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Summary: एक दिल छू लेने वाली कहानी माँ और बेटी के रिश्ते की

वक्त के साथ बदलते रिश्तों की यह कहानी दिखाती है कि माँ की सख्ती के पीछे कितना गहरा प्यार छिपा होता है। जब बेटी ने खुद जिंदगी की चुनौतियों का सामना किया, तब उसे एहसास हुआ — माँ सच में सुपरवुमन होती है।

Hindi Motivational Story: मोनिका ने मोबाइल स्क्रीन पर बेटी का मैसेज देखा  मॉम, आज ऑफिस बहुत टफ था, सिर दर्द कर रहा है, आपसे बात करनी थी। वो मुस्कुरा दी। रिया अब दिल्ली में अपनी नई नौकरी में थी, वही रिया जो कुछ साल पहले माँ से हर बात पर बहस कर बैठती थी। उसे देखकर मन में एक मीठी टीस उठी  वक्त सच में कितना बदल जाता है।

मोनिका की आँखों के सामने पुरानी यादें ताज़ा हो गईं। वो शाम जब रिया कॉलेज से गुस्से में लौटी थी। किताबें पटकते हुए बोली थी कि आप मेरी फीलिंग्स कभी समझ नहीं पातीं, बस अपनी सोच थोपती रहती हैं। उस दिन मोनिका ने कुछ कहना चाहा था, पर शब्द गले में अटक गए थे। बस धीरे से बोली थी, कभी माँ बनोगी न रिया, तब समझोगी। उसके बाद दोनों के बीच एक अनकही दूरी आ गई। बातचीत होती थी, लेकिन जैसे औपचारिकता निभाई जा रही हो।

फिर वक्त बीता और रिया ने नौकरी के लिए दूसरे शहर का रुख किया। जाते वक्त मोनिका ने हर ज़रूरी चीज़ खुद पैक की  दवाइयाँ, टिफिन, एक छोटा-सा नोट और वो स्टील का डिब्बा जिसमें घर की बनी मठरी रखी थी। उसने सोचा था कि बेटी जहाँ भी जाए, माँ का थोड़ा-सा स्वाद साथ रहे। घर लौटकर जब खाली कमरा देखा तो उसे पहली बार बेटी की अनुपस्थिति का असली अहसास हुआ।

पहले कुछ हफ्ते सब ठीक चला। रिया ने नई जगह, नए दोस्तों और अपनी आज़ादी का पूरा मज़ा लिया। लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास होने लगा कि बड़े होने की असली परीक्षा अब शुरू हुई है  खुद के लिए खाना बनाना, समय पर बिल भरना, थकान के बाद घर लौटकर अकेले खाना खाना। हर छोटी परेशानी में माँ की याद आने लगी। वो सोचती  माँ तो बिना थके सब संभाल लेती थीं, और मैं यहाँ एक दिन में ही टूट जाती हूँ।

एक शाम तेज़ बुखार में ऑफिस से लौटी तो खुद के लिए चाय बनाने की कोशिश की। कप में चाय डालते हुए हाथ काँप रहे थे। तभी याद आया, माँ हमेशा चाय में अदरक थोड़ा ज़्यादा डालती थीं ताकि गले में खराश न हो। रिया की आँखें भर आईं। उसने धीरे से कहा, “काश माँ होतीं।” उस शाम उसने पहली बार बिना बोले माँ को दिल से थैंक यू कहा।

धीरे-धीरे माँ-बेटी के बीच की दूरी पिघलने लगी। फोन पर बातचीत अब लंबी होने लगी, जैसे पुराने दिनों की बातें लौट आई हों। मोनिका हर कॉल पर वही पूछती  खाना खाया, नींद ठीक से ली, कपड़े प्रेस किए? और रिया हँसकर कहती  मॉम, अब मैं बच्ची नहीं हूँ। मोनिका बस मुस्कुराती और कहती  माँ के लिए बच्चा कभी बड़ा नहीं होता। दोनों की बातों में अब शिकायतें नहीं, बस अपनापन रह गया था।

आज जब रिया ने मैसेज किया था, मोनिका ने तुरंत वीडियो कॉल लगाया। स्क्रीन पर रिया का चेहरा थका हुआ था, लेकिन आँखों में वही अपनापन था जो सालों से गायब था। उसने कहा  बस थोड़ा थक गई हूँ मॉम, कभी-कभी लगता है आप कैसे इतना सब संभाल लेती थीं  घर, ऑफिस, हम सब। मैं तो आधे में ही हार जाती हूँ। मोनिका मुस्कुरा दी और बोली  हर माँ थोड़ी सुपरवुमन होती है, लेकिन वो भी थकती है। फर्क बस इतना है कि वो अपने थकने की बात कहती नहीं।

रिया की आँखों से आँसू बह निकले। उसने धीरे से कहा  माँ, अब समझ गई हूँ, जब आप मुझ पर सख्ती करती थीं, तब वो प्यार का ही रूप था। बस मैं देख नहीं पाई। मोनिका की आँखें भी नम थीं। बोली  कोई बात नहीं बेटा, प्यार को समझने में वक्त लगता है, जैसे बीज को पेड़ बनने में।

कॉल कटने के बाद मोनिका ने आसमान की ओर देखा। हल्की ठंडी हवा चल रही थी। उसे लगा, जैसे आज उसकी बेटी सच में बड़ी हो गई है। और एक माँ के लिए, उससे बड़ा सुकून कोई नहीं।

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...