उस दिन हसीना जब वापिस घर पहुंची तो सलमा को देख दंग रह गई। सलमा का कुंआरापन लुट चुका था। उसकी कोमल सी काया रौंदी हुई थी। सलमा स्वयं भी हसीना की ओर देखती रही जैसे बहुत कुछ कहना चाहती हो। पर कहा केवल आंखों और दिल के द्वारा ही। जैसे कोई भी भाषा उसकी […]
Author Archives: एस. बलवंत
बर्फ का सेंक : एस. बलवंत
आज से करीब तीस-बत्तीस वर्ष पूर्व भी क्वीज होटल में ताला लगा हुआ था। पुराना बोर्ड अभी भी वहां लटक रहा था। आस-पास की जगह लोगों ने सम्हाल ली थी और वहां कई कारोबार चल पड़े थे। तब क्वींज होटल के सामने एक गली होती थी। घन्नूशाह क्वींज होटल के साथ-साथ इस गली का भी […]
फासले : एस. बलवंत
असलम दिल्ली वापिस आते वक्त काफी परेशान था। ड्राइवर कार भगाए जा रहा था। उसे लगा वह बहुत तेज चला रहा है। जैसे-जैसे पेड़ पीछे छूटते जाते उसको लगता बहुत कुछ पीछे रह गया है। असलम को गुरपाल की मौत की खबर मिलते ही उसकी तो जैसे जान निकल गई।… यह कैसे हुआ?… यह सब […]
अतीत की परछाई : एस. बलवंत
शताब्दी एक्सप्रेस पूरी रफ्तार से भागी जा रही थी। यह गाड़ी बस से आधे समय में पहुंचा देती थी। इकबाल सिंह दलेर सिंह के भोग पर चंडीगढ़ गया हुआ था। वहीं पर उसको जिन्दर और भगवान भी मिल गए। वह सारे इकट्ठे पढ़ा करते थे। कॉलेज के दिनों में वे कामरेड हुआ करते थे। पार्टी […]
जख्मों की फसल : एस. बलवंत
फातिमा जब घर आई तो अख्तर काफी गुस्से में था। वह घबरा गई। उसने सोचा उसका नौकरी करना अख्तर को अच्छा नहीं लगा। वह चुपचाप अंदर चली गई। शगूफा अभी स्कूल से नहीं आई थी। वह अपने कमरे में जाकर कुर्सी पर बैठ अख्तर की ओर देखने लगी। वह चारपाई पर पड़ा करवटें बदल रहा […]
प्लेसमैंट सर्विस : एस. बलवंत
उस दिन सुबह आते ही कालीचरण ने दफ्तर का दरवाजा खोलकर माथा टेका और बाद में वह अपने कैबिन में बने रब्ब के सामने भी झुका। कालीचरण ने पूजा के स्थान पर में सभी धर्मों के अवतारों को शामिल किया हुआ था। उसका सभी धर्मों पर विश्वास था। वह कहता “भगवान तो एक है बस […]
गुरांदित्ता : एस. बलवंत
उन दिनों सुबह होते ही सारी सब्जी मंडी में ऐसा शोर मचता था जैसे कोई बहुत बड़ी लड़ाई शुरू हो गई हो। सब्जियों और फलों के लदे हुए ट्रक आते और छोटे व्यापारी और रेहड़ी वाले अपनी-अपनी जरूरत के अनुसार माल खरीदकर मुहल्लों की तरफ चल पड़ते। दोपहर तक शांति हो जाती। पर उस दिन […]
जमी हुई आग : एस. बलवंत
इसी गांव में गेजो की बहन ब्याही हुई थी। इसलिए उसका चक्कर तो यहां पहले भी लगता रहता था। सुन्दर और भरे हुए शरीर की तो वह थी ही। बचपना जैसे बस उसी को मिला था। आदतें बिलकुल बच्चों जैसी। सारा सारा दिन वह अपनी बहन के ससुराल में जामुनों वाले कुंए पर बच्चों की […]
नथिया सांहसण : एस. बलवंत
उड़ती-उड़ती बात नथिया तक भी पहुँच गई। सांसियों के पूरे मोहल्ले में एक वही सबसे लंबी व निधड़क औरत थी। उसकी लंबाई छ: फुट से कोई दो इंच कम होगी। उसका सांवला रंग था और वह हमेशा काले कपड़े पहनती थी। जो लोग उसके पास शराब पीने आते उनमें से कई उसके हुस्न की वजह […]
अधूरे लोग : एस. बलवंत
शाम हो चुकी थी। दीपक होटल के कमरे में मनी और उसकी बीवी का इंतजार कर रहा था। सुबह उसने सबसे पहले उन्हें ही फोन किया था। दिल्ली से चलते हुए केटी ने उसे मनी का फोन नंबर दिया और कहा था कि वह मनी दंपती से जरूर मिले। वे अच्छे लोग हैं। …बहुत अच्छे। […]
