Overview:दिल्ली का दिल ‘सीपी’ — मगर क्या जानते हैं इसके नाम के पीछे छिपा असली राज़
कनॉट प्लेस, जिसे हम रोज़ ‘सीपी’ कहते हैं, सिर्फ एक मार्केट नहीं बल्कि इतिहास का हिस्सा है। इसका नाम ब्रिटिश राजकुमार ड्यूक ऑफ कनॉट की याद में रखा गया था। नई दिल्ली के निर्माण के दौरान यह नाम चुना गया और आज भी दिल्लीवाले इसे ‘सीपी’ ही कहते हैं। इस रोचक कहानी को जानकर आपको दिल्ली की शाही और ब्रिटिश विरासत का अंदाजा लगेगा।
Connaught Place History: दिल्ली के बीचों-बीच बसा कनॉट प्लेस यानी “सीपी”, हर किसी के लिए एक फेवरेट जगह है — चाहे शॉपिंग करनी हो, घूमना हो या बस दोस्तों के साथ टाइम पास। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका नाम “कनॉट प्लेस” क्यों है? ये नाम सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, और ज्यादातर दिल्ली वालों को इसकी असली वजह पता भी नहीं।
असल में, इस नाम के पीछे एक अंग्रेज़ी राजघराने की कहानी छिपी है। ये नाम किसी भारतीय राजा या जगह से नहीं, बल्कि ब्रिटेन के एक शाही सदस्य “ड्यूक ऑफ कनॉट” के नाम पर रखा गया था। जब ब्रिटिश राज में नई दिल्ली का निर्माण हो रहा था, तो इस जगह को उनके सम्मान में “कनॉट प्लेस” कहा गया।
दिल्ली में रहने वाले ज्यादातर लोग यहां रोज़ आते हैं, लेकिन इसके पीछे की यह दिलचस्प कहानी बहुत कम लोग जानते हैं। चलिए, आज जानते हैं उस छिपे हुए राज के बारे में — कि कैसे बना “सीपी” का नाम और इसमें क्या खास बात है।
ड्यूक ऑफ कनॉट के नाम पर पड़ा सीपी का नाम

कनॉट प्लेस का नाम किसी भारतीय नहीं, बल्कि ब्रिटिश राजकुमार Prince Arthur, यानी Duke of Connaught and Strathearn के नाम पर रखा गया था। वो ब्रिटेन के राजा Queen Victoria के तीसरे बेटे थे और 1921 में भारत आए थे। जब नई दिल्ली का विकास हो रहा था, तो ब्रिटिश सरकार ने उनके सम्मान में इस जगह का नाम “Connaught Place” रख दिया। उस समय ब्रिटिश राज में शाही नामों को बहुत अहमियत दी जाती थी। शायद इसी वजह से आज तक यह नाम वैसा ही बना हुआ है, जैसा सौ साल पहले था।
ब्रिटिश दौर की सोच—भारतीय नहीं, विदेशी नाम

उस वक्त यानी 1920-30 के बीच, अंग्रेज़ नई दिल्ली को एक “शाही राजधानी” के रूप में तैयार कर रहे थे। उनका मकसद था — एक ऐसा शहर बनाना जो उनकी ताकत और रॉयल लाइफ़स्टाइल दिखाए। इसलिए जब इस मार्केट का निर्माण हुआ, तो इसे किसी भारतीय नाम से नहीं, बल्कि ब्रिटिश राजघराने से जोड़ा गया। “कनॉट प्लेस” नाम सुनने में भले ही थोड़ा अजनबी लगता हो, लेकिन उस समय के लिए यह शाही और एलिट नाम माना जाता था। इसी सोच ने दिल्ली के दिल में ब्रिटिश पहचान छोड़ दी।
कैसे बना कनॉट प्लेस—डिजाइन और निर्माण

कनॉट प्लेस का निर्माण 1929 के आसपास शुरू हुआ था। इसे ब्रिटिश आर्किटेक्ट Robert Tor Russell ने डिजाइन किया था। उन्होंने इसे इंग्लैंड के Royal Crescent नामक प्रसिद्ध जगह से प्रेरित होकर बनाया। गोल-गोल बनी ये इमारतें आज भी वैसी ही दिखती हैं। पहले यहां सिर्फ कुछ दुकाने थीं, लेकिन धीरे-धीरे ये दिल्ली की सबसे फेमस मार्केट बन गई। कहा जाता है कि यहां का हर ब्लॉक अंग्रेजी अक्षरों में बना है — A से लेकर N तक। हर ब्लॉक की अपनी एक कहानी है।
नाम बदलने की बातें—लेकिन सीपी बना रहा सीपी
आज आप मेट्रो से उतरते हैं तो स्टेशन का नाम “राजीव चौक” पढ़ते हैं, लेकिन लोगों की जुबान पर आज भी “सीपी” ही है। दरअसल, 1990 के दशक में इसका नाम बदलने की कोशिश हुई, पर दिल्ली वालों ने इस पुराने नाम को ही अपना लिया। ये जगह सिर्फ एक मार्केट नहीं, बल्कि यादों और इतिहास से भरी हुई है। इसीलिए चाहे कोई भी आधिकारिक नाम रख दिया जाए, दिल्लीवालों के लिए ये हमेशा “कनॉट प्लेस” ही रहेगा।
सीपी आज भी खास—सिर्फ नाम नहीं, एक अहसास
अगर आप कभी सीपी जाएं, तो सिर्फ दुकानों या कैफ़े पर ध्यान मत दें — थोड़ा ऊपर देखकर उसकी पुरानी बिल्डिंग्स और उनकी आर्किटेक्चर को भी महसूस करें। सोचिए, सौ साल पहले यही गलियाँ अंग्रेज़ अफसरों के लिए बनी थीं, और आज ये दिल्ली की रौनक हैं। इस नाम के पीछे सिर्फ एक इतिहास नहीं, बल्कि शहर की पहचान छिपी है। इसलिए अगली बार जब कोई आपसे पूछे “कनॉट प्लेस का नाम क्यों पड़ा?”, तो आप मुस्कुराकर इसका जवाब दे पाएंगे।
