Jaat Movie Review: एक बात पर वाकई ध्यान नहीं गया कि जो काम साउथ वाले अभी तक सीना ठोंककर कर रहे हैं, वो देखा जाए तो सनी देओल ने ही शुरू किया था। ‘जाट’ देखकर यह बात समझ आती है क्योंकि पूरी फिल्म साउथ स्टाइल में फिल्माई गई है और सनी यहां जरा भी मिस फिट नहीं दिखते। हमने तो हमेशा उन्हें ऐसे ही लड़ते देखा है। अकेला सौ-सौ से भिड़ते देखा है। सनी का यहां फिट दिखना तब राहत है, जब पिछले हफ्ते ही सलमान खान का ‘सिकंदर’ वाला जोर का झटका लगा है। लेकिन यह अहसास ‘जाट’ को बहुत बढ़िया और देखने लायक नहीं बना देता। यह फिल्म अपनी तमाम कमजोरियों के साथ सनी देओल के कंधों पर लदी रहती है। ढाई किलो के हाथ की ताकत… फिल्म को संभालने में ही लगी रही। साउथ का अति ड्रामा, बात-बात पर ज्ञान देना… यहां भी परेशान करता है क्योंकि हिन्दी भाषी चेहरों को हम उस अंदाज में लेने के लिए शायद तैयार नहीं हैं।
‘जाट’ एक मसालेदार एक्शन ड्रामा है, जिसमें सनी देओल अपने पुराने(एकमात्र कह लीजिए) अवतार में लौटते हैं… गुस्से में गरजते हुए, दुश्मनों को धूल चटाते हुए और देशभक्ति से लबरेज़ डायलॉग्स मारते हुए। फिल्म में खून, बदला, सीबीआई, इंटरनेशनल पॉलिटिक्स और राष्ट्रपति तक की एंट्री है। एक्शन सीन इतने दमदार हैं कि सीटियां बजने लगती हैं – खासकर पुलिस स्टेशन वाले फाइट सीक्वेंस में। अंदाजा लगा लीजिए इसे देखने वो ही लोग जाएंगे जो यह पसंद करते हैं। ‘गदर 2’ को हिट इन्होंने ही कराया था और अब यह ‘जाट’ पर मेहरबान हो सकते हैं। आप ‘गदर’ लीग के नहीं हैं, तो यह सिनेमा आपका नहीं है।
कहानी की शुरुआत होती है 2009 के श्रीलंका से। यहां रणदीप हुड्डा का किरदार राणातुंगा, सोना चुराकर भारत भागता है और भ्रष्ट अफसरों को खरीदकर नया जीवन शुरू करता है। आंध्र प्रदेश के मोलुपट्टी गांव में शांति बस शुरू ही होती है कि बलदेव प्रताप सिंह (सनी देओल) की प्लेट से इडली गिरा दी जाती है, और यहीं से शुरू होता है तूफान! रणदीप हुड्डा बेहद ठंडे लेकिन खतरनाक विलेन के रूप में छा जाते हैं। सपोर्टिंग कास्ट भी कहानी को मजबूती देती है लेकिन फिर भी कमियां दिखती रहती हैं और ना जाने क्यों सनी देओल होते हैं तो ये नजरअंदाज होने लगती हैं। यह फिल्म लॉजिक से ज्यादा इमोशन और धमाके पर टिकी है। इसमें निर्देशक कोई शर्म भी महसूस नहीं करते। निर्देशक गोपीचंद मलिनेनी का एकमात्र उद्देश्य इसे हाई वोल्टेज मसाला पैकेज बनाना था और वो इस काम में लगे रहते हैं।
आंध्र प्रदेश की हरियाली और समुद्री रंगों को कैमरे ने खूबसूरती से पकड़ा है। कलर टोन बहुत कुछ ‘केजीएफ’ वाली है। शांत लोकेशनों के बीच हो रही हिंसा कहानी को और असरदार बनाती है। सनी देओल ने एक काम बढ़िया किया, वो किसी नई चीज़ की कोशिश नहीं करते – वही पुराना अंदाज़, लेकिन पूरी ताकत के साथ लौटे हैं। रणदीप हुड्डा ने जबरदस्त अभिनय किया है – शांत लेकिन घातक। विनीत सिंह और रेजिना कैसेंड्रा के रोल भी अच्छे रहे। ढाई घंटे की फिल्म को देखना और आसान हो जाता अगर इसमें से गाने कम कर दिए जाते। गानों के दस मिनट सबसे बड़ा त्रास है और खासतौर पर उर्वशी रौतेला का आयटम नंबर। फिल्म का स्तर यह गाना बिल्कुल नीचे ले आता है।
