इसी गांव में गेजो की बहन ब्याही हुई थी। इसलिए उसका चक्कर तो यहां पहले भी लगता रहता था।
सुन्दर और भरे हुए शरीर की तो वह थी ही। बचपना जैसे बस उसी को मिला था। आदतें बिलकुल बच्चों जैसी। सारा सारा दिन वह अपनी बहन के ससुराल में जामुनों वाले कुंए पर बच्चों की टोली बनाकर खेलती रहती। ट्यूबवैल में डुबकी लगाती।
जब वह अपनी बहन के ससुराल के गांव की गली से गुजरती तो ऐसा लगता जैसे जमीन हिल रही हो। हंसती तो मानो सारी कायनात हंसती हो।
बस उसके हुस्न को देख ही निंदर की मां फिदा हो गई। कहती बस अपना निंदर को ब्याहना है तो गेजो के साथ। गेजो के घरवाले भी मान गए कि एक ही गांव में दोनों बहनें रहेंगी तो अच्छा ही है। एक दूसरे का सहारा बनेंगी और उनकी आवाजाही भी कम होगी।
निंदर भी बड़ा सुंदर था। बस झटपट ही ब्याह तय हो गया। निंदर ने गेजो के बारे बहुत कुछ सुन रखा था।
उसको घबराहट हो रही थी कि वह कैसे पेश आयेगा। वह उसका सामना कैसे करेगा। सुना था कि वह काफी सुन्दर व तेज है। वह जब उसकी सुन्दरता के बारे में सोचता तो मन में गुदगुदी भी हो उठती।
निंदर के दोस्तों ने उसको समझाया “कंजरा! अगर बीवी पर रोआब डालना है तो फेरों के बाद पहले माथा टेक कर उठ जाना। अगर पहले बाजी मार गया तो मार गया। उधर गेजो की सहेलियों ने भी यही बात समझाई थी उसको।
फेरों पर बैठा निंदर अभी सोच ही रहा था कि फेरों की रस्म पूरी हो गयी। गेजो महाराज के बीड़ के सामने माथा टेक कर उठ खड़ी हुई।
निंदर ने गेजो की ओर देखा।
घूंघट के अन्दर उसके चेहरे पर शरारत नज़र आ रही थी।
निंदर झेंप गया।
बाद में निंदर के दोस्त मजाक उड़ाने लगे। वह लाख सफाईयां देता रहा पर वह न मानते। “सरदारनी का रोआब पड़ गया तेरे पर निंदरा। उसने बाजी मार ली लगता है।” उसके दोस्तों में से एक ने कहा।
उस दिन निंदर अपने दोस्तों के झुंड में घिरा रहा।
शरारती तो गेजो थी ही। सुहागरात वाले दिन भी उसने सलवार के नारे को इतनी गांठें दी कि निंदर खोलता हुआ हार गया। गेजो हंसती रही और निंदर डरा-डरा उसकी ओर देखता रहा। आखिर वह गेजो को बिस्तर पर छोड़ जमीन पर ही सो गया। गेजो अपनी जीत पर खुश हो रही थी और निंदर अपनी हार पर मायूस।
पर जब निंदर नीचे सो गया तो गेजो को कुछ न सूझा कि अब वह क्या करे। वह काफी देर उसकी ओर देखती रही कि वह उठकर बिस्तर पर आयेगा। इसी सोच में उसको भी नींद आ गई।
सुबह हुई तो निंदर घर से जा चुका था।
गेजो का सारा दिन स्वागत होता रहा।
आया गया हर कोई घूंघट उठा कर बहू को देखता तो अश–अश कर उठता। उधर फेरों वाली बात को लेकर निंदर सारा दिन दोस्तों में तंग सा हुआ बैठा रहा। उसके दोस्त मजाक करते। वह सफाई भी देता तो सब मजाक में हंस पड़ते। निंदर और सिकुड़ जाता।
दूसरे दिन भी निंदर गेजो के बिस्तर पर न गया। गेजो इंतजार करती रही पर बोली कुछ भी नहीं। इस तरह कई दिन गुजर गये। वह दोनों “इकट्ठे” न हो सके।
सारे मेहमान चले गए। घर में बस निंदर की मां और गेजो ही रह गई। कभी-कभी गेजो की बहन भी उससे मिलने आ जाती। सारा कामकाज खत्म कर गेजो अपनी बहन के बच्चों को लेकर खेलने चली जाती। बिल्कुल अल्हड़पन लिए। बेफिक्र।…बेधड़क।… न डर का एहसास। न दुनियादारी की फिक्र।
एक दिन निंदर रात को खूब शराब पीकर आया। आते ही जोर से गरजा। गेजो डर गई। मां कहीं पड़ोस के घर में गई हुई थी। निंदर ने गेजो को पकड़ अन्दर बिस्तर की ओर धक्का दे दिया। वह सीधी चारपाई पर जा गिरी और साथ ही कांप गई। ताकतवर तो वह काफी थी पर पति के साथ कैसे लड़े?
निंदर ने अपने शरीर के कपड़े उतारने शुरू किए।
वह डरी हुई देखती रही।
आखिर उसने अपना सब कुछ उतार दिया। गेजो के लिये यह पहला मौका था कि उसने किसी आदमी को इतना नंगा देखा हो।
निंदर गेजो के साथ लेट गया। उसके बदन के स्पर्श से पहले तो गेजो कांप गई पर गेजो को उसका स्पर्श अच्छा लगा। धीरे-धीरे निंदर गेजो के कपड़े उतारने लगा। गेजो सिकुड़ती चली गई। निंदर के स्पर्श से वह तड़प उठी। ऐसा आनंद वह पहली बार महसूस कर रही थी। उसने सुना तो बहुत कुछ था, पर महसूस पहली बार कर रही थी। वह आंखें बन्द कर लेटी रही।
कुछ देर बाद निंदर का हाथ गेजो के बदन से हट गया। तब उसने आंख खोली तो देखा निंदर अपने गुप्त अंग को छेड़ रहा था। निंदर को लगा जैसे उसके शरीर की चिंगारियां बुझ कर राख हो गई हों। कुछ देर बाद वह बाहर चला गया।
गेजो को कुछ बात समझ न आई कि यह क्या हो रहा है? वह कुछ देर वैसे ही लेटी रही, फिर वह कपड़े पहन कर रसोई में काम करने लगी।
थोड़ी देर में उसकी सास भी आ गई।
खाना खाकर दोनों लेट गई। निंदर काफी रात गये तक न लौटा। शायद आधी रात का वक्त होगा जब वह आया।
गेजो जाग रही थी।
निंदर ने न उसको बुलाया न ही खाना खाया।
लड़खड़ाता हुआ अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया।
नशे में तो वह चूर था ही।
बस इस तरह दिन गुजरते गये। उस रात के बाद गेजो का खेलने में भी मन न लगता।
जब अकसर उसके बदन में एक झुनझुनी सी होती तो वह मदहोश हो जाती। वह दिन में भी सपने देखने लगी।
निंदर के साथ जब उसकी आंख मिलती निंदर झेंप जाता।
निंदर के अंदर एक अजीब किस्म का डर बढ़ने लगा। वह सोचता कहीं गेजो किसी को यह बता न दे।
उसने कई दवाइयां खाई। हकीमों को दिखाया पर कुछ न बना।
गेजो दिन पर दिन घुटती जा रही थी। वह हंसती तो निंदर से सहन न होता। वह डर जाता। कहीं न कहीं उसके अंदर डर के साथ गुस्सा भी भरता जाता।
इस सबके बारे में केवल वह दोनों ही जानते थे। और किसी को इस बात का पता न था। निंदर हर वक्त डरा-डरा रहता। उसको समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। वह उस वक्त से भी डर रहा था कि जब किसी को यह पता लगेगा कि वह दोनों अभी तक इकट्ठे नहीं सोए तो गांव में क्या इज्जत रहेगी? उसके दोस्त तो उसको ताने दे देकर मार देंगे। वह तो अब भी जीने नहीं देते। मजाक करते रहते हैं।
एक दिन उसने मन बनाया कि वह गेजो को ही दुनिया से हटा देगा। वह नहीं होगी तो सारी मुसीबत ही खत्म हो जाएगी। पर उसको हटाए कैसे? कभी वह कोई योजना बनाता तो कभी कोई। पर हर बार वह डर जाता।

वह लोहड़ी का दिन था जिस दिन वह कहीं से पारा ढूँढ लाया। और गेजो को खिलाने में कामयाब भी हो गया। जब वह पारा खिला चुका तो गेजो के चेहरे की ओर देख कर डर से उसके हाथ पांव फूल उठे। उसके अपने अन्दर के भय ने कंपकंपी छेड़ दी। गेजो की आंखों में आत्मविश्वास देख वह जैसे जमीन पर गिरने लगा।…
उसका दिल कह रहा था कि वह बाहर निकल कर जोर-जोर से दहाड़ मारे।… दोनों हाथ पीट-पीट कर रोए।… लोगों को बताए कि उसने क्या किया।… अपनी बीवी को जब औरत का सुख न दे सका तो पारा खिला दिया। अगर और कुछ नहीं तो दीवार में अपना सिर पटक कर ही फोड़ डाले।… पर वह ऐसा कुछ भी न कर सका।
वह घर से निकल बाहर की ओर चला गया और पता नहीं कहां गुम हो गया।
जब गेजो पर पारे का असर हुआ तो उसकी सास की तो जान ही निकल गई। सारे गांव में शोर मच गया। यह सुन गेजो की बहन भागी आई। डाक्टर को बुलाया गया। गेजो की हालत बड़ी खराब हो गई। पर निंदर वापिस न आया। न ही उसका पता चला कि वह कहां है।
दवाइयों ने गेजो को बचा लिया। पर उसने कहा यह तो इसका शरीर था जिसने सहन कर लिया। गेजो सूख कर कांटा हो गई, पर बच गई। गेजो की सास ने उसकी बहुत सेवा की।
गेजो अब पूरी ठीक हो गयी थी।
कई जगह पता कराया पर निंदर का कहीं पता न चला। गेजो के बच जाने की खबर सारे इलाके में फैल गई।
यह करामात थी।
उसे एक अजीब सा सुकून मिला।
वह यह सोचता गांव वापिस लौट कर गेजो से माफी मांग लेगा। और वह गांव वापस आ गया। पर वह अभी भी हकीमों के चक्करों में दवाइयां खाए जा रहा था। शरीर में बहुत गर्मी पड़ गई थी। अचानक उसे दौरा पड़ा और उसे अधरंग हो गया और वह चारपाई पर पड़ गया।
गेजो उसके शरीर के निकास का गंद उठाती। इस तरह दिन गुजरते रहे।
निंदर भी ठीक होना शुरू हो गया। चलने फिरने लग पड़ा। दोनों के चेहरों पर फिर रौनक आ गई।
पर वह दुःखी होता।
इसी दौरान वह गेजो को अंदर से प्यार करने लगा था। वह उसकी ओर देखता तो उसका दिल करता कि उसे जोर से आलिंगन में ले ले।
गेजो भी उसकी ओर देखती तो ठीक होने की दुआ करती।
निंदर ने सोचा गेजो को पारे वाली बात बता कर वह उससे माफी मांग ले। वह माफ कर देगी। दिल से पत्थर जैसा भार उतर जायेगा।

एक दिन गेजो और वह घर में अकेले थे।
निंदर से रहा न गया। उसने गेजो को पारे वाली बात बताई पर गेजो को पहले से ही यह बात पता थी।
“तुझे पता था कि तुझे मैंने पारा दिया और तूने फिर भी मेरी इतनी सेवा की?… मैंने तुझे मारने की कोशिश की और तूने मुझे जिंदा रखने की?”, वह बिलख-बिलख कर रोने लगा।
गेजो उसे चुप कराती रही।
निंदर ने गेजो को आलिंगन में ले लिया। गेजो के शरीर में सेंक अभी भी बाकी था। निंदर भी ठीक हो गया था। थोड़ी ही देर में दोनों एक-दूसरे के लिए बेचैन हो गए।
पता नहीं उस दिन क्या हुआ। रब्ब की क्या करनी थी। जैसे जमी हुई आग भड़क पड़ी हो।… उस दिन निंदर मुकम्मल मर्द था।
उसने गेजो के साथ सुहागरात वाली शुरुआत की।
कुछ देर में वह दोनों शांत भाव से एक दूसरे की ओर देख रहे थे और दोनों ने फिरसे एक दूसरे को ओगोश में ले लिया।
