दुनियाभर में वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे 2 अप्रैल को मनाया गया। वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 2 अप्रैल के दिन को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस घोषित किया था। इस दिन ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों और वयस्कों के जीवन में सुधार के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि ऑटिज्म, व्यक्ति के विकास में बाधा पहुंचाने वाले प्रमुख कारणों में से एक है।
आखिर है क्या ये ऑटिज्म?
दरअसल ऑटिज्म मस्तिष्क के विकास को बाधित करता है। यह एक प्रकार का न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर है, जो दूसरे लोगों से व्यवहार करने की क्षमता और बातचीत को सीमित कर देता है। यह मस्तिष्क की उस प्रक्रिया को प्रभावित करता है, जिसका कार्य संचार, भाव और शरीर की हलचल को नियंत्रित करना होता है। ऑटिज्म से ग्रसित व्यक्ति बाहरी दुनिया से अनजान अपनी ही दुनिया में खोया रहता है। यह एक ऐसा विकार है, जिसमें रोगी बचपन से ही अपनी एक अलग दुनिया बना लेता है और वह उसी दुनिया में खोया रहता है। ऑटिज्म से ग्रसित बच्चे का मानसिक विकास एक सामान्य बच्चे की तुलना में बहुत ही धीमी गति से होता है।
ऑटिज्म के लक्षण
- ऑटिज्म के पेशेंट को बोलने और सुनने में समस्याएं आती हैं।
- अकेले रहना अधिक पसंद करना।
- अन्य लोगों से खुलकर बात ना कर पाना।
- किसी भी बात में प्रतिक्रिया देने में काफी टाइम लेना।
- कई बच्चों को बहुत ज्यादा डर लगना।
- ऑटिज्म-पेशेंट को मिर्गी के दौरे भी पड़ सकते हैं।
- बात करते समय आई कांटेक्ट न करना।
- सुने-सुनाए व खुद के बनाये शब्दों को बार-बार रिपीट करते रहना।
- हर दिन एक जैसा काम या खेल खेलना।
- कभी-कभी ये बहुत अधिक सक्रिय होते हैं, तो कभी-कभी बहुत ही निष्क्रिय। कोई भी काम एक्सट्रीम लेवल पर करते हैं।
ऑटिज्म होने के कारण
अभी तक की गयी रिसर्चस से ऑटिज्म होने का कोई निश्चित कारण सामने नहीं आया है। यह कई कारणों से हो सकता है।
- गर्भावस्था के दौरान मां का किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होना।
- जन्म संबंधी दोष होना।
- दिमाग की गतिविधियों में असामान्यता होना।
- बच्चे के जन्म से पूर्व और बाद में जरूरी टीके ना लगवाना।
- बच्चे का समय से पहले जन्म।
- गर्भ में बच्चे का ठीक से विकास न होना।
- दिमाग के रसायनों का असामान्य होना।
ऑटिज्म-पेशेंट को स्पेशल केयर की है जरुरत
ऑटिज्म से ग्रसित लोगों का जीवन बहुत ही चुनौतीपूर्ण होता है। इनके साथ हमेशा प्यार से पेश आना चाहिए। बहुत से लोग ऑटिज्म-पेशेंट को स्वीकार नहीं कर पाते हैं और उनसे दूरी बनाने लगते हैं। जो उन्हें समझें और इस स्थिति से बाहर लाने में उनकी मदद करें, ऐसे लोगों की इन्हें जरूरत होती है। जानिए ऑटिज्म में कुछ ध्यान रखने योग्य बातें-
- बच्चों की ओर विशेष ध्यान दें, उन्हें दुत्कारे नहीं।
- शारीरिक खेल गतिविधियों के लिए ऑटिज्म-पेशेंट को प्रोत्साहित करें।
- खेल-खेल में बच्चों के साथ नए-नए शब्दों को यूज़ करें।
- बच्चों को तनाव मुक्त स्थानों पर ले जाएं।
- रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को जोड़कर बोलना सिखाएं।
- खिलौनों के साथ खेलने का सही तरीका बच्चों को सिखाएं।
- खेल में लोगो की संख्या को धीरे-धीरे बढ़ाते जाएं।
- पेशेंट को पहले समझना फिर बोलना सिखाएं।
- यदि बच्चा बोलने में सक्षम है, तो उसे और प्रोत्साहित करें व बार-बार बोलने के लिए प्रेरित करें।
- यदि बच्चा बिल्कुल भी नहीं बोल पा रहा हो, तो उसे तस्वीर की ओर इशारा करके अपनी जरूरतों के बारे में बोलने के लिए प्रेरित करें।
- बच्चों को घर के अलावा और लोगो से भी इंटरैक्शन करने का मौका दे और अन्य लोगो को बच्चों से बात करने के लिए कहें।
- बच्चो को अपनी जरूरतों को बोलने का मौका दें।
- ग़लत व्यवहार दोहराने पर बच्चों से जो उसे पसंद ना हो करवाएं।
- प्रोत्साहन के लिए चमकीली, रंग-बिरंगी तथा ध्यान खींचने वाली चीजों को यूज़ करे।
ऑटिज़्म का प्रभाव
ऑटिज्म का शिकार पूरी दुनिया है। विश्व में वर्ष 2010 तक लगभग 7 करोड़ लोग इस बीमारी से प्रभावित थे। आकड़े बताते हैं कि दुनियाभर में कैंसर, मधुमेह और एड्स के रोगियों की संख्या को मिलाकर भी ऑटिज्म-पेशेंट्स की संख्या इससे अधिक है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि विश्वभर में प्रति दस हजार में से 20 व्यक्ति इस रोग से प्रभावित होता है। वहीं कुछ रिसर्चस ये भी बताती हैं कि ऑटिज्म फीमेल्स की तुलना में मेल्स में अधिक देखने को मिला है।
