SLEEP
SLEEP

Parenting tips : बच्चों को सही पोषण देने के साथ-साथ उनके व्यवहार और उन्हें अच्छे से नींद आए इसका भी माता-पिता को ध्यान रखना बेहद जरूरी है। बच्चे में अनिद्रा की समस्या सोने के समय की आदतों पर निर्भर करता है।

बच्‍चों के सही विकास के लिए जितना संतुलित खान- पान, अच्‍छा माहौल और खेलकूद जरूरी है उतना ही नींद भी जरूरी है। शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पूरी नींद लेना बहुत आवश्‍यक है। नींद पूरी न लेने या नींद की समस्‍याओं के चलते बच्‍चों में बिहेवियर प्रॉब्‍लम के साथ-साथ काम करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।

आपने अकसर आस-पास देखा होगा कि कई बार बच्‍चे बिना वजह रोते रहते हैं या पेरेंट्स कुछ कहते हैं और बच्‍चे बहुत जल्‍दी परेशान होकर अजीब हरकतें करने लगते हैं। कई बार तो बच्‍चे अपने स्‍वभाव से एकदम अलग ही बर्ताव करते नजर आते हैं। कई बार मॉल या किसी सार्वजनिक स्थान पर बच्‍चे के चिड़चिड़ेपन और अजीबोगरीब हरकतों को समझने में पेरेंट्स असमर्थ हो जाते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि अचानक से बच्चा ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है। बच्‍चों के इस तरह के व्‍यवहार के पीछे कई बार नींद का पूरा न होना या स्‍लीपिंग डिसआर्डर होता है।

पारूल सिंह की 2 साल की एक बेटी है। हाइपर एक्‍िट‍व होने के कारण पूरा दिन भागती दौड़ती रहती है। पारूल कहती हैं कि बच्‍ची को जब नींद आती है तो वह कुछ अलग तरह से व्‍यवहार करने लगती है। उसे सोना होता है लेकिन वह इधर-उधर भागती रहती है। उसे जबरदस्‍ती बेड पर ले जाना पड़ता है, बेड पर जाने के बाद भी सोने में उसे टाइम लगता है। वह खेल में लगी रहती है।

वहीं नेहा के नौ साल के बेटे को रात में बेड पर जाने के बाद सोने में एक से दो घंटे लग जाते हैं। कई बार तो बच्‍चा खुद बोलता है मैं सो नहीं पा रहा हूं, मुझे नींद कब आएगी। नेहा बहला फुसलाकर उसे शांत होकर लेटकर सोने की कोशिश करने को कहती हैं, लेकिन ऐसा क्‍यूं हो रहा है ये समझ नहीं पाती।

ऐसा अगर आपके साथ भी हो रहा है तो हो सकता है बच्‍चे को स्‍लीपिंग डिसऑर्डर या सही से सो न पाने की, नींद पूरी न होने की समस्‍या का सामना करना पड़ रहा है। एक शोध के अनुसार 10 साल के हर तीन बच्‍चों में से दो को किसी-न-किसी तरह की सोने से जुड़ी समस्‍या होती है। बच्चों में नींद की समस्या के कारण उन्‍हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 2 से 5 साल के बीच के 510 बच्चों की नींद के पैटर्न पर काम किया। अध्ययन से पता चला कि रात में कम नींद लेने वाले बच्‍चों में अधिक व्यवहार संबंधी समस्याएं हो जाती हैं। वहीं प्रीटीन और टीनएज के बच्‍चों को भी नींद न आने या देर से सोने की परेशानी का सामना करना पड़ता है।

क्‍या होती हैं नींद से जुड़ी समस्‍याएं

बच्‍चों में अलग-अलग तरह की नींद से जुड़ी दिक्‍कतों को देखा गया है। किसी को जल्‍दी सोने में परेशानी होती है तो किसी को सोते समय पैर दर्द या बिस्‍तर गीला करने की समस्‍या होती है। बचपन में अनिद्रा यानि इनसोमनिया तब होती है जब बच्चे को सप्ताह में कम-से-कम तीन दिन सोने में कठिनाई होती है। बिस्तर पर जाने से इनकार करना या माता-पिता या किसी पसंदीदा वस्तु की मदद के बिना सोने में कठिनाई, जैसे कि पसंदीदा खिलौना या कंबल। अध्ययनों के अनुसार बीस से तीस प्रतिशत बच्चों में महत्वपूर्ण सोने की समस्या या रात में जागने की समस्या होती है।

छह महीने से अधिक उम्र के 25 से 50 प्रतिशत बच्चे रात में जागते रहते हैं। इस उम्र के 10 से 15 प्रतिशत बच्चे सोने के समय विरोध करते हैं यानि वे सोना नहीं चाहते। 15 से 20 प्रतिशत प्रीस्‍कूलर्स में भी सोने संबंधी समस्‍याओं को देखा गया है। बच्‍चे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, उनमें अनिद्रा की समस्‍या अधिक देखने को मिलती है, जिसकी वजह से उनकी परफॉर्मंेस पर असर पड़ने के साथ व्‍यवहार में बदलाव आने लगता है। बच्‍चों में कई तरह के स्‍लीपिंग डिसऑर्डर देखने को मिलते हैं। आइए जानते हैं बच्‍चों में नींद से जुड़ी अन्‍य समस्‍याओं के बारे में-

हाइपरसोमनिया

हाइपरसोमनिया वाले बच्चे या किशोर को दिन में अत्यधिक नींद आती है। एक स्थिति जिसके परिणामस्वरूप हाइपरसोमनिया हो सकता है, वह है नार्कोलेप्सी, एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति जो दिन में बार-बार डोजिंग का कारण बनती है। मांसपेशियों के नियंत्रण का एक अस्थायी नुकसान और मतिभ्रम जो एक बच्चे के सोते या जागते समय होता है।

डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम

डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम, जिसे ‘स्लीपी टीन’ सिंड्रोम के रूप में भी जाना जाता है, इसमें शरीर में बायोलॉजिकल क्‍लॉक में हो रहे बदलावों के कारण नींद में अवरोध पैदा होने लगता है। इस विकार वाले बच्चे अपने सामान्य सोने के समय से दो या दो घंटे से अधिक तक सो नहीं पाते हैं, जिससे स्कूल या अन्य गतिविधियों के लिए सुबह उठना मुश्किल हो जाता है। डिलेड स्लीप फेज सिंड्रोम वाले बच्चे भी सप्ताहांत में सामान्य से अधिक सोते हैं।

पैरासोमनियास

अवांछनीय शारीरिक घटनाएं या अनुभव छोटे बच्चों में सोते समय आम हैं। गहरी नींद में तेजी से आंख घूमना, गहरी सांस लेना, नींद में चलना, चौंक कर जागना और नींद का भय, जिसमें बच्चा रात में अचानक भयभीत हो जाता है। कुछ बच्चे नींद और जागने के बीच की अवधि के दौरान अस्थायी रूप से शरीर, सिर या अंगों को हिलाने में असमर्थ होते हैं।

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया

ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया नींद के दौरान बच्चे को सांस लेने में दिक्‍कत होती है, जिसकी वजह से बच्चे खर्राटे लेते हैं या हांफते हैं और रात भर बार-बार जागते हैं। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया उन बच्चों में आम है जिनके टॉन्सिल या एडेनोइड बढ़े हुए होते हैं। स्लीप एपनिया न्यूरोमस्कुलर विकारों वाले बच्चों में भी हो सकता है, जैसे- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, जो सांस लेने में शामिल मांसपेशियों को कमजोर करता है।

मूवमेंट डिसऑर्डर

सोते समय या नींद के दौरान बच्‍चों को पैरों में अजीब सेंसेशन या उन्‍हें एक स्थिति में बनाए रखने में परेशानी होती है। ये लक्षण रात में बदतर होते जाते हैं और आपके बच्चे की नींद में बाधा डाल सकते हैं।

व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य विकार

व्यवहार संबंधी विकार वाले बच्चे, जैसे कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर या मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे कि चिंता और मनोदशा संबंधी विकार अक्सर अनिद्रा का कारण होते हैं।

कैसे करें बच्‍चों की नींद से जुड़ी परेशानियों को दूर

बच्‍चों की नींद का रूटीन बनाने और उन्‍हें सोने में मदद करने के लिए पेरेंट्स को कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं उन टिप्‍स के बारे में जो बच्‍चे को आसानी से सोने में मददगार साबित हो सकती हैं-

  1. बच्‍चों का बेड टाइम निश्चित करें और उस टाइम से पहले ही बेड पर जाएं। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में बच्‍चे की तय समय पर सोने की आदत पड़ जाएगी।
  2. अगर बच्‍चे को सोने में टाइम लगता है तो सोने से पहले नहाने का रूटीन बनाएं।
    रूम में हल्‍की रोशनी करके शांत माहौल बनाएं।
  3. सोने के कम-से-कम एक घंटे पहले टीवी और अन्‍य गैजेट्स बंद कर दें।
  4. बच्‍चों को सोने में दिक्‍कत हो तो सोने से पहले कहानी की किताब पढ़ने की आदत डालें। स्‍लो सूदिंग म्‍यूजिक भी सोने में सहायक होता है।
  5. अगर बच्‍चे का कोई प्रिय खिलौना है तो उसको साथ में लेकर सोने की अनुमति दें।
    बच्‍चों को सुलाने के लिए दिन में अधिक थकाएं नहीं, ज्‍यादा थकने पर भी नींद आने में दिक्‍कत होती है।
  6. बच्‍चे को सोने से पहले प्‍यार से सहलाएं और किस करें, बच्‍चे को आपका अहसास और प्‍यार शांत होने में मदद करता है, जिससे वे आसानी से सो पाएंगे।
  7. रात में जागने पर उससे बातें करने के बजाय चुपचाप फिर से सुलाने की कोशिश करें।
    दिन में लम्‍बी नैप न लेने दें।

Leave a comment