63 साल बाद भी फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म' क्यों है दर्शकों की पसंद: Mughal-E-Azam Iconic Movie
Mughal-E-Azam Iconic Movie

Mughal-E-Azam Iconic Movie: बॉलीवुड की ऐसी कई फ़िल्में हैं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। इन फिल्मों के अभिनय से लेकर गाने तक सब कुछ बेहद पसंद किये जाते हैं। इन फिल्मों की दीवानगी ऐसी होती है जो पीढ़ियों तक बरक़रार रहती है। दीवानगी तो होगी ही जब फ़िल्म बनाने वाले डायरेक्टर ही अपने काम को लेकर दीवाने हों। बॉलीवुड की ऐसी कई फ़िल्में है लेकिन ऐसी कौन सी फ़िल्म है जहां स्मृति रुक जाती है या ये कहें कि जिसके बाद आप किसी और फ़िल्म को ये ओहदा नहीं देते कि वो अपनी चार पीढ़ियों तक याद की जाए। ऐसी दीवानगी भरी फ़िल्म है ‘मुग़ल ए आज़म’। ये एक ऐसी फ़िल्म है जिसे जितने जुनून से बनाया गया इसे देखने भी दर्शक उतने ही जुनून से गए। फ़िल्म का निर्देशन के.आसिफ ने किया था और के.आसिफ का कहना ही क्या। आइये जानते हैं इस फ़िल्म और इसके डायरेक्टर बारे में जिन्हें नहीं भुलाया जा सकता।

14 साल तक चली फिल्म की शूटिंग

फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म 5 अगस्त 1960 को रिलीज़ हुई थी। एक ऐसी फ़िल्म जिसकी शूटिंग में 14 साल लग गए थे। जी हाँ 14 साल। फ़िल्म की शूटिंग शुरू ही हुई थी कि देश का विभाजन शुरू हुआ है। फ़िल्म के प्रोड्यूसर शिराज पकिस्तान चले गए और फ़िल्म की शूटिंग नई कास्ट के साथ दोबारा शुरू करनी पड़ी। शीश महल की शूटिंग के सेट को तैयार करने में ही दो साल लग गए थे। इस शीश महल के लिए के. आसिफ़ ने बेल्जियम से शीशे मंगवाए थे। उन्होंने जिस तरह हर छोटी से छोटी चीज़ का इतना ध्यान रखा ज़ाहिर है कि फ़िल्म को वक़्त तो लगना था लेकिन के आसिफ़ के इस जुनून को सलाम है जो वो अपने फैसले से हटे नहीं।

फ़िल्म के गानों की कहानी

Mughal-E-Azam Iconic Movie
Mughal-E-Azam Movie Songs

फ़िल्म मुग़ल-ए-आज़म के गाने भी फ़िल्म की तरह ही कमाल हैं। इसके पीछे का भी एक क़िस्सा है। के आसिफ , नौशाद के घर पहुँच गए और उन्होंने कहा कि मैं फ़िल्म बना रहा हूँ और आपको संगीत देना है इसपर नौशाद ने कहा कि मैं अभी व्यस्त हूँ, मैं नहीं कर सकता। के आसिफ ने एक लाख रुपये की गड्डी नौशाद के हारमोनियम पर रख दी और नौशाद ने नाराज़ होकर पैसे फ़ेंक दिए। फिर के आसिफ की ज़िद के आगे नौशाद भी झुक गए उन्होंने कहा पैसे आप रखिये मैं वादा करता हूँ कि मैं आपके लिए काम करूँगा। ये वादा बखूबी निभाया भी गया और इसी वजह से हिंदी सिनेमा इन खूबसूरत गानों से गुलज़ार है। अब याद कीजिये ज़रा वो गाना ‘जब प्यार किया तो डरना क्या’ , ‘मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे’ , ‘ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद ऐ मोहब्बत ज़िंदाबाद’, ये गाने आज भी बेहद पसंद किये जाते हैं। फिल्म का हर गाना ख़ास है।

संवाद जिसने किरदार को अमर कर दिया

किसी भी किरदार के प्राण उसके संवाद होते हैं। संवाद से ही किरदार और किरदार से ही कहानी। मुग़ल-ए-आज़म के किरदारों को भुला पाना मुश्किल है। अक़बर के बारे में सुनकर पृथ्वीराज कपूर ही याद आते हैं वो सख़्त आवाज़ में उनका संवाद याद कीजिये जब अकबर बोलते हैं कि ‘हम एक लाडले बेटे के शफ़ीक़ बाप ज़रूर हैं, मगर हम शहंशाह के फ़र्ज़ को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हम अपने बेटे के धड़कते हुए दिल के लिए हिंदुस्तान की तक़दीर नहीं बदल सकते’। इसी तरह अनारकली का वो संवाद याद कीजिये जब अकबर, अनारकली से कहते हैं तुम्हें सलीम को यक़ीन दिलाना होगा कि तुझे उससे कभी मोहब्बत नहीं थी। इसपर अनारकली कहती है कि ‘जो ज़बान उनके सामने मोहब्बत का इक़रार तक न कर सकी हो , वो इंकार कैसे करेगी’। इसी तरह हर संवाद ऐसे लिखे गए हैं कि आप उन्हें भूल जाते हैं।

कौन था ये जुनूनी डायरेक्टर

कहते हैं काम ऐसा करो कि काम से नाम हो जाए। ये बात के.आसिफ़ ने सच कर दी। 14 जून 1922 को उत्तरप्रदेश के इटावा में जन्में के.आसिफ़ का जन्म हुआ। एक संपन्न परिवार में जन्में आसिफ़ का नाम करीम आसिफ़ था। 1945 में फ़िल्म ‘फूल’ रिलीज़ हुई, इसे कमाल अमरोही ने लिखा और निर्देशन था के आसिफ का। फ़िल्म ने लोकप्रियता बटोरी। इसी के बाद से के.आसिफ ने फिल्म ‘मुग़ल ए आज़म’ बनाने की ठान ली। फिर क्या होना था के आसिफ ने फिल्म बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी लेकिन विभाजन के कारण उनकी ये मेहनत नाकाम हुई लेकिन आसिफ़ ने हार नहीं मानी। हुआ भी यही की उन्होंने फ़िल्म के लिए जान लगा दी। क़र्ज़ में डूबे होने के बाद भी के आसिफ ने फ़िल्म को नहीं छोड़ा। इतना खर्चा हुआ कि सब हैरान हो गए। उस दौरान फिल्म जानकार ये भी कहते थे कि फ़िल्म फ्लॉप होगी लेकिन चूँकि उन्होंने ठान ली थी तो फ़िल्म को पूरा कर ही लिया और उसका हासिल ये हुआ कि आज हम मुग़ल-ए-आज़म को भूल नहीं सकते। देश विदेश में फ़िल्म बहुत सफल रही और वो महान डायरेक्टर की सूची में शामिल हो गए।