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Causes of cancer in Women

कैंसर एक ऐसा रोग जो आज जितना जानलेवा है उतना ही आम हो गया है। खानपान की आदतों, आधुनिक लाइफस्टाइल और तनाव ग्रस्त जिंदगी में यह ज़हर घोलने का काम कर रहा है। महिलाएं भी कैंसर के रोग से पीड़ित हो रही हैं।

आज के इस लेख में हम जानेंगे महिलाओं में होने वाले कैंसर के मुख्य कारण, इसकी पहचान के तरीके और इसकी जांच स्वयं करने की प्रक्रिया और चिकित्सा के बारे में।

कैंसर कैसे होता है?

हमारा शरीर असंख्य कोशों का बना हुआ है। ये कोश भिन्न-भिन्न स्वरूप के होते हैं और अलग-अलग कार्य करते हैं। प्रत्येक कोश के लिए एक या अनेक निर्धारित कार्य होते हैं। 15 दिन से 6 माह के अंदर पुराने कोश नष्ट हो जाते हैं और नए कोश बन जाते हैं। इस प्रकार शरीर के क्रियाकलाप उचित रूप से चलते रहते हैं।

कभी-कभी कोई एक कोश किसी उत्प्रेरक अथवा उपापचय गड़बड़ी के चलते अपने से मिलता-जुलता विकृत कोश उत्पन्न करता है। ये विकृत कोश अपनी आयु के बाद नष्ट नहीं होते, जिससे इन विकृत कोशों के समूह की एक गांठ बन जाती है। इसी गांठ को कैंसर कहते हैं। कभी-कभी इस गांठ से कुछ कोश अलग होकर शरीर में फैल जाते हैं।

इसे कैंसर का फैलाव (मेटास्टेसिस) कहते हैं। स्थान के अनुसार गले का, त्वचा का, गुदा का, आमाशय का, हड्डी का, फेफड़े का, मुंह का कैंसर आदि होते हैं।

बच्चेदानी के मुंह का कैंसर

इसमें मासिक धर्म अनियमित हो जाता है, पानी ज्यादा आता रहता है, संभोग के बाद खून आने लगता है। प्रथम अवस्था में चिकित्सकीय परामर्श व औषधियों से इलाज हो सकता है। लापरवाही बरतने पर यह बढ़ जाता है। अंतिम अवस्था में गंदा पानी बाहर आने लगता है।

इस प्रकार का कैंसर सिगरेट पीने से, छोटी आयु में विवाह करने से, एक से ज्यादा पुरुषों से संभोग करने से होता है।

ओवरी (अंडकोशीय) कैंसर

इस प्रकार के कैंसर में ओवरी के नीचे गांठ बनने लगती है। कई बार गांठ के घूमने से रोगी महिला को तीव्र दर्द होता है। इस बीमारी का पता अंदरूनी जांच-पड़ताल से चल जाता है।

ओवरी की स्क्रीनिंग मुश्किल है। इसमें पेट फूलने लगता है। वजन घटने लगता है। ये कैंसर की अंतिम अवस्था के लक्षण हैं। इस अवस्था में शल्य-क्रिया करानी पड़ती है। रोगी पूरी तरह ठीक हो जाए यह आवश्यक नहीं।

गर्भाशय कैंसर

इसका प्रमुख लक्षण मासिक धर्म का अनियमित होना व जरूरत से ज्यादा मात्रा में होना है। गर्भाशय की बायोप्सी से कैंसर के बारे में स्पष्ट होता है। प्रारंभिक अवस्था में यह औषधियों से (प्रमुखतया होम्योपैथिक औषधियों से) ठीक हो सकता है। अंतिम अवस्था में ऑपरेशन के बाद भी दवाइयां, इंजैक्शन आदि चलते हैं।

स्तन कैंसर

इसकी शुरूआत स्तन में गांठ से होती है। महिला को स्वयं ही वक्ष छूने से इस गांठ का पता चल जाता है। इसमें कई बार निपल से खून रिसने लगता है।

दोनों वक्षों के आकार में परिवर्तन आने लगता है। प्रारंभ में होम्योपैथिक औषधियों से उपचार संभव है। बाद में ऑपरेशन भी कराना पड़ सकता है। ऑपरेशन में प्रभावित स्तन को निकालना भी पड़ सकता है। कुछ अच्छे सर्जन अब स्तन निकालने के बाद प्लास्टिक सर्जरी द्वारा नया स्तन बना देते हैं।

स्तन कैंसर का कारण

  1. तीस वर्ष से अधिक आयु की स्त्रियों में विशेष रूप से अविवाहित, तलाकशुदा, विधवाओं या स्तनपान न करा सकने वाली महिलाओं को स्तन कैंसर की संभावना अधिक होती है।
  2. आनुवांशिकता भी इसका प्रमुख कारण है, पिछली पीढ़ी में कोई स्त्री स्तन कैंसर से पीड़ित हो तो अगली पीढ़ी में इसकी संभावना बढ़ जाती है।
  3. रक्त में एस्ट्रोजन हार्मोन की अधिकता से स्तन कैंसर की संभावना बढ़ती है।
  4. जिन स्त्रियों ने गर्भधारण न किया हो या किसी कारण से अपने बच्चे को स्तनपान न करा पाई हों, ऐसी स्त्रियों में स्तन कैंसर अधिक मिलता है।
  5. स्तन पर बार-बार आघात होना, लगातार सूजन बनी रहना, कसे हुए वस्त्रों का इस्तेमाल आदि भी स्तन कैंसर की संभावना बढ़ा देते हैं।

स्तन कैंसर की पहचान

हालांकि प्रारंभिक अवस्था में स्तन कैंसर या किसी भी प्रकार के कैंसर के बारे में पता चल पाना मुश्किल होता है। फिर भी कुछ लक्षणों के आधार पर यह पहचान हो सकती है-

  1. स्तनों में गांठ दिखाई पड़ना। इसके साथ ही बगल में भी उभार दिखाई देना।
  2. स्तनों में सूजन व खिंचाव महसूस होना।
  3. कभी-कभी सूजन के स्थान पर घाव उत्पन्न होता है और कुछ समय बाद वहां से रक्तस्राव होने लगता है।
  4. जब गांठ स्तन के ऊपरी और बाहरी स्थान पर होती है, तब निपल से स्राव होने लगता है। कभी-कभी इस स्राव में खून निकलता है।
  5. गांठ के स्थान की दिशा में चूचक खिंचा हुआ होता है। गांठ के साथ स्राव भी आ रहा हो तो यह चिंताजनक अवस्था होती है।
  6. गांठ छूने पर कड़ी और गतिशील होती है। कभी स्थिर गांठ भी हो सकती है। प्रारंभ में दर्द नहीं होता।

स्तन कैंसर की पहचान मिनटों में

स्तन कैंसर की पहचान अब मिनटों में होगी क्योंकि ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक ट्राईकॉर्डर विकसित किया है। हाथ में पकड़े जा सकने वाली यह मशीन मरीज के खून, उसकी लार व यूरिन की जांच करने के बाद कुछ ही मिनटों में कैंसर की पहचान कर लेगी। ‘क्लीनिहब’ नाम के इस उपकरण में कई पार्ट्स हैं, जिनमें सैंपल्स डाले जा सकते हैं। इसे बनाने वाले कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के पैट्रिक पॉर्डेज ने कहा कि डॉक्टरों और मरीज दोनों के लिए यह मशीन आनवाले समय में फायदेमंद होगी।

स्तन कैंसर की चिकित्सा

प्रारंभिक अवस्था में योग्य चिकित्सक से परामर्श करके होम्योपैथिक औषधियां ली जा सकती हैं। कुछ अंग्रेजी दवाएं भी प्रारंभिक गांठ को घोलने में सक्षम होती हैं। दो-तीन महीने के इलाज से गांठ घुलती हुई न दिखाई दे तो शल्य-क्रिया के बारे में सोचना चाहिए।

कैंसर की बढ़ी हुई स्थिति में स्तन को आंशिक या पूर्ण रूप से काट दिया जाता है। हालांकि स्तन कटने से स्त्री को मानसिक बेचैनी होना स्वाभाविक है किंतु अब स्तन के स्थान पर प्लास्टिक सर्जरी से पुन: स्तन प्रत्यारोपण या स्तन जैसा उभार बना दिया जाता है, जिससे कपड़े पहनने के बाद कोई पहचान नहीं सकता कि एक स्तन कटा हुआ है।

स्तन कैंसर खून में हार्मोंस की मात्रा पर आधारित होता है। बंध्याकरण (गर्भाशय निकालने) के बाद इस कैंसर के होने की संभावना कम हो जाती है। जिस स्त्री को एक बार स्तन कैंसर हो चुका हो और स्तन काट दिया गया है, उसे भविष्य में गर्भधारण नहीं करना चाहिए अन्यथा यह कैंसर पुन: होने की संभावना बढ़ जाती है।

स्तन की स्वयं जांच करें

  1. प्रत्येक महीने मासिक चक्र के बाद अपने स्तनों की जांच करनी चाहिए। कमर से हाथों को सटाकर गौर से स्तनों को देखें।
  2. अब बारी-बारी से अपने दाएं-बाएं हाथ को सिर पर रखकर स्तन के बदलाव को देखें। दाएं-बाएं घूम-घूमकर स्तन के पूरे गोलाकार निचले भाग का भी मुआयना करें।
  3. इसके बाद हल्के हाथ से निपल को निचोड़कर देखें कि उसमें से कुछ रिसाव तो नहीं हो रहा है। फिर स्तन की त्वचा को गौर से देखें। गांठ में पीली धारियां नज़र आने लगती हैं।
  4. सिर और कंधे के पास तकिया रखकर पीठ के बल लेट जाएं। एक हाथ कमर से सटाकर रखें। अपनी हथेली स्तन पर रखकर घड़ी की दिशा में फिराएं। दोनों स्तनों पर दोनों हथेलियों से इसी प्रकार जांच करें।
  5. अब अपना हाथ उठाकर सिर के नीचे रख लें। फिर घड़ी की विपरीत दिशा में स्तन पर हथेली फिराकर गांठ का पता लगाएं। गर्दन की हड्डी और अंडरआर्म्स में भी गांठ की जांच करें।
  6. शीशे के सामने होकर, घड़ी की दिशा में व फिर घड़ी के विपरीत दिशा में हाथ फिरा-फिराकर देखें कि कहीं कोई गांठ तो नहीं हैं।
  7. किसी भी प्रकार की कोई गांठ या निपल से स्राव होने पर अविलम्ब चिकित्सक से परामर्श करें।

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