antim chitthi shreshth kahaniyan
Antim chitthi shreshth kahaniyan

Hindi Best Story: प्रतिमा खुश होते हुए बोली, ‘अंकिता भाभी हमारे परिवार की सदस्य हैं। उनकी देखभाल की जिमेदारी अब हमारी होगी।

भीड़ में एकाकीपन को जीते हुए जिंदगी तो चल पड़ी थी मगर कहां? साथ में थी, अब तक के जीवन की पूंजी, खालीपन का एहसास।
आज भी जीवन थमा नहीं था, वही गति, पर एहसास बदल चुके थे। तलाश
थी मंजिल कि नहीं, किसी मोड़ की।

ट्रेन में बैठी प्रतिमा खिड़की से बाहर के दृश्यों को देख रही थी। पेड़-पौधे सभी पीछे की ओर भागते प्रतीत हो रहे थे। प्रतिमा का मन भी उसी भांति पीछे की ओर भाग रहा था। कभी काव्य की चिठियाँ आती तो प्रतिमा का रोम-रोम गुलाब के फूल की तरह महक उठता था। आज जीवन के इस
मुकाम पर काव्य की सूखे पत्ते सी चिठ्ठी आई थी, शायद अंतिम!

यादें अब परत दर परत खुलने लगी थी। कॉलेज के दिनों में काव्य का प्रतिमा के जीवन में आना और फिर परिवार के खिलाफ जाकर विपरीत परिस्थितियों में विवाह होना, किसी झंझावात से कम नहीं था। किंतु प्रतिमा तो बिना विचलित हुए काव्य के प्रेम में ऐसी डूबी की, आसपास की आंधियों को उसने नजरअंदाज कर दिया। दिन-दुनिया से बेखबर, पूरे दिन घर का काम करने के बाद भी थकी-हारी प्रतिमा शाम को काव्य के ऑफिस से घर आते ही अपने को तरोताजा और ऊर्जा से
परिपूर्ण पाती।

मानव की नियति भी विचित्र होती है, जब वह सुख में होता है तब वह यह समझ ही नहीं पाता है कि सुख हमेशा दुख की गठरी साथ लिए चलता है। काव्य और वैभव एक ही ऑफिस में काम करते थे। बहुत कम समय में ही दोनों में बहुत गहरी दोस्ती हो गई। इस दोस्ती की गांठ बनी वैभव की पत्नी
अंकिता भाभी। सौय, शालीन और मिलनसार। इस दोस्ती ने एक पारिवारिक माहौल को जन्म दिया था। इन खूबसूरत बंधनों से पुलकित हो जीवन तेज गति से दौड़ता चला जा रहा था।

उस दिन काव्य मायूस चेहरा लिए ऑफिस से लौटा तो प्रतिमा चौंक पड़ी। काव्य ने बताया, ‘वैभव का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो रहा है। यह सुनकर प्रतिमा भी उदास हो गई। वैभव ने कहा है कि वह पहले जाएगा। अंकिता भाभी अभी कुछ दिनों तक यहीं रहेंगी। जब वहां सारा सेटलमेंट हो जाएगा तब वह अंकिता भाभी को बुलाएगा।

प्रतिमा खुश होते हुए बोली, ‘अंकिता भाभी हमारे परिवार की सदस्य हैं। उनकी देखभाल की जिमेदारी अब हमारी होगी।

समय पर लगाकर उड़ता जा रहा था। वैभव चला गया था। अंकिता भाभी यहीं रह गई थीं। इन दिनों काव्य अक्सर घर पर लेट से आता, क्योंकि प्रतिमा ने ही कहा था कि ऑफिस से लौटते समय एक
बार अंकिता भाभी का हाल जरूर पूछ लेना। प्रतिमा, अंकिता भाभी की जरूरतों का बहुत ही ध्यान रखती थी। अंकिता भाभी एक धाॢमक महिला थीं। पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, व्रत-त्यौहार, मंदिर पर
उनकी विशेष आस्था थी। अक्सर वह मंदिरों में दर्शन के लिए जाती थी। कभी-कभी प्रतिमा व्यस्त रहती तो, वो काव्य के साथ चली जाती थी। अंकिता भाभी के घर से अक्सर प्रसाद आता था। प्रतिमा के लिए तो खासकर अपने हाथ का बना लड्डू भेजती थीं।
इधर कुछ दिनों से प्रतिमा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। अंकिता भाभी के सुझाव पर काव्य ने प्रतिमा को उनके जान-पहचान के डॉक्टर को दिखाया। इलाज होने पर वह ठीक हो जाती थी,
किंतु फिर कुछ दिनों के बाद उसकी परेशानियां बढ़ जाती थी। उस दिन काव्य बहुत उदास बैठा था। प्रतिमा ने देखा तो चौंक पड़ी, ‘क्या बात है क्या काव्य? काव्य ने प्रतिमा का हाथ अपने हाथों में
लेते हुए कहा, ‘प्रतिमा तु हें लेकर मैं बहुत परेशान रहता हूं। डॉक्टर का इतना इलाज कराने पर भी तुम ठीक क्यों नहीं होती।
‘अरे मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं जल्दी ही ठीक हो जाऊंगी।’ प्रतिमा ने दिलासा
देते हुए कहा।

काव्य ने फिर कहा, ‘मैं सोंच रहा था कि कुछ दिन के लिए अंकिता भाभी को यहीं बुला लूं। उनका अकेलापन भी दूर हो जाएगा और कुछ दिनों तक तु हारा देखभाल भी कर लेती।
‘नहीं-नहीं! मेरी देखभाल के लिए मत बुलाओ। लेकिन यदि उन्हें अकेलापन लगता हो तो जरूर बुला लो। प्रतिमा ने काव्य के चेहरे पर क्षीण-सी हंसी की रेखा देखी।

अंकिता भाभी ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था। प्रतिमा उनके व्यवहार और अपनापन पर कभी-कभी मंत्रमुग्ध सी हो जाती थी। प्रतिमा आजकल बहुत ज्यादा सोने लगी थी। काव्य ने जब
डॉक्टर को दिखाया तो उसने यही कहा कि बहुत ज्यादा कमजोरी के कारण ऐसा हो रहा है।

रात के दस बज चुके थे। अंकिता भाभी प्रतिमा का दूध उसके टेबल पर रखते हुए, प्यार से उसका बाल सहलाने लगी। प्रतिमा भावुक होते हुए उठ बैठी और उसने कहा, ‘व्यक्ति को इतना अच्छा नहीं
होना चाहिए कि सामने वाले व्यक्ति को शर्मिन्दगी का अहसास हो। अंकिता भाभी ने उसे प्यार से हलकी चपत लगाते हुएकहा, ‘तुम हो ही इतनी प्यारी, अब चुपचाप सो जाओ।

काव्य को ऑफिस का वर्क बहुत ज्यादा रहता था, इस कारण वह प्रतिमा के कमरे
में देर से आता था।

जाने आज क्यों प्रतिमा में एक बच्चे ने प्रवेश कर लिया था। आज उसे दूध पीने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। वह चुपचाप उठी और उसे बाथरूम के बेसिन में बहा दिया और चुपचाप आकर सो गई। ‘सो
गई प्रतिमा? अचानक अंकिता भाभी की आवाज आई। प्रतिमा को लगा कि उसकी चोरी पकड़ी गई। उसने कुछ नहीं कहा और नींद में होने का नाटक करने लगी कमरे में शांति थी, उसे लगा कि भाभीजी चली गई। उसकी सांस में सांस आई। थोड़ी देर बाद अचानक अंकिता भाभी की आवाज सुनकर वह चौंक पड़ी। ‘आज मैंने इसे डबल डोज दे दिया है। अब सीधे यह सुबह में ही उठेगी।
प्रतिमा बिस्तर से अचानक उछल पड़ी। उसकी सांसे तेज चलने लगी। उसने देखा

निर्मल जल की तरह पारदर्शी प्रतिमा जीवन और अपने आसपास के लोगों को भी उसी
नजरिए से देखती थी। उस दिन नहाने के बाद आईने के पास बैठी प्रतिमा स्वयं को देखकर
अवाक रह गई।

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Shresth Kahani

अंकिता भाभी के साथ काव्य खड़ा था। काव्य को तो काठ मार गया, किंतु अंकिता भाभी हंसने लगी। ‘मैंने कहा था ना यह सोई नहीं है, इसके उठाने का यही तरीका था। यह सुनकर प्रतिमा भी हंसने
लगी।
निर्मल जल की तरह पारदर्शी प्रतिमा जीवन और अपने आसपास के लोगों को भी उसी नजरिए से देखती थी। उस दिन नहाने के बाद आईने के पास बैठी प्रतिमा स्वयं को देखकर अवाक रह गई। आंखों के नीचे काले घेरे ने स्थान ले लिया था, सामने के कुछ बाल सफेद हो चले थे, होंठों के आसपास झुर्रियों की लकीरे पड़ी हुई थीं। ‘कुछ दिनों की बीमारी ने मुझे ऐसा बना दिया!’
सोंचते हुए वह भारी मन से उठी। दोपहर का समय था, उसने अंकिता भाभी को आवाज दी। अंकिता भाभी दौड़ती हुई आई। प्रतिमा ने देखा, वह तैयार होकर कहीं बाहर जा रही थीं। ‘आप बाहर जा
रही हैं? प्रतिमा ने पूछा।

‘हां, तुम्हारी दवाइयां खत्म हो चुकी है। वही लेने जा रही हूं। प्रतिमा ने उन्हें कृतज्ञता भरी आंखों से देखा और फूट फूट कर रो पड़ी। ‘भाभीजी आपका पता नहीं मुझसे किस जन्म का रिश्ता है। सारा दिन आप घर का काम करती हैं और उसके बाद मेरी सेवा को तत्पर रहती हैं।
अंकिता भाभी ने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘यह सब तु हें सोचने की जरूरत नहीं है, बस जल्दी से ठीक हो जाओ।
समय ने प्रतिमा के साथ विचित्र खेल खेला। उसकी बचपन की दोस्त मुक्ता जो एक डॉक्टर थी, उसके जीवन के लिए शाप बन कर आई थी या वरदान, समय भी हतप्रभ था। सब कुछ बहुत जल्दी
घटित हुआ। मानो समय हड़बड़ी में था। मुक्ता को भाभीजी के द्वारा नहीं पसंद करना, नियति का खेल यहीं से शुरू हुआ। प्रतिमा कौन-सी दवा ले रही है, मुक्ता द्वारा पूछे जाने पर यह पता चला कि अंकिता भाभी सारी दवाइयां अपने पास रखती हैं और स्वयं ही प्रतिमा को खिलाती हैं। मुक्ता का शक यहीं से शुरू हुआ और वह मामले के अंतिम कगार पर पहुंच गई। किंतु प्रतिमा का प्रेम और विश्वास
यह मानने से इनकार कर दिया। मुक्ता मौके की तलाश में थी, प्रतिमा को सच्चाई दिखाने की। और फिर एक दिन मुक्ता रात के दो बजे प्रतिमा को लेकर उस टेरेस तक पहुंची जहां काव्य और
अंकिता भाभी एक-दूसरे की बाहों में थे। अंकिता भाभी की आवाज उसे बादल के
फटने जैसी लगी थी।

‘काव्य, प्रतिमा को जल्दी से रास्ते से हटाना होगा ताकि हम दोनों एक हो सकें।’ ‘और तु हारा पति? काव्य ने पूछा था। ‘एक बार इसे रास्ते से हटा दें। फिर सोचेंगे कि हमें क्या करना है। एक पल में प्रतिमा का जीवन खत्म हो चुका था। उस रात प्रतिमा की चित्कार के सामने समंदर का तूफान भी सहम गया था। मुक्ता ने उसे पुलिस के पास जाने की बात कही तब उसने कहा था, ‘प्यार किया
है मैंने काव्य को, उसे सलाखों के पीछे नहीं देख सकती। वह पुलिस के पास तो नहीं गई, किंतु उसने कोर्ट का दरवाजा जरूर खटखटाया था। और फिर काव्य के जीवन से वह हमेशा के लिए दूर हो गई।
प्रतिमा फिर लौटकर उस दुनिया में नहीं गई।’

‘मैडम कहां उतरना है। ऑटो वाले ने पूछा था। प्रतिमा झटके से अतीत से बाहर हुई। ‘हां बस यहीं उतार दो। दरवाजे पर खड़ी प्रतिमा के पांव अंदर की ओर नहीं उठ रहे थे। वह दरवाजे पर खड़ी हो गई, हाथ में काव्य की चिठ्ठी थी, जिसमें यहीं का पता लिखा था। अचानक उसने देखा अंदर से कोई व्यक्ति आया
और इशारे से उसे भीतर जाने को कहा। बढ़ी हुई दाढ़ी और क्षीण सी काया, शरीर सिर्फ हड्डियों का ढांचा भर रह गया था। उस व्यक्ति को देखकर प्रतिमा दरवाजे पर ही ठिठक गई ‘अंदर आओ
प्रतिमा। इस आवाज को वह कैसे भूल सकती थी, पल भर के लिए वह सारी अतीत भूल चुकी थी। दौड़ पड़ी वह, काव्य के करीब बैठी और उसके हाथों को अपने हाथों में लिए वह घंटों रोती रही,
नफरत हमेशा प्रेम के सामने छोटा पड़ जाता है।

काव्य और प्रतिमा को अलग हुए पांच साल हो चुके थे। उस दिन काव्य की चिठ्ठी आने पर
प्रतिमा अपने आप को रोक नहीं पाई थी। किंतु काव्य के द्वारा जिस हकीकत को उसने सुना, सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो गए थे। स्तब्ध रह गई थी वह।

शुरू से अंकिता की नजर काव्य पर थी।उसे अपने जाल में फंसाने के लिए प्रतिमा को रास्ते से हटाने का प्रयास करने लगी। अपने घर से प्रसाद और लड्डू में नशे की दवा मिलाकर वह प्रतिमा के लिए भेजने लगी, ताकि वह धीरे-धीरे बीमार पड़

दरवाजे पर खड़ी प्रतिमा के पांव अंदर की ओर नहीं उठ रहे थे। वह दरवाजे पर खड़ी हो गई,
हाथ में काव्य की चिठ्ठी थी, जिसमें यहीं का पता लिखा था। अचानक उसने देखा अंदर से
कोई व्यक्ति आया और इशारे से उसे भीतर जाने को कहा।

जाए। उसकी दूसरी योजना काव्य को अपने वश में करना था। इसके लिए वह काव्य को लेकर मंदिरों में जाने लगी। उसे कई तांत्रिक गुरुओं से संपर्क था और वह तंत्र-मंत्र करना जानती थी। इसका प्रयोग कर वह काव्य को अपने वश में करने लगी। वह जो कहती थी, काव्य वही
करता था।
यह उसी की योजना थी कि उसने काव्य को यह कहा कि वह प्रतिमा के साथ रहेगी और उसकी सेवा करेगी। इसके साथ ही उसके संपर्क बहुत सारे डॉक्टरों से था। जिस डॉक्टर से प्रतिमा का इलाज चल रहा था उस डॉक्टर को अंकिता ने पैसे से खरीद लिया था और उसके द्वारा प्रतिमा को स्लो प्वाइजन
दिलवा रही थी।

प्रतिमा तो काव्य को छोड़कर चली गई, किंतु जब काव्य का दोस्त वैभव लौट कर आया और उसने काव्य की स्थिति को देखा तो वह बिना किसी को बताए मामले की तह तक पहुंचा। आज वैभव और अंकिता के बीच तलाक हो चुका है और अंकिता जेल में है। काव्य द्वारा यह हकीकत जानने के बाद प्रतिमा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, ‘अंकिता भाभी ऐसा क्यों करती थीं?
‘सिर्फ सेक्स का भूख मिटाने के लिए और पैसे के लिए। उसे जीवन में सिर्फ मर्दों का सानिध्य और ऐशोआराम की जिंदगी की लत लग चुकी थी। किसी एक के साथ वह संतुष्ट नहीं रह सकती
थी। इसी प्रकार वह कई परिवारों को तबाह कर चुकी थी, यह राज बाद में खुली। काव्य ने बताया। ‘और फिर यह तंत्र-मंत्र क्या है?

प्रतिमा ने आश्चर्य से पूछा। मुझे भी पहले विश्वास नहीं था, इस आधुनिक युग में यह सब भी होता है, यह जानकर मैं हतप्रभ था। शहर के बड़े-बड़े व्यवसायियों, डॉक्टरों, बाबाओं के साथ साथ धार्मिक गुरुओं और तांत्रिकों के साथ उसके घनिष्ठ संबंध थे। जड़ी-बूटियों और भभूतों का उपयोग कर,
किसी व्यक्ति को मानसिक रूप शिथिल कर, उसे अपने वश में करने की क्षमता रखती थी। इसी कारण धीरे-धीरे मेरा शरीर शिथिल पड़ने लगा, कार्य करने की क्षमता खत्म हो गई और मेरा शरीर
बीमार होता चला गया।

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इन सारी बातों का पता लगाते-लगाते पांच साल बीत गए। वैभव ने ही पता किया कि तुम मायके चली गई हो। मैंने तु हें चिठ्ठी इसलिए लिखी कि इस राज से तुम वंचित ना रह जाओ। मैं तु हारा
नफरत लेकर नहीं मरना चाहता था। मुझे उमीद नहीं थी कि तुम आओगी। मैं तु हारे मायके कौन-सा मुंह लेकर जाता। और फिर मेरे शरीर ने भी मेरा साथ छोड़ दिया है। अब मैं शांति से मर पाऊंगा।
उसी समय वैभव आया और कहा, प्रतिमाजी आप इसे माफ कर दीजिए इसमें इसका कोई कुसूर नहीं था। ‘ईश्वर ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? ये हमारे जीवन को क्या हो गया काव्य? मैं तु हे मरने नहीं दूंगी। दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मैं तु हारा इलाज करवाऊंगी, तु हें ठीक होना पड़ेगा मेरे
लिए। कहकर प्रतिमा फफककर रो पड़ी। शाम ने विदा ली थी। चांद सितारों से
भरी रात्रि जो आ रही थी।