Summary:पटना पुस्तक मेले की सबसे महंगी किताब: 15 करोड़ की ‘मैं’
पटना के ऐतिहासिक पुस्तक मेले में इस बार सबसे ज्यादा चर्चा एक खास किताब की रही। लेखक के अनुसार इसकी कीमत ब्रह्मलोक से तय हुई है।
15 Crore Rupees Book: पटना के गांधी मैदान में पुस्तक मेला का आयोजन किया गया। यह पुस्तक मेला गांधी मैदान में करीब 41 वर्षों से लगातार आयोजित किया जा रहा है, लेकिन इस बार का पुस्तक मेला काफी खास और अनोखा रहा है, क्योंकि इस बार इस पुस्तक मेला में एक किताब ने सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरी। दरअसल यह किताब 15 करोड़ रूपए की है और इस किताब का नाम “मैं” है।
क्यों है यह किताब इतनी महँगी?

यह किताब इतनी महँगी क्यों है, इसके बारे में किताब के लेखक रत्नेश्वर सिंह ने बताया कि वे संसार के हर एक मनुष्य को ‘मानने से जानने’ की यात्रा की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। इस किताब को वे एक ग्रंथ की तरह देखते हैं और जो बातें इस ग्रंथ में हैं वह बातें रामायण हो, महाभारत हो, वेद-पुराण, उपनिषद, बाइबल या फिर कुरान कहीं भी नहीं बताई गई है।
इस किताब की कीमत के बारे में लेखक कहते हैं कि उन्होंने खुद से इस किताब की कीमत तय नहीं की है, बल्कि ब्रह्मलोक की यात्रा के दौरान स्वयं ब्रह्म ने ही यह कीमत उनके ऊपर उतारी है। वे कहते हैं कि वे इसकी कीमत “50 करोड़ या फिर 100 करोड़ भी रख सकते थे, लेकिन 15 करोड़ की कीमत ब्रह्म की ओर से तय हुई है।
हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में है उपलब्ध

यह किताब दो भाषाओं, इंग्लिश और हिंदी में उपलब्ध है। इंग्लिश में इस किताब में 408 पन्ने हैं और हिंदी में यह 382 पन्नों में उपलब्ध है। इस किताब की अभी केवल 16 किताबें ही छपी हैं, जिसमें आठ अंग्रेजी और आठ हिंदी में हैं। अब तक पूरी दुनिया में केवल तीन किताबों को ही में बेचा गया है, बाकी 13 में से दो पुस्तकें केंद्र में स्थापित की जाएंगी, जहां लोग आकर ग्रंथ का दर्शन कर सकते हैं और इसके बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा 11 लोग इन 11 पुस्तक को पूरी दुनिया में घूमकर इसके बारे में लोगों को विस्तृत जानकारी देंगे और उन 11 लोगों का नाम होगा “मैं” रत्न होगा।
ब्रह्म मुहूर्त में 3 घंटे 24 मिनट में लिखा गया है यह ‘ग्रंथ’
इस किताब के लेखक रत्नेश्वर सिंह हैं, जो इस किताब को सामान्य किताब नहीं, बल्कि “ग्रंथ” कहते हैं। रत्नेश्वर सिंह का कहना है कि किस ग्रंथ को लिखते समय उन्हें आध्यात्मिक अनुभव हुआ, इस दौरान उन्हें ब्रह्मलोक की यात्रा हुई और वहीं से यह ज्ञान शब्दों में उतरा है। रत्नेश्वर सिंह ने इसे दुनिया का पहला ऐसा ग्रंथ बताया है जिसमें “ज्ञान की परम अवस्था” को विस्तार से समझाया गया है। रत्नेश्वर सिंह कहते हैं कि जिस अवस्था को पाने के बाद भगवान बुद्ध को “ज्ञान की प्राप्ति” हुई थी, उसी परम ज्ञान की स्थिति में इस ग्रंथ में पहली बार स्पष्ट किया गया है। यह किताब दुखों के अंत और ईश्वर दर्शन का मार्ग बताती है।
मेला में किताब के पन्ने पलटने नहीं दिए

पुस्तक मेला में किताब के लॉन्चिंग के दौरान लेखक रत्नेश्वर सिंह ने किताब को सबके सामने दिखाया तो जरूर, लेकिन किसी को भी इसके पन्ने पलटने या अंदर झांकने की इजाजत नहीं दी।
