हियरिंग लॉस, कैसे बिताएं बेहतर जिंदगी: Hearing Loss
Hearing Loss

Hearing Loss: श्रवण क्षमता या हियरिंग पॉवर प्रकृति द्वारा दिया गया ऐसा वरदान है जो व्यक्ति के शारीरिक-मानसिक-भावनात्मक विकास में सहायक होने के साथ-साथ समस्त वातावरण से जोड़ता है। दुर्भाग्यवश प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह का इंफेक्शन, कान की हड्डियों या पर्दे में खराबी, इंफेक्शन, कान की बीमारियों, दुर्घटनावश या गलत आदतों की वजह से व्यक्ति की श्रवण क्षमता में कमी आ जाती है या हियरिंग लॉस हो जाता है। जिसका असर न केवल बोलने-सुनने की क्षमता पर तो पड़ता ही है, मानसिक समस्याओं से ग्रस्त होने की संभावना भी बनी रहती है। क्योंकि ब्रेन में बोलने वाले सेंटर्स हैं, उन्हें स्टीमुलेट करने के लिए वहां तक ध्वनि पहुंचना जरूरी है।

कान की समस्याओं के चलते बच्चे के ब्रेन में अगर ध्वनि तरंगे नहीं पहुंचती, तो उसे कुछ समझ नहीं पाता। बोलना और भाषा विकसित होना काफी मुश्किल हो जाता है। वैज्ञानिकों की माने तो अगर हम सुन नहीं रहे तो हम अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। बातचीत न कर पाने पर दूसरों से कट जाते हैं। जिसका असर उनके व्यक्तित्व के विकास पर ही नहीं, जिंदगी पर पड़ता है। दूसरों पर निर्भरता बढ़ जाती है।

क्या है हियरिंग लॉस

Hearing Loss
Hearing Loss Meaning

हियरिंग लॉस या बहरापन ऐसी समस्या है जो नवजात शिशु से लेकर बड़ी उम्र के लोगों में भी देखी जा सकती है। कई बच्चे कान की बनावट ठीक न होने के जन्मजात बहरापन लेकर पैदा होते हैं तो कई जन्मोपरांत शारीरिक समस्याओं और अभिभावकों की अनभिज्ञता के कारण सुनने की क्षमता गवां बैठते हैं। बहरेपन से बच्चों को बचाने के लिए “अर्ली डिटेक्शन एंड अर्ली ट्रीटमेंट” को फोलो करना चाहिए। यानी बच्चे की इस अक्षमता को यथाशीघ्र पहचान कर समुचित कदम उठाएं जाएं, तो तकरीबन 60 प्रतिशत बच्चे बहरेपन से बच सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं।

हालांकि जन्मजात हियरिंग लॉस का पता जन्मोपरांत अस्पतालों में होने वाले यूनिवर्सल न्यूनेटल हियरिंग स्क्रीनिंग-ऑटो एकॉस्टिक एमीशन टेस्ट से लगाया जाता है। लेकिन कई मामलों में स्क्रीनिंग न हो पाने की वजह से बच्चे इस समस्या का सामना करते हैं। सुनाई में कमी का अंदेशा होने पर यह टेस्ट बच्चे के पैदा होने के दूसरे महीने दोबारा किया जाता है। तीसरे महीने एक और टेस्ट ‘बेरा‘ से इसकी पुष्टि की जाती है। हियरिंग लॉस डायगनोज हुए बच्चों का इलाज अगर 6-9 महीने के अंदर हो जाता है, तो वे दूसरे बच्चों की तरह भविष्य में नॉर्मल जिंदगी जी पाते हैं।

कई बच्चों की सुनाई क्षमता में कमी होने का पेरेंट्स को पता नहीं चल पाता और ऐसे बच्चों के बोलने के इंतजार में काफी देर बाद डॉक्टर को कंसल्ट करते हैं। डॉक्टर जरूरी टेस्ट करके बच्चे का हियरिंग लॉस की स्थिति का पता लगाते हैं। उनकी समस्या और स्थिति के हिसाब से ट्रीटमेंट में मल्टीपल ऑप्शन अपनाते हैं। कानों में सर्जरी करकेे कॉकलियर इम्प्लांट किया जाता है। बोलना सिखाने के लिए उन्हें स्पीच थेरेपी दी जाती है। कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी 5 साल से पहले करना फायदेमंद है। क्योंकि पांच साल के बाद साउंड स्टीमुलस न मिलने पर हमारे ब्रेन में स्पीच डेवलेप करने का सेंटर धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। देर से सर्जरी करने पर स्पीच डेवलेपमेंट उतनी अच्छी नहीं होती।

लेकिन अक्सर लोग कीमत ज्यादा होने या सामाजिक अवहेलना की वजह से हियरिंग लॉस होने पर कॉकलियर इम्प्लांट कराने से कतराते है। वे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते कि कान में लगी यह डिवाइस सबको दिखेगी, तो लोग मजाक उड़ाएंगे। आमतौर पर वो चाहते हैं कि कोई ऐसी चीज हो जो किसी को दिखाई न दे। जबकि शर्म या दुविधा की वजह से हियरिंग लॉस का इलाज न करवाना गलत है।

ऑटिज्म जैसी मनोविकारों सेे ग्रस्त स्पेशल चाइल्ड को हियरिंग लॉस ठीक नहीं हो पाता। ऐसे बच्चों में हियरिंग लॉस होने पर पेरेंट्स कॉकलियर इम्प्लांट सर्जरी नहीं करवाते। ऐसे बच्चों के रिहेबिलिटेशन के लिए बाल मनोवैज्ञानिकों के पास भेजा जाता है जो उन्हें मनोविकारों पर नियंत्रण पाने और सोसाइटी के साथ तालमेल बिठाने योग्य बनाने की कोशिश करते हैं।

अगर कॉकलियर इम्प्लांट नहीं किया जाता तो बच्चा कभी सुन नहीं पाता है और बच्चे का विकास ठीक तरह नहीं हो पाता है। उसकी क्वॉलिटी ऑफ लाइफ पर असर पड़ता है और वह दूसरों से पिछड़ जाता है। स्पेशल स्कूल होते हैं जहां इन बच्चों को सिखाया जाता है कि दूसरों से कैसे इंटरेक्ट करना है, साइन लैग्वेज सिखाते हैं और उनकी स्किल का पता लगाकर उसे तराशने की ट्रेनिंग दी जाती है।

बढ़ती उम्र में हियरिंग लॉस

कान की नर्व्स के कमजोर होने पर कई लोगों को बढ़ती उम्र में हियरिंग लॉस हो जाता है। अपना जीवन बेहतर तरीके से जीने के लिए उन्हें हियरिंग एड लगाने की सलाह दी जाती है। हियरिंग एड लगाने में झिझक के कारण कई लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं क्योंकि ठीक तरह सुनाई न देने के कारण वो अपनों से या समाज से कट कर रहने लगते हैं। जबकि उन्हें हियरिंग एड को चश्मा जैसी सेंसरी ऑर्गन में आई कमी को ठीक से काम करने के लिए जरूरी है, इसलिए इसे बिना झिझक इस्तेमाल करना चाहिए।

कुछ व्यस्क लोगों को दुर्घटना, गलत आदतों या किसी बीमारी की वजह से हियरिंग लॉस हो जाता है। ऐसे लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं और किसी के साथ बात न कर पाने की वजह से समाज से कट जाते हैं। डॉक्टर उन्हें मनोवैज्ञानिक को कंसल्ट करने की सलाह देते है। डिप्रेशन जैसे मनोविकारों को दूर करने के लिए साइकोथेरेपी दी जाती है। रिहेबिलेटेशन सेंटर में साइन लैैंग्वेज सीखने के लिए बोला जाता है ताकि वो जिंदगी के साथ तालमेल बिठा पाएं। उन्हें अपने शौक या कौशल को प्रोफेशन के तौर पर अपनाने की सलाह देते हैं ताकि वे परिस्थितिवश समाज से कटने के बावजूद वे अपनी अलग पहचान बना सकें।

(डॉ नेहा सूद, एसोसिएट डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ ईएनटी, बीएलके मैक्स अस्पताल, दिल्ली)