प्रकृति ने अपने आंचल में मानव व समाज के कल्याण के लिए बहुमूल्य संपदाएं समेट रखी हैं, उनमें वनस्पतियां भी हैं। आज आम बोलचाल में इन्हें हर्बल कहा जाता है। धन्वन्तरि प्रणीत चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद में इन वनस्पतियों को जड़ी-बूटियों के रूप में उल्लेखित करते हुए उसके उपयोगों का विस्तृत वर्णन किया गया है। आज भी वनस्पति औषधियों का प्रयोग इसी प्रकार किया जाता है। यहां वनस्पतियों से गर्मी के मौसम में होने वाले रोगों यथा प्यास, नकसीर, लू लगना, हैजा, जी घबराना, दस्त, अतिसार (पतले दस्त), बेचैनी, वमन, जलन, शरीर की गर्मी, शिथिलता, कमजोरी, निर्जलन (जलीयांश की कमी), जुकाम के इलाज के कुछ प्रयोग प्रस्तुत किए जा रहे हैं।

गाजर- शरीर में कमजोरी अनुभव होने पर 100 ग्राम गाजर के रस में 50 ग्राम टमाटर और 50 ग्राम नारंगी का रस मिलाकर नित्य पीने से कमजोरी दूर होती है। कई बार दस्तों के साथ-साथ रक्त भी आने लगता है। ऐसी स्थिति में 10 ग्राम गाजर के रस के साथ पांच ग्राम आंवले का रस मिलाकर पीना चाहिए। अतिसार होने पर भुनी हुई गाजर को अदरक के साथ चूसना चाहिए।

तुलसी- तुलसी के पत्तों का रस निकालकर उसका लेप चेहरे पर लगाकर थोड़ी देर बाद धो दें। ऐसा करने से जब आप धूप में जाएंगे तो आपके चेहरे की त्वचा पर धूप का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। ग्रीष्म ऋतु में जुकाम विशेष रूप से हो जाया करता है। अत: प्रात:-सायं तुलसी की पत्ती 10, कालीमिर्च 4, अदरक 15 ग्राम, मुलेठी 5 ग्राम सभी को 200 मिलीलीटर जल में पकावें। जब एक कप शेष रहे तो उतार कर छान कर एक चम्मच चीनी मिलाकर गर्मागर्म पीएं, जुकाम में लाभ होगा।

प्याज- प्याज का सेवन ग्रीष्म ऋतु में लाभकारी रहता है। इसके सेवन से अन्य फायदों के अलावा लू से भी बचाव होता है। लू लगने पर प्याज का रस देना लाभप्रद है। प्याज का रस निकालकर एक चम्मच में जरा सा नमक डालकर बच्चों को पिला दें। बड़ों को दो चम्मच दे सकते हैं। वमन से राहत मिलेगी।

गन्ना- यदि किसी को खूनी दस्त (पेचिस) हो जाए तो गन्ने के रस में नींबू का रस मिलाकर 100 से 200 मिलीलीटर  की मात्रा में पीने से खूनी दस्त तीव्रता से नियंत्रित हो जाते हैं। यदि किसी के शरीर में पित्त बढ़ गया हो, पित्त की उल्टियां हो रही हो, तो गन्ने के ताजा रस में शुद्ध शहद मिलाकर दिन में दो या तीन बार देने से पित्त प्रकोप शान्त होकर उल्टियां रुक जाती हैं।

लौंग- जी मिचलाने तथा उल्टी न होने पर आधा चम्मच चीनी तथा दो लौंग बारीक पीसकर चुटकी भर चार-पांच बार चूसने से लाभ होता है।

हरड़- ग्रीष्म ऋतु में हरड़ या हर्रे का चूर्ण 3 ग्राम, एक चम्मच शहद के साथ प्रात:सायं सेवन करें या हरड़ को बिना उबाले एक वर्ष पुरानी शहद में डुबोकर मर्तबान में रख दें। शहद हर्रे के ऊपर तक भरी होनी चाहिए। इसके सेवन से अर्श, खांसी, ज्वर, पाण्डु, नेत्ररोग, दाह और अम्ल-पित्त आदि रोग दूर होते हैं। बुढ़ापे के लक्षण भी दूर होते हैं।

आंवला- अतिसार हो तो सूखे आंवले का चूर्ण 10 ग्राम और हरड़ का चूर्ण 5 ग्राम मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह-शाम मट्ठे के साथ लेने से शीघ्र लाभ होगा। चक्कर आने पर 10 ग्राम आंवले का चूर्ण रात को थोड़े से पानी में भिगो दें। इसकी एक-एक चम्मच की मात्रा सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।

धनिया- गॢमयों में धनिया के सेवन से ठंडक पहुंचती है। लू से बचाव होता है और प्यास नहीं लगती। शरीर में ऊष्णता की वृद्धि होने पर दाह की अनुभूति होने लगती है। यदि गन्ने के रस में थोड़ा सा हरे धनिये की पत्तियों का रस अथवा धनिये के दानों को फुलाकर निकाले गए रस को मिलाकर पीया जाए तो पर्याप्त लाभ होता है तथा दाह (जलन) शांत होती है। नाक से खून गिरने (नकसीर) की स्थिति में गन्ने के रस में आंवलों के रस के साथ धनिये की पत्तियों का रस अथवा धनिया मसलकर प्राप्त जल मिलाकर देने पर पर्याप्त लाभ होता है।

नारियल- नारियल का कच्चा गूदा पाचन संस्थान में आई विषमता को दूर करता है। इससे अतिसार में आराम मिलता है। नारियल के पानी को हम खनिज पानी के नाम से भी जानते हैं। हरे नारियल के पानी में पोटैशियम की भरपूर मात्रा पाई जाती है। यह पेय शरीर को ताजगी प्रदान करता है। विशेषज्ञों की राय के अनुसार हैजे के रोगी को नारियल का पानी पिलाना लाभप्रद है। 200-300 मिली लीटर नारियल का पानी, एक चम्मच ताजा नींबू का रस मिलाकर हैजे के रोगी को दिया जाता है। इससे रक्त में स्थित एसिडिटी का प्रभाव खत्म हो जाता है। इस रोग का रोगी एसिडिटी के खत्म होने के बाद भी यह दवा बिना किसी परेशानी के पी सकता है।

नीम- नकसीर फूटने पर नीम की छाल को पानी में पीसकर गाढ़ा लेप बनाएं। इस लेप को माथे पर लगाएं। नकसीर ठीक हो जाएगी।

नींबू- नींबू और खीर का रस मिलाकर लगाने से धूप से झुलसी हुई त्वचा ठीक हो जाती है।

खरबूजा- खरबूजे के नियमित सेवन से गॢमयों में लू नहीं लगती और आलस्य नहीं आता। खाना खाने के बाद 250 ग्राम खरबूजा खाने से पेट की गर्मी दूर होती है। खरबूजे के सूखे बीज को देसी घी में तलकर खाने से चक्कर आने बंद हो जाते हैं।

मेहंदी- लू और गर्मी के असर को मेहंदी कम करती है। इसी कारण यह गर्म देशों में अधिक इस्तेमाल की जाती है।

अनानास- गॢमयों में प्रतिदिन अनानास का शर्बत पीने से तरो-ताजगी एवं ठंडक मिलती है, घबराहट, गर्मी, प्यास शान्त होती है मन को राहत मिलती है।

अनार- अनारदाना, सौंफ, धनिया तीनों बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। दो ग्राम चूर्ण में एक ग्राम मिश्री मिलाकर दिन में चार बार सेवन करने से खूनी दस्त, खूनी आंव में आराम मिलता है। अधिक प्यास लगने, जी मिचलाने आदि में अनार के रस में आधा नींबू निचोड़कर पीएं। सूखा अनारदाना पानी में भिगो दें, तीन- चार घंटे बाद इस जल को थोड़ा-थोड़ा मिश्री मिलाकर कई बार पिलाने से अधिक प्यास नष्ट होती है।

जीरा- दस्त की बीमारी लग जाए, तो एक छोटा चम्मच पिसा हुआ जीरा चाय या पानी के साथ दिन में तीन बार पी लें।

चंदन- गर्मी के सिर दर्द के लिए चंदन घिसकर माथे पर लेप करें। त्रिफला- त्रिफला और बायविडंग चूर्ण को समान मात्रा में शहद के साथ लें, तो उल्टी में बहुत लाभ होता है।

जायफल- जायफल पानी में घिसें और एक चम्मच में उतार लें। एक खुराक में लगभग आधी चम्मच पिसी हुई दवा सुबह-शाम चाटने से दस्त बंद हो जाते हैं।

सौंफ- उल्टी होने पर सौंफ व बड़ी इलायची को पानी में पकाकर बड़ों को दो चम्मच और बच्चों को एक-एक चम्मच हर घंटे के बाद देने से राहत मिलती है। 

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