Suhaag ki Saree
Suhaag ki Saree

Hindi Motivational Story: सत्तर वर्षीय गोपाल दास कई दिनों से देख रहे थे कि आजकल उनकी दोनों बहुएँ बैग लिए बाज़ार जाने को तैयार रहती है और उनके लड़के भी बराबर बहुओं के साथ जाते हैं।
गोपाल दास ने अपनी पत्नी सावित्री देवी से इसका कारण पूछा जो कि अपना पुराना बक्सा खोले कुछ रखने उठाने में व्यस्त थी । पति की बात पर हल्का सा मुस्कुराते हुए वे बोली  “अगले हफ्ते करवाचौथ है, उसी की तैयारी दोनों बहुएँ कर रही है।”
गोपालदास ने बड़े आश्चर्य से अपनी पत्नी को देखते हुए पूछा.. “कौन सी तैयारी..? बिज्जू की अम्मा..! तुमको तो आजतक कोई तैयारी करते न देखा सिवाय पूजा-पाठ के..!”

“अरे भई तब का ज़माना दूसरा था। तैयारी का नाम पर बस यही होता था कि पूरा दिन निर्जला व्रत रखो, साथ में तरह तरह के पकवान भी बनाओ और जो साड़ी पहन के शादी हुई है वहीं पहन के श्रृंगार कर पूजा करलो। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लो। पर अब ऐसा कहाँ होता है। करवाचौथ के पहले तो औरतो वाली पार्टी होती है। एक दूसरे से अच्छा दिखने के लिए  खरीददारी होती है। पकवान तो छोड़ ही दो…. पूजा भर का सामान ही बन जाये वही बहुत है। फिर पूजा के बाद रात भर पार्टी करना भी रिवाज़ हो गया है।” कहते हुए सावित्री देवी कमर पर हाथ टेकती खड़ी होती हुई दोबारा बोली..

“लेकिन फिर भी खुशी है कि चलो आजकल के बच्चे भी अपनी त्यौहारों और रीतिरिवाजों को मानते हैं, अपनाते हैं, भले ही उनका तरीका अलग हो।”

मन में दबी बातों को निकालते हुए सावित्री देवी अपनी शादी पर पहनी गयी ज़रदोज़ी के काम वाली साड़ी निकाल कर देखने लगी, जो कई बार सिलाई करने बाद अब पहनने लायक नहीं बची थी।
साल में एक ही बार ये बक्सा खुलता था क्योंकि अब भी वे करवाचौथ पर अपनी वही साड़ी ही पहनती थी। उन्हें लगता असली सुहाग की निशानी तो यही है जिसको पहनकर वो सात फेरे लेकर सुहागिन बनी थी।
पहले भी कई बार गोपालदास ने सावित्री देवी से कहा कि वे भी नई साड़ी खरीद लें, बहुओं ने भी एक बार साड़ी लाकर दी, लेकिन सावित्री देवी अपनी शादी की साड़ी का मोह न त्याग पाती।

“ये क्या बिज्जू की अम्मा… तुम्हारी साड़ी तो कई  जगह से फट चुकी है और अब पहनी भी नहीं जा सकती। जाओ तुम भी बाजार जाकर अपने लिए नई साड़ी खरीद लाओ।” गोपालदास की नज़र साड़ी पर पड़ चुकी थी।
पति की बात पर सावित्री देवी ने गौर न किया और साड़ी खरीदने न गयी।
गोपालदास इंतजार करते रहे कि शायद सावित्री साड़ी लेने बाजार जाए लेकिन वह घर के दरवाजे तक भी न गयी।
पूरा दिन वह पत्नी को घर के काम में व्यस्त देखते रहे और फिर अचानक उठकर बिना कुछ कहे बाजार से अपनी पत्नी के लिए साड़ी और एक छोटी सी सोने की नथ ले आये। जिसे देखकर सावित्री देवी तो हैरान ही हो गयी और बहुओं ने भी सावित्री देवी को छेड़ने का मौका न छोड़ा।
लेकिन इस उम्र में माँ के लिए पापा का प्यार देखकर बच्चे और बहुएँ दोनों ही खुश हुए थे।
अरे वाह, क्या बात है मम्मी जी। पापा आपके लिए करवाचौथ पर इतना सबकुछ लाये हैं। एक बहूँ ने ललचाई आँखों से नथ देखकर कहा।
दोनों बहुओं को हंसी ठिठोली करता देख सावित्री देवी बच्चों के सामने झेप गयी और अपने पति पर बड़बड़ाने लगी कि पहले तो कभी एक साड़ी न लाकर दी अब बुढ़ापे में इतना सबकुछ ले आये।
भले ही सावित्री देवी पति पर नाराजगी दिखा रही थी लेकिन  ये उपहार पाकर उन्हें बहुत अच्छा लग रहा था।
खैर सावित्री देवी घर में बार बार ये सफाई देती कि उनकी साड़ी बुरी तरह से फट गई है इसलिए, ये नई साड़ी लाये हैं। गोपाल दास को अच्छा न लगता कि उनकी पत्नी इन जरा जरा कि बातों पर सबको सफाई देती फिरे।
गोपासदास जानते थे कि उनसे ज्यादा उनकी पत्नी ने संघर्ष किया है। लेकिन अब हालात पहले से बेहतर हैं और अब इस बुढ़ापे में जो खुशी दे सकते हैं वो तो देंगे ही।
पहले न ज़माना ऐसा था और न ही स्तिथि ऐसी। सब कुछ बहुत सीमित था। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। हर एक चीज़ का बाज़ारीकरण हो चुका है। बाज़ार में मामूली से मामूली चीज़ों को ऐसे दर्शाया जाता कि लेना आवश्यक लगने लगता।
करवा चौथ के दिन गोपालदास सुबह से ही अपनी पुरानी स्कूटर चमका रहे थे। घर में ज्यादा किसी ने उनपर ध्यान न दिया क्योंकि अक्सर वो ऐसा करते रहते थे।
सावित्री देवी पति की लायी हुई साड़ी में बिना किसी साज-सज्जा के भी चमक रही थी। बल्कि असल मुस्कान तो उनके प्यार की थी जो वो कभी जाहिर न करती पर आज साड़ी पहनकर ख़ुद पर नाज़ कर रही थी।
वहीं दोनों बहुएँ पार्लर में घंटो बिताने के बाद भी उनके आगे फीकी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि ज्यादा सुंदर दिखने की होड़ में ज्यादा ही लीपा पोती हो गयी।
जैसे ही पूजा शरू हुई सावित्री देवी को जैसे अचानक कुछ याद आया और वे तुरन्त उठकर अपने कमरे में चली गईं।
“अब जल्दी भी करो मम्मी जी, कितनी भूख लग रही है।” मुँह बनाकर एक बहू ने कहा।
तभी सावित्री देवी अपनी पुरानी साड़ी ओढ़े कमरे से बाहर निकली।
“भले ही अपनी शादी की साड़ी पहन नहीं सकती लेकिन ओढ़ तो सकती हूँ।” कहती हुई सावित्री देवी ने एक भरपूर निगाह अपने पति पर डाली जो इशारों ही इशारों में सहमति दे रहे थे ।