health tips
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रसाहार को अपनाने के दो ही मुख्य कारण होते हैं। पहला तो यह कि रसाहार द्वारा स्वास्थ्य का सुधार और दूसरा रसाहार द्वारा रोग-निवारण। अगर रसाहार द्वारा शरीर में विद्यमान रोगों को दूर करना हो तो रसाहार को एक औषधि मानकर नियमित रूप से नियमपूर्वक अपनाना चाहिए। रसाहार का समय निश्चित कर लिया जाए। दिन में तीन बार सुबह, दोपहर और शाम को निर्धारित समय पर साग-सब्जियों और फलों के ताजा रस निकाले जाएं और तत्काल उनका सेवन किया जाए।

अगर रसाहार के साथ कच्ची साग-सब्जियां और फलों का उपयोग करना हो तो पहले रस पिएं उसके बाद ही फल और सब्जियां खूब चबा-चबाकर खाएं। पहले रस पी लेने से फलों और साग-सब्जियों के पचाने के लिए जिन एन्जाइम की आवश्यकता होती है रस के माध्यम से पहले से ही आमाशय में मौजूद होते हैं।

रसाहार के दौरान कभी-कभी सिर-दर्द, बदन-दर्द, ज्वर आदि रोग हो जाते हैं। वास्तव में ये रोग इस बात के प्रतीक होते हैं कि रसाहार से शरीर में जो भी विषैले तत्त्व हैं वे निकल रहे हैं। इसलिए उनसे घबराएं नहीं और नियमित रूप से रसाहार लेते रहें। क्योंकि कुछ ही दिनों में ये अपने आप ही दूर हो जाते हैं।

हरी साग-सब्जियों और फलों के रस रक्त शुद्धि करते हैं और शरीर में जितने भी विजातीय तत्त्व होते हैं उन्हें निष्कासित कर देते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों में जो दुर्बलता आ जाती है उसे रस दूर करते हैं। शरीर के कोषों का नवनिर्माण करके आवश्यक तत्त्वों की पूर्ति करते हैं और जीर्णता को रोकते हैं। रसाहार प्रत्येक रोग में स्वतंत्र रूप से या फिर सहायक रूप से सफल उपचार माना गया है।

लेकिन रस चिकित्सा से सभी रोगों का उपचार हो ही जाए यह आवश्यक नहीं है। अनेक गंभीर रोगों में रस चिकित्सा के साथ -साथ अन्य आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों की भी सहायता लेनी आवश्यक हो जाती है।
जीवन के ये अभाव, समस्याएं और चिंताएं व्यक्ति को तनावग्रस्त कर डालती हैं जिसका प्रभाव यह होता है कि रात को ठीक ढंग से नींद नहीं आती। कभी-कभी तो पूरी रात ही जागते-जागते बीत जाती है।
केले के अतिरिक्त सेब, अमरूद, गाजर और पालक के मिश्रित रस का सेवन करने से तनावग्रस्त व्यक्ति को आसानी से नींद आ जाती है। अगर अनिद्रा रोग बन गया हो तो सूर्यास्त होने से पहले रसों के इस मिश्रण का सेवन करें। धीरे-धीरे नींद ठीक समय पर आने लगेगी और खूब गहरी नींद आएगी।

अदरक का रस, पपीता, अनन्नास, ककड़ी, गोभी, गाजर और पालक के मिश्रित रस का दिन में दो बार सेवन करें। इससे आहार पचने में सहायता मिलेगी और अपच दूर हो जाएगी।

अदरक

  • अदरक का रस अनेक रोगों में औषधि का कार्य करता है। प्रतिदिन भोजन से पूर्व अदरक के रस का पान किया जाए तो भोजन का पाचन ही नहीं होता बल्कि गले और जिह्वा के कैंसर की भी संभावना खत्म हो जाती है।
  • अदरक पाचक, पौष्टिक और कृमिनाशक होता है। पेट में जो भी कृमि यानी कीड़े होते हैं उन्हें मलद्वार से बाहर निकाल देता है। यह आंतों को पुष्ट और शक्तिशाली बनाता है। उनमें अगर कोई विजातीय तत्त्व एकत्र हो जाता है तो उसे निकाल देता है। शरीर के विषैले द्रव्यों तथा कीड़ों को समाप्त करने में अदरक का रस अभूतपूर्व कार्य करता है।
  • अदरक में वनस्पति शास्त्र के विशेषज्ञों के अनुसार प्रोटीन, वसा, लोह, जल तत्त्वों के अतिरिक्त अदरक में विटामिन ए विटामिन बी और कैल्शियम तथा फास्फोरस भी पाए जाते हैं।
  • भोजन से पूर्व अदरक के रस में थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाकर पीने से भूख खुलकर लगती है और भोजन आसानी से पच जाता है।
  • अदरक के रस से वायु-विकार नष्ट होते हैं। कफ नष्ट होता है। सर्दी-जुकाम दूर हो जाता है। हृदय के विकार नष्ट हो जाते हैं।
  • अदरक का रस उदर रोगों को नष्ट करने में रामबाण औषधि है, शरीर की सूजन, पीलिया, मूत्र विकार, दमा, खांसी, बवासीर, जलोदर आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है। जिन लोगों को जीभ या गले का कैंसर हो गया हो अदरक के नियमित सेवन से रोग का प्रभाव कम हो जाता है।

प्याज

  • प्याज का रस कीटाणु नाशक होता है। इसके रस से हैजे के कीटाणु रस के पेट में जाते ही नष्ट हो जाते हैं।
  • वात-पित्त और कफ के विकारों को नष्ट करने में प्याज बहुत ही उत्तम होता है। वात प्रकोप शांत हो जाता है। पित्त और कफ बाहर निकल जाते हैं। मल सुगमता से निकल जाता है। प्याज रेचक होती है इसलिए पेट और आंतों में एकत्र मल को बाहर निकालकर पेट और आंतों की सफाई कर देती है।
    द्य प्याज का रस आंखों के लिए बहुत लाभकारी होता है। इससे आंखों की शक्ति व चमक बढ़ती है। त्वचा के लिए भी प्याज का रस हितकर सिद्ध होता है। यह फोड़े-फुंसियां दूर करके त्वचा को चिकना और चमकदार बना देता है।
    द्य सफेद प्याज का रस, शहद, अदरक का रस और घी एक-एक तोला मिलाकर अगर इक्कीस दिन तक सेवन किया जाए तो नपुंसकता दूर हो जाती है।
  • प्याज का रस और शहद, एक-एक तोला मिलाकर पीने पर वीर्य वृद्धि होती है।
  • प्याज और करेले के रस को मिलाकर पीने पर कितना भी पुराना अजीर्ण हो दूर हो जाता है।
  • प्याज के रस में हल्दी और गुड़ घोलकर पीने पर पीलिया रोग दूर हो जाता है।
    दो-दो तोला प्याज का रस एक-एक घंटे के बाद पिलाने पर हैजा के कारण होने वाले दस्त और उल्टियां बंद हो जाती हैं।
  • हैजे के दिनों में रात को भोजन करने के बाद प्याज के रस में चने बराबर हींग पीस कर मिला लें। फिर एक माशा सौंफ और एक माशा पिसा हुआ सूखा धनिया मिला कर पी लें, हैजे के रोग से बचे रहेंगे।
  • अगर हैजे से शरीर ठंडा पड़ गया हो तो प्याज और अदरक के रस में पिसी हुई काली मिर्च मिलाकर पिलाएं। शरीर में तत्काल गर्मी आ जाएगी।
  • नक्सीर के रोगी की नाक में प्याज के रस की कुछ बूंदें डालें और प्याज सुंघा दें। नाक से बहने वाला
  • खून थोड़ी देर में ही बंद हो जाएगा।
  • प्याज के रस की बूंदें नाक में डालने से हिस्टीरिया और मिरगी का रोगी होश में आ जाता है।
  • दाद या खुजली प्याज के रस की मालिश करने से दूर हो जाते हैं।
  • सिर में प्याज का रस डालकर अच्छी तरह मलें। सारी जूं मर जाएंगी।
  • प्याज का रस दुखती आंखों में डालने से आंखें ठीक हो जाती हैं। अगर उसमें थोड़ा-सा नमक मिलाकर आंखों में डाला जाए तो रतौंधी दूर हो जाती है।
  • आंखों में प्याज का रस सलाई या उंगली से लगाने से लाभ होता है। शक्कर मिलाकर रस आंखों में लगाने पर आंखों की गर्मी और जलन शांत होती है।
  • प्याज के रस में नौसादर मिलाकर लगाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है।

मूली

  • सब्जी के बजाय कच्ची मूली बहुत लाभकारी होती है। मूली के कंद के बजाय उसके पत्ते अधिक गुणकारी होते हैं।
  • मूली के पत्तों का रस मूत्राशय के विकारों, पथरी और रक्त पित्त का नाश करता है। यह कफ और पित्त का भी नाश करता है।
  • मूली और नींबू के रस को मिलाकर पीने से पेट-दर्द शांत हो जाता है।
  • मूली के पत्तों के रस में सोडा बाईकार्ब मिलाकर पीने पर खुलकर पेशाब आता है।
  • चुकंदर
  • खाना खाने से पहले चुकंदर और नींबू के रस को मिलाकर पीने से भूख खुलकर लगती है। भोजन पचने में आसानी होती है और अजीर्ण नहीं होता।
  • चुकंदर रक्तवर्धक, शक्ति उत्पन्न करने वाला और पौष्टिक होता है। प्रतिदिन सलाद के रूप में खाने या इसका रस पीने से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं। कुछ दिनों तक चुकंदर का रस नियमित रूप से पीने पर शरीर का रंग सुर्ख हो जाता है और शरीर शक्तिशाली, ह्रïष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ बनता है। शरीर में स्फूर्ति और चेतना उत्पन्न होती है।
  • यूरोप के कई देशों में चुकंदर से ग्लूकोज और चीनी बनाई जाती है।
  • पालक
  • पालक की भाजी और पालक के रस दोनों से ही भोजन शीघ्र पच जाता है। पालक में अत्यधिक औषधीय गुण होते हैं। पालक के साग में पथरी को पिघला देने की शक्ति होती है। इससे फेफड़ों की सड़न दूर होती है। पालक आंतों के रोग, पाचन तंत्र की शिथिलता, अपच, अपच के कारण होने वाले दस्त, संग्रहणी आदि उदर संबंधी रोगों को दूर करती है।
  • पालक में लौह और तांबे के अंश होते हैं इसलिए यह पांडु रोगी के लिए बहुत ही लाभकारी पथ्य है। पालक रक्त में वृद्धि करती है, उसे शुद्ध करती है और इसमें लौह तत्त्व प्रचुर मात्रा में होने के कारण हड्डियों को दृढ़ता प्रदान करती है।
  • पालक के पत्तों में पर्याप्त जीवन शक्ति पाई जाती है। इसलिए बाल, युवक और वृद्ध सभी के लिए पालक के पत्तों का रस लाभकारी होता है।
  • पालक में विटामिन ‘एÓ और ‘बीÓ होते हैं। साथ ही प्रोटीन का उत्पादन करने वाले एमिनों एसिड भी अधिक मात्रा में होते हैं।
  • द्य पालक रक्त में रक्ताणुओं की वृद्धि करती है क्योंकि इसमें सी और ई विटामिनों के साथ-साथ सोडियम, फास्फोरस, लौह, क्लोरीन और कैल्शियम जैसे खनिज पदार्थ भी होते हैं।

टमाटर

  • यूं तो टमाटर की गणना फलों में की जाती है लेकिन इसका उपयोग सब्जियों में अधिक होता है।
  • टमाटर रक्त कणों की वृद्धि करता है शरीर को ओज तथा लालिमा प्रदान करता है। भोजन में रुचि उत्पन्न करता है। इसके सेवन से जठराग्नि बढ़ती है पाचनशक्ति सशक्त होती है, रक्त तथा पित्त के विकार दूर होते हैं एवं शरीर को ताजगी और स्फूर्ति मिलती है।
  • गर्भवती स्त्रियों के लिए गर्भावस्था में तथा प्रसव के उपरांत टमाटर का रस उन्हें शारीरिक तथा मानसिक शक्ति प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त स्त्रियों के अन्य रोगों को भी नष्ट करता है।
  • टमाटर का रस जठर के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। उसमें संतरे के बराबर पोषक तत्त्व होते हैं।
  • टमाटर के रस से पाचन तंत्रों और आंतों को लाभ पहुंचता है। पुरानी-से-पुरानी बहदजमी दूर हो जाती है। टमाटर का रस शक्तिवर्धक भी होता है।
  • द्य टमाटर के रस से वायु का नाश होता है। रक्त तथा पित्त की वृद्धि होती है। यह वात और कफ को भी दूर करता है।
  • टमाटर का रस सुबह-शाम पीने से त्वचा के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।
  • ककड़ी का रस: मूत्र रोग में ककड़ी का रस पिएं।
  • करेले का रस: पीलिया रोग में करेले का जूस सुबह खाली पेट थोड़ा सा रस व बाकी पानी मिलाकर पिएं।
  • आलू का रस: अम्लता (एसिडिटी) दूर करने के लिए आलू का रस पीना चाहिए।
  • खीरे का रस: खीरे का रस पथरी को बाहर निकलने में सहायक है।
  • बंदगोभी का रस: बंदगोभी में विटामिन ए,बी,सी भरपूर मात्रा में है। ये घाव को जल्दी भरते हैं।
  • फलों के रस

नींबू

  • नींबू एक ऐसा फल है जिसमें अन्य सभी फलों की तुलना में अधिक गुण पाए जाते हैं। नींबू का उपयोग प्रत्येक ऋतु में किया जाता है। गर्मी के मौसम में नींबू के रस की शिकंजी बनाकर पीने से गर्मी और लू से राहत मिलती है। वर्षा ऋतु में हैजे के प्रकोप से बचने के लिए नींबू का प्रयोग किया जाता है।
  • नींबू रक्त को शुद्ध बनाता है तथा उसमें सम्मिलित विजातीय तत्त्वों को नष्ट कर देता है। नींबू का सर्वाधिक प्रभाव पाचन तंत्रों पर पड़ता है। आहार को पचाने वाले रसों को नींबू उत्तेजित करता है। पाचन में सहायता करने के कारण अपच, मंदाग्नि, कब्ज आदि के रोगियों को नींबू के रस के सेवन से रोगों से मुक्ति मिल जाती है। नींबू का रस खट्टा होता है इसलिए नींबू के खट्टे रस से शरीर के रक्त में सम्मिलित अम्लता नष्ट हो जाती है।
  • आयुर्वेद की अनेक औषधियों के निर्माण में नींबू के रस की सहायता ली जाती है। नींबू में कृमि और कीटाणु नाशक तत्त्व होते हैं। आमाशय में एकत्र सड़े हुए आहार के अंशों को तथा शरीर के सड़े हुए घाव को ठीक करने के अद्ïभुत गुण होते हैं। नींबू संक्रामक रोगों से भी रक्षा करता है।
  • नींबू का रस ठंडे पानी में मिलाकर पीने से धूप में घूमने के कारण होने वाली बेचैनी दूर हो जाती है।
  • एक नींबू का रस और थोड़ी शक्कर एक गिलास पानी में घोल कर पीने पर पित्त शांत हो जाता है।
  • द्य नींबू का आधा छटांक रस चार-चार घंटे बाद पीने पर रक्त, पित्त और आमवात से मुक्ति मिल जाती है।
  • दो चम्मच नींबू के रस में एक चम्मच अदरक का रस मिला कर पीने पर पेट का दर्द दूर हो जाता है।
  • अगर हैजा हो जाए तो नींबू के रस में प्याज का रस मिलाकर रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
  • नींबू का रस गले की पीड़ा को दूर कर देता है।
  • एक नींबू का रस एक गिलास पानी में मिलाकर प्रात:काल पीने पर कब्ज दूर हो जाती है।
  • अनावश्यक चर्बी को कम करने के लिए ढाई तोला नींबू का रस और ढाई तोला शहद मिलाकर पीने पर चर्बी खत्म हो जाती है। मोटापा दूर हो जाता है।
  • नींबू के रस में सेंधा नमक मिलाकर कुछ दिन तक पीने पर गुर्दे की पथरी गल कर पेशाब के साथ निकल जाती है।
  • अगर दांतों से खून निकलता हो तो नींबू के रस की मालिश करें।
  • नींबू के रस में थोड़ा-सा सज्जीखार मिलाकर कान में डालने पर कान से बहने वाला पीप खत्म हो जाता है।
  • नींबू के रस में इमली का बीज पीस कर दाद पर लगाने से लाभ होता है।
  • नींबू का रस और नारियल का तेल मिलाकर मालिश करने पर त्वचा रोग, खुजली, दाद मिट जाते हैं।
  • आधे सिर में दर्दमाइग्रेन हो तो एक गिलास पानी में नींबू का रस तथा अदरक का रस मिलाकर लें। कम से कम पंद्रह दिन रोज।
  • रसाहार से अपच दूर करने के लिए सुबह शौच जाने से पहले गुनगुने पानी में एक नींबू का रस निचोड़ लें और उस पानी को घूंट-घूंट करके पी लें। उसके बाद शौच खुलकर आएगा और पेट की सफाई हो जाएगी।

अंगूर

  • अंगूर पेट-संबंधी रोगों के लिए रामबाण सिद्ध होते हैं। जिन्हें एक लंबे अर्से से बदहजमी की शिकायत हो, सुबह शौच जाने पर पूरी तरह पेट साफ न होता हो उन्हें प्रतिदिन अंगूर खाने चाहिए। कब्ज दूर करने के अलावा बवासीर का रोग भी दूर हो जाता है। रक्त की गर्मी शांत होती है। रक्त शुद्ध और शीतल हो जाता है। त्वचा की खुश्की मिटती है, त्वचा-संबंधी रोग नष्ट होते हैं और शरीर को शक्ति प्राप्त होती है।
  • अंगूर में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है इसलिए स्कर्वी और त्वचा संबंधी रोग बिलकुल नष्ट हो जाते हैं। यह मानसिक अस्वस्थता, दिमागी कमजोरी और दमा के रोग को दूर करता है। इसके सेवन से शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है। अंगूर वीर्यवर्धक होने के साथ ही आंखों को विशेष लाभ पहुंचाता है। हर समय प्यास लगना, ज्वर, पीलिया, मूत्र कृच्छ, रक्त पित्त आदि रोग दूर हो जाते हैं। क्षय के रोगियों को यदि रोजाना अंगूर खिलाया जाए तो विशेष लाभ होता है।
  • अंगूर और मिश्री रोजाना सुबह खाने पर शरीर की भीतरी गर्मी शांत होती है।
  • पचास ग्राम काले अंगूर रात को ठंडे पानी में भिगोकर अगर सुबह मसल कर पिए जाएं तो रक्त की शुद्धि होती है तथा कब्ज मिटती है एवं मूत्र कृच्छ रोग नष्ट हो जाता है। मूत्राशय की पथरी गल जाती है।
  • दो तोला अंगूर गाय के दूध में डालकर पीने से मस्तिष्क की गर्मी शांत हो जाती है।
  • अंगूर नियमित रूप से कुछ दिनों तक खाने पर स्त्रियों के मासिक धर्म में सुधार होता है। मासिक धर्म नियमित होने लगता है। मासिक धर्म के दिनों में पीड़ा नहीं होती।
  • ताजे अंगूर के रस में विटामिन ए, बी, सी एवं तमाम खनिज लवण मिलता है, कब्ज दूर करता है। मोटापा कम करता है।

अमरूद

अमरूद कब्ज का दुश्मन है। यह विषम ज्वर के रोगियों के लिए लाभकारी होता है। अमरूद विशेष रूप से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाने में अद्ïभुत सहयोग देता है। अमरूद वीर्यवर्धक, वात, पित्त नाशक और शीतल होता है।

अमरूद के पत्तों का रस भांग के नशे को दूर भगा देता है।
दोपहर के भोजन के बाद अमरूद खाने से बहुत लाभ होता है। अमरूद भोजन को हजम करने के लिए चूर्ण का काम देता है। अमरूद में विटामिन ‘सी’ अधिक मात्रा में पाया जाता है। विटामिन ‘सी’ पाचन तंत्र की दुर्बलता, उच्च रक्तचाप, रक्त विकार और दांतों के रोगों को दूर करता है।

जो स्त्रियां गर्भवती हों और उन्हें उल्टी आती है तो अमरूद खाने से उल्टियां बंद हो जाती हैं। कब्ज दूर होती है जिसके कारण-शौच के समय जोर लगाना नहीं पड़ता और गर्भ में शिशु सुरक्षित रहता है।

अनार

  • अनार के सेवन से पेट के कीड़े मर जाते हैं। पित्त शांत होता है। पेचिश, अतिसार, आंखों और छाती की जलन दूर होती है।
  • अनार का रस और शर्बत गर्मी और प्यास को शांत करता है। लू लग जाने पर अनार का रस और शर्बत बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है। अनार का रसपान फेफड़े, हृदय, आमाशय, यकृत, आंतों के रोग और क्षय रोग में अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है। शरीर को अनार के रस से स्फूर्ति और ताजगी ही नहीं शक्ति भी प्राप्त होती है।
  • अनार चाहे उसके दाने खायें या रस निकाल कर पिया जाए, बुद्धि, वीर्य, और शक्ति में अद्ïभुत वृद्धि प्रदान करते हैं। अनार वायु और कफ का नाश करते हैं।
  • अनार का रस घूंट-घूंट कर पीने से पेट के अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं, आवाज खुलती है, हृदय की दुर्बलता दूर होती है छाती का दर्द मिट जाता है। गर्भवती स्त्रियों की उल्टियां शांत हो जाती हैं और कमजोरी दूर हो जाती है। जिसका बहुत ही अच्छा प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है। अनार के रस से आंखों की जलन और लाली दूर हो जाती है। नाक से खून बहना बंद हो जाता है।
  • अनार का रस शरीर को सौंदर्य, ओज, वीर्य, बुद्धि और शक्ति प्रदान करता है। मस्तिष्क और हृदय की शक्ति बढ़ाता है।अनार का रस ही नहीं फूल, फलों के छिलके और वृक्ष की छाल भी अनेक रोगों को नष्ट करने में सहायक होती है। अनार के सूखे दाने भोजन में भी काम आते हैं और औषधियों के निर्माण में भी। अनार दाने का चूर्ण, अपच, अरुचि और कब्ज को दूर करता है।
  • अनार के रस में वसा, आयरन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, फासफोरस, विटामिन बी तथा सी भरपूर मात्रा में रहता है। इसी कारण अनार का रस उत्तम टॉनिक माना जाता है, जो रक्त अल्पता को दूर करता है। गर्भवती महिलाओं को अवश्य लेना चाहिये। ह्रदय रोग से दूर रखता है।

अनन्नास

अनन्नास के रस के सेवन से गर्मी के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। पांडुरोग, प्लीहा-वृद्धि और उदर-संबंधी रोगों को नष्ट करता है। अनन्नास के रस से शरीर की अनावश्यक चर्बी कम होती है जिससे मोटापा घटता है। ज्वर की दशा में अगर अनन्नास के रस का सेवन किया जाए तो खूब पसीना आता है और तापमान कम होता चला जाता है। डिप्थेरिया के रोगी को अनन्नास का रस बहुत ही लाभ पहुंचाता है।
दाद, खाज-खरबूजे तथा अनानास का रस लें। ये शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है। इसमें क्लोरिन पाया जाता है। यह थकावट दूर करता है। अनन्नास विटामिन ए, बी, सी तथा अन्य खनिज तत्त्वों से भरपूर है। भूख बढ़ाने में मदद करता है। गले की हर परेशानी दूर करता है, टांसिल ठीक करता है, पथरी बनने से रोकता है।

आम

द्य आम का रस वीर्यवर्धक, वायुनाशक, स्निग्ध होता है। वायु और पित्त विकारों को नष्ट करता है। मलावरोध को नष्ट करता है। पुष्टिदायक और बलवर्धक होता है।
द्य आम के रस को अगर दूध के साथ सेवन किया जाए तो शरीर स्वस्थ और शक्ति संपन्न बन जाता है। आम के रस से रक्त, मांस, शक्ति और वीर्य तथा ओज की वृद्धि होती है। क्षय के रोगियों को आम के रस से अत्यंत लाभ पहुंचता है।
द्य आम के रस का पान करने के लिए उचित तरीका तो यही है कि आमों को ठंडे पानी में कुछ देर तक भिगो कर रखा जाए। फिर एक-एक कर आम का रस चूसा जाए। जब लगभग आधा लीटर रस चूस लें तो गाय, बकरी या भैंस का आधा लीटर गुनगुना दूध पी लें। अगर एक माह तक इस प्रयोग को किया जाए तो जहां शरीर में बल, वीर्य, शक्ति, ओज और सौंदर्य की वृद्धि होगी वहीं शरीर को रोग अवरोधक शक्ति भी प्राप्त होगी। चिकित्सकों का विचार है कि ऐसे व्यक्ति को पूरे वर्ष भर भी रोग परेशान नहीं करते। हर वर्ष आम की फसल आने पर रस प्रयोग को तीस या चालीस दिन तक फिर दोहरा सकते हैं। इस प्रयोग से वृद्धावस्था शीघ्र नहीं आती। इससे शरीर के सभी अंग पुष्ट हो जाते हैं। भले ही वह हृदय हो या मस्तिष्क। आम के रस में ‘ए और ‘सी दोनों प्रकार के विटामिन अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं। विटामिन ‘ए से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं और विटामिन ‘सी से चर्म रोग।
द्य आम रस दूध में मिलाकर पिएं, तमाम बिमारियां दूर करता है। शरीर को तंदुरुस्त बनाता है, रक्तअल्पता को ठीक करता है। आम के रस में विटामिन ए, ई, सी लोह से भरपूर होता है। इसे अधिक नहीं लेना चाहिए। यह शरीर में अधिक गर्मी पैदा करता है, जिससे फोड़े फुन्सी निकलने का डर होता है।

आंवला

द्य आंवले का रस स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता, अधिक रक्त स्राव, नाक से खून बहना, खूनी बवासीर, रक्त विकार, खूनी पेचिश आदि रक्त संबंधी रोगों में अत्यंत लाभ पहुंचाता है। अगर सुबह खाली पेट आंवले के रस का पान किया जाए तो शरीर को ताजगी, स्फूर्ति और शक्ति प्राप्त होती है।
द्य आंवले के रस को गन्ने के रस में मिलाकर पीने से मूत्रपिंड के रोग नष्ट होते हैं। आंवले के रस में पिसी हल्दी मिलाकर पीने से प्रमेह नष्ट होता है। आंवले के रस में घी मिलाकर पिलाने पर मूर्च्छा दूर हो जाती है।
द्य अगर आंवले का नियमित प्रयोग किया जाए तो टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।
द्य कुष्ठ रोगियों को आंवले के सेवन से बहुत लाभ पहुंचता है। पुराने कुष्ठ को समाप्त करता है और नए कुष्ठ को रोक देता है। आंवला त्रिदोष नाशक और रक्तपित्त को दूर करने के साथ ही शरीर के किसी भी भाग में, चाहे रक्त में हो या मांस अथवा हड्डियों में हो, सारे विषैले तत्त्वों को जलाकर नष्ट कर देता है। अगर कफ न निकलता हो तो आंवले के रस का सेवन करें। चार-छह दिन के सेवन से ही सारा कफ निकल जाएगा।
इसलिए आयुर्वेद के विशेषज्ञों ने आंवले को सर्वश्रेष्ठ रसायन माना है।

सेब

द्य सेब को अमृत फल माना जाता है। सुबह खाली पेट अगर एक सेब छिलके सहित दांतों से काट-काटकर चबा-चबा कर खाया जाए तो शरीर शक्तिशाली बनता है। और अगर सोने से पहले एक सेब खाया जाए तो मस्तिष्क तथा शरीर का तनाव दूर होता है। शान्ति तथा शक्ति प्राप्त होती है और गहरी नींद आती है। मसूड़े निरोग होते हैं तथा दांत मजबूत हो जाते हैं।
द्य क्षय के रोगियों के लिए सेब वास्तव में अमृत के समान है। जो क्षय रोगी बहुत ही दुर्बल हो गए हों और जिनके पाचन-तंत्र सामान्य ठोस आहार तो दूर फलों तक को पचा पाने में असमर्थ हो गए हों उन्हें दिन भर में कम-से-कम तीन बार सुबह, दोपहर और रात को अगर एक-एक गिलास सेब का शर्बत सेवन कराया जाए तो बहुत ही शीघ्र वे रोग मुक्त हो जाते हैं। अगर थोड़े-थोड़े दिनों के बाद गर्मी या ठंडक के कारण ज्वर आ जाता हो तो ठोस आहार छोड़ कर केवल सेब या सेब के रस के सेवन से ज्वर का प्रकोप शांत हो जाता है और शरीर में इतनी प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि बुखार से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
द्य सेब से हृदय, मस्तिष्क और पाचन तंत्रों को शक्ति प्राप्त होती है। लीवर शक्तिशाली बनता है। इसलिए पाचन क्रिया में सुधार होता है जिससे शरीर में बड़ी तेजी से रक्त बनने लगता है। और यह रक्त ही शरीर को शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करता है।

पपीता

उदर रोगों के अतिरिक्त हृदय रोग के लिए भी पपीता अत्यंत लाभकारी है। हृदय रोगियों को अगर नियमित रूप से पपीता खिलाया जाए तो हृदय के अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं।
पपीते में ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ विटामिन पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त कार्पेन नामक एक क्षारीय द्रव्य भी पाया जाता है जो उच्च रक्त चाप के रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
पपीता पथरी और बवासीर के रोगियों के लिए भी हितकर सिद्ध होता है। नेत्र रोगों, मूत्राशय तथा गुर्दे के रोगों को भी नष्ट करता है। इसका सेवन शरीर के मोटापे को रोकता है एवं पक्षाघात, गठिया वात, दंत रोग और हड्डियों के रोगों को समाप्त करता है।

केला

केले के सेवन से रक्त, पित्त, कफ विकार नष्ट होते हैं। केला भूख ही नहीं प्यास को भी मिटाता हैं और आंखों के रोगों तथा प्रमेह रोग को भी समाप्त करता हैं। पेट में अगर कीड़े हों तो वे भी नष्ट हो जाते हैं।
केलों में पोषक तत्त्वों के अतिरिक्त प्रोटीन और वसा की मात्रा भी पाई जाती है। शरीर को गर्मी और कैलोरी प्रदान करने की शक्ति अन्य फलों की अपेक्षा केलों में अधिक होती है। मधुमेह के रोगियों के लिए केला बहुत ही उपयोगी फल है।
भोजन ग्रहण करने के बाद अगर कुछ समय तक तीन केले खाए जाएं तो शरीर में खनिज और मांस की वृद्धि होती है। जो लोग बहुत ही दुबले-पतले हैं, उन्हें सुबह-शाम के भोजन के बाद तीन केले कम-से-कम तीन महीनों तक अवश्य खाने चाहिए। क्योंकि केले में चर्बी की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है इसलिए शरीर में मोटापा आने की कोई संभावना नहीं होती।
आधे तोले घी के साथ पका केला खाने से धातु विकार और शहद के साथ खाने से पीलिया दूर हो जाता है। सूखी खांसी दूर हो जाती है। केले में वाजीकरण के गुण होते हैं।
केले आंतों में ऐसे जीवाणुओं को उत्पन्न करते हैं और उन्हें शक्तिशाली बना देते हैं जो रोगों के कीटाणुओं को समाप्त कर देते हैं।
केले में पाये जाने वाला पोटेशियम मानसिक तनाव को कम करता है। केले में विटामिन बी पाया जाता है, जो पथरी निर्माण होने से रोकता है।

संतरा

संतरे का रस सुपाच्य होता है। पाचन तंत्रों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। बदहजमी दूर होती है, पाचन क्रिया में सुधार होता है।
संतरे के रस से मस्तिष्क और हृदय को शक्ति प्राप्त होती है। रक्त के विकार नष्ट होते हैं और रक्त को पौष्टिकता मिलती है। बुखार में संतरे का रस बहुत ही लाभकारी सिद्ध होता है। यह शरीर के तापमान को बढ़ने से रोकता है तथा शरीर को शक्ति प्रदान करता है। विशेष रूप से इन्फ्लुएंजा को दूर करने में संतरे का रस बहुत ही लाभकारी होता है। उच्च रक्तचाप के रोगियों को अगर नियमित रूप से कुछ दिनों तक संतरे का रस पिलाया जाए तो उसे इस रोग से मुक्ति मिल जाती है और रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
संतरे का रस आमाशय में पहुंचने के बाद थोड़ी देर में ही पच जाता है और फिर सरलता से रक्त में सम्मिलित होता है। शारीरिक और मानसिक थकान दूर करने में संतरे का रस बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध होता है। यह मूत्राशय के विकारों को नष्ट कर देता है। पेशाब की जलन, गर्मी और पीलेपन को नष्ट कर मूत्राशय को शीतलता प्रदान करता है।
संतरे के रस में पोषक और उत्तेजक तत्त्व होते हैं। अगर सुबह बिना कुछ खाए और रात को भोजन करने के बाद एक-एक संतरा खाया जाए या रस पिया जाए तो शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न होती है।
रोग निरोधक (इम्यून पावर) शक्ति के लिए नारंगी, संतरा का रस लें।

फालसा

रसाहार में फालसे के रस का ग्रीष्म काल में अत्यधिक महत्त्व है। फालसे का रस ग्रीष्म ऋतु में जहां शीतलता प्रदान करता है वहीं शक्ति भी प्रदान करता है।
फालसा दाह, पित्त, प्यास, गर्मी और वायु का नाश करता है। अगर दस्त हो रहे हों तो फालसे मल को गाढ़ा बना देते हैं और पेट साफ होने में सहायक सिद्ध होते हैं।
गर्मी के मौसम में अगर किसी को ज्वर हो जाए तो उसे फालसों का रस देना चाहिए। इससे ज्वर की तीव्रता ही कम नहीं होती ज्वर भी समाप्त हो जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार फालसा एक उत्तम टॉनिक है इसमें सर्वाधिक विटामिन ‘सी’ पाया जाता है। इसमें अन्य विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। फालसों के रस में पानी मिलाकर पीने से व्रण रोग शांत हो जाता है। अगर उसमें थोड़ी-सी शक्कर और एक चुटकी सोंठ मिला ली जाए तो पित्त प्रकोप भी शांत हो जाता है। इस शर्बत के पीने से हृदय की दुर्बलता दूर होती है।
पके फालसे शरीर को ह्रïष्ट-पुष्ट और शक्तिशाली बनाते हैं। फालसे रक्त, पित्त और हृदय रोग को नष्ट करते हैं।
पके फालसों के खाने से सीने में अटका कफ पतला होकर निकल जाता है जिससे दमा के रोगियों को बहुत लाभ पहुंचता है।
फालसे के रस से शरीर के समस्त अंगों की गर्मी स्थायी रूप से शांत हो जाती है। फालसे का शर्बत गर्मियों में सर्वाधिक शक्ति और वीर्यवर्धक टॉनिक सिद्ध होता है।

गाजर

गाजर का रस शक्तिवर्धक तो होता ही है। इसके सेवन से आंखों को अत्यधिक लाभ पहुंचता है।
मिरगी रोग में गाजर का रस लें।

तरबूज

ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखता है अत: तरबूज का रस पिएं। सुबह तरबूज का रस निकाल कर उसमें काला नमक डालकर पिएं, इससे सरदर्द ,उल्टी परमानेंट ठीक हो जाती है। किडनी का स्टोन गलाकर बाहर निकालता है। किडनी की कोई प्रॉब्लम नहीं होने पाएगी। गर्मी के बुखार से दूर रखेगा।
हमें अन्य जिन फलों से रस प्राप्त होता है वे हैं बेल, लीची, शहतूत। इन फलों का रस शरीर को शीतलता, शक्ति और ओज प्रदान करता है। बेल के फल में विटामिनों की भरमार होती है। इसलिए बेल का शर्बत शरीर को अधिक शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करता है।

इन फलों और सब्जियों के रसों के द्वारा हम अपने संपूर्ण शरीर का शुद्धिकरण कर सकते हैं। शरीर के सभी अंगों में से विजातीय तत्त्व निकल जाते हैं। नया रक्त बनता है जिससे हृदय और मस्तिष्क को नई शक्ति प्राप्त होती है।

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