chitthi aayi hai author views
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Author Views: ये बहुत ही सराहनीय प्रयास है कि इस स्तंभ के द्वारा हम अपने अनुभव, विचार और सुझाव महिलाओं की अग्रणी पत्रिका गृहलक्ष्मी में प्रेषित कर सकते हैं। इसका ये भी फायदा होगा कि हमारे कुछ खास अनुभव, विचार या सुझाव अधिक से अधिक लोगों तक पहुंच सकते हैं। आदरणीय महोदय इसी क्रम में मैं कुछ सुझाव देना चाहती हूं।
मेरी इच्छा है कि पत्रिका को महिलाओं के लिए एक आदर्श के रूप में जाना जाए। पत्रिका में कुछ संस्कृत के सुभाषित और अच्छे महान लोगों के विचारो को भी स्थान दीजिए जिसका असर पड़ता है। और जैसे कुछ लोगों को हम गिफ्ट में गृहलक्ष्मी की प्रति दें और उसकी पिक यहां भेजें। गृहलक्ष्मी
को आधुनिकता के साथ ही अपने नाम के अनुसार अवश्य बनाएं। कुछ नवीनता की अपेक्षा भी है जैसे बार-बार किसने क्या पहना इसको ही न बताएं। हम सभी भारतीय समाज के अनुसार ही चल सकते हैं। हो सके तो बालिवुड की अच्छी बातें ही ज्यादा लाइए। एक नारी जो कि पूरे परिवार का केंद्र
है यदि उसे ही शिक्षित विचारों से युक्त किया जाए तो समाज और परिवार उच्च स्तरीय बनेगा। युवाओं के लिए भी कुछ तरीके ऐसे बनाएं जाएं जिससे युवा पीढ़ी भी गृहलक्ष्मी से जुड़े इसमें गृहणियां कुछ विषयों पर अपने बच्चों के विचारों को कविताओं को यहां भेजें। गृहलक्ष्मी में आधुनिकता की बात हो
पर संस्कार के साथ हो। जिससे ये पत्रिका अपने नाम के महत्व को बनाए रखें।

डॉ. श्वेता श्रीवास्तव
मिर्जापुर, (उ.प्र.)

जून अंक में सरोकार के तहत नीट, जेईई से आगे जहां और भी है सामयिक और प्रेरणादाई आलेख बन पड़ा है। बच्चों और अभिभावक दोनों को समझना होगा कि डॉक्टर, इंजीनियर बनना ही कैरियर का एकमात्र विकल्प नहीं है। आप में प्रतिभा और रुचि है तो आप अपने पसंदीदा क्षेत्र में भी बहुत कुछ कर सकते हैं। जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण है आप संतुष्ट और खुश रहें। खुश रहने के लिए या तो जो आप करते हैं उसमें खुश रहें या वह करें जिससे खुश रहें, क्योंकि डॉक्टर, इंजीनियर बनने के बाद भी यदि आप असंतुष्ट और जिंदगी से नाखुश हैं तो फिर ऐसी डिग्री का क्या औचित्य। बहुत दिनों बाद आज मेरा दिल यह सोचकर रो दिया, ऐसा क्या पाना था मुझे जो मैंने खुद को ही खो दिया। हमारे लिए हमारा व्यक्तित्व हमारा अस्तित्व सर्वोपरि होना चाहिए।

डॉ. ए.के. माथुर शास्त्री नगर, जोधपुर (राजस्थान)

Author Views-chitthi aayi hai author views
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बरसों बीत गए तुम से हाथ छूटे हुए। ऐसी बात नहीं थी की मुझे तुमसे कुछ नाराजगी थी, जो मैंने तुम्हें घर में बुलाना छोड़ दिया। सच बात तो ये थी की मेरी आंखों में परेशानी थी, इसलिए कुछ पढ़
लिख नहीं पा रही थी। अब आंखों का ऑपरेशन करवा लिया है, अब ठीक हूं।
फेसबुक पर ही तुमसे मुलाकात हुई। कवर पेज पर अपनी सखी शोभा की फोटो देख कर बहुत अच्छा लगा। फिर से जुड़ने की ठान ली। प्रिय सखी तुम मुझे कैसे भूल गई? जानती हो, इतने वर्ष भले ही मैंने पढ़ना कम कर दिया हो, पर अपनी दिल की बातें पन्नों पर उतारना सीख लिया है। खाली समय में लिखती हूं, अपनी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में भेजती हूं। प्रकाशित भी होती हैं। पंद्रह बीस सांझा संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। दो एकल संग्रह भी छप चुके हैं। तुम्हारा कुछ पता ही ना चला, तुम ना जाने कहां आंखों से ओझल रही। अब फेसबुक पर तुम्हें देख ऐसा लगा जैसे बरसों पुरानी सखी मिल गई हो। वादा रहा अब तुम्हारा साथ कभी नहीं छूटेगा। तुम भी मुझे अपनाओगी ना? प्रिय गृहलक्ष्मी,
मुझे भी अपने दिल (कवर पेज) में जगह दोगी ना? मैं भी तो एक समर्पित गृहलक्ष्मी हूं। एक बात और कहूं? इतने सालों में तुम बहुत बदल गई हो। तुम्हारा रंग-रूप निखर गया है और रचनाएं भी एक से बढ़ कर एक। आभार इस मीडिया का जिसने मुझे तुमसे फिर से मिलवाया। अब कोशिश रहेगी
हर माह तुम्हें पत्र लिखूं। पत्रों में रूबरू मिलने से ज्यादा ताकत होती है। इन्हे हम बहुमूल्य दस्तावेज की तरह संभाल कर रख सकते हैं। जब चाहें पढ़ सकते हैं। अब हम इसी माध्यम से मिलती रहा करेंगे। अपने संपादक महोदय को मेरी नमस्ते कहना। उम्मीद करती हूं मेरा ये पत्र तुम्हारे दिल से
होता हुआ पाठकों तक जाएगा।

– कमलेश शर्मा
मानसरोवर, जयपुर (राजस्थान)

जैसा कि आप सभी भली भांति परिचित हैं कि मैं और मेरे पति श्री अभिषेक चित्रांश अंकज्योतिष तथा अंकनामावली जैसे ब्रह्मïण्डीय आध्यात्मिक विषयों का अध्ययन एवं अभ्यास करते हैं। विगत वर्षों में हमारे द्वारा किए गए कई शोध एवं लेख अलग-अलग पत्रिकाओं एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल में
प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हीं में से आज मैं कुछ टिप्स आपसे साझा कर रही हूं। आशा करती हूं कि आप सभी सखियां एवं पाठकगण उससे लाभान्वित होंगे। हम सभी गृहणियां दिन भर गृहकार्य आदि करके बहुत थकावट या मानसिक तनाव महसूस करती हैं, ऐसे में बिना कोई औषधि लिए इस पीड़ा
को कैसे दूर किया जाए? अपनी बायीं बांह (हाथ) पर यह अंक समूह नीले कलम से लगभग एक सप्ताह से एक माह तक अपने ईष्ट को स्मरण करके श्रद्धा और विश्वास के साथ लिखें-
सिर दर्द: 23 74 555
माइग्रेन दर्द: 58 33 554
मानसिक तनाव: 13 13 514
लाभान्वित होने पर अपने विचार हमसे
अवश्य साझा करें और इस तरह की लाभप्रद
जानकारी प्राप्त करने हेतु गृहलक्ष्मी पत्रिका के
नियमित पाठक बनें।

  • रेनू मंगतानी बरेली (उत्तर प्रदेश)