समस्या का सामना करना पड़ता है यानी कान में लगातार सीटी या बीप साउंड, सांय-सांय जैसी आवाजें आती हैं। लेकिन यह क्यूमूलेटिव होता है यानी यह धीरे-धीरे बढ़ता रहता है और कॉक्लिया के हेयर-सेल डैमेज करता रहता है। चूंकि ये हेयर-सेल रिजनरेट नहीं हो पाते, इसलिए उसे आगे जाकर लाइलाज हियरिंग लॉस हो जाता है।

रहें सतर्क

हियरिंग लॉस के शुरूआती लक्षणों से व्यक्ति पहचान सकता है। बिना देर किए ईएनटी डॉक्टर को कंसल्ट करना चाहिए-

ऽ 2 फुट की दूरी की आवाज सुनने में दिक्कत आना। 
ऽ बातचीत करते हुए दूसरों की बात समझने में मुश्किल होना।  
ऽ टीवी देखते हुए उसका वॉल्यूम दूसरों की अपेक्षा ज्यादा करना पड़े। 
ऽ कई मामलों में कान में असामान्य आवाजें आना शुरू हो जाती है जैसे- रिंगिंग साउंड, सीटी की आवाज या बीप साउंड। 

इनके अलावा ऑडिटरी नर्व डैमेज होने के साथ कई तरह की समस्याएं होने लगती हैं-कुछ आवाजें या गाने की कुछ बीट्स सुनाई न देना, कान में खुजली, दर्द होना, कान बहना या पानी जैसा लिक्विड निकलना, कान के अंदर सीटी की आवाजें या कई बार बाहर की आवाजें गूंजना, बॉडी बैलेंस बिगड़ना, चक्कर आना, जी मितलाना। 

कैसे होता है डायगनोज

Diagnose
Diagnose

डॉक्टर ईयरड्रम और कान में वैक्स का पता लगाने के लिए सबसे पहले कान की सामान्य जांच करते हैं। हियरिंग लेवल का पता लगाने के लिए ऑडियोमेट्री टेस्ट किया जाता है-हियरिंग लॉस 10-20 प्रतिशत के बीच में है, तो वह नॉर्मल है। 20-40 प्रतिशत हियरिंग लॉस को माइल्ड, 40-60 प्रतिशत को मॉडरेट हियरिंग लॉस और 60-80 प्रतिशत को सीवियर और 80 प्रतिशत से अधिक को गंभीर हियरिंग लॉस माना जाता है।

क्या है उपचार

उपचार हियरिंग लेवल इस आधार पर तय किया जाता है-माइल्ड से मॉडरेट हियरिंग लॉस में हियरिंग एड या एम्प्लीफायर डिवाइस सहायक हो सकते हैं। सीवियर और गंभीर हियरिंग लॉस की स्थिति में कॉक्लिया इम्प्लांट सर्जरी की जाती है। एक कान में यायूनिलेटरल हियरिंग लॉस होने पर बोन एंकर्ड हियरिंग एड (बाहा) लगाया जा सकता है।

रखें सावधानी

कुछ बातों का ध्यान रखकर हियरिंग लॉस से बचा जा सकता है-

  • ब्लूटूथ डिवाइस लगाते समय 60/60 का रूल फोलो करें। यानी डिवाइस का वाल्यूम 60 डेसिबल से ज्यादा न हो और एकसाथ 60 मिनट से ज्यादा इस्तेमाल न करें। जरूरी हो तो 30 मिनट के बाद कम-से-कम 5 मिनट और 60 मिनट के बाद 10 मिनट का ब्रेक जरूर लें।
  • हाई इंटेंसिटी साउंड के बजाय मिनिमम इंटेंसिटी पर इस्तेमाल करें। जिसे डिवाइस की सेटिंग में  जरूर सेट कर लें।
  • ईयरफोन या ईयरबड के बजाय कान के ऊपर लगाए जाने वाले हेडफोन का इस्तेमाल करें।
  • सॉफ्ट टिप वाले ईयरफोन लें। ताकि वो कान में आसानी से फिट हो सकें और बाहर के शोर को ब्लॉक कर सकें। बाहर के शोर को ठीक तरह ब्लॉक न पाने की वजह इनका वॉल्यूम 8-10 डेसिबल बढ़ाकर सुना जाता है।
  • यथासंभव नॉयस-केंसेलेशन वाली डिवाइस लें। ये बाहरी आवाजें कम सुनाई देती हैं जिससे व्यक्ति कम वॉल्यूम पर भी म्यूजिक सुनने का मजा ले सकता है।
  • ब्लूटूथ डिवाइस पर दिए गए राइट और लेफ्ट मार्क का ध्यान रखें और सही कान में लगाएं। 
  • इंटरनेट सपोर्ट के आधार पर म्यूजिक ऐप डाउनलोड करें। ऐप में एक्यूलाइजर का इस्तेमाल करें ताकि साउंड फ्रीक्वेंसी को थोड़ा-बहुत बढ़ाकर बेस्ट साउंड इफेक्ट का मजा ले सकें।
  • म्यूजिक बंद करने के लिए टाइमर जरूर लगाएं ताकि नियत समय के बाद अपने आप बंद हो जाए।शोरगुल वाले इलाके या कार्यस्थल पर जाने से पहले कान में नॉयस-प्रोटेक्टर जरूर लगाएं।
  • हाई रिस्क कैटेगरी में आने वाले व्यक्ति को कम-से-कम 6 महीने में एक बार ऑडिटरी स्क्रीनिंग-ऑडियोमेट्री टेस्ट जरूर कराएं ताकि किसी भी तरह की दिक्कत हो तो उसे पकड़ा जा सके।  

(डॉ नेहा सूद, एसोसिएट डायरेक्टर, दिल्ली)