अतिप्राचीन काल में अध्ययन और अध्यापन श्रुति व्यवस्था के अंतर्गत संचालित रहा, श्रुति अर्थात सुनकर दोहराना। यह शिक्षा का सशक्त मध्यम था। लेखन कार्य का शुभारंभ नहीं होने से यह व्यवस्था तत्कालीन समाज में भी प्रचलित थी। उपनयन संस्कार के बाद ब्रह्मचर्य समाप्त होता था और गृहस्थ आश्रम का शुभारंभ होने के बाद गुरुकुल में प्राप्त शिक्षा का विस्तार, प्रचार और प्रसार श्रुति पद्धति से किया जाता रहा। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने बहुत बाद में अपने अनुभव, कथा, विज्ञान विषयों को लिपिबद्ध करना शुरू किया। इसका साधारण-सा अर्थ है कि कथावाचन अत्यंत प्राचीन विधा है। आचार्य वात्स्यायन ने अपने ग्रंथ ‘कामसूत्रम्’ में 64 कलाओं में कथावाचन को भी स्थान दिया है। कथा कहना एक कला है। श्रेष्ठ कथावाचक उसे माना जाता है जो एक ही कहानी को अलग-अलग उम्र के श्रोताओं को उनकी उम्र के अनुसार प्रस्तुत करे।
उत्पत्ति और विकास चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में ‘प्राचीन रामकथा साहित्य’ का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकि कृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा संबंधी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का संबंध रामकथा की उत्पत्ति से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारंभिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रंथ के तृतीय भाग में ‘अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन’ है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले और दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जाने वाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है।
हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस ने उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया। इसके अतिरिक्त भी संस्कृत, गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में राम कथा लिखी गई। महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास, गुरु गोविंद सिंह, समर्थ गुरु रामदास, संत तुकडोजी महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों ने, संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण के दूसरे पात्रों के बारे में काव्यों या कविताओं की रचना की है। अनेक भारतीय भाषाओं में भी राम कथा लिखी गई। हिंदी में कम से कम 11, मराठी में 8, बंगला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 5 तथा उडिया में 6 रामायणें मिलती हैं। इससे हिंदी के अतिरिक्त तमिल, तेलुगु, मलायालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छान-बीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाये जाने वाले रामकथा के रूप में सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिंदेशिया, हिंदचीन, श्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अंतिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक-पृथक विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ कांडक्रम से ली गई हैं अतः यह भाग सात कांडों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता, प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है। वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्रीराघवेंद्रचरितम् आदि। भिन्न-भिन्न प्रकार से गिनने पर रामायण तीन सौ से लेकर एक हजार तक की संख्या में विविध रूपों में मिलती हैं।
इनमें से संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण (आर्ष रामायण) सबसे प्राचीन मानी जाती है। साहित्यिक शोध के क्षेत्र में भगवान राम के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है। इस गौरव ग्रंथ के कारण वाल्मीकि दुनिया के आदि कवि माने जाते हैं। श्रीराम-कथा केवल वाल्मीकीय रामायण तक सीमित न रही बल्कि मुनि व्यास रचित महाभारत में भी ‘रामोपाख्यान’ के रूप में आरण्यकपर्व (वन पर्व) में यह कथा वर्णित हुई है। इसके अतिरिक्त ‘द्रोण पर्व’ तथा ‘शांतिपर्व’ में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध हैं।
संस्कृत में रामकथा
भारत मे स्वातंत्र्योत्तर काल मे संस्कृत में रामकथा पर आधारित अनेक महाकाव्य लिखे गए हैं उनमे रामकीर्ति, रामाश्वमेधीयम्, श्रीमद्भार्गवराघवीयम्, जानकीजीवनम, सीताचरितम्, रघुकुलकथावल्ली, उर्मिलीयम्, सीतास्वयम्बरम्, रामरसायण्, सीतारामीयम्, साकेतसौरभम् आदि प्रमुख हैं। डॉ भास्कराचार्य त्रिपाठी रचित साकेतसौरभ महाकाव्य रचना शैली और कथानक के कारण वशिष्ठ है। नाग प्रकाशन नई दिल्ली से प्रकाशित ये महाकाव्य संस्कृत-हिन्दी मे समानांतर रूप में है।
बौद्ध दर्शन में राम
बौद्ध परम्परा में श्रीराम से संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएँ उपलब्ध हैं। रामायण से थोड़ा भिन्न होते हुए भी ये ग्रन्थ इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ हैं। जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें मुख्य हैं- विमलसूरि कृत ‘पउमचरियं’ (प्राकृत), आचार्य रविषेण कृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ’ (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार राम का मूल नाम ‘पद्म’ था। परमार भोज ने भी चंपु रामायण की रचना की थी। बौद्ध परंपरा में श्रीराम संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएं उपलब्ध हैं। रामायण से थोड़ा भिन्न होते हुए भी वे इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ हैं।
जैन दर्शन में राम
जैन साहित्य में राम कथा संबंधी कई ग्रंथ लिखे गए। जिनमें प्रमुख हैं – विमलसूरिकृत पदमचरित्र (प्राकृत), रविषेणाचार्यकृतपद्म पुराण (संस्कृत), स्वयंभू कृत पदमचरित्र (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्रकृतउत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परंपरा के अनुसार राम का मूल नाम पदम था।
अनेक भाषाओं में रामकथा
राम कथा अन्य अनेक भारतीय भाषाओं में भी लिखी गयीं। हिन्दी में कम से कम 11, मराठी में 8, बाङ्ला में 25, तमिल में 12, तेलुगु में 12 तथा उड़िया में 6 रामायणें मिलती हैं। हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस ने उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया। इसके अतिरिक्त भी संस्कृत,गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओं में राम कथा लिखी गयी। महाकवि कालिदास, भास, भट्ट, प्रवरसेन, क्षेमेन्द्र, भवभूति, राजशेखर, कुमारदास, विश्वनाथ, सोमदेव, गुणादत्त, नारद, लोमेश, मैथिलीशरण गुप्त, केशवदास, समर्थ रामदास, संत तुकडोजी महाराज आदि चार सौ से अधिक कवियों तथा संतों ने अलग-अलग भाषाओं में राम तथा रामायण के दूसरे पात्रों के बारे में काव्यों/कविताओं की रचना की है। स्वामी करपात्री ने ‘रामायण मीमांसा’ की रचना करके उसमें रामगाथा को एक वैज्ञानिक आयामाधारित विवेचन दिया। वर्तमान में प्रचलित बहुत से राम-कथानकों में आर्ष रामायण, अद्भुत रामायण, कृत्तिवास रामायण, बिलंका रामायण, मैथिल रामायण, सर्वार्थ रामायण, तत्वार्थ रामायण, प्रेम रामायण, संजीवनी रामायण, उत्तर रामचरितम्, रघुवंशम्, प्रतिमानाटकम्, कम्ब रामायण, भुशुण्डि रामायण, अध्यात्म रामायण, राधेश्याम रामायण, श्रीराघवेंद्रचरितम्, मन्त्र रामायण, योगवाशिष्ठ रामायण, हनुमन्नाटकम्, आनंद रामायण, अभिषेकनाटकम्, जानकीहरणम् आदि मुख्य हैं।
वर्तमान में रामायण
संस्कृत भाषा में वाल्मीकि कृत रामायण, योगवासिष्ठ या ‘वशिष्ठ रामायण’ भी वाल्मीकि कृत मानी जाती है। अध्यात्म रामायण – वेद व्यास, आनन्द रामायण – वाल्मीकि, अगस्त्य रामायण – वाल्मीकि, अद्भुत रामायण – वाल्मीकि, रघुवंश- कालिदास उल्लेखनीय हैं।
हिंदी भाषा
हिन्दी और अवधी भाषा में भी अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं। यथा – रामचरितमानस हिन्दी-अवधी, राधेश्याम रामायण-हिन्दी, पउमचरिउ या पद्मचरित (जैनरामायण), अपभ्रंश (विमलसूरि कृत) में हैं।
गुजराती भाषा
इनके अतिरिक्त गुजराती भाषा में रावण मंदोदरी संवाद-श्रीधर, रामप्रबंध-मीठा, रामायणपुराण-स्वयंभूदेव, राम बालचरित-भालण, रामविवाह-भालण, रामायण-नाकर, लवकुशाख्यान-भालण, रामायण-कहान, रामायण-उद्धव, रामायण-विष्णुदास, अंगदविष्टि-विष्णुदास, लवकुशाख्यान-विष्णुदास, रामविवाह-वैकुंठ, सीतानो सोहलो-तुलसी, परशुराम आख्यान-शिवदास, महीरावण आख्यान-राणासुत, सीतास्वयंवर-हरिराम, सीतानां संदेशा-वजियो, रणजंग-वजियो, सीतावेल-वजियो, सीतानो संदेशो-मंडण, रावण मंदोदरी संवाद- प्रभाशंकर, रामचरित्र-देवविजयगणि, रामरास-चन्द्रगणि, अंजनासुंदरीप्रबंध-गुणशील, सीताराम रास-बाल कवि, अंगदविष्टि-कनकसुंदर, रामसीताप्रबंध-समयसुंदर, रामयशोरसायन-केशराज, सीताविरह-हरिदास, सीताहरण-जयसागर, सीताहरण-कर्मण, रामायण-प्रेमानंद, ऋषिश्रंग आख्यान-प्रेमानंद, रणयज्ञ-प्रेमानंद, गुजराती योगवासिष्ठ-रामभक्त, रावण मंदोदरी संवाद-शामलभट्ट, अंगदविष्टि-शामलभट्ट, सीतास्वयंवर – कालीदास, सीतामंगल-पुरीबाई, सीतानी कांचली-कृष्णाबाई, सीताविवाह-कृष्णाबाई, रामकथा-राजाराम, रामविवाह-वल्लभ, रामचरित्र-रणछोड, सीताना बारमास-रामैया, रामायण-गिरधर, राम बालकिया आज उपलब्ध हैं।
ओड़िया भाषा
जगमोहन रामायण या दाण्डि रामायण या ओड़िआ रामायण : बळराम दास, बिशि रामायण : बिश्वनाथ खुण्टिआ, सुचित्र रामायण : हरिहर, कृष्ण रामायण : कृष्ण चरण पट्टनायक, केशब रामायण : केशब पट्टनायक, रामचन्द्र बिहार : चिन्तामणी, रघुनाथ बिळास : धनंजय भंज, बैदेहीशबिळास : उपेन्द्र भंज, नृसिंह पुराण : पीताम्बर दास, रामरसामृत सिन्धु : काह्नु दास, रामरसामृत : राम दास, रामलीळा : पीताम्बर राजेन्द्र, बाळ रामायण : बळराम दास, बिलंका रामायण : भक्त कवि शारलादास आदि उपलब्ध हैं।
तेलुगु भाषा
भास्कर रामायण, रंगनाथ रामायण, रघुनाथ रामायणम्, भास्कर रामायण, भोल्ल रामायण आदि उपलब्ध हैं।
कन्नड भाषा
कुमुदेन्दु रामायण, तोरवे रामायण, रामचन्द्र चरित पुराण, बत्तलेश्वर रामायण आदि उपलब्ध हैं।
अन्य भाषाओं में रामकथा
कथा रामायण, असमिया में, कृत्तिवास रामायण, बांग्ला में, सिलहटी रामायण, सिलहटी में, भावार्थ रामायण, मराठी में, रामावतार या गोबिन्द रामायण, पंजाबी में गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित, रामावतार चरित, कश्मीरी में, रामचरितम, मलयालम में, रामावतारम् या कंबरामायण, तमिल में, मन्त्र रामायण, गिरिधर रामायण, चम्पू रामायण (राजा भोज), आर्ष रामायण या आर्प रामायण, अनामक जातक, बौद्ध परम्परा, दशरथ जातक,बौद्ध परंपरा में, दशरथ कथानक, बौद्ध परंपरा में, रामायण, मैथिली आदि सर्वविदित हैं। दक्षिण के क्रांतिकारी पेरियार रामास्वामी व ललई सिंह यादव की रामायण भी मान्यता प्राप्त है।
संस्कृत नाटक
राम कथा ग्रंथों के अतिरिक्त नाटकों में भी उल्लिखित है। नाट्य रूपांतरण भी हुआ है। संभवतः नाटकों में लोकप्रिय होने के उपरांत ही देश विदेश में रामलीला का मंचन शुरू हुआ होगा।
प्रतिमा नाटक – भास
प्रतिमानाटक सात अंकों का नाटक है। जिसमें भास ने राम वनगमन से लेकर रावणवध तथा राम राज्याभिषेक तक की घटनाओं को स्थान दिया है। महाराज दशरथ की मृत्यु के उपरान्त ननिहाल से लौट रहे भरत अयोध्या के पास मार्ग में स्थित देवकुल में पूर्वजों की प्रतिमायें देखते हैं। वहाँ दशरथ की प्रतिमा देखकर वे उनकी मृत्यु का अनुमान कर लेते हैं। प्रतिमा दर्शन की घटना प्रधान होने से इसका नाम प्रतिमा नाटक रखा गया है।
अभिषेक नाटक – भास
यह भी रामकथा पर आश्रित है। इसमें छः अंक हैं। इसमें रामायण के किष्किंधाकाण्ड से युद्धकाण्ड की समाप्ति तक की कथा अर्थात् बालिवध से राम राज्याभिषेक तक की कथा वर्णित है। रामराज्याभिषेक के आधार पर ही इसका नामकरण किया गया है।
महावीरचरित – भवभूति
जिसमें रामविवाह से लेकर राज्याभिषेक तक की कथा निबद्ध की गई है। कवि ने कथा में कई काल्पनिक परिवर्तन किए हैं जिनसे चिरपरिचित रामकथा में रोचकता आ गई है। यह वीररसप्रधान नाटक है।
उत्तररामचरित – भवभूति
इसमें सात अंकों में राम के उत्तर जीवन को, जो अभिषेक के बाद आरंभ होता है, चित्रित किया गया है जिसमें सीतानिर्वासन की कथा मुख्य है। अंतर यह है कि रामायण में जहाँ इस कथा का पर्यवसान (सीता का अंतर्धान) शोकपूर्ण है, वहाँ इस नाटक की समाप्ति राम सीता के सुखद मिलन से की गई है। इन नाटकों के अतिरिक्त अन्य नाटक हैं – यज्ञफल नाटक-भास, कुन्दमाला नाटक-दिंन्नाग, जनकजान्दम्-कलय लक्ष्मी नृसिंह, छलितराम, रामाभ्युदय-यशोवर्मन, रामाभ्युदय-रामदेव व्यास, स्वप्नदशानन-भीमट, मैथिलीकल्याणम्-हस्तिमल्ल, उदात्त राधव-अनंगहर्ष, आश्चर्य चूड़ामणि-शक्तिभद्र, कृत्यारावण, मायापुष्पक, रामचरित, रामान्द-श्रीगदित, अनर्धराधव-मुरारी, बालरामायण-राजशेखर, अभिनवराधव-क्षीरस्वामी, वालीवधम्, मारीचावंचिक, प्रसन्नराघव-जयदेव, रघुविलास-रामचन्द्रसूरि, राधवाभ्युदय-रामचन्द्रसूरि, राधवाभ्युदय-गंगाधर, राधवाभ्युदय-भगवान राया, राधवाभ्युदय-वेंकटेश्वर, जानकीराधव-रामसिंह, रामविक्रम, दूतांगद-सुभट, दूतांगद-रामचन्द्र, अमोधराधव, अभिरामराधव, उल्लाधराधव-सोमेश्वर, उन्मत्तराधव-भास्कर, उन्मत्तराधव-महादेव, आनंदराधव-राजचूडामणि, अभिराममणि-सुंदरमिश्र, अद्भूतदर्पण-महादेव, जानकीपरिणय-रामभद्र, दिक्षित, राघवान्द-वेंकटेश्वर आदि नाटकों में रामकथा समाहित है।
महानाटक
अकबर ने नवम्बर 1588 मेंं सचित्र रामायण का फारसी भाषा मे अनुवाद पूर्ण करवाया था। जो जयपुर महल संग्रहालय में सुरक्षित हैं। इस रामायण में कुल 365 पृष्ठ हैं।
मुगल रामायण
कतार के दोहा में भी मुगल रामायण हैं, जो अकबर की मां हमीदा बानु बेगम के लिए बनाई गई थीं। यह पुस्तक 16 मई,1594 को पूर्ण हुए थींं।
अनुवाद
अब्दुल रहीम ने भी सचित्र रामायण का अनुवाद करवाया था। वर्तमान समय में ‘फ्रिर गेलेरी ओफ आर्ट’ वाशिंगटन में सुरक्षित हैं। इस रामायण के मुख्य चित्रकार श्याम सुंदर हैं।
योगवासिष्ठ रामायण :
‘चेस्टर बेट्टी लाइब्रेरी’, डबलिन में एक लघु योगवासिष्ठ रामायण हैं, जो अकबर और जहाँगीर की हैं। इस रामायण में 41 चित्र हैं।
विदेशों में रामकथा
विश्व साहित्य में इतने विशाल एवं विस्तृत रूप से विभिन्न देशों में विभिन्न कवियों एवं लेखकों द्वारा राम के अलावा किसी और चरित्र का इतनी श्रद्धा से वर्णन न किया गया। विदेशों में भी तिब्बती रामायण, पूर्वी तुर्किस्तानकी खोतानीरामायण, इंडोनेशिया की ककबिनरामायण, जावा का सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानीरामकथा, इण्डोचायनाकी रामकेर्ति (रामकीर्ति), खमैररामायण, बर्मा (म्यांम्मार) की यूतोकी रामयागन, थाईलैंड की रामकियेनआदि रामचरित्र का बखूबी बखान करती है। इसके अलावा विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। इसका विस्तृत विवरण एक अन्य अध्याय ‘विश्वव्यापी राम कथा’ में दिया गया है। इसके अलावा विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमरका प्राचीन काव्य इलियड रोम के कवि नोनसकी कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। वाल्मीकि कृत रामायण के भारतीय भाषाओं में अनेक संस्करण उपलब्ध है। इनके अतिरिक्त विदेशों में भी रामकथा अनेक भाषाओं में उपलब्ध है। यथा –
नेपाली भाषा :- भानुभक्तकृत रामायण, सुन्दरानन्द रामायण, आदर्श राघव, नेपालभाषा : सिद्धिदास महाजु आदि। कंबोडिया भाषा :- रामकर तिब्बती भाषा :- तिब्बती रामायण पूर्वी तुर्किस्तान :- खोतानीरामायण इंडोनेशिया :- ककबिनरामायण जावा :- सेरतराम, सैरीराम, रामकेलिंग, पातानीरामकथा, इण्डोचायना :- रामकेर्ति या रामकीर्ति, खमैररामायण बर्मा (म्यांम्मार) :- यूतोकी रामयागन, राम वथ्थु, महाराम आदि, थाईलैंड :- रामकियेन
श्रीरामचरितमानस और मॉरीशस
श्रीरामचरितमानस से मॉरीशस टापू का बहुत गहरा सम्बन्ध है। मॉरीशस की तुलना अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने स्वर्ग से की थी। क्योंकि मॉरीशस संस्कारों की धरती है। यहाँ हर कौम के लोग, हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सभी एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में समान रूप से भाग लेते हैं। फिर चाहे वह दीपावली, ईद या क्रिस्मस हो। यहां यह कहना औचित्यहीन नहीं होगा कि राम कथा किसी-न-किसी रूप में हर भूखंड पर अपना अस्तित्व बनाए हुए है। कथानक एक समान ज्ञात होता है। प्रसंग भिन्न हो सकते हैं। संवाद में विविधता है सकती है। स्थान विशेष के नामों में अंतर हो सकता है। घटनाक्रम आगे पीछे हो सकते हैं किंतु विषय वस्तु महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण पर ही आधारित है।
