World Hearing Day: हियरिंग लॉस या बहरापन ऐसी समस्या है जो नवजात शिशु से लेकर बड़ी उम्र के लोगों में भी देखी जा सकती है। कई बच्चे कान की बनावट ठीक न होने के जन्मजात बहरापन लेकर पैदा होते हैं, तो कई जन्मोपरांत शारीरिक समस्याओं और अभिभावकों की अनभिज्ञता के कारण सुनने की क्षमता गवां बैठते हैं। वे मूक-बधिर की श्रेणी में आते हैं और दूसरे बच्चों की तुलना में शारीरिक-मानसिक स्तर पर पिछड़ जाते हैं।
बच्चों में हियरिंग लाॅस पर वैज्ञानिक मानते हैं कि बहरेपन से बच्चों को बचाने के लिए ‘अर्ली डिटेक्शन एंड अर्ली ट्रीटमेंट‘ को फोलो करना चाहिए। यानी बच्चे की इस अक्षमता को यथाशीघ्र पहचान कर समुचित कदम उठाएं जाएं, तो तकरीबन 60 प्रतिशत बच्चे बहरेपन से बच सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में लगभग 466 मिलियन लोग बहरेपन का शिकार हैं, जिनमें से 34 मिलियन बच्चे हैं। हर 1000 में से 1 बच्चा जन्मजात सुनने की दुर्बलता के साथ पैदा होता है। यही हाल रहा तो 2050 तक यह आंकड़ा 900 मिलियन तक पहुंचने की सम्भावना है। इसेे देखते हुए डब्ल्यूएचओ हर साल 3 मार्च का दिन वर्ल्ड हियरिंग डे के रूप मे मनाता है। ताकि श्रवण क्षमता में कमी के प्रति लोगों को जागरुक किया जा सके और बहरेपन की समस्या से बचाव हो सके।
World Hearing Day: कैसे पहचानें बच्चों में हियरिंग लाॅस
जन्मजात बहरेपन का पता लगाने के लिए अभिभावकोें को बच्चे के डेवलेपमेंटल माइलस्टोन पर ध्यान देना जरूरी है। डेवलेपमेंटल माइलस्टोन को ठीक समय पर पाने में किसी भी तरह की देरी हो या बच्चा उन्हें ठीक से रिस्पांस नहीं देता। तो उन्हें बाल रोग विशेषज्ञ और ईएनटी डाॅक्टर को कंसल्ट करना चाहिए। कुछ वार्निंग साइन इस तरह हैं जैसे- दो महीने का होते-होते बच्चे का गर्दन न संभालना। आवाज वाले खिलौनों को अलग-अलग दिशा में बजाने पर, बच्चे का उधर सिर घुमाकर न देखना। ताली बजाने या तेज आवाज करने पर, बच्चे का न चैंकना। थोडा बड़े होने पर नाम पुकारने पर कोई प्रतिक्रिया न देना। बोलने में देरी होना या बोलना स्पष्ट नहीं होना। निर्देशों का पालन नहीं करना, केवल इशारों से बात करना।
क्या हैं कारण
जेनेटिक हियरिंग लॉस

रिश्तेदारी में शादी होने के कारण अभिभावकों के माइनर जीन गर्भ में पल रहे भ्रूण में आकर प्रभावी हो जाते हैं। जो अंदरूनी कान के कॉकलियर ऑर्गन को निष्क्रिय कर देते हैं।
जन्मजात हियरिंग लाॅस
- गर्भवती महिला को रूबैला, मम्प्स या कंठमाला जैसी बीमारियां या टाॅक्सोप्लाज्मा या टॉर्च इन्फेक्शन होना।
- टीबी जैसी बीमारी के उपचार केे लिए गर्भवती महिला को एंटी बाॅयोटिक ऑटोटॉक्सिक दवाइयां देेना।
- बच्चे में मल्टीपल जन्मजात सिंड्रोम होना जैसे- हार्ट में छेद होना, किडनी ठीक तरह न बना होना।
- आनुवांशिक या फैमिली हिस्ट्री होना ।
जन्मोपरांत हियरिंग लाॅस
- प्री-मैच्योर जन्म के कारण बच्चे के बाहरी कान न बने होना, अंदरूनी कान का कॉकलियर ऑर्गन आधा बना होना या दिमाग तक साउंड ले जाने वाली नर्व का बहुत पतली होना या न होना।
- इंफेक्शन या मल्टीपल जन्मजात विकृतियों के कारण आईसीयू या एनआईसीयू में रहना।
- प्रसव के दौरान सांस न ले पाने से बच्चे के शरीर में ऑक्सीजन की कमी और ब्रेन हाइपोक्सिक इंजरी होना।
- ब्रेन में मेनिनजाइटिस बुखार होना। इंफेक्शन से काॅकलियर ऑर्गन में मौजूद फ्ल्यूड का खत्म होना।
- बच्चे को लगातार पीलिया रहना।
- हैड इंजुरी जैसे ट्रामा का शिकार होना।
क्या है खतरा

आमतौर पर कई अभिभावक बच्चे के 2 साल तक का होने पर भी बोल न पाने को नजरअंदाज कर देते हैं और डाॅक्टर को कंसल्ट नहीं करते। इसका असर बच्चे के बोलने-सुनने की क्षमता पर तो पड़ता ही है, मानसिक समस्याओं से ग्रस्त होने की संभावना भी बनी रहती है। क्योंकि ब्रेन में बोलने वाले सेंटर्स हैं, उन्हें स्टीमुलेट करने के लिए वहां तक ध्वनि पहुंचना जरूरी है। कान की समस्याओं के चलते बच्चे के ब्रेन में अगर ध्वनि तरंगे नहीं पहुंचती, तो उसे कुछ समझ नहीं पाता। बोलना और भाषा विकसित होना काफी मुश्किल हो जाता है।
कैसे होता है डायगनोज
अस्पतालों में जन्म के समय या डिस्चार्ज से पहले नवजात शिशु की ओटोअकाॅस्टिक एमीशन (ध्वनिक उत्सर्जन या ओएई) स्क्रीनिंग की जाती है। कान में किसी तरह की समस्या होने पर स्क्रीनिंग टेस्ट का रिजल्ट फाॅल नेगेटिव आता है। या कान में किसी तरह की समस्या का पता चलता है। यह स्क्रीनिंग एक महीने बाद दोबारा की जाती है।
आमतौर पर 3 साल तक बच्चे के बोलने-सुनने में कमी होने पर अभिभावक डाॅक्टर को कंसल्ट करते हैं। डाॅक्टर बच्चे की केस हिस्ट्री, डेवलेपमेंट हिस्ट्री, मेडिकल हिस्ट्री जानकर हियरिंग लाॅस के कारण का पता लगाते हैं। बिहेवियरल ऑडियोमेट्री से बच्चे को आब्जर्व करते हैं। ऑडिटरी ब्रेनस्टेम रिस्पांस टेस्ट किया जाता है जिससे साउंड के आधार पर हियरिंग लाॅस के लेवल का पता लगाया जाता हैं। नार्मल (0-20 डेसिबल साउंड), माइल्ड (20-35 डेसिबल ), माॅडरेट (35-50 डेसिबल ), सीवियर (50-80 डेसिबल ) और प्रोफाउंड (80 डेसिबल से ज्यादा)। माॅडरेट हियरिंग लाॅस होने पर बच्चे को दूसरे की बात सुनने में जोर लगाना पडता है, सीवियर लेवल पर बात थोड़ी-बहुत समझ तो आएगी लेकिन कुछ शब्द समझ नहीं पाता है, प्रोफाउंड में कुछ सुनाई नहीं देता।
उपचार

अगर बच्चे की कान की संरचना नाॅर्मल है। लेकिन हियरिंग लेवल माइल्ड से माॅडरेट है-तो उसे डिजीटल या प्रोग्रामर हियरिंग एड लगाए जाते हैं। सीवियर लेवल होने पर पहले हियरिंग एड लगाकर चैक किया जाता है। अगर बच्चे को सुनने में परेशानी बनी रहती है, तो माइक्रोस्कोपिक सर्जरी से इलेक्ट्रो मैगनेटिक काॅकलियर डिवाइस इम्प्लांट की जाती है। इससेे बच्चे की श्रवण क्षमता आ जाती है।
सर्जरी के बाद इन बच्चों को साउंड इनपुट-आउटपुुट की रिहेबलीटेशन ट्रेनिंग भी दी जाती है। 1 साल से कम बच्चों को इसकी जरूरत नहीं पड़ती और वो नाॅर्मल बच्चों की तरह सही समय पर बात करना शुरू कर लेते है। जबकि देर होने पर सुन न पाने के कारण स्पीच डेवलेप नही हो पाती। उन्हें पहले एन्वायरन्मेंट साउंड से, फिर बोले जाने वाले शब्दों से परिचय कराया जाता है। धीरे-धीरे भाषा और बोलना सिखाया जाता है।
काॅकलियर इम्प्लांट सर्जरी 5 साल से पहले करानी फायदेमंद है क्योंकि हमारे ब्रेन में स्पीच सेंटर होता है, अगर उस पर साउंड न जाए तो वोे 5 साल की उम्र के बाद धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। इसके बाद बच्चे की स्पीच डेवलेपमेंट खत्म होनी शुरू हो जाती है। 10 साल से बड़े बच्चे की सर्जरी करने से साउंड सुनाई तो देती है, लेकिन वह बोलना नहीं सीख पाता।
हियरिंग लाॅस से बचने के लिए बरतें सावधानियां
- जहां तक हो सके रिश्तेदारी में शादी करने से बचें।
- सबसे जरूरी है कि गर्भावस्था में मां नियमित रूप से प्री-नेटल चैकअप कराएं। मीज़ल्स, मम्स और रूबैला वैक्सीन लगवाएं ताकि भ्रूण को किसी तरह का इंफेक्शन न हो।
- प्रसव घर पर या दाइयों से कराने के बजाय अस्पताल में जाएं।
- जन्मजात दोष का पता लगाने के लिए जन्मोपरांत बच्चे का हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट जरूर करवाएं।
ऽ नवजात शिशु अगर अपने डेवलेपमेंटल माइलस्टोन में खरा न उतर रहा हो या साउंड की प्रतिक्रिया न कर रहा हो, तो तुरंत डाॅक्टर को कंसल्ट करें। जरूरी चैकअप कराकर समय पर समुचित इलाज कराएं।
(डाॅ नेहा सूद, ईएनटी एंड काॅकलियर इम्प्लांट स्पेशलिस्ट, बीएलके सुपरस्पेशिलिटी अस्पताल, नई दिल्ली)
