Hindi Sad Story: रेखा की शादी बड़े धूमधाम से हुई थी। जब उसने अपने ससुराल में कदम रखा, तो उसे लगा जैसे सारी खुशियाँ उसकी झोली में आ गई हों। परिवार संपन्न था, पति प्यार करने वाला दिखता था, और उसे लगा कि उसकी ज़िंदगी अब किसी सपने की तरह होगी।
शादी के दो महीने बाद, जब रेखा को पता चला कि वह गर्भवती है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने सपनों में अपने आने वाले बच्चे की तस्वीरें देखनी शुरू कर दी थीं। लेकिन जब यह बात सास को पता चली, तो माहौल में अजीब सा बदलाव आ गया। अगले ही दिन, उसकी ननद का फोन आया-
“अभी तो एंजॉय करो भाभी, इतनी जल्दी बच्चे के चक्कर में मत पड़ो। मैंने भी दो साल तक खुलकर ज़िंदगी जी, तीन बार गर्भपात कराया।”
रेखा को यह सुनकर अजीब लगा, पर वह कुछ कह नहीं पाई। ननद और पति ने मिलकर उसे समझाया कि बच्चा अभी बोझ बन जाएगा। वह नई-नई बहू थी, ससुराल में ज्यादा विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। पति की चुप्पी और ननद के तर्कों के आगे वह हार गई। और फिर, वह दिन भी आया जब रेखा अस्पताल के ठंडे बिस्तर पर लेटी थी। उसकी कोख से वह नन्ही जान निकाल दी गई, जिसे वह प्यार से संजोने वाली थी।
वह लौटी तो शरीर हल्का था, मगर आत्मा भारी। दिल में एक टीस थी, आँखें आँसुओं से भरी हुई थीं। रातों को करवटें बदलते हुए उसे ऐसा लगता जैसे उसने खुद अपने बच्चे को मार दिया हो। एक हत्या… जो उसने खुद करवाई थी।
समय बीतने लगा, लेकिन रेखा की बैचेनी कम नहीं हुई। इस बीच, सास-बहू के छोटे-मोटे झगड़े शुरू हो गए। रेखा को अब यह घर पिंजरा लगने लगा। पति मां के सामने कुछ नहीं कहता था, बस उसे चुप रहने की सलाह दे देता। रेखा समझ गई कि जो दो साल उसे “एंजॉय” करने थे, वह अब मानसिक यातना में बदल चुके थे। शायद यह उस मासूम बच्चे की बद्दुआ थी, जिसे उसने इस दुनिया में आने से पहले ही विदा कर दिया था।
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। दो साल बाद, एक दिन अचानक खबर आई कि उसकी ननद के पति का एक्सीडेंट हो गया। वह अब इस दुनिया में नहीं रहे थे। उसकी ननद, जो दो साल “एंजॉय” करने की सलाह देती थी, अब अपने 16 साल के बेटे के साथ अकेली रह गई थी।
रेखा इस घटना को अपनी जिंदगी से जोड़कर देखने लगी। वह सोचती रही-क्या ये सब किसी अदृश्य न्याय का हिस्सा था? क्या उसकी ननद भी अब समझेगी कि जब एक माँ से उसका सहारा छिन जाता है, तो कैसा लगता है?
उसका मन अंदर तक हिल गया। उसे नहीं पता था कि आगे क्या होगा, पर इतना जरूर समझ आ गया था कि किसी भी माँ की कोख अधूरी रह जाए, तो उसका दर्द ताउम्र पीछा नहीं छोड़ता।
समय बीतता गया, लेकिन रेखा के मन में अपराधबोध की जड़ें और गहरी होती गईं। जब भी वह किसी बच्चे को देखती, उसकी आँखें नम हो जातीं। उसे लगता, अगर वह बच्चा इस दुनिया में होता, तो अब उसकी गोद में खेल रहा होता। जब वह अपनी ननद को देखती, तो उसे एहसास होता कि माँ बनने का सुख और सहारा कितना जरूरी होता है। ननद की आँखों में अब वही अकेलापन था, जो रेखा की आत्मा में बस गया था।
एक दिन, रेखा ने हिम्मत जुटाकर अपने पति से कहा, “अगर उस दिन तुमने मेरा साथ दिया होता, तो आज मेरी कोख सूनी न होती। मैं अपने ही बच्चे की कातिल न बनती।” पहली बार, उसके शब्दों में इतनी तीव्रता थी कि पति भी कुछ नहीं बोल पाया। सास अब भी वैसे ही सख्त थी, लेकिन रेखा ने ठान लिया था कि अगर अगली बार उसकी कोख में कोई नन्हीं जान आएगी, तो उसे कोई छीन नहीं सकेगा। इस बार वह खुद के लिए लड़ेगी क्योंकि अब वह जान चुकी थी कि माँ बनने का सुख दुनिया की किसी भी आज़ादी से बड़ा होता है।
