Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय की बात है, वरुथिनी नामक अप्सरा का एक वीर और पराक्रमी पुत्र था । उसका नाम स्वरोचिष था । स्वरोचिष का विवाह कलावती, मनोरमा और विभावरी नामक युवतियों से हुआ । समय बीतने पर रानी मनोरमा ने विजय को, विभावरी ने मेरुनन्द को और कलावती ने प्रभाव नामक पुत्र को जन्म लिया । उनके युवा होने पर स्वरोचिष ने पद्मिनी विद्या द्वारा तीन सुंदर नगर बनवाए। पूर्व दिशा में कामरूप नामक पर्वत के शिखर पर विजय नाम का नगर बसाया और उसे विजय के अधिकार में दे दिया । उत्तर दिशा में मेरुनन्द के लिए नन्दवती नाम की पुरी और प्रभाव के लिए दक्षिण दिशा में ताल नामक नगर बसाकर उन्हें वहाँ का राजा बना दिया । इस प्रकार तीनों पुत्रों को राज्य सौंपकर स्वरोचिष अपनी पत्नियों के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने लगा ।
एक दिन स्वरोचिष शिकार खेलने की अभिलाषा से वन में घूम रहा था । तभी एक विशाल वराह (सूअर) को देखकर उसने निशाना साधा और बाण चलाने के लिए तैयार हो गया । इतने ही में एक मृगी उसके पास आकर करुण स्वर में बोली – “वीरवर ! इस सूअर को मारने से आपको कोई लाभ नहीं होगा । आप अपने बाण से मुझे मार दीजिए । मैं बड़ी दु:खी हूँ । आपका चलाया हुआ बाण पल भर में ही मुझे सभी दु:खों से मुक्त कर देगा । दयानिधान ! मैं आप पर आसक्त हो गई हूँ । आपने मेरे मन को अशांत कर दिया है, किंतु आपका मन अन्य स्त्रियों पर मोहित है, फिर भला आप मुझे प्रेम क्यों करेंगे? इसी दुःख के कारण मैं अपने प्राण त्याग देना चाहती हूँ ।”
उसकी बात सुन स्वरोचिष आश्चर्य से भरकर बोला – “मृगी ! तुम वन में विचरण करने वाली चंचल हिरणी हो और मैं मनुष्य हूँ । प्रकृति के नियमानुसार हमारा मिलन असम्भव है । अतः जीवन त्यागने का विचार छोड़ दो ।”
किंतु मृगी ने स्वरोचिष से एक बार आलिंगन करने की इच्छा प्रकट की । फिर जैसे ही उसने मृगी का आलिंगन किया, वैसे ही मृगी एक सुंदर देवी के रूप में प्रकट हो गई । यह देखकर वह बड़ा विस्मित हुआ । तब वह अपना परिचय देते हुए बोली – “वीरवर ! मैं इस वन की देवी हूँ और देवताओं की आज्ञा से आपकी सेवा में आई हूँ । आप मेरे गर्भ से अपने समान एक सुंदर और वीर बालक उत्पन्न कीजिए ।”
देवताओं की आज्ञानुसार स्वरोचिष ने वन देवी के गर्भ से अपने समान एक तेजस्वी बालक उत्पन्न किया । उस बालक का नाम द्युतिमान रखा गया । स्वरोचिष का पुत्र होने के कारण वह स्वारोचिष के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ । तत्पश्चात् स्वरोचिष पत्नियों सहित कठोर तप कर परम पद को प्राप्त हुआ ।
ब्रह्माजी ने स्वरोचिष के पुत्र स्वारोचिष को द्वितीय मनु पद पर आसीन किया । इस मन्वंतर में धिपश्चित नामक इन्द्र हुए । अत्रि, प्राण, बृहस्पति, दत्तात्रेय, च्यवन, वायुप्रोक्त और महाव्रत – ये सप्तर्षि थे । इस मन्वंतर में वेदशिरा नामक ऋषि की पत्नी तुषिता के गर्भ से भगवान् विष्णु विभु नाम से अवतरित हुए थे । उनके आचरण से शिक्षा ग्रहण करके अठासी हजार व्रतनिष्ठ ऋषि-मुनिगण ने ब्रह्मचर्य का पालन किया था ।
ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)
