Short Story in Hindi: बचपन की स्मृतियां सदैव मुख पर स्मित लाने का कार्य करती हैं। भले ही बचपन में वह डराने- डाँट खाने वाली घटना रही हो। लेकिन उम्र के इस दौर में बचपन की नादानियां याद करो तो हंसी आती है।
अपने बचपन की ऐसी ही एक घटना याद आ रही है । उम्र शायद छ या सात साल रही होगी । यह उम्र बेफिक्री, बेलौस जीने की होती है। किसी मूल्यवान वस्तु का भी ज्यादा महत्व बचपन नहीं मानता।
हमारे बचपन में थर्मामीटर भी एक कीमती वस्तु हुआ करता था।
वह भी ग्रामीण परिवेश में हर घर में उसका उपलब्ध होना कठिन था। हमारे घर में भी थर्मामीटर की उपस्थिति नहीं थी और थर्मामीटर होगा भी कभी तो शायद हम बहन भाइयों के हुड़दंगी स्वभाव से उसका ज्यादा समय घर में रहना संभव न हो पाया होगा।
एक बार भाई को बुखार था। डाक्टर ने माँ से कहा था कि बुखार की दवाई बुखार चैक करके देनी है। अगर बुखार कम हो रहा हो तो दवाई की मात्रा कम करनी थी। माँ परेशान थीं।
थर्मामीटर था नहीं कि चैक करें कितना टेंपरेचर है। माँ ने पड़ोस से थर्मामीटर लाने को कहा। हमारे यह पड़ोसी थोड़ा नगरीय व्यवस्था के अनुसार रहते थे तो माँ को भरोसा था कि उनके यहाँ थर्मामीटर अवश्य होगा।
मैं बेहद खिलंदड़ी ,हर समय खेल -कूद ,मस्ती -मजा । खैर… अपने अमीर पड़ोसी से थर्मामीटर लिया। पड़ोसी ने संभाल कर जाने को कहा। मैंने भी हाँ में सर हिलाया और कुछ कदम थर्मामीटर के बॉक्स को ले बहुत सावधानी से चली ।
मगर मुझे इस दुनिया की कारगुजरियां बहुत भाती थीं। कहीं कुत्ते दौड़ रहे हैं ,बिल्लियां आ रही हैं ,चिड़िया उड़ रही हैं, हवाएं चल रही हैं ,पेड़-पौधे हिल रहे हैं, फूल खिल रहे हैं- यानी हर दृश्य मुझे खींचता।
पड़ोसी के घर से निकलते ही मैं दो कुत्तों की लड़ाई देखने में मगन हो गई और थर्मामीटर को सिरे से भूल गई। कुत्ते लड़ाई खत्म कर कूंकते हुए अपनी राह चले तो मैं भी अपने घर की तरफ मुड़ गई ।
हवा बड़ी शानदार चल रही थी।मैंने मस्ती में थोड़ा कूदते ,थोड़ा नृत्य मुद्रा में उछाल भरते हुए अपने पैरों को उचकाते हुए, गली पार कर घर में घुसी।
माँ ने आंखें तरेरी, शायद मेरी देरी पर। फिर झपटकर मेरे हाथ से थर्मामीटर बॉक्स लिया और तत्परता से बॉक्स खोल थर्मामीटर निकालने लगी कि बॉक्स का ढक्कन खोलने ही तेजी से उनके चेहरे के भाव बदले।
पहले अचरज से आँखें चौड़ी होना फिर मुख मुद्रा का गुस्से और दुख के मिले-जुले भाव ने मुझे चेता दिया कि मैं गड़बड़ कर चुकी हूँ।
धीरे से पीछे खिसक मैं वहाँ से हटने की कोशिश की ही थी कि माँ का चिल्लाते हुए मेरे सिर पर जोर का हाथ पड़ा,- “ नुकसान पर नुकसान !लड़की है कि बंदरिया …अब झेलोs!”
उन्होंने मेरी आँखों के समक्ष थर्मामीटर का खुला बॉक्स कर दिया और मैं… हकबकाई-सी बॉक्स के अंदर भरे पारे की खूबसूरत चमकती गोलियां देख रही थी।
काश माँ वह बॉक्स मेरे हाथ में पकड़ा देतीं और मैं उन दमदमाती गोलियों को जमीन पर बिखरा मस्त खेलती ।
अपनी इस नादानी पर चेहरे पर आज भी हँसी की एक लहर आकर चली जाती है।
