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बड़ा ही रोचक है खाटूश्यामजी का इतिहास, आप भी जानें

खाटूश्यामजी का फाल्गुनी लक्खी मेला 2023, 22 फरवरी से शुरू होगा, जिसमें लाखों श्रद्धालु दूर दराज से बाबा श्याम के दर पहुंचेंगे।

खाटूश्यामजी का नाम तो आप सबने सुना होगा। राजस्थान के जयपुर से लगभग 80 किमी दूर सीकर जिले में स्थित खाटूश्यामजी में बाबा श्याम का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। खाटूश्यामजी में हर वर्ष फाल्गुन मास में बाबा श्याम का फाल्गुनी लक्खी मेला आयोजित होता है। इस साल 22 फरवरी 2023 से लखदातार बाबा खाटूश्यामजी का लक्खी मेला शुरू होगा।

बाबा श्याम के मेले में ना सिर्फ देश, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। खाटूश्यामजी को बाबा श्याम के अलावा, हारे का सहारा, लखदातार, मोर्विनंदन, खाटू नरेश और शीश का दानी आदि नामों से भी जाना जाता है। बाबा श्याम का इतिहास भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है। इस लेख में आज हम आपको बताएंगे कि खाटूश्यामजी कौन हैं और इनका इतिहास क्या है।

कौन हैं खाटूश्याम जी, ये है इतिहास

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पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि महाभारत में खाटूश्यामजी का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार, पराक्रमी घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था। जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध शुरू होने वाला था, तो बर्बरीक भी युद्ध में शामिल होने आ गए। बर्बरीक ने यह प्रण लिया था कि वे हारने वाले पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेगे।

इस दौरान श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे और उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण का रूप धारण कर लिया। ब्राह्मण के रूप में श्रीकृष्ण बर्बरीक के पास पहुंचे और कहा, ये क्या पुत्र युद्ध के मैदान में केवल तीन बाण लेकर आए हो, इनसे भला युद्ध कैसे जीत पाओगे?

यह सुनकर बर्बरीक ने कहा कि हे! ब्राह्मण ये कोई साधारण बाण नहीं है, ये बाण देवी दुर्गा द्वारा दिए गए शक्ति बाण है। जिससे संपूर्ण सेना का अंत किया जा सकता है। इसके बाद बर्बरीक ने एक बाण निकाला और पास के पीपल के पेड़ के पत्तों पर निशान साधा।

एक ही बाण से पीपल के सभी पत्तों में छिद्र हो गए और एक पत्ता जो श्रीकृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा रखा था, वहां बाण आकर रुक गया। इससे श्रीकृष्ण जान गए कि यह योद्धा युद्ध जीतने के लिए अकेला ही काफी है। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इतने महान योद्धा हो और ब्राह्मण को बिना दान दिया जा रहे हो।

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यह सुनकर बर्बरीक ने कहा, हे! ब्राह्मïण क्या चाहते हो। तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। ये बात सुनकर बर्बरीक को आश्चर्य हुआ और बोल मैं अपना शीश दान जरूर करूंगा, लेकिन आप पहले अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो।

जिसके बाद श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप मे आये, तब बर्बरीक ने कहा कि हे! प्रभु, मैं अपने शीश दान के लिए वचन-बद्ध हूं, लेकिन ये युद्ध देखने की मेरी इच्छा है। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक की ये इच्छा पूरी करने का वचन दिया। इसके बाद बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में रख दिया।

उसी समय देवलोक से देवियां प्रकट हुईं और बर्बरीक के सिर पर अमृत की वर्षा की और बताया कि ये सब पूर्व जन्म मे मिले श्राप का नतीजा है जो ब्रह्माजी द्वारा दिया गया था। अमृत के कारण बर्बरीक का शीश जीवित हो उठा और युद्ध देखने की इच्छा पूरी की।

श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम हारे का सहारा हो, दुखो को दूर करने वाले हो और कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे और खाटू श्याम कहलाओगे।

युद्ध समाप्त होने के पश्चात पांडवों ने बर्बरीक के सिर को राजस्थान के सीकर में लाकर दफना दिया। जिसे खाटू श्याम धाम के नाम से जाना जाता है। जहां इनके सिर की पूजा की जाती है। तथा हरियाणा के हिसार जिले मे स्थित स्याहड़वा गांव मे इनके धड़ की पूजा की जाती है।

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