How Lab Tests Can Detect Pneumonia Before It Becomes Severe
How Lab Tests Can Detect Pneumonia Before It Becomes Severe

Overview:शुरुआती जांच से बड़ी राहत: लैब रिपोर्ट बता सकती है निमोनिया आने से पहले ही

निमोनिया के शुरुआती लक्षण अक्सर सर्दी-जुकाम जैसे होते हैं — खांसी, हल्का बुखार, और सांस लेने में थोड़ी तकलीफ़। ऐसे में सिर्फ लक्षणों के आधार पर बीमारी की पहचान मुश्किल होती है। लैब टेस्ट, जैसे CBC, CRP, Procalcitonin, Sputum Culture, और PCR आधारित टेस्ट, संक्रमण के कारण (बैक्टीरिया, वायरस या फंगस) की सटीक पहचान कर सकते हैं।
इनकी मदद से डॉक्टर बीमारी को बढ़ने से पहले पकड़ लेते हैं, सही दवाइयाँ चुनते हैं, और एंटीबायोटिक दुरुपयोग को रोकते हैं। यही शुरुआती जाँचें जीवन बचाने में निर्णायक साबित होती हैं।

World Pneumonia Day: निमोनिया आज भी दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए गंभीर खतरा बना हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, यह बच्चों और बुजुर्गों में संक्रमण से होने वाली मौत का सबसे बड़ा कारण है। हालाँकि आधुनिक चिकित्सा ने इसके इलाज को आसान बनाया है, लेकिन असली चुनौती शुरुआती पहचान (early detection) की है — ताकि संक्रमण गंभीर होने से पहले ही रोकथाम हो सके। इस दिशा में लैब टेस्ट बेहद अहम भूमिका निभाते हैं, जो बीमारी की सही और तेज़ पहचान कर डॉक्टरों को समय पर सही उपचार शुरू करने में मदद करते हैं।

शुरुआती जांच क्यों ज़रूरी है

निमोनिया की शुरुआत में इसके लक्षण अक्सर सामान्य सर्दी या बुखार जैसे लगते हैं। यही वजह है कि लोग इसे नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ऐसे में खून की जांच, सूजन मापने की जांच (सीआरपी) और संक्रमण पहचान जांच (पीसीटी) जैसे टेस्ट बहुत मददगार साबित होते हैं।

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  • अगर खून की जांच में सफेद रक्त कोशिकाएँ या न्यूट्रोफिल की संख्या बढ़ी हो, तो यह बैक्टीरिया से हुए संक्रमण का संकेत हो सकता है।
  • सीआरपी जांच संक्रमण शुरू होने के कुछ ही घंटों में बढ़ जाती है, जिससे बीमारी गंभीर होने से पहले ही चेतावनी मिल जाती है।
  • पीसीटी जांच से डॉक्टर यह समझ पाते हैं कि संक्रमण बैक्टीरिया से हुआ है या वायरस से, ताकि वे सही दवा चुन सकें।

संक्रमण के असली कारण की पहचान

यह जानना बेहद ज़रूरी है कि निमोनिया किस कारण से हुआ — बैक्टीरिया, वायरस या फफूंदी (फंगल)। इसके लिए बलगम की जांच और संस्कृति परीक्षण (कल्चर टेस्ट) किए जाते हैं।
इन जांचों से पता चलता है कि कौन-सा जीवाणु जिम्मेदार है, ताकि डॉक्टर वही दवा दें जो उस पर असर करे।

आजकल तेज़ नतीजे पाने के लिए त्वरित जाँचें (रैपिड टेस्ट) और आणविक जाँच तकनीकें (पीसीआर आधारित टेस्ट) भी उपयोग में लाई जा रही हैं, जो कुछ ही घंटों में रिपोर्ट दे देती हैं और सही इलाज शुरू करने में मदद करती हैं।

जटिलताओं से पहले चेतावनी

अगर निमोनिया समय पर नियंत्रित न हो, तो यह खून तक फैल सकता है। ऐसे मामलों में खून की जांच (ब्लड कल्चर) यह बताती है कि क्या संक्रमण शरीर में फैल चुका है।
साथ ही धमनी रक्त गैस जांच यह दिखाती है कि शरीर में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर सही है या नहीं — यानी सांस लेने की समस्या कब बढ़ने वाली है, इसका अंदाज़ा पहले ही लग जाता है।

इसके अलावा डी-डाइमर और फेरिटिन जांच यह दर्शाती हैं कि शरीर में सूजन या खून के थक्के बनने का खतरा तो नहीं बढ़ रहा — खासकर वायरल निमोनिया जैसे मामलों (उदाहरण: कोविड-19) में।

Input – डॉ. निरंजन पाटिल, एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट (एवीपी), मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड

मेरा नाम मोनिका अग्रवाल है। मैं कंप्यूटर विषय से स्नातक हूं।अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है।मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी और मैग्जीन के लिए कुछ विज्ञापनों में काम किया है । मेरा एक...