जब आप का बच्चा इस दुनिया में आता है तो आप की जिंदगी में नई जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं। जहां आप पहले अपने वीकेंड्स पर फिल्म देखने या कहीं घूमने जाते थे वहीं अब आप थकावट के कारण उन दिनों सोना पसंद करते हैं। परंतु आप के बच्चे की जिम्मेदारियां भी आवश्यक होती हैं। आप अपनी तरफ से उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते होंगे। इसलिए आप को अटैचमेंट पेरेंटिंग के बारे में भी अवश्य जान लेना चाहिए। आइए जानते हैं आखिर क्या होती है अटैचमेंट पेरेंटिंग।

क्या है अटैचमेंट पेरेंटिंग?

अटैचमेंट पेरेंटिंग से अभिप्राय है कि जब बच्चे के माता पिता अपने बच्चे से उसके भविष्य तक उससे भावनात्मक रूप से एक अटूट बंधन में बंधना चाहते हों। ऐसी परवरिश को ही अटैचमेंट पेरेंटिंग कहा जाता है। इसके माता पिता का व बच्चे का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता है। इस प्रकार की परवरिश में कुछ टूल्स का प्रयोग किया जाता है जो माता पिता का अपने बच्चे के प्रति उत्तरदायित्व बढ़ा दे। 

अटैचमेंट पेरेंटिंग के सिद्धांत 

जन्म से बॉन्डिंग: इस परवरिश के अनुसार मां व बच्चे में बच्चे का जन्म होने के बाद ही एक बहुत गहरा लगाव हो जाता है जिसे इनिशल यानी पहली बॉन्डिंग कहा जाता है और यह लगभग 6 हफ्तों तक चलती है। इसमें बच्चे के साथ माता पिता का स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना बहुत ही जरूरी है और इस बॉन्डिंग को मजबूत बनाने के लिए निम्न टूल्स का प्रयोग किया जाता है। 

ब्रेस्ट फीडिंग: मां का दूध पिलाना अटैचमेंट पेरेंटिंग के अनुसार बहुत आवश्यक है। इससे बच्चे को उपयुक्त पोषण मिलता है और बच्चे को इससे है बढ़ने में मदद मिलती है। इससे मां के अंदर भी ऐसे हार्मोन्स का उत्पादन होता है जिससे उसका अपने बच्चे के प्रति लगाव और भी अधिक बढ़ता है। 

बेबी वियरिंग: बेबी वियरींग से अभिप्राय है मां व बच्चे के बीच शारीरिक नजदीकियां होना। इससे मां व बच्चे में एक विश्वास बनता है। इससे मां को बच्चे को क्या चाहिए इसके बारे में भी तुरन्त पता लग जाता है और बच्चे को भी अपने माता पिता के बारे में पता चलता है।

बेड शेयरिंग: यदि आप बच्चे को अपने पास ही सुलाएंगे तो बच्चे को रात में होने वाली एंजाइटी कम होगी व मां के लिए भी उसे दूध पिलाना आसान रहेगा। हालांकि इसमें बच्चे को सफोकेशन, ऑक्सीजन की कमी आदि समस्याएं भी हो सकती हैं। 

बच्चे का रोना: जब बच्चा रोता है तो उसे इस चीज का संकेत माना जाता है कि अब उसे किसी चीज की जरूरत है। यदि आप अटैचमेंट पेरेंटिंग के सिद्धांतो का पालन करेंगे तो आप को बच्चे की आवश्यकता को समझने में बहुत ही कम समय लगेगा और आप उसे बहुत जल्दी चुप करवा देंगे। 

अटैचमेंट पेरेंटिंग 

  • एक साल से नीचे के बच्चों के लिए
  • इसके अनुसार मां व बच्चे में स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट व बॉन्डिंग जन्म लेने के बाद ही शुरू हो जाती है। 
  • बच्चे के जन्म लेने के तुरन्त बाद उसे मां का दूध पिलाना चाहिए। 
  • माता व पिता को अपना बच्चा गोद में लेना चाहिए और वह भी जन्म लेने के कुछ ही क्षणों के बाद। 
  • बच्चे के रोने को समझना चाहिए।

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