davate shiraz
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अकबर का शासन-काल था। किसी कार्यवश इस्माईल खां शीराज से भारत आया और अपने संबंधी कमरुद्दीन के यहाँ रुका। कमरुद्दीन ने उसकी खातिरदारी के लिए एक-से-एक बढ़कर पकवान तैयार कराया। इस्माईल ने एक-एक पकवान की तारीफ के पुल बांध दिये। भोजन की समाप्ति पर कमरुद्दीन ने शिष्टाचार के नाते “पूछा-” में किसी तरह की कमी तो नहीं रह गयी?” पेट पर संतोष से हाथ फेरते हुए इस्माईल कहा – “तुम्हारी खातिरदारी और भोजन की जितनी तारीफ की जाये थोड़ी है। फिर भी दावते-शीराज का मुकाबला तुम्हारी खातिरदारी नहीं कर सकती।”

सुनकर कमरुद्दीन के स्वाभिमान को चोट लगी। सायंकाल का भोजन और भी उच्च-स्तर का बनवाया। परंतु अंत में फिर वही उत्तर सुनने को मिला- “दावते- शीराज का मुकाबला तो दुनिया में कहीं नहीं हो सकता।” आठ दिनों तक यही क्रम चलता रहा।

कुछ समय के बाद कमरुद्दीन इस्माईल खां से मिलने शीराज पहुँचा। इस्माईल खां ने उसकी बड़ी आवभगत की। उस समय रसोई तैयार थी। इस्माईल खां ने बड़े। ही आदर के साथ भोजन कराया और अपने साथ शीराज की सैर कराने ले गया। शाम के भोजन में दाल रोटी के साथ कुछ आचार की भी वृद्धि हो गयी। कमरुद्दीन दावते-शीराज के लिए उत्सुक था।

डेढ़ महीना बीतने पर भी जब दावते-शीराज की व्यवस्था नहीं हुई, तो एक रोज कमरुद्दीन ने मजाक में कहा- “यार, तुम दावते- शीराज की बड़ी तारीफ करते थे, एक दिन दावते- शीराज तो खिलाओ।” सुनकर इस्माईल कुछ मुस्कुराया और बोला- “मियां, मैं तुम्हारा बहुत ही एहसानमंद हूँ कि तुमने हिन्दुस्तान में मुझे एक-से-एक बढ़कर दावतें दीं_ पर दावते- शीराज का मुकाबला वाकई उनमें से एक भी दावत नहीं कर सकती। दाल और रोटी खुदा की सबसे बड़ी नियामत है। यही वह दावते-शीराज है। खर्चीली दावतें देकर तुम मुझसे आठ ही दिन में ऊब गये थे। तुम यहाँ सालों रहो, मेरे माथे पर बल नहीं आयेगा और मैं अल्लाहताला का शुक्र गुजार होऊंगा कि उसने मुझे रोज दावते-शीराज परोसने लायक बनाया।”

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)