Overview:क्यों महिलाएँ फेफड़ों की बीमारियों से ज़्यादा प्रभावित होती हैं
फेफड़ों की बीमारियाँ सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं हैं। रिसर्च बताती है कि महिलाओं में अस्थमा, COPD और लंग कैंसर का खतरा अधिक होता है। जैविक अंतर, हार्मोनल बदलाव और धुएँ/प्रदूषण का एक्सपोज़र उन्हें ज़्यादा संवेदनशील बनाता है। समस्या यह है कि महिलाएँ लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर देती हैं, जिससे बीमारी देर से पकड़ में आती है। समय पर चेकअप, बेहतर कुकिंग सॉल्यूशन्स और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर इस जेंडर गैप को कम किया जा सकता है।
Lungs Diseases among Women: अक्सर हम सोचते हैं कि फेफड़ों की बीमारियाँ ज़्यादातर पुरुषों में होती हैं क्योंकि वे बाहर ज़्यादा रहते हैं और धूम्रपान भी ज़्यादा करते हैं। लेकिन रिसर्च बताती है कि कई फेफड़ों की बीमारियाँ ऐसी हैं जो महिलाओं में ज़्यादा पाई जाती हैं, और कई बार उनका असर भी महिलाओं में ज़्यादा गंभीर होता है। अब सवाल ये है कि ऐसा क्यों होता है? असल में तीन बड़ी वजहें हैं। पहली, जैविक अंतर (biological difference) – महिलाओं के फेफड़े और एयरवे (साँस की नलियाँ) आकार में छोटे और पतले होते हैं, जिसकी वजह से वे प्रदूषण, धुआँ और जहरीली गैसों से जल्दी प्रभावित हो जाती हैं।
मिथक बनाम सच्चाई: क्या फेफड़ों की बीमारियाँ सिर्फ पुरुषों में होती हैं?
अक्सर यह मान लिया जाता है कि फेफड़ों की बीमारियाँ ज़्यादातर पुरुषों में होती हैं क्योंकि वे बाहर ज़्यादा रहते हैं और धूम्रपान करते हैं। लेकिन रिसर्च बताती है कि कई फेफड़ों की बीमारियाँ महिलाओं में अधिक पाई जाती हैं और कई बार उनका असर भी अधिक गंभीर होता है।
तीन मुख्य वजहें: क्यों महिलाएं अधिक संवेदनशील हैं?
- जैविक अंतर (Biological difference): महिलाओं के फेफड़े और साँस की नलियाँ (airways) छोटे और पतले होते हैं, जो प्रदूषण और जहरीली गैसों से जल्दी प्रभावित होते हैं।
हॉर्मोनल अंतर: एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन महिलाओं की नलियों को अधिक संवेदनशील और सूजन के प्रति prone बना देते हैं। यही वजह है कि प्यूबर्टी के बाद अस्थमा महिलाओं में पुरुषों की तुलना में ज़्यादा पाया जाता है।
एक्सपोज़र पैटर्न: भारत में कई महिलाएँ अब भी चूल्हे के धुएँ और खराब वेंटिलेशन वाले किचन में लंबे समय तक रहती हैं, जिससे उनके फेफड़े ज़्यादा प्रभावित होते हैं।
कौन-कौन सी बीमारियां होती हैं ज़्यादा

- अस्थमा (Asthma): जो प्यूबर्टी के बाद बढ़ता है और पीरियड्स या प्रेग्नेंसी में बिगड़ सकता है।
COPD: लंबे समय तक चूल्हे के धुएँ या इंडोर पॉल्यूशन में रहने वाली महिलाओं में आम।
लंग कैंसर: न सिर्फ स्मोकिंग करने वाली बल्कि नॉन-स्मोकिंग महिलाओं में भी बढ़ रहा है।
Interstitial Lung Diseases: जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस-लिंक्ड ILD और स्क्लेरोडर्मा-लिंक्ड ILD, महिलाओं में ज़्यादा पाए जाते हैं।
देरी से डायग्नोसिस क्यों होता है
महिलाएँ अक्सर अपनी सेहत को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। खाँसी या साँस फूलने को मौसम बदलने या कमजोरी समझकर टाल देती हैं। इसका नतीजा यह होता है कि बीमारी देर से पकड़ में आती है और गंभीर रूप ले लेती है।
समाधान: कैसे करें बचाव और जागरूकता
- महिलाओं को समय-समय पर चेकअप कराने की ज़रूरत है, खासकर अगर वे धुएँ या सेकेंड हैंड स्मोक के संपर्क में रहती हैं।
बेहतर कुकिंग सॉल्यूशन्स (LPG, इलेक्ट्रिक स्टोव) और वेंटिलेशन (चिमनी, खिड़की) उपलब्ध कराना ज़रूरी है।
टीकाकरण, व्यायाम और संतुलित आहार से भी फेफड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है।
निष्कर्ष: - फेफड़ों की बीमारियों में साफ़ जेंडर गैप है। अगर महिलाओं में बीमारी को जल्दी पहचान लिया जाए और सही इलाज समय पर शुरू किया जाए, तो उनकी ज़िंदगी की गुणवत्ता बेहतर हो सकती है।
Inputs by: डॉ. विकास मित्तल, डायरेक्टर – पल्मोनोलॉजिस्ट, सीके बिरला अस्पताल®, दिल्ली
