Overview:सांस फूलना एक जैसा, लेकिन बीमारी अलग: जानिए अस्थमा और सीओपीडी को पहचानने के सही संकेत
हालांकि अस्थमा और सीओपीडी के लक्षण कई बार मिलते-जुलते हैं, लेकिन उनकी वजह, गंभीरता और इलाज का तरीका पूरी तरह अलग है। अस्थमा को अगर शुरुआत में पहचाना जाए तो यह पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है, जबकि सीओपीडी धीरे-धीरे फेफड़ों की कार्यक्षमता को घटाती जाती है। डॉ. विकास मित्तल का कहना है कि शुरुआती पहचान और सही इलाज ही इन दोनों बीमारियों से बचाव की सबसे बड़ी कुंजी है।
Difference between Asthma and COPD: अक्सर लोग अस्थमा (Asthma) और सीओपीडी (COPD) को एक जैसी सांस की बीमारी समझ लेते हैं, जबकि दोनों की वजह, लक्षण और इलाज एक-दूसरे से काफी अलग हैं। दोनों ही फेफड़ों की बीमारियां हैं जिनमें सांस लेने में दिक्कत, खांसी और सीने में जकड़न जैसे लक्षण दिखते हैं, लेकिन उनकी प्रकृति और गंभीरता अलग होती है।
सीके बिड़ला हॉस्पिटल, दिल्ली के डॉ. विकास मित्तल (Director – Pulmonologist) बताते हैं कि अगर शुरुआत में ही इन दोनों बीमारियों के फर्क को पहचाना जाए, तो सही इलाज समय पर शुरू किया जा सकता है और मरीज की जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है। आइए जानते हैं अस्थमा और सीओपीडी के बीच क्या हैं असली अंतर।
1. उम्र और शुरुआत में फर्क

अस्थमा आमतौर पर बचपन या युवावस्था में शुरू होता है, जबकि सीओपीडी (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) 40 साल की उम्र के बाद दिखाई देती है।
अस्थमा अक्सर एलर्जी, धूल, धुआं या पराग कणों की वजह से ट्रिगर होता है। वहीं, सीओपीडी ज़्यादातर लंबे समय तक सिगरेट पीने, वायु प्रदूषण या हानिकारक रसायनों के संपर्क में रहने से होती है।
2. सांस की रुकावट — वापस आती है या नहीं
दोनों बीमारियों में सांस लेने की नलियों (airways) में रुकावट होती है, लेकिन फर्क यह है कि —
अस्थमा में यह रुकावट वापस सुधारी जा सकती है, यानी दवा या आराम से सांस दोबारा सामान्य हो सकती है।
वहीं, सीओपीडी में यह रुकावट स्थायी और बढ़ती हुई होती है। समय के साथ फेफड़ों की क्षमता कम होती जाती है, चाहे इलाज जारी क्यों न हो।
3. लक्षणों का पैटर्न और बीमारी का कोर्स
अस्थमा के लक्षण — जैसे सीने में जकड़न, खांसी या सांस फूलना — आमतौर पर एपिसोडिक यानी बीच-बीच में आते-जाते रहते हैं। कभी मौसम बदलने पर या एलर्जी से अचानक ट्रिगर हो जाते हैं।
दूसरी ओर, सीओपीडी के लक्षण लगातार बने रहते हैं। मरीज को सालभर सांस फूलना, कमजोरी और खांसी की शिकायत रहती है, जो समय के साथ बढ़ती जाती है और जीवन की गुणवत्ता पर असर डालती है।
