नवजात के साथ बनाएं मजबूत रिश्ता: Relationship with Newborn
Relationship with Newborn

Relationship with Newborn: पेरेंटिंग का मतलब सिर्फ बड़े होते बच्चे की देखभाल ही नहीं होता, बल्कि इसकी सही शुरुआत होती है नवजात शिशु के साथ बॉन्डिंग से। जानिए कैसे-

घर में शिशु की किलकारियां गूंजने के साथ ही खुशियों का आगमन हो जाता है और इन्हीं खुशियों के साथ ही नए-नए बने माता-पिता पर शिशु की देखभाल की जिम्मेदारी भी आ जाती है। कई बार नवजात शिशु की उचित देखभाल करने के दबाव के चलते माता-पिता शिशु के साथ अपने संबंध और लगाव को अच्छे से विकसित नहीं कर पाते हैं। जिस कारण शिशु का पालन-पोषण एक मशीनी और उबाऊ प्रक्रिया लगने लगती है और वे इस खास समय का आनंद भी नहीं उठा पाते हैं। हर समय उन्हें इस बात की टेंशन रहती है कि कहीं उनसे कुछ ऐसा ना हो जाए कि बच्चे को नुकसान पहुंचे। विशेषज्ञों की राय मानें तो शिशु का विकास तब और भी बेहतर होता है, जब माता-पिता का अपने शिशु के साथ शारीरिक व भावनात्मक लगाव अच्छे से विकसित हो। यह जुड़ाव एक दिन में नहीं होता है, बल्कि समय के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है। साथ ही इस जुड़ाव को विकसित करने के लिए माता-पिता को छोटे-छोटे प्रयास करने होते हैं, जो इस प्रकार हैं-

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विशेषज्ञों के अनुसार माता का लगाव नवजात शिशुु के साथ तभी जुड़ जाता है, जब से वह उसके गर्भ में आता है। गर्भावस्था में माता शिशु से बात करना शुरू कर देती है, वहीं शिशु भी एक समय बाद गर्भ में अपनी कुछ क्रियाओं से उत्तर देना शुरू कर देता है। जैसे लात मारना इत्यादि। अत: नवजात के बाहरी दुनिया में आने पर एक मां को अपने लगाव को शिशु के साथ विकसित करने के लिए उतना अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता है, जितना कि एक पिता को करना पड़ता है, क्योंकि पिता, शिशु के बाहरी दुनिया में आने पर ही उससे कुछ लगाव महसूस कर पाता है, किंतु सच तो यह है कि शिशु के साथ बॉन्डिंग को विकसित करने के लिए परवरिश के शुरुआती दिनों में प्रयास करने की आवश्यकता दोनों को ही होती है।

नवजात के बाहरी दुनिया में आते ही मां शिशु को अपने होने का एहसास कराती है, उसे स्तनपान करवाकर, क्योंकि जन्म लेने के बाद ही शिशु को भूख मिटाने के लिए सबसे पहले मां के दूध की आवश्यकता होती है और इसी के जरिए बाहरी दुनिया में शिशु की अपनी मां से जुड़ाव की सबसे पहली शुुरुआत होती है।

हम अक्सर यह मान लेते हैं कि शिशु माता-पिता के टच को पहचान नहीं सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। शिशु बाहरी दुनिया में आने के बाद कुछ ही महीनों में माता-पिता के स्पर्श को महसूस कर अंतर समझने लगता है, इसलिए माता-पिता शिशु को गले लगाकर, उसे चूमकर, उसकी पीठ सहलाकर, गालों को शिशु के गाल से स्पर्श करें, क्योंकि स्पर्श एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा माता-पिता शिशु के साथ अपने जुड़ाव को अधिक मजबूत बना सकते हैं।

अपने शिशु के साथ लगाव को बढ़ाना है तो माता-पिता को चाहिए कि वह शिशु की आंखों में देखकर उससे बात करें। यह जरूरी नहीं है कि बात केवल बोलकर की जाए। आप मुंह से तरह-तरह की आवाजें निकालें, तरह-तरह के मुंह बनाकर शिशु को दिखाएं, गाना सुनाएं, उसे लोरी गाकर सुनाएं। आपकी उन आवाजों और हरकतों पर शिशु उत्तेजित होकर, आवाजें निकालकर अपने तरीके से जवाब देगा, क्योंकि शिशु बाहरी दुनिया में आने के थोड़े समय बाद से ही अपनी इंद्रियों के माध्यम से सब महसूस करने लगता है। तभी तो प्रतिदिन ऐसा करने पर निश्चित ही माता-पिता का भावनात्मक लगाव शिशु के साथ बढ़ता ही जाता है।

अगर आप भी चाहते हैं कि शिशु के साथ आपका रिश्ता खूबसूरत तरीके से विकसित हो तो माता-पिता को चाहिए कि वह शिशु के अधिकतर काम स्वयं करें, ना कि किसी आया से कराएं। जैसे उनका डायपर बदलना, मालिश करना, नहलाना व कपड़े पहनाना इत्यादि। ऐसा करने से आप शिशु के करीब ही नहीं आ रहे होते हैं, बल्कि शिशु भी आपके करीब आ रहा होता है।

वैसे तो शिशुु सबसे अधिक सुरक्षित अपनी माता की गोद में महसूस करता है, लेकिन यह सुरक्षा का एहसास दुनिया में आते ही नहीं होने लगता है। वक्त के साथ धीरे-धीरे होना शुरू होता है। आपका शिशुु भी अपके साथ ऐसा ही सुरक्षित करे, इसके लिए माता-पिता को चाहिए कि वे अपने शिशु को गोद में झुलाए, उसके पास ही बिस्तर पर सोए। नींद में उसे बार-बार थपथपाते रहें, उसके रोने पर तुरंत उसे प्यार से गोद में उठाएं, भूख लगने पर तुरंत उसे दूध पिलाएं।
ये छोटे-छोटे क्रियाकलाप आपको शिशु के नजदीक लाने लगते हैं और वह आपके आस-पास रहने पर खुद को सुरक्षित महसूस भी करता है।

नवजात के साथ माता का ही लगाव हो ऐसा नहीं है, पिता को भी चाहिए कि वह भी शिशु के साथ अपनी बॉडिंग को मजबूत बनाएं। उसके लिए पिता को माता की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा समय लगेगा, क्योंकि पिता हर समय शिशु के साथ मौजूद नहीं रह सकते हैं। पिता को चाहिए कि ऑफिस से लौटने के बाद शिशु के साथ समय अवश्य बिताएं। उसके साथ खेलें, गुदगुदी करें। उसके साथ हंसे, रोएं। खुद भी बच्चा बनकर उसकी हरकतों को दोहराएं। गोद में झुलाएं और भूख लगने पर बोतल से दूध भी पिलाएं। उसके डायपर बदले, छुट्टी के दिन उसे नहलाए, मालिश करें। साथ ही उससे अजीबो-गरीब आवाज निकालकर बातें भी करें। ऐसा करने पर शिशुु माता के साथ-साथ पिता के करीब भी आने लगेगा।