गुर्दे बेकार और अतिरिक्त तरल पदार्थों को शरीर से बाहर निकाल कर शरीर को साफ रखते हैं तथा रक्त में नमक, खनिज पदार्थों और अम्ल का संतुलन बनाये रखते हैं। ये विटामिन डी एवं अस्थि मेटाबोलिज्म के लिये जरूरी है और हमारे रक्तचाप को ठीक रखते हैं।

जब गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं तब हाथों और पैरों में सूजन होती है। इसके अलावा रक्तचाप में बढ़ोतरी, हड्डियों में दर्द, कमजोरी, मिचली और उल्टी महसूस होती है और रोग के बढ़ जाने पर सांस लेने में दिक्कत होती है, उनींदापन महसूस होता है और यहां तक कि कोमा और मौत का खतरा भी हो सकता है। इन संकेतों और लक्षणों में कई इतने अस्पष्ट होते हैं और ये इतनी धीमी गति से बढ़ते हैं कि मरीज अक्सर इनकी तरफ ध्यान नहीं दे पाते और सही समय पर समुचित इलाज नहीं हो पाता है।

गुर्दे के खराब होने के प्रकार

गुर्दे की तीव्र विफलता – गुर्दे अचानक काम करना बंद कर देते हैं। गुर्दे की इस तरह की खराबी का आम तौर पर उपचार हो सकता है। इस तरह की खराबी अक्सर संक्रमण एवं दर्द निवारक या एंटीबायोटिक दवाइयों के दुष्प्रभावों के कारण होती है।

तेजी से रीनल संबंधी खराबी – इसमें बीमारी बहुत तेजी से बढ़ती है। मरीज के मूत्र में प्रोटीन और लाल रक्त कणिकाओं का रिसाव होता है, उच्च रक्तचाप होता है, चेहरे और पैरों में सूजन हो सकती है, त्वचा पर लाल चित्ते उभर सकते हैं और जोड़ों में दर्द हो सकता है। इसकी जांच के लिये किडनी की बायोप्सी की जाती है। अगर एक-दो माह के भीतर समुचित इलाज हो, तब किडनी में खराबी दूर हो जाती है। अगर रोग की सही समय पर पहचान नहीं हो पाती है और सही समय पर समुचित इलाज नहीं हो पाता है तो इसकी परिणति सीआरएफ के रूप में होती है।

क्रोनिक रीनल फेल्योर – गुर्दे धीरे- धीरे खराब होते हैं और एक समय के बाद वे सिकुड़ जाते हैं और उनका आकार छोटा हो जाता है। मरीज बहुत देर से चिकित्सक के पास आता है और तब तक किडनी की स्थायी क्षति हो चुकी होती है। हालांकि क्रोनिक रीनल फेल्योर के मरीजों को उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये। आज क्रोनिक रीनल फेल्योर के बावजूद करीब-करीब सामान्य जीवन संभव हो गया है।

गुर्दे की गंभीर खराबी के कारण

  • गुर्दे की बीमारी के सबसे आम कारण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, और धमनियों का सख्त होना है जिससे गुर्दे में रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है, यह अक्सर धूम्रपान के बाद होता है।
  • कुछ तरह के किडनी रोग किडनी में सूजन तथा आरपीआरएफ के इलाज नहीं होने के कारण होते हैं।
  • अन्य किडनी रोगों में किडनी के आकार एवं स्वरूप या किडनी के अंदुरूनी कामकाज के साथ हस्तक्षेप (मेटाबोलिक विकार) सहित जन्मजात समस्याएं शामिल हैं।
  • किडनी के खराब होने के अन्य सामान्य कारणों में दर्दनिवारक दवाइयों या एंटीबायोटिक दवाइयों के दुरुपयोग एवं उनका लंबे समय तक सेवन शामिल है जो किडनी के ऊतकों के लिये जहरीली होती हैं।
  • स्टोन या प्रोस्टेट जैसे कारणों से किडनी को साफ करने वाली नलियों में रुकावट भी सीआरपी का कारण बन सकते हैं।

गुर्दे के खराब होने के लक्षण:

  • उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन)
  • आंख, हाथ और पैरों में सूजन
  • रक्तयुक्त, गंदा या चाय के रंग का मूत्र
  • मूत्र में अत्यधिक झाग
  • रात में बार-बार मूत्र त्याग करना
  • कम मूत्र आना या मूत्र त्याग में कठिनाई
  • थकान
  • भूख या वजन में कमी
  • मूत्र में रक्त
  • मतली और उल्टी
  • सांस में दुर्गंध और मुंह में धातु के स्वाद का अनुभव होना

रोग की पहचान –

  • गुर्दे के स्वास्थ्य की स्थिति से संबंधित समस्याओं का पता लगाने के लिए चिकित्सक रोगी का कई प्रकार का परीक्षण कराते हैं जिन्हें रीनल फंक्शन टेस्ट कहा जाता है। इसके तहत क्रेटिनीन क्लीयरेंस, सीरम क्रेटिनीन, सीरम यूरिया नाइट्रोजन या ब्लड यूरिया नाइट्रोजन (बीयूएन), सीरम बाईकार्ब लेवल, सीरम कैल्शियम, फास्फोरस, पैराथोर्मोन लेवल, रीनल कंसेन्ट्रेशन टेस्ट और यूरिनालाइसिस शामिल है।
  • यूरिनालाइसिस प्रोटीन, शुगर, रक्त और कीटोन (यह तब बनता है जब शरीर वसा को तोड़ता है) की जाँच करता है। इसके लिए डिपस्टिक से मूत्र की जांच की जाती है।डिपस्टिक प्लास्टिक का एक पतला टुकड़ा होता है जिसके ऊपर रसायन लगा होता है और यह मूत्र में पदार्थों के संपर्क में आने पर प्रतिक्रिया करता है।
  • अल्ट्रासाउंड, इंट्रावीनस पायलोग्राफी, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे परीक्षण से गुर्दे के आकार और संरचना और इसके ड्रेनेज प्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है। रीनल डॉप्लर हमें गुर्दे में रक्त की आपूर्ति के बारे में बताता है।
  • डीएमएसए जैसे न्यूक्लियर स्कैन से हमें गुर्दे में किसी निशान के बारे में जानकारी मिलती है और डीटीपीए स्कैन से हमें गुर्दे के कार्य करने की क्षमता के बारे में पता चलता है।

गुर्दा रोग की रोकथाम-

खूद को हाइड्रेट करें – आपका मूत्र स्ट्रा के रंग का या पीला होना चाहिए। रोजाना डेढ़ से दो लीटर पानी का सेवन करें। पर्याप्त मात्रा में तरल का सेवन गुर्दा को शरीर से सोडियम, यूरिया और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है जिससे गुर्दे की बीमारियों के विकास का खतरा काफी कम हो जाता है। हालांकि जब गुर्दा खराब हो जाता है और सूजन हो जाता है तो तरल पदार्थ का सेवन कम से कम किया जाना चाहिए।

स्वास्थ्यवर्धक भोजन का सेवन करें – जब र्दे कमजोर हो जाते हैं तो यूरेमिक टॉक्सिन के स्तर को कम करने के लिए प्रोटीन का सेवन कम कर देना चाहिए। प्रोटीन गैर शाकाहारी भोजन, पनीर, दालों, फलियां और सोयाबीन में पाया जाता है।

नमक का सेवन कम करें – आप रोजाना 5-6 ग्राम (एक चम्मच के आसपास) नमक का सेवन करें। संसाधित और रेस्तरां के भोजन की मात्रा को कम करने की कोशिश करें और भोजन में अलग से नमक नहीं डालें।

धूम्रपान से परहेज करें – धूम्रपान गुर्दों में रक्त के प्रवाह को धीमा कर देता है। जब गुर्दे में कम रक्त पहुंचता है, तो यह गुर्दे के सही ढंग से कार्य करने की क्षमता को बाधित करता है। धूम्रपान गुर्दे के कैंसर के खतरे को भी 50 प्रतिषत तक बढ़ा देता है।

शराब का सेवन कम करें – बहुत ज्यादा शराब पीने का मतलब है कि आपके गुर्दे को आपके शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए अधिक कार्य करना पड़ेगा। पुरुष को एक दिन में दो छोटे पेय और महिला को एक छोटे पेय तक ही सेवन करने की कोशिश करनी चाहिए।

अपने रक्तचाप पर निगरानी रखें – कई लोगों को लगता है कि रक्तचाप सिर्फ दिल के लिए ही महत्वपूर्ण है जबकि उच्च रक्तचाप गुर्दे की बीमारी का एकमात्र मुख्य संकेत हो सकता है खासकर तब जब यह बहुत ही कम उम्र या बहुत ज्यादा उम्र में होता है। यदि आपका ब्लड प्रेशर अधिक है तो गुर्दे की पूरी जांच कराएं, जीवन शैली में परिवर्तन लाएं, यदि आवश्यक हो तो, अपने रक्तचाप को कम करने के लिए दवा का सेवन करें।

खुद को फिट रखें – अपना आदर्श बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) बनाए रखें। सप्ताह में पांच बार घूमना, साइकिल चलाना या तैराकी जैसे सामान्य तीव्रता वाले व्यायाम कम से कम 30 मिनट तक करें।

खुद दवा लेने से बचें – दर्दनिवारक और एंटीबायोटिक दवाएं गुर्दे को क्षति पहुंचा सकती हैं इसलिए इन एलोपैथिक दवाओं को लेने से बचना चाहिए।

गुर्दे के खराब होने वाले रोगियों के लिए विकल्प

अगर गुर्दे पूरी तरह से खराब हो गए हों तो भी डायलिसिस और गुर्दा प्रत्यारोपण की मदद से रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

हीमोडायलिसिस: इस पद्धति में गुर्दा रोगी का रक्त डायलिसिस मशीन द्वारा साफ कर मरीज को वापस घर भेज दिया जाता है। यह प्रक्रिया एक सप्ताह में 2-3 बार 3-4 घंटे के लिए की जाती है।

सीएपीडी: यह एक तरह की डायलिसिस है जो मशीन की मदद के बिना ही घर पर भी की जा सकती है। इसके तहत एक विशेष द्रव (डायलिसेट) को एक विशेष ट्यूब के माध्यम से पेट के अंदर भेजा जाता है और कुछ देर में यह तरल शरीर की विषाक्त्ता को अवशोषित कर लेता है और तरल पदार्थ को निकाल दिया जाता है।

गुर्दा प्रत्यारोपण: इसके तहत एक उपयुक्त दाता से गुर्दा लेकर रोगी के खराब गुर्दे के स्थान पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जीवन को बनाए रखने के लिए एक गुर्दा ही पर्याप्त होता है इसलिए रोगी और दाता दोनों स्वस्थ जीवन जीते हैं।

(डॉ. जितेंद्र कुमार, प्रमुख, नेफ्रोलॉजी विभाग, एशियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, फरीदाबाद से बातचीत के आधार पर)